आज 25 जुलाई बीर शहीद श्रीदेव
सुमन बडोनी (निवासी ग्राम जौल
जिला टेहरी गढ़वाल उत्तराखंड )
जी की पुण्य तिथि है ....209
दिनों की जेल की एकान्त यातना और
84 दिन की इस ऐतिहासिक अनशन वह
भी २९ वर्ष की अल्पआयु शहीद
श्रीदेव सुमन का बलिदान..... एक
सच्ची श्रद्धांजली ...श्रीदेव
सुमन ने जो संघर्ष किया, वह अपने
आप में एक इतिहास है। श्रीदेव
सुमन एक विचारधारा का नाम है।
जिनके अमर बलिदान के साक्ष्य हैं
टिहरी के वृक्ष जिसकी छाँव में
हमें स्वतंत्र होने का आनंद
प्राप्त होता है, टिहरी के पहाड़
जिनसे हमें अपने कर्तब्य के
प्रति अटल रहने, कभी ना झुकने व
जीवन की ऊँचाइयों को छूने
की प्रेरणा मिलती है वह गंगा,
भिलंगना, भागीरथी जैसे कई निरंतर
प्रवाहित पवित्र
नदियाँ जो किसी भी बाधा के समक्ष
घुटने नहीं टेकती और अपने प्रयाण
का मार्ग स्वयं ढूंड लेती हैं और
यह विद्यालय जो कई वर्षों से सुमन
जी के नाम की ज्वाला अपने
विद्यार्थिओं के ह्रदय में
निरंतर प्रज्वलित करता आ रहा है
किन्तु आज हम उन
मूल्यों को विस्मृत कर गए हैं
जो सुमन जी ने हमें एक स्वतंत्र
टिहरी का आजाद नागरिक बना सिद्ध
किया था. जिन मूल्यों के लिए
उन्होंने ८४ दिन अन्न जल
का परित्याग कर पंचतत्व
का आलिंगन किया था. उन्होंने एक
स्वतंत्र टिहरी राज्य
की ही नहीं अपितु कल्पना की थी एक
ऐसे भारत वर्ष की जो एक उन्नत,
स्वाबलंबी, शांति का द्योतक,
गौरवमयी राष्ट्र हो, जिसमें
प्रत्येक नागरिक को पूर्ण
स्वतंत्रता का अधिकार
हो..उत्तराखंड जनक्रांति में उनके
योगदान
को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
श्रीदेव सुमन ने समाज को सिर
उठाकर जीने की प्रेरणा दी है। उन
का बलिदान उत्तराखंड के इतिहास
में सदा याद
रहेगा ..लोकशाही की सथापना के लिए
८४ दिन के आमरण अनशन में २५
जुलाई १९४४ को शहादत देने वाले
अमर शहीद श्री देव सुमन की शहादत
दिवस पर २५ जुलाई को बलिदान दिवस
के रूप में मनाया जाता है .209
दिनों की जेल की एकान्त यातना और
84 दिन की इस ऐतिहासिक अनशन के
बाद मात्र 29 वर्ष की अल्पआयु में
25 जुलाई, 1944, को यह
क्रांतिकारी अपने देश, आदर्श और
आन के लिए इस संसार से विदा हो गए।
टिहरी रियासत के कर्मचारियों ने
जनाक्ररोश के भय से 25 जुलाई,
1944 की रात्रि को अमर शहीद
श्रीदेव सुमन के शव को बिना उनके
परिवार को सूचित कीए
टिहरी की भिलंगना नदी में
बलपूर्वक जलमग्न कर दिया। यह एक
पवित्र
आत्मा की हत्या थी टिहरी जनक्रांत
नायक अमर शहीद श्रीदेव सुमन के
पैतृक गांव जौल में उनकी जन्म
तिथि व पुण्य तिथि के मौके पर भले
ही कार्यक्रम आयोजित कर
उनका स्मरण
किया जाता रहा हो लेकिन उनके
पैतृक मकान को आज तक ऐतिहासिक
धरोहर घोषित नहीं किया गया है।
इसको लेकर
जनप्रतिनिधियों द्वारा अब तक
जो घोषणाएं की गईं वे हवाई साबित
हुई हैं। अभी तक उनके परिजनों ने
ही किसी तरह इस धरोहर को बचाकर
रखा है। टिहरी रियासत
की गुलामी में
जकड़ी प्रजा को आजादी दिलाने
वाले अमर शहीद को कोटि कोटि नमन ,,
सूत्र श्री नीरज डंगवाल