Uttarakhand > Uttarakhand History & Movements - उत्तराखण्ड का इतिहास एवं जन आन्दोलन

उत्तराखण्ड के अरबपति दान सिंह ‘मालदार’ की कहानी

(1/1)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Dosto,

We are proving very exclusive information about Dhan Singh Maldar of Nainital who was known as " Timber King Of India " during the British time. We have this information about Kafal Tree website. {Courtesy Kafal Tree page}.

#पुण्यतिथि_विशेष
परोपकारी चरित्र के कारण उनकी छवि लोककथाओं के लोकनायक सी बन चुकी थी. जो एक घोड़े पर सवार रहा करता था और उसके हाथ जनता को दी जाने वाली सौगातों से भरे रहते. उस दौर में ब्रिटिश रेलवे प्रणाली के लिए पटरी पर बिछाये जाने वाले लकड़ी के स्लीपरों की आपूर्ति दान सिंह बिष्ट द्वारा ही की जाती थी.

https://www.kafaltree.com/dan-singh-bisht-maldar/

Regards,

M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
दान सिंह बिष्ट ‘मालदार’ (Dan Singh Bisht ‘Maldar’) (1906 -10 सितंबर 1964)
दान सिंह बिष्ट उर्फ़ दान सिंह ‘मालदार’ (Dan Singh Maldar) उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल के अरबपति कारोबारी थे. ब्रिटिश भारत में उन्हें ‘भारत के टिम्बर किंग’ (Timber King of India) के नाम से भी जाना जाता है. उन्हें पूरे भारत में एक चैंपियन कारोबारी का दर्जा हासिल था.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
कुमाऊँ के लोग उन्हें आज भी दान सिंह ‘मालदार’ के रूप में याद करते हैं. ब्रितानी मूल के भारतीय वास्तुकार लॉरी बेकर और उनकी पत्नी ने अपने संस्मरण में उनका जिक्र एक करीबी दोस्त के रूप में किया है. जो उनके समय में पिथौरागढ़ के खासे हिस्से के मालिक हुआ करते थे. मालदार कॉर्बेट के करीबी कारोबारी सहयोगी भी थे. मालदार ने जिम कॉर्बेट से नैनीताल का ग्रासमेयर एस्टेट और एक अन्य अंग्रेज मिस्टर रॉबर्ट्स से बेरीनाग के चाय बागानों को खरीदा था. कॉर्बेट द्वारा शिकार कर मारे गए बाघों की खाल दान सिंह मालदार के निवास स्थान ‘बिष्ट एस्टेट’ में रखी रहती थीं. कॉर्बेट दान सिंह बिष्ट के कर्मचारियों से जंगल के सुराग लिया करते थे. ये कर्मचारी मालदार के लिए शारदा नदी में लकड़ी के लट्ठों को बहाने का काम किया करते थे.

दान सिंह मालदार – 1947

विलियम मैकके ऐटकेन ने चौकोरी और बेरीनाग की यात्रा के दौरान ‘दान सिंह मालदार’ के दर्शनीय चाय बागानों की भी यात्रा की और इन बागानों की ‘बेरीनाग चाय’ का लुत्फ लिया था. यह चाय लंदन तक के चाय प्रेमियों के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ करती थी. दान सिंह मालदार को नैनीताल डीएसबी कॉलेज की स्थापना के लिए उनके द्वारा किये गए दान के लिए भी याद किया जाता है. नैनीताल के मध्य में 12 एकड़ से अधिक भूमि और पांच लाख रुपये की नकद राशि का चंदा दिया. उस वक्त कॉलेज के लिए दान दी गयी मौके की जमीन का मूल्य भी 15 लाख रुपये था. उनके इस कदम की स्वतंत्र भारत की नई सरकार का भी ध्यानाकर्षण किया. भारत सरकार ने उनके इस कदम की सराहना की. उस दौर में 20 लाख रुपये बहुत बड़ी धनराशि हुआ करती थी. यह वह दौर था जब रुपया पाउंड के बराबर हुआ करता था.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
एक फिल्म का मिथक
इन्हीं दिनों जगमणि पिक्चर्स द्वारा मालदार नाम से एक हिंदी फीचर रिलीज़ की गयी. इस फिल्म ने शेष भारत में बहुत अच्छा कारोबार किया मगर हिमालयी हिस्सों में यह सुपरहिट रही. फिल्म एक विनम्र पृष्ठभूमि के दानी एक युवा कारोबारी के बारे में थी जो मालदार बन जाता है. इस व्यक्ति के पास बहुत सारा सामान है और वह इसे लोगों के साथ बांटता है. फिल्म के बारे में व्यापक रूप से अफवाह फैली कि दान सिंह बिष्ट द्वारा इस फिल्म के लिए पैसा दिया गया है. एक फिल्म वितरक ने दान सिंह से उस वक़्त 70,000 रुपये उधार लिए थे जब वे भारत के टिम्बर किंग के रूप में अपना साम्राज्य खड़ा कर रहे थे.

