फलस्वरुप अल्मोड़ा बाजार में महिलाओं का मौन जुलूस हाथ में तख्तियां लेकर निकला "खड़िया खदान से हमारे खेत बर्बाद मत करो" "हमारे रास्ते मत रोको"पीने के पानी के स्रोत खत्म न करो"। कंपनी मालिक ने झूठा अभियोग लगाया कि हथियारबन्द लोग मुझपर हमला करने आये। उसने ६-७ निर्धन युवकों को फसाया, वे युवक घबयाये, मगर महिलायें आगे आई, उन्होंने गांव से चंदा एकत्र कर तारीख लगने पर पुरुषों को भेजा। इस बीच कटियार मिनरल्स के स्वामी ने गांव के ही एक पुरुष प्रताप सिंह को अपनी ओर से ढुलाई, अवैध खनन के लिये अधिकार देकर एक रिवाल्वर भी दी। गांव की एक कृषक मोहिनी देवी बताती हैं कि वह युवक रिवाल्वर दिखाकर चट्टान पर चढ़कर महिलाओं को डराता था। पर निर्भीक महिलाओं ने अवैध खनन न होने दिया और न ही ढुलाई होने दी। ढाई साल मुकदमा चला, स्त्रियां अडिग रहीं, पुरुष न्यायालय जाते रहे और महिलायें सहारा देतीं रहीं।
कटियार मिनरल्स ने अन्य नाम से १९८२ में पुनः ठेका लेने की कोशिश की लेकिन महिलाओं के प्रयास से वह असफल रहे। अब वहां खनन के सारे ठेके निरस्त कर दिये गये हैं। एक वृद्धा ने गुस्से से एस०डी०एम० से उग्र स्वर में कहा "साहब अगर हम इस वजह से मर गये तो भूत बनकर आप लोगों पर लगेंगे। यदि सरकार ने सहानुभूति नहीं दिखाई तो हम मविशियों सहित खान पर धरना देंगे।" महिलाओं और जनता के दबाव के आगे अंततः जिलाधीश के निर्देश पर एस०डी०एम० ने फैसला होने तक खनन कार्य बन्द करा दिया।
अब प्रश्न था कि गांव की खनन क्षति कैसे पूर्ण हो, खडिया खनन के कारण गांव की मिट्टी जगह-जगह उधड़ी हुई थी, हर जगह गढ़्ढे थे। राधा बहन ने पहल की, एक वृहत पर्यावरण शिविर का आयोजन किया गया। स्त्रे पुरुष बच्चे सब जुटे, एक सप्ताह में ही सारे गढ़ढे भर दिये गये और उस परीधन-चारे के वृक्ष लगाये गये।
आज खीराकोट पुनः हरा-भरा हो गया है, स्वस्थ वन और पर्यावरण महिलाओं के संघर्ष और विजय की स्मृति बन गया है। संघर्ष की याद दिलाए पर वहां की महिलायें कहती हैं कि "यह हमारे जीवन का प्रश्न था, खेत, पशु, बच्चे सबके लिये लड़ना जरुरी था" एक किशोरी का कहना था कि "मैं तो कटियार मिनरल्स की बड़ी आभारी हूं, उन्होंने हमें दिखा दिया कि औरतें संघार्ष शक्ति में किसी से कम नहीं हैं और वे जीत सकती हैं अब हम पर्यावरण के बारे में जान गई हैं।"
यह आन्दोलन उत्तराखण्ड की महिलाओं की दृढ़ इच्छाशक्ति और अपने हक-हकूक के लिये किसी भी सीमा तक जाने के जज्बे को दिखाता है। कई जन आन्दोलनों को हमारी मातृ शक्ति के इसी जज्बे से जीत मिली है और मिलती रहेगी, उत्तराखण्ड की मां-बहनों के इस जज्बे को मेरा पहाड़ का कोटिशः नमन।
’धाद’ संस्था द्वारा प्रकाशित "ग्रन्थ आयोजन-भाग एक" से साभार टंकित