Author Topic: Strugle Story Of Making Uttarakhand State - उत्तराखंड राज्य बनने की संघर्ष कहानी  (Read 28036 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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राज्य आन्दोलन की घटनाएँ
उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन में बहुत सी हिंसक घटनाएँ भी हुईं जो इस प्रकार हैं:

खटीमा गोलीकाण्ड  १ सितंबर,   १९९४ को उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का काला दिन माना जाता है, क्योंकि इस   दिन की जैसी पुलिस बर्बरता की कार्यवाही इससे पहले कहीं और देखने को नहीं   मिली थी। पुलिस द्वारा बिना चेतावनी दिये ही आन्दोलनकारियों के ऊपर   अंधाधुंध फायरिंग की गई, जिसके परिणामस्वरुप सात आन्दोलनकारियों की मृत्यु   हो गई। मारे ग एलोगों के नाम हैं:
 
  • अमर शहीद स्व० भगवान सिंह सिरौला, ग्राम श्रीपुर बिछुवा, खटीमा।
  • अमर शहीद स्व० प्रताप सिंह, खटीमा।
  • अमर शहीद स्व० सलीम अहमद, खटीमा।
  • अमर शहीद स्व० गोपीचन्द, ग्राम-रतनपुर फुलैया, खटीमा।
  • अमर शहीद स्व० धर्मानन्द भट्ट, ग्राम-अमरकलां, खटीमा
  • अमर शहीद स्व० परमजीत सिंह, राजीवनगर, खटीमा।
  • अमर शहीद स्व० रामपाल, निवासी-बरेली।
  • अमर शहीद स्व० श्री भगवान सिंह सिरोला।
  इस पुलिस फायरिंग में बिचपुरी निवासी श्री बहादुर सिंह, श्रीपुर बिछुवा के पूरन चन्द्र भी गंभीर रुप से घायल हुये थे।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मसूरी गोलीकाण्ड  २ सितंबर,   १९९४ को खटीमा गोलीकाण्ड के विरोध में मौन जुलूस निकाल रहे लोगों पर एक   बार फिर पुलिसिया कहर टूटा। प्रशासन से बातचीत करने गई दो सगी बहनों को   पुलिस ने झूलाघर स्थित आन्दोलनकारियों के कार्यालय में गोली मार दी। इसका   विरोध करने पर पुलिस द्वारा अंधाधुंध फायरिंग कर दी गई, जिसमें कई लोगों को   (लगभग २१) गोली लगी और इसमें से तीन आन्दोलनकारियों की अस्पताल में मृत्यु   हो गई।
मसूरी गोलीकाण्ड में शहीद लोगः
 
  • अमर शहीद स्व० बेलमती चौहान (४८), पत्नी श्री धर्म सिंह चौहान, ग्राम-खलोन, पट्टी घाट, अकोदया, टिहरी।
  • अमर शहीद स्व० हंसा धनई (४५), पत्नी श्री भगवान सिंह धनई, ग्राम-बंगधार, पट्टी धारमंडल, टिहरी।
  • अमर शहीद स्व० बलबीर सिंह (२२), पुत्र श्री भगवान सिंह नेगी, लक्ष्मी मिष्ठान्न, लाइब्रेरी, मसूरी।
  • अमर शहीद स्व० धनपत सिंह (५०), ग्राम-गंगवाड़ा, पट्टी-गंगवाड़स्यू, गढ़वाल।
  • अमर शहीद स्व० मदन मोहन ममगई (४५), नागजली, कुलड़ी, मसूरी।
  • अमर शहीद स्व० राय सिंह बंगारी (५४), ग्राम तोडेरा, पट्टी-पूर्वी भरदार, टिहरी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देहरादून गोलीकाण्ड  ३ अक्टूबर,   १९९४ को मुजफ्फरनगर काण्ड की सूचना देहरादून में पहुंचते ही लोगों का उग्र   होना स्वाभाविक था। इसी बीच इस काण्ड में शहीद स्व० श्री रविन्द्र सिंह   रावत की शवयात्रा पर पुलिस के लाठीचार्ज के बाद स्थिति और उग्र हो गई और   लोगों ने पूरे देहरादून में इसके विरोध में प्रदर्शन किया, जिसमें पहले से   ही जनाक्रोश को किसी भी हालत में दबाने के लिये तैयार पुलिस ने फायरिंग कर   दी, जिसने तीन और लोगों को इस आन्दोलन में शहीद कर दिया।
मारे गए लोगों के नामः
 