मालदार फिल्म का पोस्टर

देश विदेश में फैलाया कारोबार
जब मालदार टिम्बर किंग के रूप में अपने कारोबार की बुलंदियों पर थे तो उनके विशाल लकड़ी के डिपो दूर-दूर तक फैले हुए थे. इनमें आफिस, मैनेजरों तथा खुद के रहने के लिए विशाल बंगले भी हुआ करते था. यह लकड़ी डिपो लाहौर से वजीराबाद तक समूची हिमालय पट्टी में दूर-दूर तक विस्तारित थे. बाद में पाकिस्तान, जम्मू से पठानकोट, कतर्निया घाट, कुरिल्या घाट और सीबीगंज बरेली, बिहार तक इनके लकड़ी के गोदाम बन गए. उस ज़माने में पिथौरागढ़, टनकपुर, काठगोदाम और हल्द्वानी से गौलापार और गारो हिल्स के साथ-साथ नेपाल में बर्दिया जिले और काठमांडू प्रत्येक स्थान पर उनके द्वारा खरीदी गयी संपत्तियां-परिसंपत्तियां हुआ करती थीं. सभी जगहों पर उनका कारोबार फैला हुआ था. उनके बढ़ते कारोबार और परोपकारी चरित्र के कारण उनकी छवि लोककथाओं के लोकनायक सी बन चुकी थी. जो एक घोड़े पर सवार रहा करता था और उसके हाथ जनता को दी जाने वाली सौगातों से भरे रहते. उस दौर में ब्रिटिश रेलवे प्रणाली के लिए पटरी पर बिछाये जाने वाले लकड़ी के स्लीपरों की आपूर्ति दान सिंह बिष्ट द्वारा ही की जाती थी. असम में मौजूद उनके एजेंट जीएस भंडारी और जगदीश सिंह के मार्फ़त भी यह आपूर्ति हुआ करती थी. वे अपने इन मैनेजरों से गौरीपुर के रूपसी एअरपोर्ट पर मुलाकात किया करते. उस दौर का कोई भी भारतीय लकड़ी कारोबारी दान सिंह मालदार के आसपास भी नहीं फटक सका था. अपने उरूज पर दान सिंह मालदार की कंपनी ‘डी एस बिष्ट एंड संस’ के लिए 5000 कर्मचारी काम किया करते थे. उनकी करोड़ों रुपये की पूंजी कारोबार में लगी हुई थी. वे अंडमान और ब्राजील तक में ठेकों के लिए निविदाएं डाल रहे थे. अपनी असामयिक मृत्यु से पहले दान सिंह बिष्ट ने अपनी आखिरी और बड़ी खरीदारी की थी. उन्होंने मुर्शिदाबाद से एक बड़ी शुगर मिल की खरीदारी की. आजाद भारत की विषम औद्योगिक नीति की वजह से दान सिंह को कलकत्ता बंदरगाह से इस मिल की मशीनरी को उठाने से रोक दिया गया. उस पर भारी टैक्स लगा दिए गए. दान सिंह बिष्ट को इस मशीनरी को भारी कर्जा उठाकर पुनः खरीदना पड़ा. नैनीताल की डीएस बिष्ट एंड संस द्वारा 1956 में ‘बिष्ट इंडस्ट्रियल कार्पोरेशन लिमिटेड’ नाम से किच्छा में एक शुगर मिल शुरू करने का लाइसेंस लिया था. 2000 टन प्रतिदिन क्षमता वाली यह शुगर मिल कुमाऊँ के गन्ना किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होने वाली थी. दान सिंह को उम्मीद थी कि इस मिल के लिए मुर्शिदाबाद से लायी जा रही मशीनरी के मामले में सरकारी छूट मिल सकेगी. सरकारी नीतियों ने इसे असंभव बना दिया. दान सिंह एक दिन भी इस मिल को नहीं चला पाए और 1963 में उन्हें मजबूरी में इसके सभी शेयर बेचने पड़े. इसी के एक साल बाद दान सिंह मालदार की असामयिक मृत्यु हो गयी. 