Author Topic: गिरीश चन्द्र तिवारी "गिर्दा" और उनकी कविताये: GIRDA & HIS POEMS  (Read 74699 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 एक और परिचय

गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ (Girish Tewari ‘Girda’)

(माताः स्व. जीवंती देवी, पिताः स्व. हन्सादत्त तिवारी)

जन्मतिथि : 9 सितम्बर 1945

जन्म स्थान : ज्योली (तल्ला स्यूनरा)

पैतृक गाँव : ज्योली जिला : अल्मोड़ा

वैवाहिक स्थिति : विवाहित बच्चे : 2 पुत्र

शिक्षा : हाईस्कूल- राजकीय इंटर कालेज अल्मोड़ा

इंटर- एशडेल स्कूल, नैनीताल (व्यक्तिगत)

जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ः 1966-67 में पूरनपुर में लखीमपुर खीरी के जनपक्षीय रुझान वाले कार्यकर्ताओं से मुलाकात।

प्रमुख उपलब्धियां : आजीविका चलाने के लिए क्लर्क से लेकर वर्कचार्जी तक का काम करना पड़ा। फिर संस्कृति और सृजन के संयोग ने कुछ अलग करने की लालसा पैदा की। अभिलाषा पूरी हुई जब हिमालय और पर्वतीय क्षेत्र की लोक संस्कृति से सम्बद्ध कुछ करने का अवसर मिला। प्रमुख नाटक, जो निर्देशित किये- ‘अन्धायुग’, ‘अंधेरी नगरी’, ‘थैंक्यू मिस्टर ग्लाड’, ‘भारत दुर्दशा’। ‘नगाड़े खामोश हैं’ तथा ‘धनुष यज्ञ’ नाटकों का लेखन किया। कुमाउँनी-हिन्दी की ढेर सारी रचनाएँ लिखीं । गिर्दा ‘शिखरों के स्वर’ (1969), ‘हमारी कविता के आँखर’ (1978) के सह लेखक तथा ‘रंग डारि दियो हो अलबेलिन में’ (1999) के संपादक हैं तथा ‘उत्तराखण्ड काव्य’ (2002) के रचनाकार हैं। ‘झूसिया दमाई’ पर उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ एक अत्यन्त महत्वपूर्ण संकलन-अध्ययन किया है। उत्तराखण्ड के कतिपय आन्दोलनों में हिस्सेदारी की। कुछेक बार गिरफ्तारी भी हुई।

विनोद सिंह गढ़िया

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24 सितम्बर 2000  को गिर्दा ने गैरसैंण रैली में यह छन्द कहे थे, जो सच भी हुये।


विनोद सिंह गढ़िया

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हिमालय को बचाने का आह्वान करती गिरीश तिवारी "गिर्दा" की मर्मस्पर्शी कविता

"आज हिमाल तुमन के धत्यूंछौ, जागौ-जागौ हो म्यरा लाल"


विनोद सिंह गढ़िया

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कुमांऊनी बोली की तर्ज पर गिर्दा की एक चुनावी कविता


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जैले हैसक, जतुक लै हैसक
फूल-पाति, धूप बाति
पिठ्यां-आँखत, जौं-तील
दुबाक तिलाड़, नाजाक बालाड़
धूँणि देबाल, देला म्वाल
में चणूँणीनाक ख्वारन
तुमौर भल है जो।

हम जास जाथौवनौक नौ ल्हिनेरो
तुमौर भल है जो

यो अनमोल जिंदगी में
जरा-सा लै कैले के करि दियो
त उनरि सोध-भेद ल्हि नरो
उनौर नौ जगूनेरो
उनरि छै चितूनेरो-तुमरौ भल है जौ।

गिर्दा

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गिर्दा सा अब कौन ?
 
 गिरीश तिवारी गिर्दा को हमसे बिछडे 3 साल हो गये, उनके बिना हम उत्तराखण्ड की अभूतपूर्व त्रासदी से जूझ रहे हैं। हमेशा दिलो दिमाग में बसने वाले हमेशा सामान्य बने रहे विराट व्यक्तित्व के धनी गिर्दा को तीसरी पुण्य तिथि पर हृदय से याद करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
 
