Author Topic: Uttarakhand Save River Programme 2008 - उत्तराखंड नदी बचाओ वर्ष 2008 अभियान  (Read 24429 times)

पंकज सिंह महर

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पुरोला (उत्तरकाशी)। नदी बचाव अभियान के तहत उत्तराखंड नदी बचाव दल के कार्यकर्ताओं ने द्वितीय चरण के पड़ाव में गुरुवार को पुरोला पहुंचकर लोगों से नदी बचाव आंदोलन को सफल बनाने में सहयोग करने की अपील की।

यात्रा के द्वितीय चरण में पुरोला में आयोजित पत्रकार वार्ता में अभियान दल के सुरेश भाई ने कहा कि सरकार की जन विरोधी नीतियों के कारण उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में बन रही जल विद्युत परियोजनाओं के लिए हो रहे नदियों के दोहन से जहां पहाड़ों का शुद्घ पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, वहीं अब हिमालय की ऊंची-ऊंची चोटियों पर बर्फवारी न होने के कारण सदियों पुराने अधिकांश ग्लेशियर पिघल कर अपना स्वरूप बदलने लगे है। परिणामस्वरूप उत्तराखंड की अधिकंाश नदियां व परंपरागत जल स्रोत सूखने की कगार पहुंच गए है। समाजसेवी अनुराधा ने कहा कि सरकार द्वारा तेजी से पिघलते ग्लेशियरों को नजरंदाज करके विनाशकारी जल विद्युत परियोजनाएं बनाई जा रही हैं, जिससे सैकड़ों ग्रामीणों के जल, जंगल तथा जमीन के अधिकारों पर कुठाराघात किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि चांई गांव जैसी हालत प्रदेश के अन्य गांव की न हो, इसके लिए उत्तराखंड के प्रत्येक समाजसेवी युवा व महिलाओं को तैयार रहने की आवश्यकता है। उन्होंने लोगों से पहाड़ों में बनाए जा रहे बांधों के निर्माण पर सरकार द्वारा पुनर्विचार करने तथा ग्रामीणों के जल, जंगल, जमीन व प्राकृतिक संसाधनों के वर्षो पुराने अधिकारों को यथावत रखने की मांग को लेकर तीन जून को जिला मुख्यालयों पर होने जा रहे जुलूस व प्रर्दशन में शामिल होने की अपील की।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Uttarakhand govt to launch 'Save Ganga'
« Reply #41 on: June 04, 2008, 03:33:57 PM »
Uttarakhand govt to launch 'Save Ganga'

 
 
DEHRA DUN: After former prime minister Rajiv Gandhi, it is now the turn of Uttarakhand Chief Minister B C Khanduri to "save" Ganga from pollution.

Concerned over the increasing pollution in the holy river, the Uttarakhand government would shortly launch "Save Ganga" project, Khanduri said on Wednesday, adding funds will not be a constraint.

The government is now busy working out a plan for the Ganga which would be implemented in the next five years. With this plan, the government is hopeful to rejuvenate the purity of Ganga right from its Gomukh till it flows down to Uttar Pradesh.

Several environmentalists and experts have agreed to be part of the "Save Ganga" campaign.

"I have personally spoken to Sam Pitroda, nobel laureate R K Pachauri and Raman Megasaysay award winner Chandi Prasad Bhatt for their cooperation and they are willing to sit together to devise an effective strategy for the cleaning of Ganga," Khanduri said on Wednesday.

He said he was hopeful in getting support from other environmentalists also for the "noble cause".

As Ganga flows down from its source Gomukh glaciers at an altitude of 4,255 meter, its pure water starts getting polluted from Uttarkashi district.

After Uttarkashi, the filth and sewage of scores of towns like New Tehri, Devprayag, Rishikesh and Haridwar keep mixing with the river water. At some places, industrial effluents also contribute to the pollution level of the Ganga, experts said.


