This was the news of Girda's demise published in Dainik Jagran Nainital.
जनकवि गिर्दा पंचतत्व में विलीन जागरण कार्यालय, नैनीताल। प्रसिद्ध जनकवि एवं रंगकर्मी गिरीश तिवारी गिर्दा सोमवार को पंचतत्व में विलीन हो गए। उनकी शवयात्रा में जनसैलाब उमड पडा। सैकडों लोगों ने गिर्दा के लिखे जनगीतों के साथ शवयात्रा निकाली। समीपवर्ती पाइंस श्मशान घाट पर उनके पुत्र प्रेम व तुहिनांशु तिवारी ने चिता को मुखागिन् दी।
जनकवि गिर्दा के कैलाखान स्थित आवास पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए सुबह से ही विभिन्न राजनैतिक संगठनों से जुडे लोगों, रंगकर्मियों, पत्रकारों, साहित्यकारों, शिक्षकों, व्यापारियों तथा प्रशासनिक अधिकारियों समेत विभिन्न जन संगठनों से जुडे लोगों का जुटने का सिलसिला शुरू हो गया था। प्रात: दस बजे कैलाखान से उनकी शवयात्रा शुरू हुई। इस दौरान माहौल काफी गमगीन हो उठा। वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो गई।
गिर्दा की शवयात्रा जनगीतों के साथ शुरू हुई। शवयात्रा में शामिल जन आंदोलनों से जुडे लोग गिर्दा द्वारा रचित गीतों को स्वर दे रहे थे। यह सिलसिला पाइंस श्मशान घाट तक अनवरत चलता रहा। श्मशान घाट में मुख्यमंत्री की ओर से विधायक खडक सिंह बोहरा, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्या तथा जिलाधिकारी शैलेश बगौली ने गिर्दा के पार्थिव शरीर पर पुष्प चक्र अर्पित किए। पुलिस प्रशासन की ओर से आरआई प्रेम सिंह राणा ने पुष्पांजलि अर्पित की। श्मशान घाट पर गिर्दा के पुत्रों प्रेम व तुहिनांशु तिवारी ने उनकी चिता को मुखागिन् दी। इस दौरान विभिन्न जनांदोलनों से जुडे गिर्दा के साथियों ने उन्हें नम आंखों से अंतिम विदाई दी।
परंपरा को तोड महिलाओं ने भी दिया अर्थी को कंधा
चंद्रेक बिष्ट, नैनीताल। शवयात्रा गिर्दा की थी, तो परंपराएं टूटनी ही थी। महानायक की तरह रंगकर्मी व जनकवि को हर किसी ने अलविदा बबा कहा। हर आंख में आंसू.. हर हाथ अर्थी छूने को आतुर थे। महिलाओं ने परंपराएं तोड कर न केवल उनकी अर्थी को कंधा दिया बल्कि घाट पहुंच कर उन्हें अंतिम विदाई भी दी। जनगीतों के साथ निकली उनकी अंतिम यात्रा में हर कोई एक-दूसरे के कंधे पर सिर रख जार-जार रो रहा था।
यह गिरीश तिवारी गिर्दा का मानव चुंबकीय प्रभाव था, वह हमेशा लोगों को कुमाऊंनी शब्द बबा कह कर पुकारते थे। सोमवार को उनकी शव यात्रा में प्रशासनिक अधिकारी, पत्रकार, रंगकर्मी, साहित्यकार, राजनेता, छात्र, न्यायाधीश, विभिन्न संगठनों के लोग, शिक्षक, महिलाएं, मजदूर तबका और सभी धर्मो के लोग शामिल थे। इससे झलक रहा था कि गिर्दा वह हस्ती थे जो कभी मिटेंगे नहीं। लग रहा था मानो उनकी शव यात्रा में नैनीताल ही नहीं, पूरा उत्तराखंड शामिल है। दिल्ली व लखनऊ से आए लोग भी शामिल थे।
इस विराट व्यक्तित्व की अर्थी को हर हाथ छू लेना चाहता था। इस दौरान जो भी मार्ग में मिला वह यात्रा में शामिल हो गया और काफिला बढता गया। गिर्दा की अंतिम इच्छा थी कि उनकी शवयात्रा में उनके गीतों को अवश्य गाया जाय, साथियों ने यही किया भी। फिंजा में उनके लिखे, गाये जन मानस की पसंद बन चुके गीत गूंज रहे थे। जन आंदोलनों के दौरान जब गिर्दा सडकों में उतर कर अपने लिखे जन गीतों को गाते थे तो हजारों की भीड उन्हें घेर लेती थी। मगर आज वह गा नहीं रहे थे, तो भी हजारों लोग उन्हें घेरे हुए थे। हर तबका उनके साथ उसी तरह जुडा था जैसे जन आंदोलनों के दौरान उनके साथ लोग जुड जाते थे।
[सोमवार, 23 अगस्त 2010]