Author Topic: Tribute To Movement Martyrs - उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के शहीदों को श्रद्धांजलि  (Read 63608 times)

पंकज सिंह महर

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Re: Shaheedon ko Shradhhanjali
« Reply #60 on: December 17, 2007, 04:25:20 PM »
मसूरी काण्ड पर लिखी गयी ह्रदय स्पर्शी कविता
विदा मां ......विदा !!(जगमोहन)

जाते समय झार पर छोड़ आई थी,वह माँ
कहकर आई थी अभी आती हूँ ज...ल्दी बस्स.....
तेरे लिए, एक नई जमीन,एक नई हवा, नया पानी ले आऊं ले आऊं
नई फसल, नया सूरज, नई रोटी|
अब्बी आई....बस्स
पास के गांधी-चारे तक ही तो जाना है,
झल्लूस में|
चलते समय एक नन्ही हथेली, उठी होगी हवा में- विदा !
मां विदा!!
खुशी दमकी होगी,
दोनो के चेहरे पर
माथा चूमा होगा मां ने- उन होठो से,
जिनसे निकल रहे थे नारे
वह मां सोई पडी़ है सड़क पर पत्थर होंठ है,
पत्थर हाथ पैर पथराई आँखे
पहाडों की रानी को, पहाड़ देखता है
अवा्क - चीड़ देवदार, बाँज -बुराँस, खडें है
सन्न-|
आग लगी है आज.
आदमी के दिलो में खूब रोया
दिन भर बादल रखकर सिर पहाड़ के कन्धे पर|
नही जले चूल्हे, गांव घरो में उठा धुआ उदास है
खिलखिलाते बच्चे, उदास है फूल|
वह बेटा भी रो-रोकर
सो गया है- अभी नही लौटी मां......|
लौटेगी तो मैं नही बोलूंगा|
लौटी क्यों नही अभी तक....!
उसे क्या पता, बहरे लोकतन्त्र में वह लेने गई है,
अपने राजा बेटे का भविष्य|

पंकज सिंह महर

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Re: Shaheedon ko Shradhhanjali
« Reply #61 on: December 17, 2007, 04:26:50 PM »
सीमा पर जो नही आ सके
अचूक निशाने की जद़ मे
नही आ सके जो मिसाइलों -टैंकों और राँकेटो की रेंज मे,
वे आ गये बिना निशाना सधी गोलियो कि चपेट मे
जो देश कि सीमा पर मुस्तैदी से रहे तैनात,
मार गिराया जिन्होने न जाने कितने दुश्मनो को,
वो काम आ गये अपनी ही जमीन पर
अपने ही लोगो के बीच निहत्थे थे
अस्मिता की तलाश मे निकले,
मुटिठ्या तनी थी,
जिसमे थी इच्छायें इच्छाओ से पटी थी आग,
आग से जले थे शब्द,
और उन शब्दो से डरा हुआ था तानाशांह,
एक जद के खिलाफ निहत्थे खडे़ थे
हजारो के बीच वे तीन या तेरह,पांच या सात,
और इस जिद के खिलाफ
गिरते-गिरते भी उन्होने
अपने खून से लिख दिया
ज...य ..उ..त्त..रा...खण्ड|

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Shaheedon ko Shradhhanjali
« Reply #62 on: December 17, 2007, 04:43:22 PM »
We saluate the great Martyr of UK. Thier deeds will always remain alive and would also of a sources of new generation.

Jai Uttarakhand.

सीमा पर जो नही आ सके
अचूक निशाने की जद़ मे
नही आ सके जो मिसाइलों -टैंकों और राँकेटो की रेंज मे,
वे आ गये बिना निशाना सधी गोलियो कि चपेट मे
जो देश कि सीमा पर मुस्तैदी से रहे तैनात,
मार गिराया जिन्होने न जाने कितने दुश्मनो को,
वो काम आ गये अपनी ही जमीन पर
अपने ही लोगो के बीच निहत्थे थे
अस्मिता की तलाश मे निकले,
मुटिठ्या तनी थी,
जिसमे थी इच्छायें इच्छाओ से पटी थी आग,
आग से जले थे शब्द,
और उन शब्दो से डरा हुआ था तानाशांह,
एक जद के खिलाफ निहत्थे खडे़ थे
हजारो के बीच वे तीन या तेरह,पांच या सात,
और इस जिद के खिलाफ
गिरते-गिरते भी उन्होने
अपने खून से लिख दिया
ज...य ..उ..त्त..रा...खण्ड|


Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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Re: Shaheedon ko Shradhhanjali
« Reply #63 on: December 17, 2007, 04:47:12 PM »


चार कदम लै नि हिटा, हाय तुम पटै गो छा?
के दगडियों से गोछा?
डान कान धात मनानेई, धात छ ऊ धात को?
सार गौ त बटि रौ, तुम जै भै गो छा?
भुलि गो छा बन्दूक गोई, दाद भुलि कि छाति भुलि गिछा इज्जत लुटि,
तुमरै मैं बैणि मरि हिमालाक शेर छो तुम,
दु भीतर फै गो छा? के दगडियों से गोछा?
काहू गो परण तुमर, मरणै कसमा खै छी उत्तराखण्ड औं उत्तराखण्ड,
पहाडक ढुंग लै बोलाछि कस छिया बेलि तुम,
आज कस है गो छा के दगडियों से गोछा?
एकलो नि हुन दगडियो,
मिल बेर कमाल होल किरमोई तराणै लै,
हाथि लै पैमाल होल ठाड उठो बाट लागो,
छिया के के है गो छा? के दगडियों से गोछा?
तुम पुजला मज्याव में, तो दुनिया लै पुजि जालि तुमरि कमर खुजलि तो,
सबूं कमरि खुजि जालि निमाई जै जगूना,
जगाई जै निमुंछा के दगडियों से गोछा?
जांठि खाओ, जैल जाओ, गिर जाओ उठने र वो गर्दन लै काटि जौ तो,
धड हिटनै र वो के ल्यूंल कोछि कायेडि थै, ल्यै गो छा? के दगडियों से गोछा?



जय उत्तराखंड

पंकज सिंह महर

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Re: Shaheedon ko Shradhhanjali
« Reply #64 on: January 22, 2008, 03:53:08 PM »
उत्तराखण्ड के अमर शहीदों को प्रसिद्द जनकवि गिरीश तिवारी "गिर्दा" की श्रद्दांजलि

थातिकै नौ ल्हिन्यू हम बलिदानीन को, धन मयेड़ी त्यरा उं बांका लाल।

धन उनरी छाती, झेलि गै जो गोली, मरी बेर ल्वै कैं जो करी गै निहाल॥

पर यौं बलि नी जाणी चैनिन बिरथा, न्है गयी तो नाति-प्वाथन कैं पिड़ाल।

तर्पण करणी तो भौते हुंनी, पर अर्पण ज्यान करनी कुछै लाल॥

याद धरो अगास बै नी हुलरौ क्वे, थै रण, रणकैंणी अघिल बड़ाल।

भूड़ फानी उंण सितुल नी हुनो, जो जालो भूड़ में वीं फानी पाल।।

आज हिमाल तुमन के धत्यूछौ, जागो-जागो हो म्यरा लाल....!

हिन्दी भावार्थ-
नाम यहीं पर लेते हैं उन अमर शहीदों का साथी, कर प्राण निछावर हुये धन्य जो मां के रण-बांकुरे लाल।

हैं धन्य जो कि सीना ताने हंस-हंस कर झेल गये गोली, हैं धन्य चढ़ाकर बलि कर गये लहू को जो निहाल॥

इसलिए ध्यान यह रहे कि बलि बेकार ना जाये उन सबकी, यदि चला गया बलिदान व्यर्थ युगों-युगों पड़ेगा पहचान।

तर्पण करने वाले तो अपने मिल जायेंगे बहुत, मगर अर्पित कर दें जो प्राण, कठिन हैं ऎसे अपने मिल पाना॥

ये याद रहे आकाश नहीं टपकता है रणवीर कभी, ये याद रहे पाताल फोड़ नहीं प्रकट हुआ रणधीर कभी।

ये धरती है, धरती में रण ही रण को राह दिखाता है, जो समर भूमि में उतरेगा, वही रणवीर कहाता है॥

इसलिए, हिमालय जगा रहा है तुम्हें कि जागो-जागो मेरे लाल........!