सन्दीप काला

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राष्ट्रीय अस्मिता का प्रश्न है गंगा रक्षा अभियान

हिमालय के शिखर गोमुख से निकलकर बंगाल की खाड़ी में मिलने वाली गंगा भारतवासियों के लिए धार्मिक एकता, श्रद्धा, सनातन महत्व, आध्यात्मिक और पतितपावनी के रूप में पूज्य है। इसमें दो राय नहीं कि इसके तट पर हमारी सभ्यता एवं संस्कृति का विकास हुआ है।

यदि हम वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो गंगा क्षेत्र में रहने वाली करीब 35 करोड़ की आबादी अपने जीवन के लिए गंगा पर निर्भर रहती है। यही कारण है कि गंगा को सभी धर्मो में भारत की भाग्य रेखा भी कहा गया है।

वर्तमान में स्थिति यह है कि पिछले कुछ दशकों से विकास की अंधी दौड़ में गंगा के उद्गम क्षेत्र से लेकर पूरे गंगा क्षेत्र में किए गए अवांछनीय परिवर्तनों ने संपूर्ण गंगा के ही अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। इस ओर यदि अविलंब ध्यान नहीं दिया गया तो पूरी गंगा सूख जाएगी और गंगा के प्रवाह क्षेत्र में रहने वाली करीब 35 करोड़ की आबादी का जीवन और भारत की अस्मिता खतरे में पड़ जाएगी।

आज जो हाल गंगा का है, वही हाल अन्य नदियों का भी है। इस लिहाज से जल संसाधनों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार तो सभी जगह आवश्यक है। गंगा रक्षा के लिए समय-समय पर समाज, राज एवं संतों ने मिलकर काम किया है। नतीजतन भारत के किसानों, मछुआरों, पुजारियों, पंडों, ब्राrाणों सभी की यह जीवन रेखा बनी रही है। इसने भारत की एकता, अखंडता और संस्कृति को बनाकर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आज इस पर गहरा संकट है। स्थिति यह है कि अतिक्रमण, प्रदूषण और भूजल के शोषण ने गंगा की हत्या कर दी है। हम चाहते हैं कि गंगा नैसर्गिक रूप में सदानीरा बहती रहे। इसके लिए सर्वप्रथम तो गंगा नदी को एक राष्ट्रीय नदी के रूप में घोषित किया जाए और जिस तरह से राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार गंगा को सम्मान एवं सुरक्षा प्रदान की जाए।

गंगा की पवित्रता और अविरलता को बनाए रखने हेतु इस पर विकास के नाम पर हो रहे विनाश को रोकना अतिआवश्यक है। इससे भी पहले आवश्यक यह है कि गंगा के ऊपरी हिस्से में किसी भी तरह की छेड़छाड़ न की जाए। उत्तराखंड में गंगा की जो धाराएं हैं वह उसकी बाल्यकाल और किशोर अवस्था है। नदियों से ऐसी स्थिति में छेड़छाड़ करना उनकी हत्या के समान है।

आज गंगा को समूल नष्ट किए जाने की खातिर उत्तराखंड में ऊर्जा के नाम पर नदियों पर 10,000 मेगावाट बिजली बनाने के लिए बांध, बैराज और सुरंग बनाई जा रही है जबकि असलियत में उत्तराखंड राज्य की 2008 में अपनी बिजली की कुल खपत 737 मेगावाट है। यदि दूसरे राज्यों को दी जाने वाली बिजली को जोड़कर देखा जाए तो ऊर्जा की कुल खपत 1500 मेगावाट बनती है।

वर्ष 2022 तक इस राज्य की ऊर्जा की कुल खपत बढ़कर 2849 मेगावाट होगी। इतनी बिजली इस राज्य में नदियों के नैसर्गिक प्रवाह को बनाए रखते हुए भी बनाई जा सकती है। फिर इस राज्य में गंगा के साथ ऐसी छेड़छाड़ क्यों हो रही है। यह समझ से बाहर है और विडंबना यह है कि इसका उत्तर सरकार के पास भी नहीं है।

इस समय जो महत्वपूर्ण मुद्दे हैं उनमें पहला यह है कि भागीरथी गंगोत्री से उत्तर काशी तक अपने नैसर्गिक स्वरूप में बहे। गंगा व अन्य नदियों के उद्गम से अंतिम छोर तथा उनके प्रवाह स्थिति का एक समय सीमा के अंतर विस्तृत अध्ययन और इन जल स्रोतों के स्वाभाविक प्रभाव व शुद्धता को संरक्षित करने संबंधी नीति बने। इसके अलावा गंगा को भारत की राष्ट्रीय नदी घोषित किया जाए।

राष्ट्रीय वन्य जीव अभयारण्य जैसा संरक्षण गंगा को मिलना चाहिए। इस हेतु गंगा संरक्षण कानून बने, गंगा में गिरने वाले सभी गंदे नाले, मल-मूत्र और औद्योगिक प्रदूषण को तुरंत प्रभाव से रोका जाए। गंगा संरक्षण हेतु राष्ट्रीय गंगा आयोग गठित किया जाए। गंगा का शोषण किसी भी रूप में नहीं किया जाए। इसमें चल रहा खनन, भूजल, शोषण आदि सब पर रोक लगाई जाए। गंगा की भूमि का उपयोग किसी भी दूसरे काम में नहीं किया जाए।