  • अमर शहीद स्व० बलवन्त सिंह सजवाण (४५), पुत्र श्री भगवान सिंह, ग्राम-मल्हान, नयागांव, देहरादून।
  • अमर शहीद स्व० राजेश रावत (१९), पुत्र श्रीमती आनंदी देवी, २७-चंदर रोड, नई बस्ती, देहरादून।
  • अमर शहीद स्व० दीपक वालिया (२७), पुत्र श्री ओम प्रकाश वालिया, ग्राम बद्रीपुर, देहरादून।
  • स्व० राजेश रावत की मृत्यु तत्कालीन सपा नेता सूर्यकांत धस्माना के घर से हुई फायरिंग में हुई थी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कोटद्वार काण्ड  ३ अक्टूबर, १९९४ को पूरा उत्तराखण्ड मुजफ्फरनगर काण्ड के विरोध में उबला   हुआ था और पुलिस-प्रशासन इनके किसी भी प्रकार से दमन के लिये तैयार था।   इसी कड़ी में कोट्द्वार में भी आन्दोलन हुआ, जिसमें दो आन्दोलनकारियों को   पुलिस कर्मियों द्वारा राइफल के बटों व डण्डों से पीट-पीटकर मार डाला।
कोटद्वार में शहीद आन्दोलनकारी:
 
  • अमर शहीद स्व० श्री राकेश देवरानी।
  • अमर शहीद स्व० श्री पृथ्वी सिंह बिष्ट, मानपुर, कोटद्वार।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नैनीताल गोलीकाण्ड  नैनीताल में भी विरोध चरम पर था, लेकिन इसका नेतृत्व बुद्धिजीवियों के   हाथ में होने के कारण पुलिस कुछ कर नहीं पाई, लेकिन इसकी भड़ास उन्होने   निकाली प्रशान्त होटल में काम करने वाले प्रताप सिंह के ऊपर। आर०ए०एफ० के   सिपाहियों ने इसे होटल से खींचा और जब यह बचने के लिये मेघदूत होटल की तरफ   भागा, तो इनकी गर्दन में गोली मारकर हत्या कर दी गई।
नैनीताल गोलीकांड में शहीद लोगः
 
  • अमर शहीद स्व० श्री प्रताप सिंह।

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श्रीयंत्र टापू (श्रीनगर) काण्ड  श्रीनगर कस्बे से २ कि०मी० दूर स्थित श्री यंत्र टापू पर आन्दोलनकारियों ने ७ नवंबर, १९९४ से इन सभी दमनकारी घटनाओं के विरोध और पृथक उत्तराखण्ड राज्य हेतु आमरण अनशन आरम्भ किया। १० नवंबर,   १९९४ को पुलिस ने इस टापू में पहुंचकर अपना कहर बरपाया, जिसमें कई लोगों   को गंभीर चोटें भी आई, इसी क्रम में पुलिस ने दो युवकों को राइफलों के बट   और लाठी-डण्डों से मारकर अलकनन्दा नदी में फेंक दिया और उनके ऊपर पत्थरों की बरसात कर दी, जिससे इन दोनों की मृत्यु हो गई।
श्रीयंत्र टापू के शहीद लोगः
 
  • अमर शहीद स्व० श्री राजेश रावत।
  • अमर शहीद स्व० श्री यशोधर बेंजवाल।
  इन दोनों शहीदों के शव १४ नवंबर, १९९४ को बागवान के समीप अलकनन्दा में तैरते हुये पाये गये थे।

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आज ही रखी गई थी राज्य आंदोलन की नींव
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आज से ठीक 17 साल पहले एक सितंबर 1994 को खटीमा से राज्य आंदोलन की क्रांतिकारी नींव रखी गई थी, जब यहां के सात सपूतों ने प्राणों की आहुति देकर कुमाऊं व गढ़वाल के लोगों को आंदोलन के लिए दिशा दी थी। उसके बाद तो समूचे राज्य के लोग सड़क पर उतर आये थे। लेकिन राज्य गठन के बाद प्रदेश में शासन करने वाली सरकारें खटीमा को कोई दिशा व पहचान नहीं दिला पाई। आज भी क्षेत्र के आंदोलनकारी प्रमाणपत्र के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।

