Author Topic: Articles & Poem by Sunita Sharma Lakhera -सुनीता शर्मा लखेरा जी के कविताये  (Read 28406 times)

Sunita Sharma Lakhera

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"तबारी  अर अबारी" सुविख्यात  व्यंगकार  नरेंद्र  कठैत  जी  की  गढ़वळि  कविता  संग्रै  च  जे  मा  उन्कु  सरल  सुभाव  अर  विलक्षण  प्रतिभा  दिखेणि  च | जन  कि  सबि  जांदा  ह्वाला  ही   कि  सबि  कलाओं  मा  सबसे  कठिन   कला  च  कविता  लिखण  जै  मा  कवि  तैं  वस्तु  अर  विषय  तैं  खुद  ही  जीण  पवडदु  अर  हरेक  आखर दगडी अफु  बचाळणु   पवडदु  तबि  कुइ कविता  कन्दणु  बटि  आत्मा  मा  यन  उतरदी  च  जन  बुल्यां  पाठक  ही  वीन्ते जीणु  ह्वाल | कठैत  जी  लोकभाषा  का  वु  चबोड़  कवि  छन  जौन  आधुनिक  कविता  शैली  क  उद्धार  करि | यूंकि  हरेक  कविता  संग्रे  पाठकों  कि  जिकुड़ी  मा खूब  घंघतोळ  मचांदी अर आत्म सुधारक बी बनौंदी , अर यी च उन्की  सफलता  का  राज |
उन  अपरी  पोथी  "तबारी  अर अबारी"  मा  समाज  की  पीड़ा  पण  अलग -अलग  स्थिति   दियुं च , हरेक मनखी वास्ता  अलग -अलग  सन्देश  दियुं  च | सबि  कविता  मा  एक तरफ  व्यंग  की  पैनी  धार  च  त  हैंक तरफ मौल्यार  शब्दों  की  बाहर  च | यीं  पोथी  मा  उंकी  ४८  कविता  छन  जु  सभ्या  पाठकों  तैं  कचोटता  छन अर दगडीम  उन्ते  प्रेरणा बि दींदी च | आपदा संस्कार ,छप्पर फाड़ी ,चाS ,तबारी  अर अबारी, किरमोलु ,ढोल , दमौ , तुलपन , खरभागी सर्ग ,गंगा माँ ,प्याज आदि युंकू  सबि  कविता  मा  सबसे  ज्यादा  प्रभावित  करदी रचना ज्वा कालजय  रचना से  कम  नी  व्हेय  सकदी  वे  मा  प्रमुख  छन  हमारी भाषा, खरभागी सर्ग अर  बीज |

'हमारी भाषा ' एक बड़ी कविता च जैमा  कवि  कठैत  जी  न  भाषा  बनण   मा  आयी  परेशानी  की  खूब  खबर  सार  लीयुं  च  अर  जु मनखी अपर भाषा से आँख चुराणा वून्ते वूंकी भाषा मा खूब चदगताल लीयुं च |
हमारी भाषा मा उन  लेखी --