इसके लिए भारत में एक प्रभावी नदी नीति का होना बहुत जरूरी है। गंगा के जल-प्रवाह को अविरल व निर्मल सुनिश्चित किया जाए। ऐसी व्यवस्था सभी संबंधित राज्य सरकारों को करना जरूरी है। इस हेतु प्रत्येक राज्य में नदी नीति बने।

हिमालय से गंगा सागर तक बहने वाली गंगा से जुड़ी सभी नदियों को पवित्र गंगा ही मानकर इनका नैसर्गिक प्रवाह सुनिश्चित किया जाए। गंगा के प्रवाह में बाधक सभी संरचनाओं को हटाया जाए। पंडित मदनमोहन मालवीय के साथ 1916 में गंगा प्रवाह के संबंध में हुए समझौते को लागू किया जाए और गंगा संरक्षण हेतु एक स्वतंत्र पर्यावरण सामाजिक वैज्ञानिक की अध्यक्षता में भारत सरकार गंगा आयोग का गठन करें।


[दैनिक भास्कर से उद्धृत]



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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A River, A Man: The State Responds to Dr GD Agarwal's fast to save Ganga
« Reply #43 on: July 30, 2008, 04:11:59 PM »
In a response, the likes of which we have not seen in the last few decades, both the Government of Uttarakhand and the Government of India responded to 76 years old Dr. G. D. Agarwal''''s fast-unto-death. Retired professor of Indian Institute of Technology (IIT) Kanpur, Dr. Agarwal, was protesting planned projects on the Bhagirathi which threaten the perennial flow of the Bhagirathi and the Ganga.

Both central and the state governments have suspended work on the three projects and promise the maintenance of the perennial flow of the river under all circumstances. The central government has promised review by a high level committee before any further action.




 
Dr GD Agarwal



Dr. Agarwal's fast prompted delegations by two independent groups (who could not be more unlike the other) to meet with state and central governments requesting action. The Alumni Association of IIT Kanpur and All India Associations of Sadhus met with the Central Government while representation was also presented to the Government of Uttarakhand.

The letter from the Ministry of Power, Government of India says:

"The Ministry has received the representation sent by the Alumini Association of I.I.T. Kanpur to the Hon'ble Prime Minister of 27th June 2008. This is with reference to your meeting in the Ministry with the Hon'ble Union Minister of Power, today, and on 25th June 2008, and your memorandum of the same date in respect of river Bhagirathi, and in continuation of this Ministry's D.O.No. 37/47/2008-H.II of June 26, 2008. I am directed to say that the government of India commits itself to suitably ensure perennial environmental flow in all stretches of river Bhagirathi. I have to inform you that the Chairman and Managing Director, NTPC has been directed to constitute a high level expert group, including your nominee to examine the various technical issues involved in ensuring the required flow in the river Bhagirathi to keep the river alive. The high level expert group will give its report within three months. We shall invite you for discussion as soon as the recommendations of this high-level expert group are received, in order to arrive at a mutually acceptable solution. We would request Prof. D. D. Agarwal to give up his indefinite fast. The Government assures you of the highest consideration of your concerns." [End]

A letter written in Hindi, and signed by Shatrughn Singh, Secretary of the Uttarakhand Government points out that two of the three proposed projects on the middle section of the Bhagirathi (Bhairav Ghati of 381 MW and Pala Maneri of 480 MW) are state initiatives. The third -- a 600 MW unit at Lohari Nagpala -- is a central government effort. It says that Rs 80 Crores has already been spent on the Pala Maneri Project.

It adds that the state government has decided to stop all work on the two state project with immediate effect and that the state government is committed to ensuring that the river stays unviolated and its perennial flow is maintained and will act to do so, requesting Dr. Agarwal to end his fast.

This has been a major decision by both state and central governments. Acting on this, Dr. Agarwal and his colleagues are planning future steps to raise public awareness about the eco-sensitivity of this region and the importance of maintaining the flow of all of India's rivers. The group led by Dr. Agarwal feels that local mobilization and awareness is necessary to ensure that this is achieved.

When Dr. Agarwal announced his decision to fast-unto-death to protest projects that would end Bhagirathi and Ganga as we know them, many (including this author) wondered whether this would be in vain. The success of his protest is perhaps a sign of the strength of his belief but also the strength of the technical background that was used to critique the projects and predict their impact on the river systems.