1971 में भारत सरकार द्वारा इस मिल का अधिग्रहण कर लिया गया. इसके बाद दान सिंह बिष्ट काफी तनाव में आ गए. उन्हें कलकत्ता के ग्रांड होटल में तनावग्रस्त व असक्त स्थिति में पाया गया. बाद में वे अस्पताल में चैतन्यकारी स्थिति में भरती रहे. उनके बीमार होते ही उनका साम्राज्य ध्वस्त होना शुरू हो गया. 10 सितम्बर 1964 को अस्पताल में ही उनकी मृत्यु हो गयी. दान सिंह मालदार का कोई बेटा नहीं था. उनकी मृत्यु के वक़्त तक उनकी बेटियां भी कम ही उम्र की थीं. एक पुरुषसत्ता वाले समाज में उस दौर में कम उम्र की लड़कियों के लिए इस साम्राज्य को बनाये रखना और संभाल पाना भी आसान नहीं था. एक कुशल कारोबारी नेतृत्व के अभाव में उनके बेरीनाग और चौकौड़ी में स्थित चाय बागान अराजकता का शिकार हो गए. निष्क्रियता के साथ-साथ सरकारी नीतियों ने भी इन बागानों के तबाह हो जाने में भूमिका अदा की. बेरीनाग, चौकोड़ी और मुरादाबाद में दान सिंह की सैकड़ों एकड़ भूमि सरकार द्वारा जमींदारी उन्मूलन अभियान के तहत अधिग्रहित कर ली गयी. चौकोड़ी और बेरीनाग कस्बे का ज्यादातर हिस्सा एक ज़माने में दान सिंह की मिलकियत हुआ करता था. मुरादाबाद के राजा गजेन्द्र सिंह द्वारा भारी कर्ज न चुका पाने की वजह से सरकार ने उनकी जमीनों को जब्त कर नीलाम कर दिया था. तब दान सिंह ने 1945 में 235,000 रुपये में यह जमीनें सरकार से खरीदी थीं. नैनीताल में झील से सटे हुए दान सिंह मालदार के कई शानदार बंगले हुआ करते थे जो उनकी मृत्यु के बाद उनके हाथ से जाते रहे.
दान सिंह का बचपन
दान सिंह बिष्ट का जन्म पिथौरागढ़ जिले के वड्डा में 1906 में हुआ था. उनके पिता ने उस समय भारत-नेपाल बॉर्डर के मामूली से कस्बे झूलाघाट में घी बेचने की छोटी सी दुकान खोली. दान सिंह के पिता देब सिंह दक्षिणी नेपाल के बैतड़ी जिले से पलायन कर यहाँ पहुंचे थे. दान सिंह 1947 में भारत के आजाद होने तक भी नेपाली नागरिक ही बने हुए थे. 12 साल की उम्र में ही दान सिंह ने अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी. वे एक ब्रिटिश लकड़ी व्यापारी के साथ वर्मा जाकर व्यापार के गुर सीखने लगे. वर्मा तब ब्रिटिश भारत का हिस्सा हुआ करता था. यहाँ उन्होंने लकड़ी के व्यापार का अंदरूनी गणित सीखा. यहीं पर उन्होंने साहब लोगों के रहन-सहन के तौर तरीके भी सीखे, जिसने आगे चलकर इस व्यापार का छत्रप बनने में उनकी मदद की. जब दान सिंह वर्मा से लौटे तो उनके पिता ने अपने जीवन का एक बड़ा दांव खेला. 19 सितम्बर 1919 को झूलाघाट के मामूली से दुकानदार देब सिंह बिष्ट ने एक ब्रिटिश कंपनी से उसका 2000 एकड़ का फार्म खरीदने के लिए कर्ज उठाया. दान सिंह कैप्टन जेम्स कॉर्बेट की एस्टेट से सटी बेरीनाग एस्टेट खरीदने में कामयाब रहे. दान सिंह ने एस्टेट खरीदने की इस प्रक्रिया का बेहतरीन प्रबंधन किया. उन्होंने न सिर्फ यह टी एस्टेट खरीदने में कामयाबी पायी बल्कि चीनी चाय विक्रेताओं का वह गुप्त