‘हमारि भाषा’
आखर ब्रह्म च /अर परमेसुर बि
पर बिगर / मनख्यूं का त
य भाषा
बणि नि ह्वलि ।
सबसि पैली / य द्वी मनख्यूं का
सुर मा ढळी ह्वलि
तब तौं दुंयू का / सुर बिटि
य हौरि लोग्वा बीच
हिली - मिली ह्वलि ।
पर यू बि / सोची कैन कबि
कि वे मनखी / जिकुड़ी मा
अपडि़ भाषौ तैं
वा
कन्नि ललक रै ह्वलि ।
जैन / भाषा बचैणू तैं
सबसि पैली
अपडि़ अंगुळी / कोरा - दरदरा
माटा मा रगडि़ ह्वलि ।
आखर- आखर
घिसि-पिटी तैं य भाषा
एक ही दिन मा / माटा बिटि
पाटी मा त
चढ़ी नि ह्वलि ।
ऐसास करा दि / वीं पिडौ
ज्वा ताम्र पत्र / सीला लेखू पर
आखर - आखर चढ़ौंदि दौं
यिं भाषन सै ह्वलि ।
याद करा दि
वूं पुरखौं कि खौरि
ज्याँ कि स्यवा मा/ वूंन रोज सुब्येर
अपडि़ पाटी घोटि ह्वलि ।
कन क्वे बिस्र जौला हम
वूं ब्वळख्यों कु दान
जौंन भाषा बणौणू / कमेड़ा दगड़ा
अपडि़ सर्रा जिंदगी
छोळी ह्वलि ।
क्य भूल ग्या
हमारि य भयात
वूं स्ये कि टिकड़्यूं कु त्याग
जु यिं भाषा तैं / ठड्योणू वूंन
दवात्यूं उंद
घोळी ह्वलि ।
याद करा दि
वु पंख / वु बाँसै कलम
वु प्यन-पैंसिल अर वू रबड़
जौंन भोज पत्र / अर कागज पर
यिं भाषौ तैं
अपडि़ सर्रा जिंदगी
रगडि़ ह्वलि ।
इथगा जण्न-समझण पर्बि
ब्वना छयां / क्या रख्यूं
यिं भाषा मा /क्वी रुजगार त
य देणी छ नी ।
अरे ! / य भाषै त छै
जैं कु हथ पकड़ी
तुमुन य दुन्या
देखी-पर्खी ह्वलि ।
फिर्बि!
छोड़ द्या
क्वी बंधन नी
अगर यिं /भाषा ब्वन मा
तुम तैं
भरि सरम औंणि ।
पर एक बात
बता भयूं!
क्य तुमुन यीं कुु
दूधौ कर्ज चुक्ये यलि ?
अरे ! दुख - दर्द
बिप्दा मा
जथगा दौं तुमुन
अपडि़ ब्वे पुकारि ह्वलि
उथगी दौं
वे एक ही/ ब्वेे सब्द बोली
तुमारि जिकुडि़ मा
सेळी प्वडि़ ह्वलि ।
आखर ब्रह्म च
अर परमेसुर बि
य बात त हमुन
साख्यूं बिटि
घोटि-घोटी तैं रट यलि।
पर न तुम ब्वल ल्या
अर न अगनै कि पीढ़ी
यिं भाषा ब्वनो तयार ह्वलि
त सोचा धौं /य भाषा अगनै
कैं उम्मीद पर
खडि़ ह्वलि ?
पूरी कविता भौत भावपरक  अर प्रवाहमयी च  | वूंकी सब्बि कविताओं मा भाषा कि समलौण च अर नयी पीढ़ी वास्ता भौत से नया प्रयोग हुयुं  छन जु  मनखी पढ़िक  ही समझ सकदन | उन्कु यीं पोथी अर सभ्या कार्यों वास्ता  बधाई दींदु अर उम्मीद करदु कि उन्की यीं प्रयास से सभी अपरी संस्कृति अर भाषा से प्रेम करल्या | विन्सर प्रकाशन भी बधाई के पात्र छन जौंण  कि हरेक पृष्ट तैं सुंदर अर त्रुटि मुक्त राखी अर आदरणीय बी .मोहन नेगी जी कि आवरण  चित्रकारी त बेमिसाल च |
आखिर मा बस इतगा कि आप रुकीं न , थकीं न , आप अग्ने चलो , ज़माना आपक पैथर  चलल |

अपरी यीं पोथी वास्ता आपतैं सादर साधुवाद |
धन्यवाद
[/b]