Numerous energy projects have been started or have been proposed on the Bhagirathi, Ganga and numerous other rivers that define the Gangetic plain. While energy is a real issue and must be addressed, the human, economic and environmental costs of death of these rivers far surpasses energy benefits -- any community can attest to that. While an energy crisis looms, this is not the choice that benefits anyone.

Dr. Agarwal's effort was successful -- but this is not the end of the story. Conservation of our rivers requires community involvement. Now.

Abhinav

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Fight to save Uttarakhand's rivers
« Reply #44 on: August 06, 2008, 04:29:16 PM »
उत्तराखंड में इन दिनों नदियां संकट में हैं. राज्य की अलग-अलग नदियों पर बांध बनाने और उन्हें सुरंग में डालने की प्रक्रिया शुरु हो गई है. हालत ये है कि गंगा नदी को भी सुरंग में डाला जा रहा है. ऊर्जा के नाम पर चल रही इस कथित विकास प्रक्रिया के खिलाफ राज्य भर में लोग एकजुट हो रहे हैं और उन्होंने नदियों को बचाने के लिए कमर कस ली है. उत्तराखंड से प्रसून लतांत की रिपोर्ट

http://raviwar.com/news/38_save-river-uttarakhand-prasunlatant.shtml

पंकज सिंह महर

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मुनस्यारी (पिथौरागढ़)। नदी बचाओ अभियान के तहत जल बचाओ यात्रा मंगलवार को मुनस्यारी पहुंची। यात्रा के यहां पहुंचने पर मुख्य चौराहे पर सभा का आयोजन किया गया। सभा में वक्ताओं ने नदियों को संरक्षित करने की पुरजोर वकालत करते हुये कहा कि मानव जीवन के अस्तित्व को बचाने के लिये नदियों का संरक्षण जरूरी है।
सभा को संबोधित करते हुये इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित राधा बहन और गांधी शांति पीठ की अध्यक्ष जमना लाल बजाज ने कहा कि नदियों के प्रवाह को बांधना खतरनाक है। हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हुये यहां से निकलने वाली नदियों के साथ छेड़छाड़ नहीं बल्कि इनके संरक्षण के प्रयास किये जाने चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले वर्षो में भीषण आपदा का सामना करना पड़ सकता है। सभा में लोक विज्ञान संस्था के अध्यक्ष ने हिमालयी नदियों में हो रहे निर्माण कार्यो आपदा प्रबंधन का ध्यान नहीं रखे जाने की बात कही। उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन को नजरअंदाज करना भविष्य के लिये खतरनाक हो सकता है।

पंकज सिंह महर

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उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान यात्रा पहुंची अल्मोड़ा Feb 09, 10:40 pm

अल्मोड़ा। उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान के तहत उत्तराखण्ड लोकवाहिनी का अभियान दल सोमवार को नगर में पहुंचा। अभियान दल ने नगर विभिन्न स्थानों में नुक्कड़ सभाएं की। चौक बाजार में हुई नुक्कड़ सभा को संबोधित करते हुए उलोवा के केन्द्रीय अध्यक्ष डा.शमशेर सिंह बिष्ट ने कहा कि पिछले छह माह से वर्षा न होने से भयानक सूखे की स्थिति आ गई है। खेती ही नहीं पानी स्रोत भी सूख गए हैं।

उन्होंने कहा कि नदियों का जल स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। ऐसी स्थिति में नदियों को बचाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। डा.बिष्ट ने कहा कि इस सदी के अंत तक पृथ्वी के औसत तापमान में 4 डिग्री सेंटीग्रेट की बढ़ोत्तरी हो जाएगी। तापमान के बढ़ने से कई दुष्प्रभाव बढ़ेंगे। जिससे भारत, उत्तराखण्ड ही नहीं पूरा विश्व अछूता नहीं रहेगा। उन्होंने कहा कि 1978 में तवाघाट में हुए जबर्दस्त भूस्खलन ने तबाही मचाई थी। इसके बाद भी धौलीगंगा परियोजना बनी। जिसके परिणाम इन दिनों यह क्षेत्र भयंकर भूस्खलन की चपेट में आ गया है।

डा.बिष्ट ने कहा कि यह सब विकास के नाम से की गई गतिविधियों का प्रतिफल है। नदी बचाओ अभियान यात्रा ने सोमवार को कोसी बचाने के लिए जनजागरण अभियान चलाया। क्योंकि अल्मोड़ा पूरी तरह पानी के लिए कोसी पर निर्भर है। कोसी सूख गई तो उसके साथ ही अल्मोड़ा में पानी से रीता हो जाएगा। यात्रा ब्राइट इंड कार्नर से होते हुए रामभवन, एलआर साह रोड, गांधी पार्क, माल रोड, मिलन चौक, लाला बाजार होते हुए चौक बाजार पहुंची, जहां पर सभा की गई।