नुस्खा भी ढूंढ निकाला जिससे चीनीयों ने चाय बाजार में भारतीयों पर बढ़त बनायी हुई थी. उनके मैनेजर ने वह मसाला ढूँढ निकाला जिसके इस्तेमाल से चीनी लोग अपनी चाय में वह दिलकश रंग और जायका पैदा किया करते थे जिसका कि ज़माना मुरीद हुआ करता था. दान सिंह की चाय की लोकप्रियता तो बढ़ी ही वे चाय की दुनिया के उभरते सितारे बन चले. जल्द ही दान सिंह बिष्ट की बेरीनाग चाय भारतीय, चीनी और ब्रितानी बाजार की नंबर वन ब्रांड बन गयी. भारत सरकार के टी बोर्डों के दस्तावेजों में इसका जिक्र आज भी देखा जा सकता है. 20 मई 1924 को 18 साल कि उम्र में दान सिंह ने ब्रिटिश इंडियन कॉर्पोरेशन लिमिटेड से एक शराब की भट्टी (ब्रेवरी) खरीदी. इसकी 50 एकड़ जमीन में उन्होंने अपने और अपने पिता के लिए दफ्तर और घर का निर्माण शुरू किया. दान सिंह बिष्ट ने कठिनाई भरे पहाड़ी इलाकों में बहने वाली नदियों पर परिवहन की दिशा में तकनीकी का का ईजाद किया. उन्होंने पानी के रास्ते इमारती लकड़ियों के परिवहन और रस्सी से बने पुलों की जिस तकनीक का इस्तेमाल किया उस पर आज भी चर्चा की जाती है. उन्होंने किसनई से मेहंदीपत्थर तक एक शॉर्टकट का निर्माण किया, जिसे स्थानीय स्तर पर परिवहन को आसान बनाने के कारण ‘बिष्ट रोड’ कहा जाता है
सामाजिक कामों में भागीदारी
1947 में बिष्ट ने अपनी माँ और पिता के नाम पर श्री सरस्वती देब सिंह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, पिथौरागढ़ का निर्माण किया. स्कूली शिक्षा के लिए अपनी तरह का यह पहला प्रयास था. शहर के केंद्र में फुटबॉल के मैदान के लिए एक कीमती भूखंड खरीदा गया. भूमि, भवन, और फर्नीचर, और अन्य जरूरतों के लिए स्कूल को शुरुआती फंड भी दिया गया. जब तक इसके स्कूल के पहले छात्रों के बैच ने अपनी बारहवीं तक पढ़ाई पूरी की तब तक नैनीताल में देब सिंह बिष्ट कॉलेज खोला दिया गया था. इस दौरान उन्होंने SSBSE (श्रीमति सरस्वती बिष्ट छात्रवृत्ति बंदोबस्ती) ट्रस्ट भी बनाया. छात्रवृत्ति और स्कूल आज भी जारी हैं. 24 अक्टूबर 1949 को दान सिंह बिष्ट द्वारा उनकी मां के नाम पर स्थापित श्रीमति सरस्वती बिष्ट छात्रवृत्ति बंदोबस्ती ट्रस्ट पिथौरागढ़ आज भी जिले का एकमात्र ट्रस्ट है. यह एक शैक्षिक ट्रस्ट है और द्वितीय विश्व युद्ध में शहीद हुए पिथौरागढ़वासियों के बेटों और बेटियों को छात्रवृत्ति प्रदान करता है. भारतीय स्वतंत्रता के कुछ समय बाद उन्होंने वेलेज़ली गर्ल्स स्कूल को खरीदा और कुछ नयी इमारतों का निर्माण करने के बाद 1951 में इसे एक कॉलेज में परिवर्तित कर दिया गया. कॉलेज को उनके दिवंगत पिता देव सिंह की स्मृति में बनाया गया था. आज इसे कुमाऊं विश्वविद्यालय के डीएसबी कैम्पस कॉलेज के नाम से जाना जाता है. कुमाऊं विश्वविद्यालय की स्थापना 1973 में की गई थी. जब इसमें देव सिंह बिष्ट (DSB) गवर्नमेंट कॉलेज, जिसे आमतौर पर डिग्री कॉलेज कहा जाता था, समाहित किया गया. जिसकी स्थापना 1951 में दान सिंह बिष्ट ने अपने दिवंगत पिता देव सिंह बिष्ट की स्मृति में की थी। दान सिंह बिष्ट ने गणितज्ञ डॉ. ए.