पंकज सिंह महर

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Re: Shaheedon ko Shradhhanjali
« Reply #65 on: January 22, 2008, 03:54:39 PM »
उत्तराखण्ड के अमर शहीदों को प्रसिद्द जनकवि गिरीश तिवारी "गिर्दा" की श्रद्दांजलि

थातिकै नौ ल्हिन्यू हम बलिदानीन को, धन मयेड़ी त्यरा उं बांका लाल।

धन उनरी छाती, झेलि गै जो गोली, मरी बेर ल्वै कैं जो करी गै निहाल॥

पर यौं बलि नी जाणी चैनिन बिरथा, न्है गयी तो नाति-प्वाथन कैं पिड़ाल।

तर्पण करणी तो भौते हुंनी, पर अर्पण ज्यान करनी कुछै लाल॥

याद धरो अगास बै नी हुलरौ क्वे, थै रण, रणकैंणी अघिल बड़ाल।

भूड़ फानी उंण सितुल नी हुनो, जो जालो भूड़ में वीं फानी पाल।।

आज हिमाल तुमन के धत्यूछौ, जागो-जागो हो म्यरा लाल....!

हिन्दी भावार्थ-

नाम यहीं पर लेते हैं उन अमर शहीदों का साथी, कर प्राण निछावर हुये धन्य जो मां के रण-बांकुरे लाल।

हैं धन्य जो कि सीना ताने हंस-हंस कर झेल गये गोली, हैं धन्य चढ़ाकर बलि कर गये लहू को जो निहाल॥

इसलिए ध्यान यह रहे कि बलि बेकार ना जाये उन सबकी, यदि चला गया बलिदान व्यर्थ युगों-युगों पड़ेगा पहचान।

तर्पण करने वाले तो अपने मिल जायेंगे बहुत, मगर अर्पित कर दें जो प्राण, कठिन हैं ऎसे अपने मिल पाना॥

ये याद रहे आकाश नहीं टपकता है रणवीर कभी, ये याद रहे पाताल फोड़ नहीं प्रकट हुआ रणधीर कभी।

ये धरती है, धरती में रण ही रण को राह दिखाता है, जो समर भूमि में उतरेगा, वही रणवीर कहाता है॥

इसलिए, हिमालय जगा रहा है तुम्हें कि जागो-जागो मेरे लाल........!

पंकज सिंह महर

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Re: Shaheedon ko Shradhhanjali
« Reply #66 on: January 29, 2008, 02:35:26 PM »
नैनीताल के फांसी गधेरे में लटकाए अनाम शहीदों का स्मारक बनेगा

नैनीताल। ब्रिटिश गुलामी के दौर में अंग्रेजों की ग्रीष्म कालीन राजधानी नैनीताल में चर्चित फांसी गधेरे का नाम सुनते ही तत्कालीन भारतीय जनता की रुह कांप उठती थी। इससे लोग वहां से गर्वनर हाउस की तरफ रुख करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे। उक्त स्थान पर न जाने कितने अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर लटकाया गया। भले ही फांसी गधेरे की आजादी के बाद कोई सुध नहीं ली गयी। अब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की 150 वीं वर्षगांठ के बाद राज्य सरकार ने एक शहीद स्मारक बनाने का निर्णय लिया है। इसके लिए भूमि तलाश की तलाश व प्रांकलन रिपोर्ट की कवायद शुरु हो गयी है।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अभी भी लाखों अनाम स्वतंत्रता सेनानियों ने कुर्बानी दी है। इसमें आज भी महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन के आखिरी क्षणों के बारे में खुलासा करने की कवायद चल रही है। इससे साफ जाहिर होता है कि अनाम स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में क्या स्थिति होगी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के 150 वीं वर्ष गांठ पर देश में महान स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया गया। इसमें भले ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के इतिहास के साथ ही महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी के अंतिम क्षणों के बारे में कोई बात सामने नहीं आ पायी हो, लेकिन राज्य सरकार ने 27 दिसंबर 2007 को इस मौके पर शहीद स्मारकों के जीर्णोद्धार व पुर्न निर्माण का निर्णय लिया था। इससे देश के अन्य राज्यों में कुछ न हुआ हो, लेकिन उत्तराखंड में कुछ नए स्मारक अब जनता के सामने आ सकेंगे।

इधर, उत्तराखंड शासन के निर्देश पर निदेशक संस्कृति निदेशालय ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 150 वीं वर्ष गांठ पर नैनीताल के फांसी गधेरा में शहीद स्मारक के निर्माण को 20 लाख, डाक बंगला बागेश्वर के जीर्णोद्धार व रखरखाव को पांच लाख, अनाशक्ति आश्रम, कौसानी के जीर्णोद्धार को पांच लाख, ताकुला स्थित गांधी मंदिर, नैनीताल के जीर्णोद्धार को पांच लाख, सुनहरा गांव के वट वृक्ष (रुड़की) हरिद्वार के सौंदर्यीकरण को पांच लाख, स्वामी विवेकानंद स्मारक, अल्मोड़ा के जीर्णोद्धार को दो लाख, प्रेम विद्यालय ताड़ीखेत के जीर्णोद्धार को पांच लाख रुपए के प्रस्तावों को प्रथम अनुपूरक मांग के माध्यम से धनराशि का प्राविधान किया गया है। उन्होंने निर्माण व जीर्णोद्धार के आंगणन को तत्काल शासन को उपलब्ध कराने का जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है।