Sunita Sharma Lakhera

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धाद पत्रिका
---------
भौत  साळो  बटिक  गढ़वळि  पत्रिका  खुजाणा  रौं  जै मा   नै - पुराणों  ल्यखदरि  तैं  थान  मिल्दु ह्वा  |  यन  पत्रिका  जु  हरेक ल्यखवार  तैं  वनि  मान  दींदी ह्वेलि    जन  की  होर  वरिष्ठ  ल्यखवार  तैं  दींदी  छिन  |  कइ यिन  ल्यखवार  बि छिन  जु  लिखदा  त भोत  ही  भलु छिन  पण  अपर  कैं न कैं  परिस्थिति  का  कारण  मंचों सै  दूरी  रख्दां , वूं   सब्यूं  खुणि  " धाद " वरदान  सिद्ध ह्वेलि | वन  त  नै  जमाना  मा  महिला  ल्यखवार  अब  इतगा  संकोची  त  नि  रै  गेन  फिर  भी  अपर  लेखन कर्मभूमि  वास्ता  उतैं  खुलू  अगास  दीन  वाळी धाद संस्था  भौत  बढ़िया  कार्य  करणी च  |  आदरणीय गणेश   'गणी'  जी  का  आभारी  छौ  जौन मैं कुण जुलाई अंक भेजी  |  इंकि  पूर कार्य  देखिक  ज्वा खुसी  मिल  वेकी  वर्णन  करण  इतगा सौंग   नि च | आदरणीय  संस्थापक  लोकेश  नवानी  जी ,आदरणीय गणेश गणी   जी अर वूंक सब्बि  सहयोगी  टीम  तैं  आभार जौंन  धाद क जरिया अपर लोकभाषा अर संस्कृति का पत्रिका मा सुन्दर समलौण करि | धादन उड़ान भले देर से भौर पण इंकी परवाज भौत  उंच अर दीर्घयामी राल | पुराणों अर नै साहित्यकारों का संस्मरण , आत्मगाथा अर  उंक भाषा से लगाव देखिक भोत खुसी  ह्वे |

पूर पत्रिका मा भाषा की खूब परख हुयु च | अधि दुनिया फर समर्पित "धाद " बकै पत्रिकाओं वास्ता मिसाल बणी गे | पूर पत्रिका मा मासिक स्तम्भ  अंक मा १५ दीदी - भुलि  ल्यखदरि का जीवन संघर्ष , अर सफलता का आधार वुक़ू जुबानी बड़ी सुन्दर अर प्रेरक लगि | ज्वा ल्यखवार शामिल छिन सब्यूं का अपर  गाथा अर समाज तैं युंकू समर्पित जीवन तैं  नमन करदु | यीं  ल्यखवार कुटुमदरि मा कुइ कवियत्री छिन ,त कुइ कहानीकार ,त कुइ नाट्यकार , सब्यूं का अपर -अपर शैली , अपर -अपर योगदान |  एकि वास्ता मि सब्यूं  तैं बधाई दींदी छौ |

मासिक स्थायी स्तंभ सुंदर तरह से बंटि च | पैलि ' ये मैने धाद ' मा  सम्पादकीय  पृष्ट  मा आदर्णीय ' गणी '  जीन बडी सरलता से अर बडी सूझबूझ से नै ल्यखदरि तैं प्रेरित करि च कि भौत कम महिला ल्यखदरि लिखणा छिन अर कतगा अब्बि रौशनी का बाट जोहना छिन जौंकि तलाश ' धाद ' करली | लोकमत स्थाई स्तंभ मा पाठकदारों का विशलेषण भी तारीफ का काबिल च अर सै बि बोलि वूं कि ' धाद ' का सब्बि अंक धरोहर छिन अर मन का कांठी मा गुंजणी 'धाद ' .... | सम्मानिता लता शुक्ला जीक चित्रकारी बढिया छिन | आदर्णीय धनेश कोठारी जीन ' भुलि ए भुलि ' की भौत सुंदर समीक्षात्मक रिपोर्ताज दियूं च जु पाठकों मा रुचि पैदा करण मा सफल रै, वूंतैं बधै | अर आखिर मा ' माथम अपणि भाषा को ' मा रुक्माक जरिया भाषा कि सुवाणि सम्लौण च |
'धाद' सच मा हर घर मा रखी  जाण वलि शानदार पत्रिका च | यींकी विकास जात्रा एक दिन पूर विश्व मा अपरि अमिट छाप छवडली यीं शुभकामना दगडी आप सब्युं तैं हार्दिक बधै |