एन. सिंह को इसके पहले प्राचार्य के रूप में चुना और निर्धन छात्रों के लिए ‘ठाकुर दान सिंह बिष्ट छात्रवृत्ति’ की भी शुरुआत की. इसका उपयोग आज भी किया जाता है. लाखों लोग अपने कॉलेज के संस्थापक को क्षेत्र के पहले अरबपति परोपकारी उद्यमी के रूप में याद करते हैं. दान सिंह इन सभी युवाओं के लिए एक आदर्श हैं. (Dan Singh Bisht Maldar) डीएसबी कॉलेज, जो अब कुमाऊं विश्वविद्यालय का प्रमुख परिसर है, की स्थापना 1951 में पूरे क्षेत्र में पहले उच्च स्तर के कॉलेज के रूप में की गई थी. कॉलेज की स्थापना 12 एकड़ भूमि और भवन की खरीद की गई थी, जिसकी कीमत लगभग 15 लाख रुपये थी. शुरुआती खर्च और वेतन के लिए 50000 रुपये रखे गए थे. प्रख्यात पर्यावरणविद् और कुमाऊं विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर अजय सिंह रावत ने दान सिंह बिष्ट को अपनी पुस्तक नैनीताल बेकन्स में उत्तराखंड में ‘उच्च शिक्षा का अग्रदूत’ कहा है.
युवावस्था के अन्य सामाजिक कार्य
अपने दादा राय सिंह बिष्ट की स्मृति में उन्होंने तीर्थयात्रियों के लिए पहली तीन मंजिला धर्मशाला या विश्राम गृह का निर्माण भी कराया था. वे बेरीनाग में कई अस्पतालों और मरीजों को आर्थिक मदद भी दिया करते थे. दान सिंह ने बेरीनाग में एक पशु चिकित्सालय 28 अक्टूबर 1961 को दान में दिया गया था, यह एक एकड़ से अधिक जमीन पर बनी इमारत थी. बेरीनाग में एक कॉलेज के लिए उन्होंने अपने भाई के नाम पर 30 एकड़ प्रमुख भूमि दान में दी. ऐसे ही एक स्कूल, एक खेल के मैदान, अस्पताल, और विभिन्न सरकारी कार्यालयों के लिए भी उनके द्वारा भूमि दान में दी गयी, जिसमें बेरीनाग में वन विभाग का रेस्ट हाउस भी शामिल था, क्वीतड़ में उनके पुश्तैनी गांव में पीने का पानी, बेरीनाग में विभिन्न औषधालय उनके द्वारा खोले गए. असंख्य लोग हैं जिनकी शिक्षा का खर्च उन्होंने उठाया चाहे वह जरूरतमंद रहे हों या योग्य. बेरीनाग कस्बे के स्कूलों से लेकर अस्पतालों, खेल के मैदानों, पार्कों, धर्मार्थ केंद्रों, डिस्पेंसरियों तक हर एक सार्वजनिक जगह डीएसबिष्ट एंड संस की ऋणी हैं
व्यक्तिगत जीवन
दान सिंह की 3 पत्नियां थीं, उस वक़्त हिंदू विवाह अधिनियम आने से पहले यह वैध था. दान सिंह बिष्ट की सात बेटियां थीं जो 10 सितंबर 1964 को उनकी असामयिक मृत्यु के वक़्त छोटी ही थीं. उनके दान सिंह मालदार के आद्योगिक साम्राज्य को नियंत्रण में ले पाने में अक्षम होने की स्थिति में उनके प्रबंधकों और सलाहकारों ने चीनी मिलों, चाय बागानों, और लकड़ी के कारोबार पर नियंत्रण ज़माने की कोशिश की. आखिरकार यह साम्राज्य ढह गया. (Dan Singh Bisht Maldar) –सुधीर कुमार (विकिपीडिया से प्राप्त जानकारी के आधार पर)