इधर, नैनीताल जिले में एडीएम धीराज गब्र्याल ने लोनिवि से फांसी गधेरे में शहीद स्मारक निर्माण व ताकुला गांधी मंदिर के जीर्णोद्धार के आंगणन तैयार करने का निर्देश दिया है। इसमें ताकुला गांधी मंदिर में अंग्रेजों की गुलामी के दौर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अल्मोड़ा जाते समय रुके थे। अब ताकुला गांधी मंदिर का जीर्णोद्धार भी हो सकेगा।

बहरहाल, फांसी गधेरे में अनाम स्वतंत्रता सेनानियों की पहली बार स्मृति में स्मारक बनने से उन शहीदों को इतने वर्ष बाद जनता श्रद्धांजलि अर्पित कर सकेगी।

पंकज सिंह महर

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Re: Shaheedon ko Shradhhanjali
« Reply #67 on: January 29, 2008, 02:38:36 PM »
शहादत का गवाह बनेगा तहसील परिसर  Jan 29, 02:01 am

खटीमा(ऊधमसिंहनगर)। खटीमा का तहसील परिसर जल्द ही उत्तराखंड आंदोलन के शहीदों को समर्पित हो जाएगा। शासन ने संस्कृति निदेशक को इसका प्रारूप तैयार करवाने के निदेश दिए है। मौजूदा तहसील मुख्यालय के नए भवन में स्थानांतरित होने के बाद इस परिसर को शहीद पार्क एवं स्मारक के रूप में विकसित किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि राज्य आंदोलन से जुडे़ लोग वर्षो से तहसील परिसर को शहीद स्थल के रूप में विकसित करने की मांग करते आ रहे है। बता दें कि तहसील परिसर उत्तराखंड आंदोलन के दौरान 1 सितंबर 1994 को हुए गोलीकांड का गवाह है। इसी परिसर में छह राज्य आंदोलनकारियों ने शहादत दी थी। इस बीच सितारगंज मार्ग स्थित कृषि फार्म में तहसील मुख्यालय के भवन का निर्माण कार्य चल रहा है। भविष्य में मौजूदा मुख्यालय नए भवन में स्थानांतरित हो जाएगा। ऐसे में खाली होने वाले परिसर को शहीदों की याद में पार्क एवं स्मारक रूप में विकसित किए जाने की मांग उठती रही है। राज्य आंदोलन का नेतृत्व कर चुके जिला पूर्व सैनिक कल्याण समिति अध्यक्ष एवं पूर्व दर्जा राज्यमंत्री कै.शेर सिंह दिगारी के नेतृत्व में पिछले दिनों एक सर्वदलीय शिष्टमंडल मुख्यमंत्री, पर्यटनमंत्री, पंचायतीराज मंत्री एवं आंदोलनकारी कल्याण परिषद अध्यक्ष से मिला। जिसमें तहसील परिसर को शहीद स्थल के रूप में विकसित करने की मांग प्रमुखता से उठाई गई। शासन ने मांग के गंभीरता से लेते हुए संस्कृति निदेशक को प्रस्तावित स्थल का प्रारूप तैयार कराने के निर्देश दिए। इसके अलावा शिष्टमंडल ने खटीमा के थारु-गैरथारु भूमि विवाद का निस्तारण कराने, सक्रिय राज्य आंदोलनकारियों को चिह्नित कर उन्हे सम्मानित करने, सैनिक विश्राम गृह बनाए जाने तथा जनजाति कृषकों की बिक्रीशुदा भूमि पर ऋण देने पर रोक लगाने की मांग की। शासन ने इस संबंध में जिलाधिकारी को समस्त बैंकों को आवश्यक दिशा निर्देश जारी करने को कहा है।

हेम पन्त

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Re: Shaheedon ko Shradhhanjali
« Reply #68 on: March 17, 2008, 12:26:12 PM »
बल्ली सिंह चीमा जी का जनगीत

