1911 में भवानीदत्त सती थपलियाल ने ‘जयविजय’ नाटक लिख कर गढ़वाली
नाट्य साहित्य का सूत्रपात किया। गढ़वाल में यद्यपि
कभी भी सुसंगठित, सुव्यवस्थित रंगमंच विकसित
नहीं हो सका किन्तु नाट्य लेखन अनवरत् चलता
रहा। गढ़वाली में काव्य सर्वाधिक लिखा गया।
कहानी और कुछ उपन्यास भी लेकिन नाटक भी
काफी लिखे गए। इन नाटकों के मंचन की यद्यपि
अद्यतन जानकारी नहीं है किन्तु इनमें से कुछ तो
मंचित होते रहे। एक आकलन के अनुसार गढ़वाली
में लिखे कुल चालीस नाटक व एकांकी आज भी
उपलब्ध हैं। भवानी दत्त थपलियाल ने ‘जयविजय’
और ‘प्रहलाद नाटक’ के बाद उपलब्ध कुछ प्रमुख
नाट्य लेखक इस प्रकार हैं -
सर्वश्री विशंभर दत्त उनियाल ;बंसतीद्ध, ईश्वरी
दत्त जुयाल ;परिवर्त्तनद्ध, भगवती प्रसाद पांथरी ;भूतों
की खोह, अधःतनद्ध, हरिदत्त भट्ट शैलेश व गोविंद
चातक के एकांकी संग्रह, जीतसिंह नेगी ;भारी
भूलद्ध, विशालमणि शर्मा ;ध्रुव व श्री कृष्णद्ध,
दामोदर प्रसाद थपलियाल ;मनखी, औंसी की रातद्ध,
पुरुषोत्तम डोभाल ;विदंरा व बुरांसद्ध, ललित मोहन
थपलियाल ;अछरियांे को ताल, खाडु लापताद्ध,
मित्रानंद मैठाणी ;च्यूं व मांगणद्ध, कन्हैयालाल
डंडरियाल ;सपूतद्ध, राजेन्द्र धस्माना ;जंकजोड़ व
अर्धग्रामेश्वरद्ध, अबोधबंधु बहुगुणा ;माई को लाल
व अंतिम गढ़द्ध, ललित केशवान ;मिठास व हरि
हिंडवानद्ध, गुणानंद पथिक वा सुरेशानंद थपलियाल
;रामलीला नाटकद्ध।
श्री शिवानंद नौटियाल, श्रीधर जमलोकी, प्रेमलाल
भट्ट, उमाशंकर सतीश, भगवती प्रसाद चंदोला,
स्वरुप ढौड़ियाल भी प्रमुख गढ़वाली नाट्क लेखको
में हैं। गढ़वाली नाट्य इतिहास के तीन दौर हैं।
प्रथम दौर- भवानीदत्त थपलियाल का, द्वितीय दौर
- ललित मोहन थपलियाल और तीसरा दौर राजेन्द्र
धस्माना के नाम है। आधुनिक दौर में गढ़वाली
नाटकों की दशा और दिशा क्या है, इस पर आकलन
किया जाना जरूरी है। खास तौर पर उस समय
जब गढ़वाली नाट्य इतिहास की शताब्दी मनाई जा
रही हो।