Support Kafal Tree



.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Tags:BeerbhattiBillionaire of UttarakhandD. S. Bisht & SonsDan Singh BishtDan Singh MaldarDev singh BishtDev Singh Bisht MaldarDSB CollegeDSB NainitalSudhir KumarTimber King of Indiaउत्तराखण्ड के अरबपतिटिम्बर किंग ऑफ़ इंडियाडीएस बिष्ट एंड संसडीएसबी नैनीतालदान सिंह बिष्टदान सिंह मालदारदेव सिंह बिष्टदेव सिंह बिष्ट मालदारबियर भट्टीबिष्ट इंडस्ट्रियल कार्पोरेशन लिमिटेडबीर भट्टीसुधीर कुमार
RELATED ARTICLES
पप्पू कार्की हमेशा याद आएंगे: पुण्यतिथि विशेष
पप्पू कार्की हमेशा याद आएंगे: पुण्यतिथि विशेष
June 09, 2021
अमेजन प्राइम की वेबसीरीज में अभिनय करती दिखेंगी उत्तराखण्ड की प्रज्ञा
अमेजन प्राइम की वेबसीरीज में अभिनय करती दिखेंगी उत्तराखण्ड की प्रज्ञा
April 17, 2021
गुदगुदाते उत्तराखंडी कार्टूनों का गुच्छा है कंचन जदली का लाटी आर्ट
गुदगुदाते उत्तराखंडी कार्टूनों का गुच्छा है कंचन जदली का लाटी आर्ट
March 08, 2021
आलू के गुटके : उत्तराखण्ड का सबसे लोकप्रिय व्यंजन
आलू के गुटके : उत्तराखण्ड का सबसे लोकप्रिय व्यंजन
December 22, 2020
इस दिवाली हेमलता की ऐपण थाली
इस दिवाली हेमलता की ऐपण थाली
November 04, 2020
पहाड़ के जंगलों को खूबसूरत बनाने वाले छीड़ की तस्वीरें
पहाड़ के जंगलों को खूबसूरत बनाने वाले छीड़ की तस्वीरें
August 03, 2020
श्रद्धा थपलियाल : उत्तराखण्ड से मिसेज सिंगापुर ब्यूटी क्वीन तक
श्रद्धा थपलियाल : उत्तराखण्ड से मिसेज सिंगापुर ब्यूटी क्वीन तक
July 09, 2020
हेमलता कबडवाल ‘हिमानी’ : एक्टर मनोज बाजपेयी भी जिसकी कला के प्रशंसक हैं
हेमलता कबडवाल ‘हिमानी’ : एक्टर मनोज बाजपेयी भी जिसकी कला के प्रशंसक हैं
June 24, 2020
20 COMMENTS