Sunita Sharma Lakhera

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बल एकता
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म्याला लगलु ___
अल्य- ख्वाल
पल्य - ख्वाल
मल्ला - तल्ला
दुबई - डयाराडून 
दिल्ली - मुम्बई
 सबि कठि ह्वे जौला
किलै___ हूणु कठि
बल धाद लगौणा छन
 इक जुट - इक  मुठ
ह्वे जावा इकु दिन सबि
नथर यन कबि त सूण नि
एक - हैंका कुण
 गाल दीण वल्ला
एक हैंके टांग खीचण 
वाल उत्तराखंडी मनखि
कबि मयाळु,,,,
 बि ह्वाल !!!!
------© सुनीता शर्मा

Sunita Sharma Lakhera

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संस्कारवान
*********
अपर घरम
 अपर नौना
संस्कारवान नि बणे
अर द्याखो___
वुइ  मनखि हैंका
घरम कंदुड़ लगैक
सुधि - सुधि गौंका
उद्धारक  बणी जांद
बल____
मि नि हूंद त
यिं दुनियान
कैबर बिगड़
जाण छ्याई
[/b]

Sunita Sharma Lakhera

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   रोते पहाड़
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यहां अब हर दिन बदल रहे है लोग ,
बदल रही है अब उनकी दुनिया,
इंसानियत की सूखी रोटी छोड़ ,
लोभियों के मृगजाल में फंस रहे ,
अंधियारी  दुनिया अब उन्हें भा रही ,
नहीं समझ रही भोली जनता कुछ भी
कि अंग्रेजों की दीक्षा खूब फल -फूल रही,
जिनकी थी बस फूट डालो की काली नीति ,
नशे में डुबोकर पहाड़ों की पावन माटी को अब ,
हर दिन सर्पीली सड़कों पर दुर्घटनाएं दिखा रही ,
आज का भोला बचपन विद्या भूल नशे में डूब रहा ,
इस अंधेर नगरी में अब जनता का उद्धार कैसे हो ?
 स्व० इन्द्रमणि बडोनी जी का सपना कैसे पूरा हो ?

Sunita Sharma Lakhera

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सुविख्यात 'हलन्त ' के दिसम्बर  2016 अंक की  साहित्यिकी में विचारों के सहज- सरस रचनाएं पढ़कर मन हर्षित है | संपादकीय पृष्ट में संपादक जी ने जो माननीय मोदी जी द्वारा काले धन रूपी दानव को स्वाह करके आठ नवम्बर को दूसरा दशहरा के रूप में मनाए जाने की बात की वह अनुकरणीय है । मंगलध्वनि के माध्यम से पाठकों के पत्रों को स्थान देना प्रभावी है जिसमें डॉ प्रीतम जी का पत्र उल्लेखनीय है । सुविख्यात कवि आनंद बिलथरे जी की सभी रचनाएं धारदार और प्रेरणादायक है। इसी कड़ी में सुविख्यात गढ़वळी कवि दिनेश ध्यानी जी की सभी सामायिक रचनाएं अपना विशिष्ट प्रभाव छोड़ती है जैसे कि 'सुना ! वह फिर रोयी थी ' में भी दिखी । रचनाकार धीरज सिंह नेगी जी का रोचक व संसमायक लेख 'उजाला दूसरों का हो गया ' विचारणीय है । आपने आदरणीय धूमिल जी का कविता पोस्टर शामिल किया यह साहित्यिक गौरव की बात है 
आपको साधुवाद। 'रौ की मिस्ड कॉल ' विपिन सेमवाल जी द्वारा लिखित उत्तराखंड के मौजूद हालात पर व्यंग्यात्मक इंटरवियू रोचक है । उम्मेद सिंह विशारद द्वारा लिखित लेख आर्य समाज के महत्व व उसके उद्देश्यों को पाठकों के समक्ष रखने में सफल रहा । आगे आशीष रावत जी का लेख 'नोट पर चोट ' वर्तमान अर्थव्यवस्था में काले धन की पड़ताल कर रहे हैं । गांव की माटी की सुगंध लिए कवि विजय कुमार सिन्हा की रचना अच्छी है । नीरज नैथानी जी ,उपासना जी की सुंदर रचना है । डॉ कीर्तिवर्धन जी ने 'आक्रोश ' के माध्यम से सुंदर शब्द स्पंदन किया है । डॉ यशोधर मठपाल जी की कहानी रोचक होने के साथ -साथ  कई प्रश्नो व दुविधाओं का स्वउत्तर देती है । डॉ चरणसिंह केदारखंडी जी की 'बहुत कुछ कहता है सीमांत का सन्नाटा ' शानदार व मर्मस्पर्शी यात्रावृतांत है । संदीप रावत जी का गढ़वाली लेख देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती देने पर केंद्रित है और अंत में सुविख्यात गढ़वाली व्यंगकार नरेन्द्र कठैत जी का  प्रेरणादायक लेख मर्जी की मर्जी से आरंभ होकर मर्जी पर ही अंत होकर कहती है 'बक्कि तुमरि मर्जी ' ।
 इस प्रकार पूरी पत्रिका साहित्य की उत्तम पावन धारा है जो साहित्यिक मनीषियों की कर्मभूमी है और इसकी सफलता के लिए सादर साधुवाद ।

