आज ही रखी गई थी राज्य आंदोलन की नींव
=======================आज से ठीक 17 साल पहले एक सितंबर 1994 को खटीमा से राज्य आंदोलन की क्रांतिकारी नींव रखी गई थी, जब यहां के सात सपूतों ने प्राणों की आहुति देकर कुमाऊं व गढ़वाल के लोगों को आंदोलन के लिए दिशा दी थी। उसके बाद तो समूचे राज्य के लोग सड़क पर उतर आये थे। लेकिन राज्य गठन के बाद प्रदेश में शासन करने वाली सरकारें खटीमा को कोई दिशा व पहचान नहीं दिला पाई। आज भी क्षेत्र के आंदोलनकारी प्रमाणपत्र के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।
एक सितंबर 1994 को सुबह करीब 10 बजे रामलीला मैदान से 20 हजार से अधिक राज्य समर्थकों का सैलाब जुलूस की शक्ल में मुख्य मार्गो से होता हुआ सर्कस ग्राउंड पहुंचा। वहां से फिर तहसील की ओर लौटने लगा। जनसैलाब से राज्य विरोधी शक्तियों व प्रशासनिक अधिकारियों के होश उड़ गए। कोतवाली के पास आंदोलनकारियों पर पथराव शुरू हो गया। पुलिस ने जनसमूह पर पहले लाठियां भांजीं, फिर आंसू गैस के गोले छोड़े। तत्कालीन कोतवाल डीके केन ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं और चंद मिनटों में तहसील प्रांगण व सड़कें खून से लाल हो गई। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के परिवारों को घरों से निकालकर बेरहमी से पीटा। करीब डेढ़ घंटे तक नगर में कहर बरपाया। दोपहर करीब एक बजे कर्फ्यू लगा दिया गया, जो 18 सितंबर तक लगा रहा। पुलिस तांडव में सात आंदोलनकारी भवान सिंह सिरौला, गोपी चंद, धर्मानंद भट्ट, प्रताप सिंह मनौला, परमजीत, सलीम, रामपाल शहीद हो गये। सैकड़ों आंदोलनकारी घायल हुए। बड़ी तादाद में घायलों ने पुलिस के भय से निजी अस्पतालों में उपचार कराया। खटीमा गोलीकांड के बाद राज्य आंदोलन पूरे प्रदेश में आग की तरह भड़क उठा। मजबूरन केंद्र सरकार को राज्य गठन करना पड़ा। आज गोलीकांड के 17 वर्ष पूरे हो गए, लेकिन क्षेत्र का विकास और भूमि-विवाद जैसी समस्याएं ज्यों की त्यों बनी हुई हैं।
शहादत दिवस पर हर साल पुराने तहसील परिसर में आंदोलनकारियों के साथ सत्तापक्ष व विपक्षी दलों के प्रमुख नेता जुटते है। शहीदों के सपनों के अनुरूप क्षेत्र के विकास के वादे गूंजते है, लेकिन वे वादे अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाए हैं। क्षेत्र के आंदोलनकारियों का ही सही चिह्नीकरण नहीं हो पाया है। इस कारण आंदोलनकारी प्रमाणपत्र के लिए धरना-प्रदर्शन करते रहते हैं।
पुरानी तहसील में श्रद्धांजलि सभा आज
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