पंकज सिंह महर

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अल्मोड़ा। कुमाऊं के विभिन्न क्षेत्रों से निकाली गई नदी बचाओ अभियान यात्रा का समापन कोसी के तट पर किया गया। इससे पूर्व गोविन्द बल्लभ पर्यावरण संस्थान के प्रांगण में 5 अभियान दल के यात्रियों की एक गोष्ठी आहूत की गई। जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से आए पदयात्रियों ने भाग लिया।

इस मौके पर जमना लाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित राधा बहन ने कहा कि नदी बचाओ अभियान पानी व विकास की दृष्टि बदलने वाला अभियान है। पूरे देश में एक विकास की नीति नहीं हो सकती। एक नीति के लागू होने से हिमालय डोल रहा है। उन्होंने कहा कि हिमालय के लिए अलग नीति होनी चाहिए। राधा बहन ने कहा कि उत्तराखण्ड को ऊर्जा प्रदेश बनाने की बात तो हो रही है, लेकिन बिजली, पानी केवल उद्योगपतियों को मिले, इसके लिए ऊर्जा प्रदेश नहीं होना चाहिए। बल्कि उत्तराखण्ड के आम आदमी को पानी कैसे मिले, यह महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा कि विकास का अर्थ कमाना नहीं होता। विकास का अर्थ मानव जीवन को सुधारना है। उत्तराखण्ड लोकवाहिनी के अध्यक्ष डा.शमशेर सिंह बिष्ट ने कहा कि जिस प्रकार चिपको आंदोलन ने पेड़ों के प्रति चेतना पैदा की, उसी तरह से नदी बचाओ का पानी के प्रति चेतना पैदा करना उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को इसमें कोई रूचि नहीं है।




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पंकज सिंह महर

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Re: उत्तराखंड नदी बचाओ अभियान
« Reply #48 on: February 12, 2009, 12:00:46 PM »
जल पर हो जन का अधिकार

देहरादून, जागरण संवाददाता: उत्तराखंड नदी बचाओ अभियान ने नदियों और जलस्रोतों पर जनता का अधिकार कायम करने की मांग की है। नदियों और जलस्रोतों के मुद्दे पर अभियान का एक प्रतिनिधिमंडल विधायकों से भी मिलेगा। बुधवार को कचहरी मार्ग स्थित एक होटल में आयोजित पत्रकार वार्ता में अभियान नेत्री व कौसानी के लक्ष्मी आश्रम की संचालिका राधा बहन ने कहा कि नदियों पर बन रही जल विद्युत परियोजनाओं के विरुद्ध सरयू, मंदाकिनी, गौरीगंगा, भागीरथी, काली में जनता जहां लामबंद हो रही है। वहीं महिला मंडलों व जनमंचों में संगठित होकर लोग अपने गाड़-गधेरों और नदियों के जल संव‌र्द्धन के लिए जंगल बनाने व चाल-खाल बनाने में जुटे हैं। उत्तराखंड नदी बचाओ आंदोलन ने उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में जल जंगल और जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार की बहस को तेज कर दिया है। इसके पहले एक जनवरी 2008 में 16 नदियों पर 16 पदयात्राएं की थीं। अब तीन फरवरी से 10 फरवरी तक राज्य में करीब 50 नदी घाटियों में 50 टोलियों ने पदयात्रा कर पानी के मुद्दे पर जन जागरण किया। उन्होंने बताया कि गुरुवार को सभी 50 पदयात्री टोलियां नालापानी रोड स्थित तपोवन आश्रम में जुटेंगी जहां नदियों और जलस्रोतों से जुड़े तमाम मुद्दों पर विचार होगा। जबकि 13 फरवरी को गांधी पार्क में एक जनसभा की जाएगी। साथ ही, लोक जल नीति लागू करने को लेकर सचिवालय तक रैली निकाली जाएगी। इस मौके पर पार्वती आमा, पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के रवि चोपड़ा, अतुल शर्मा, मीरा कांडपाल, राधा देवी, बसंती बहन, ज्योति, तुलसी साह, भावना चटर्जी, रेखा शर्मा आदि मौजूद रहे।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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A few  people are active this initiative and this programme is contining in Bageshwar Distt of Uttarakhand and other parts.

 

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