Sunita Sharma Lakhera

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स्वार्थ भलु
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जरा द्याखो
अंधभक्ति '
असहिष्णु'
 कु विचार
 चुनौ क समय
मा हि किलै
उठाण व्हाल लोग ?
अर जैबर उठाण चैंद
तब सीयीं रैदन
 झणि किलै लोग ?
 सालों -साल
नेताओं का
ऐथर -पैथर
हरेक कामौ
मा जु लोग
गुणगान मा
धनिक हूँदन
वि मनखी
अचाणचक
उंकु बुरै करण
मा सबसे अगनै
ए जांदन
भूलि जंदन
कि नेता क्वी
कैं होरि ग्रह
का रैबासि नि
वु बि तुमर तरह
इंसान छय
तुमर आशाओं
तुमर बाधाओं
का विश्वाश छय
काम हूँदन
खूब हूँदन
जब सब्बि
संगठित हूँदन
पण जख द्याखो
स्वार्थी मनखी
अफु तै भलु
अर हैंका तै
बुरु बताण मा
पैलू नंबर बण्यु

Sunita Sharma Lakhera

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मेरा पहाड़ के सभी जागरूक मतदाताओं को मेरा सादर नमस्कार ।
मतदान का समय नजदीक है सो हमेशा याद रखे कि स्वयं तो मतदान देना है साथ में सभी को जागरूक करना है । अक्सर पढ़े लिखे लोग मतदान को फिजूल समझते है और समय का नाश समझते हैं । कुच्छेक जागरूक मतदाताओं को छोड़कर मतदान का प्रतिशत ग्राफ ग्रामीण व गरीब ही बढ़ाते है । स्वयं इस प्रक्रिया में भाग ना लेने वाले लोग फिर हर समय अपने प्रतिनिधियों को कोसने का कार्य करते हैं ।
यह तो सभी जानते और मानते हैं कि मतदान स्वेच्छा पर निर्भर है किन्तु धैर्य , संस्कार और सामाजिक उत्थान हम सबका संयुक्त दायित्व । विकास मात्र विधायक / प्रतिनिधि चुनने से नही होता उसमें किसी भी क्षेत्र के निवासी की एकता और एकमत होना भी जरूरो है । कोई भी प्रतिनिधि भ्रष्ट तब बनता है जब उसे आप मौका देते है । आपसी निजी फूट के चलते उत्तराखंड भारत के  पिछड़े राज्यों में गिना जाता है , ऐसा क्यों स्वयं मनन कीजिए । आरोप- प्रत्यारोप तो चुनावी गागर के घड़ियाली आंसू होते हैं । यथार्थ में ना कोई पार्टी दोषी ना जनप्रतिनिधि दोषी । दोषी हम सब है जो अपने आपको कमजोर समझते हैं और अपने प्रतिनिधियों से काम लेना ही नही जानते / चाहते । इसीलिए इस बार ना केवल सक्षम प्रतिनिधि चुनिएगा अपितु अपने आप को भी जागरूक , कर्मठ और एकमत बनाइएगा । बहुत इसका उसका कर चुके अब बस एक बात हो  क्षेत्र का विकास , राज्य का विकास और पलायन में रोकथाम । शुभम ।