एक सितंबर 1994 को सुबह करीब 10 बजे रामलीला मैदान से 20 हजार से अधिक राज्य समर्थकों का सैलाब जुलूस की शक्ल में मुख्य मार्गो से होता हुआ सर्कस ग्राउंड पहुंचा। वहां से फिर तहसील की ओर लौटने लगा। जनसैलाब से राज्य विरोधी शक्तियों व प्रशासनिक अधिकारियों के होश उड़ गए। कोतवाली के पास आंदोलनकारियों पर पथराव शुरू हो गया। पुलिस ने जनसमूह पर पहले लाठियां भांजीं, फिर आंसू गैस के गोले छोड़े। तत्कालीन कोतवाल डीके केन ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं और चंद मिनटों में तहसील प्रांगण व सड़कें खून से लाल हो गई। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के परिवारों को घरों से निकालकर बेरहमी से पीटा। करीब डेढ़ घंटे तक नगर में कहर बरपाया। दोपहर करीब एक बजे क‌र्फ्यू लगा दिया गया, जो 18 सितंबर तक लगा रहा। पुलिस तांडव में सात आंदोलनकारी भवान सिंह सिरौला, गोपी चंद, धर्मानंद भट्ट, प्रताप सिंह मनौला, परमजीत, सलीम, रामपाल शहीद हो गये। सैकड़ों आंदोलनकारी घायल हुए। बड़ी तादाद में घायलों ने पुलिस के भय से निजी अस्पतालों में उपचार कराया। खटीमा गोलीकांड के बाद राज्य आंदोलन पूरे प्रदेश में आग की तरह भड़क उठा। मजबूरन केंद्र सरकार को राज्य गठन करना पड़ा। आज गोलीकांड के 17 वर्ष पूरे हो गए, लेकिन क्षेत्र का विकास और भूमि-विवाद जैसी समस्याएं ज्यों की त्यों बनी हुई हैं।

शहादत दिवस पर हर साल पुराने तहसील परिसर में आंदोलनकारियों के साथ सत्तापक्ष व विपक्षी दलों के प्रमुख नेता जुटते है। शहीदों के सपनों के अनुरूप क्षेत्र के विकास के वादे गूंजते है, लेकिन वे वादे अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाए हैं। क्षेत्र के आंदोलनकारियों का ही सही चिह्नीकरण नहीं हो पाया है। इस कारण आंदोलनकारी प्रमाणपत्र के लिए धरना-प्रदर्शन करते रहते हैं।

पुरानी तहसील में श्रद्धांजलि सभा आज


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8139439.html

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राज्य आंदोलनकारियों से भी छल
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हल्द्वानी,जासं: चुनावी वर्ष में पिछले छह माह के भीतर तत्कालीन भाजपा सरकार ने ताबड़तोड़ घोषणाएं की, और चुनाव के समय उसे जमकर भुनाया भी, लेकिन योजनाएं धरातल की तलाश में अब भी भटक रही हैं। हद तो यह कर दी कि जिन आंदोलनकारियोंकी त्याग और तपस्या के बूते राज्य बना, उन्हें भी छल का शिकार बना दिया।

यहां बात हो रही है परिवहन निगम की बसों में राज्य आंदोलनकारियों को मुफ्त यात्रा कराने की योजना की। ऐन चुनाव से पूर्व तत्कालीन सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों और उनके आश्रित दो बच्चों को निगम की बसों में मुफ्त यात्रा कराने की घोषणा की थी।

 लाभ लेने के लिए 13 दिसंबर 11 को इस आशय का शासनादेश भी निर्गत कर दिया गया। इस शासनादेश की प्रति सभी राज्य आंदोलनकारियों को भेजी गई और चुनाव के समय इसे अपनी उपलब्धियों में शुमार किया गया, लेकिन यह छल अब सामने आ गया है।

 परिवहन निगम ने शासनादेश पर घाटे का हवाला देकर संज्ञान नहीं लिया। एमडी स्तर से शासनादेश के अनुपालन संबंधी आदेश निर्गत नहीं किया गया। इस बात से तत्कालीन सरकार को भी निगम ने अवगत करा दिया। फिर भी राज्य आंदोलनकारियों को धोखे में रखा गया। निगम सूत्रों का कहना है कि अब यह योजना तभी लागू हो सकती है जबकि नई सरकार इस मामले में नए सिरे से पहल करे।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_9056579.html

 

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