Anonymous
January 25, 2019 at 7:20 pm
गज़ब की जानकारी।


Pramod
January 25, 2019 at 10:10 pm
Very interesting
  Valuable information


Anonymous
January 26, 2019 at 7:32 am
बहुत दिनों सके यह इच्छा थी की ” मालदार ” के नाम से प्रसिद्ध दधनवान बयक्ति केके बारे में जानूं आआज यह लेख पढ़ कर बहूत अच्छा लगा
धन्यवाद


Anonymous
January 26, 2019 at 10:29 am
Saandaar


Anonymous
January 26, 2019 at 11:30 am
महादानी, कुमाऊं क्षेत्र के रोजगार प्रदात्ता, दुकानदारों के माई-बाप, शिक्षा व सामाजिक संस्थाओं के जन्मदाता, उदार हृदय दान सिंह सौन (बिष्ट) के बारे में एक जगह संकलित जानकारी सराहनीय है!!


Anonymous
January 26, 2019 at 1:20 pm
Wah MALDAR JI AAJ TAK SUNA THA PER AAJ WASTAV MAI MALUM HO GYA


Anonymous
January 26, 2019 at 6:19 pm
Very nice ?? Jo bujurgo see thoda bhut nam suna that unke bare m padne ko Mila ..dhanya the Jo log itne propkare the hmara satsat Naman h unko …Jai uttrakhand..


Anonymous
January 26, 2019 at 6:23 pm
The Great Men of Uttarakhand. (Dan Singh Maaldar)


Anonymous
January 27, 2019 at 8:24 am
nice
ds bohra 9910970777
pg fm dsb campus


Anonymous
January 27, 2019 at 8:29 am
A lot of thanks to issue the story of Dan singh bisht .


Anonymous
January 27, 2019 at 1:43 pm
Great information.


Anonymous
January 27, 2019 at 2:44 pm
Nice information


Anonymous
January 27, 2019 at 4:30 pm
Finally got the valuable information,
Great contribution by the writer,
Thanks to writer for his great efforts


Anonymous
January 27, 2019 at 11:17 pm
Legend?


Anonymous
January 28, 2019 at 10:42 pm
मित्रो is movie को देखने की कोशिश की है पर सफलता हाथ नहीं लगी किसी मित्र को इसकी जानकारी हो तो… Kirpya hme bhi सूचित krein आपकी bhut kirpa hogi


Anonymous
January 30, 2019 at 11:09 pm
तत्कालीन पर्वतीय मंडल तथा वर्तमान के महान उद्योगपति और समर्पित समाज सेवी के रूप में ठा. दान सिंह बिष्ट जी के बारे में विस्तृत जानकारी से अभिभूत हूं ।


श्याम सिंह रावत
February 9, 2019 at 11:50 pm
इस आलेख में वह प्रकरण छूट गया है जो देश विभाजन के समय पाकिस्तानी इलाके में चले गए हिस्से―बिलोचिस्तान में ‘टिंबर किंग ऑफ इंडिया’ के इमारती लकड़ी के ठेकों की निकासी से जुड़ा हुआ है और तत्कालीन गृहमंत्री पं. गोविंद वल्लभ पंत ने उनकी कोई मदद नहीं की। हालांकि पंडित पंत ने उन्हें उक्त लकड़ी की निकासी या प्रतिपूर्ति दिलाने का आश्वासन दिया था और इसके बदले में मालदार से नैनीताल में डिग्री कॉलेज की स्थापना के लिए जमीन और पाँच लाख रुपए नकद दिलवाये। वचन के धनी दानसिंह बिष्ट ने अपना कर्तव्य निभाया लेकिन पंडित पंत ने हाथ खड़े कर पल्ला झाड़ लिया। इससे मालदार साहब को दोहरा आर्थिक नुकसान हुआ।