Sunita Sharma Lakhera

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आदरणीय  श्री शाक्त ध्यानी जी द्वारा संपादित "हलन्त" -१७ अंक अपने चिर परिचित कलेवर के साथ उत्तराखंडी मन को स्पर्श करती हुई पाठकों के हृदय तक पहुँचने में कामयाब रही | इसी स्तरीय पत्रिका में स्थान पाना गौरव का विषय है | विचाराधीन समस्त पठनीय सामग्री को आम जन मानस तक उपलब्ध कराना 'हलंत ' की विशिष्ठ उपलब्धि है | मुखपृष्ठ राष्ट्रीय भावों से ओत -प्रोत है | अपने उत्कृष्ट रचनाधर्मिता की परिचायक लेखनी के उद्घोषक स्वयं संपादक महोदय की " घुणतंत्र " खंड काव्य के अंशों से स्पष्ठ  है | ' मंगलध्वनि 'में पाठकों के रोचक पत्र है | सुविख्यात रचनाकार आनंद बिल्थरे जी की क्षणिकाएं संदेशवाहिनी व् प्रेरक लगी | संपादकीय कलम में बसंत ऋतू पर विचारणीय सारगर्भित गूढ़ज्ञान युक्त तस्वीर बनाने में कामयाब रही | परम श्रद्धेय डॉ यशोधर मठपाल जी का संस्मरण "षडऋतु चर्या ' उत्तराखंडी मन को बहुत करीब से छूता है | लोकभाषा के अनमोल धरोहर रुपी शब्दों को उन्होंने विशेष स्थान देकर लोक भाषा पर उपकार किया है ,इसके लिए उन्हें साधुवाद | डॉ घनानंद शर्मा जी का शोध लेख " कालिदास और उत्तराखंड का प्राकृतिक सौंदर्य " पठनीय व् संग्रणीय है | आशीष रावत जी का राजनैतिक विषेयक लेख भावपरक और आम जान मानस पटेल पर विचारों का आवेग छोड़ने में कामयाब रहा | आदरणीय संपादक जी की पैनी नज़र 'राजनीतिक प्रक्षालन  का अवसर ' के माध्यम से उत्तराखंड की राजनीती के गिरते स्तर में माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी को उत्तराखंड के मसीहा के रूप में देखते हुए लिखते हैं ' मोदी राजनीती इस अँधेरे में संभावनाओं की भोर लेकर सामने आए हैं | विपिन सेमवाल जी का आलेख ' हमने सिखाया था चक्रव्यूह का निर्माण ' धार्मिक इतिहास में केदारघाटी को  साक्षात् गवाह बना रही है | श्रद्धेय कीर्तिवर्धन जी का ' हमारे बुजुर्ग ' मर्मस्पर्शी व् काव्यात्मक शैली में लिखा लेख हेतु उन्हें  दिली दाद | सच तो है ही ' जिंदगी इंसान की किस्तों में गुजरती है , कभी बचपन , कभी बुढ़ापे में कटती है | '

Sunita Sharma Lakhera

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कभी पहाड़ कभी सड़क कभी विपदा से लड़ रहा पहाड़ी आदमी ...
फिर भी सदियों से पहाड़ पर घर-बार  खोज रहा पहाड़ी आदमी ....
उम्मीदों के सीढ़ीनुमा खेतों को दुःखो के आंसुओं से सींचता रहता ....
फिर भी ना जाने क्यों पहाड़ पर अपनो से गुमराह है पहाड़ी आदमी ।

 

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