ले मशाले चल पडे हैं, लोग मेरे गांव के,
अब अंधेरा जीत लेंगे, लोग मेरे गांव के,

कह रही है झोपडी और पूछते हैं खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे,  लोग मेरे गांव के,

बिन लडे कुछ भी नहीं मिलता यहां यह जानकर
अब लडाई लड रह हैं, , लोग मेरे गांव के,

कफन बांधे हैं सिरो पर, हाथ में तलवार है
ढूंढने निकले हैं दुश्मन, लोग मेरे गांव के,

एकता से बल मिला है झोपडी की सांस को
आंधियों से लड रहे हैं, लोग मेरे गांव के,

हर रुकावट चीखती है, ठोकरों की मार से
बेडियां खनका रहे हैं, लोग मेरे गांव के,

दे रहे है देख लो अब वो सदा-ए -इंकलाब
हाथ में परचम लिये हैं, लोग मेरे गांव के,

देख बल्ली जो सुबह फीकी है दिखती आजकल
लाल रंग उसमें भरेंगे, लोग मेरे गांव के,

पंकज सिंह महर

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Re: Shaheedon ko Shradhhanjali
« Reply #69 on: May 10, 2008, 10:12:28 AM »
नैनीताल: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 से कुमाऊं भी कुमाऊं भी अछूता नहीं रहा। संस्कृति विभाग के पुराने अभिलेखों में कुमाऊं में पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद संघर्ष में नैनीताल के फांसी गधेरे में अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी देने का उल्लेख है। साथ ही हल्द्वानी में दो बार कब्जा करने व अंग्रेजों के मैदानी क्षेत्र से जान बचाकर नैनीताल आने का भी उल्लेख स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।

पहले स्वतंत्रता संग्राम को गदर का नाम देकर अंग्रेजों ने कई अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर लटका दिया था। प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा 1857 के संघर्ष की 150 वीं वर्षगांठ में स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित किया जा रहा है। संस्कृति विभाग के अभिलेखागार की प्रदर्शनी में नैनीताल के फांसी गधेरे में अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी में लटकाने को लेकर अभिलेख में कहा है कि 1857 के प्रथम आजादी के संघर्ष के दौरान जब कमिश्रन्र रामजे ने उत्तर भारत का चार्ज लिया। तब स्वतंत्रता संघर्ष चरम पर था। 17 सितंबर को एक हजार लोगों ने हल्द्वानी में कब्जा कर लिया था। अंग्रेज तक मैदानों से भागकर नैनीताल आए। 18 सितंबर को मैक्सवल ने हल्द्वानी में कब्जा किए लोगों को हराया। 16 अक्टूबर को पुन: हल्द्वानी में कब्जा कर लिया। बाद में अंग्रेजों ने छापे मारे। जेल से कैदियों को छुड़ाकर रामजे ने कैदियों से कुली बेगार का काम लिया। इस बीच कालाढूंगी में डाकुओं से संघर्ष हुआ। फांसी गधेरे में स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर लटकाए जाने का उल्लेख है।

इसके अलावा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 14 जून से 4 जुलाई 1929 तक कुमाऊं की पहली यात्रा को लेकर भी प्रदर्शनी में पुराने फोटो व अन्य सामग्री में 14 जून को नैनीताल, 15 को भवाली, 16 को ताड़ीखेत, 18 को अल्मोड़ा, 21 को कौसानी, 4 जुलाई को काशीपुर पहुंचने व कुमाऊं की दूसरी यात्रा में 18 से 23 मई 1931 तक के भ्रमण का उल्लेख है। इसमें ताकुला में 14 जून 1929 को छोटी सभा व स्व. गोविंद लाल साह के यहां चार दिन ठहरने व 1913 में लाला लाजपत राय के सुनकिया गांव में आगमन, नैनीताल का प्रसिद्ध झंडा सत्याग्रह का उल्लेख है। इसके अलावा लाला लाजपत राय का कुमाऊँ के क्रांतिकारियों को भेजा पत्र प्रमुख है। जिसमें 4 फरवरी 23 को लिखे पत्र में कहा है कि उन्होंने जो कार्य किया है। उनको हमदर्दी है। मेरी मदद की जरुरत हो तो आप मुझे लिखना। इसके अलावा अनेक पुराने ऐतिहासिक चित्रों व अभिलेखों से स्वतंत्रता आंदोलन में कुमाऊं का योगदान स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।

 

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