विकास नैनवाल
September 10, 2019 at 1:07 pm
रोचक जानकारी। दान सिंह मालदार जी से अभी तक अपरिचित था। जानकर अच्छा लगा।


Girish
September 13, 2019 at 5:48 pm
but we search Movie Maldar we can’t find it


KVM Vikas
September 14, 2020 at 9:00 pm
अत्यंत रोचक जानकारी…ऐसा लगा मानो चलचित्र की स्लाइड्स चल रही है।

LEAVE A REPLY
Your email address will not be published. Required fields are marked *

Comment...

Name (required)
Email (required)
Website

 
नियमित कॉलम
Mind Fit 50 Columnताकि लूट सकें आप जिंदगी का जादुई खजानासुन्दर चन्द ठाकुर
Tagore Top Ramgarhरामगढ़ के टाइगर टॉप में एक विश्व विद्यालय बनाने की कह…बटरोही
Mahasu Devta Hanol Uttarakhand Photosहनोल स्थित ‘महासू देवता’ का मंदिर: फोटो …कमलेश जोशी
 
Gauriya in Traditional House Uttarakhandपहाड़ में अब रिश्तों की गरमाहट से चलने वाले घरों की …समाज
 
Dehradun's Afghan Connectionदेहरादून का अफगान कनेक्शनइतिहास, समाज
Budapest Memoir by Batrohiभैंस-पालकों की घाटी से घोड़ों के दौड़ते झुण्ड वाले देश…बटरोही
6 September in History of Uttarakhandउत्तराखंड के इतिहास में 6 सितम्बर का महत्वइतिहास, समाज
Sidharth Shuklaसिद्धार्थ शुक्ला- एक मौत जो छोड़ गई जिंदगी के सवाल क…सुन्दर चन्द ठाकुर
Bronze by Manoj Sarkarउत्तराखंड के मनोज सरकार ने टोकियो पैरालंपिक में जीता…समाज
Satire by Priy Abhishek September 2021प्रिय अभिषेक की ‘लग्गू कथा’ का दूसरा भागप्रिय अभिषेक
Remembering Tigerपहाड़ में लखनऊ का ‘टाइगर’समाज
 
Dola Palki Andolanडोला पालकी आंदोलनइतिहास, समाज
Khatima Goli Kand Interviewखटीमा गोलीकांड में ‘बसन्ती चंद’ को दोनों…व्यक्तित्व, समाज
Story of Shailesh Matiyaniकहानी : मिसेज ग्रीनवुडकला साहित्य
Saton-Athon Festival Uttarakhand 2021पिथौरागढ़ जिले से सातों-आठों पर्व की तस्वीरेंपरम्परा, समाज
Nanda Rajjat 2021मां नंदा के जयकारों से पूरे पहाड़ का लोक नंदामय हो ग…समाज
Khatima Goli Kand 1994उत्तराखंड के इतिहास में काला दिन है 1 सितम्बरइतिहास
Mind Fit 49 Columnसोचो मत, जागो और पूरे मन से अपना कर्म करोसुन्दर चन्द ठाकुर
सभी कॉलम पढ़ें …
 


Kafal Tree intends to become that all-important bridge between the reader and reality for wider propagation of true and authentic information in order to build a more responsible and knowledgeable society.

Quick Links
होम
हैडलाइन्स
समाज
पर्यावरण
कला साहित्य
हमसे जुड़िये
Contact Us
kafaltree2018@gmail.com
Kafal Tree Foundation
Haldwani-263139
Uttarakhand

2019©Kafal Tree. All rights reserved.
Developed by Kafal Tree Foundation

Navigation

[0] Message Index

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 
Go to full version