 गिर्दा आप सा स्नेहिल, आप सा सहृद्य, आप सा उदार, आप सा ज्ञानी,आप सा कवि, आप सा चिन्तक, आप सा गायक, आप सा जुझारु आन्दोलनकारी और देश दुनिया के गरीब गुरबों तथा उत्तराखण्ड के लिए प्राण पण से जूझने वाले गिर्दा आपके बिना 3 साल कितने अधूरे हैं, शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। आज जो कुछ हुआ या हो रहा है वह आपके रहते भी होता लेकिन उससे उबरने की जो राह आप बताते उससे तो हम बंचित ही हैं। आप तवाघाट के भूस्खलन के समय वहां डट गये, उत्तरकाशी भूकम्प के समय आप दौड पडे,नदी बचाओ आन्दोलन में खराब स्वास्थ्य के बावजूद आपने यात्रा पूरी की और आपका बोल व्यापारी अब क्या होगा गीत आन्दोलन का बैनर गीत बन गया।
 वन आन्दोलन में-“आज हिमाल तुमुन कैं धत्यौछ-जागा जागा हो म्यारा लाल--” की चेतना आज भी जिन्दा है तो नशा नहीं रोजगार दो आन्दोलन में- ”जैंता एक दिन त आलौ उ दिन य दुनी में--“ ,उत्तराखण्ड आन्दोलन में आपका उत्तराखण्ड बुलेटिन कौन भूल सकता है। हुडके की थाप पर आप जहां भी खडे हो जाते जन सैलाब आपके पीछे होता। आपने अपने समकक्षी लोक गायक नरेन्द्रसिंह नेगी के साथ जुगलबन्दी के जो सफल प्रयोग किए वह उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बन गया। उत्तराखण्ड में ऐसा कौन सा आन्दोलन था जिसमें आप और आपके गीत नहीं रहते।
 
 गिर्दा जो आपाधापी उत्तराखण्ड में मची है कह नहीं सकते वह कब दूर होगी। आप और आपके समय के लोग चीख चीख कर बांधों के खिलाफ सावधान करते रहे लेकिन इस अभूतपूर्व त्रासदी में भी उत्तराखण्ड को डुबाने के साजिश कर्ता उसी लय में हैं। आप उन्हें अब तक ललकार चुके होते लेकिन हम नहीं ललकार पाये है। गिर्दा कितनी बार कहें आप जो करते हम नहीं कर पायेगे। आपके बिना हम कितने अधूरे हैं। यह अधूरा पन कब पूरा होगा, होगा भी या नहीं कह नहीं सकते लेकिन सृष्टि को अपने क्रम में चलना है इसलिए लुटेरों के आगे हथियार डालने के बजाय उनसे लडना ही श्रेयकर होगा,यही श्रद्धांज्लि गिर्दा के लिए सही भी होगी।
 
 साभार : पुरुषोत्तम असनोड़ा

Hisalu

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Girda ko naman unki teesri punya tithi per

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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र्दा तुमने सच कहा था-

सारा पानी चूस रहे हो,
नदी-समन्दर लूट रहे हो,
गंगा-यमुना की छाती पर
कंकड़-पत्थर कूट रहे हो,

उफ!! तुम्हारी ये खुदगर्जी,
चलेगी कब तक ये मनमर्जी,
जिस दिन डोलगी ये धरती,
सर से निकलेगी सब मस्ती,

महल-चौबारे बह जायेंगे
खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूँद-बूँद को तरसोगे जब -
बोल व्योपारी – तब क्या होगा ?
नगद – उधारी – तब क्या होगा ?


विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]गिर्दा द्वारा कुमाउंनी भाषा में लिखी गई यह पंक्तियां मूलत: उर्दू शायर "कैफ़" की कविता का कुमाउंनी रुपान्तरण है। यहाँ पर जो हिन्दी भावार्थ दिया है वो कैफ़ की मूल पंक्तियां है। रानीखेत इलाके में मजदूरों के आन्दोलन को समर्थन देने के लिये गिर्दा गये थे (शायद 1980 के दशक में). तब गिर्दा ने कैफ़ की पंक्तियां सुना कर मजदूरों में जोश भरने की कोशिश की, लेकिन गिर्दा को लगा कि यह बात अगर मजदूरों की अपनी भाषा में ही कही जाये तो ज्यादा असरदार होगी। तब गिर्दा ने इसका कुमांऊंनी रुपान्तरण किया था।गिर्दा द्वारा कुमाउंनी भाषा में लिखी गई यह पंक्तियां मूलत: उर्दू शायर "कैफ़" की कविता का कुमाउंनी रुपान्तरण है। यहाँ पर जो हिन्दी भावार्थ दिया है वो कैफ़ की मूल पंक्तियां है। रानीखेत इलाके में मजदूरों के आन्दोलन को समर्थन देने के लिये गिर्दा गये थे (शायद 1980 के दशक में). तब गिर्दा ने कैफ़ की पंक्तियां सुना कर मजदूरों में जोश भरने की कोशिश की, लेकिन गिर्दा को लगा कि यह बात अगर मजदूरों की अपनी भाषा में ही कही जाये तो ज्यादा असरदार होगी। तब गिर्दा ने इसका कुमांऊंनी रुपान्तरण किया था।

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