बल्ली सिंह चीमा जी का जनगीत
ले मशाले चल पडे हैं, लोग मेरे गांव के,
अब अंधेरा जीत लेंगे, लोग मेरे गांव के,
कह रही है झोपडी और पूछते हैं खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे, लोग मेरे गांव के,
बिन लडे कुछ भी नहीं मिलता यहां यह जानकर
अब लडाई लड रह हैं, , लोग मेरे गांव के,
कफन बांधे हैं सिरो पर, हाथ में तलवार है
ढूंढने निकले हैं दुश्मन, लोग मेरे गांव के,
एकता से बल मिला है झोपडी की सांस को
आंधियों से लड रहे हैं, लोग मेरे गांव के,
हर रुकावट चीखती है, ठोकरों की मार से
बेडियां खनका रहे हैं, लोग मेरे गांव के,
दे रहे है देख लो अब वो सदा-ए -इंकलाब
हाथ में परचम लिये हैं, लोग मेरे गांव के,
देख बल्ली जो सुबह फीकी है दिखती आजकल
लाल रंग उसमें भरेंगे, लोग मेरे गांव के,