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Articles & Poem by Sunita Sharma Lakhera -सुनीता शर्मा लखेरा जी के कविताये

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Sunita Sharma Lakhera:
हार्दिक धन्यवाद भाई Mahi Mehta जी ,आज काफी समय बाद आज पुनः यहां जुड़ी।  mera pahad forum पर कार्यरत सभी कलमकारों को सादर नमस्कार 😊🙏

Sunita Sharma Lakhera:
प्रकृति पीड़
**********
सुन रे मानव!
 पहाड़ चिरशांति का उद्बोधक
कोलाहल तुम्हारा हो या औजारों का
उसके अनहद को भंग करता होगा
मानवीय क्रिया- कलापों पर सिर धुनता होगा
सहनशीलता की भी एक उम्र होती है...
फिर क्रोध का आवेग उसमें भी जन्मेगा..
ज्वालामुखी की शक्ल में सबकुछ लीलने को आतुर...!

विकास के हर एक उद्भव  का अंत मिट्टी है..
मिट्टी का वजूद मिट्टी  पहाड़ हो या मैदान ..
आक्षेपों के आवरण में लिपटी परियोजनाएं..
अपनी असफलता गीत गाती है ..
इंसान प्रकृति के न्याय के आगे हतप्रभ...
शहर के बसने से जमींदोज़ होने तक के सफर में ...
बेवक्त मिले बिछोह सहने को मजबूर..
अपनी असफलताओं पर हाथ मलता है !

विकास पीड़ की अंतहीन वेदना सहते हुए..
अपने वज़ूद के दरकने की आवाज़...
कब तक चेताएगी संवेदनशील प्रकृति?
जो छिन जाए वो टीस  बन ही जाएगी...
तृष्णाओं की संवेदनहीन मकड़जाल पर  ...
फिर मिट्टी में विलीन हो जाएगी मिट्टी बनकर !

हर बरस आग- बाढ़ का बोझ सह- सह कर ...
मैदानों में उतर आते हैं पहाड़ी लोग ...
अपने सपनो के बसेरे को खो देते विकास के नाम पर ....
और जारी रहता है मिट्टी का सफर मिट्टी बनाने तक ....!


त्रासदी का एक ही  झटका छीन लेती कमाई उम्र भर की...
पीछे छोड़ जाती मजबूरियों ,वीरानियों सा नीरस जीवन ...
जारी रहता प्रकृति का न्यायिक  चक्र अनवरत ...
इसलिए मात्र एक ही समाधान शेष..
आपदा आये जब कभी भी तुम निराश मत होना!

प्रकृति से छेड़खानी की कहानी यूंही नहीं भुलाई जा सकती ...
मिट्टी के वजूद भर इंसान की बिसात एक दिन मिट्टी में मिल जाती..
ये तो प्रकृति उपक्रम  हर बरस चलचित्र दिखाती..
सुनो ! तुम बस कभी आंसू मत बहाना
नव जीवन संचार का  इंतज़ार करना!

प्रकृति के लेन -देन में भेदभाव नहीं दिखता
जैसा बोएंगे वैसा ही तो काटेंगे फसल
सपनो के नीड़ फिर बस जाएंगे
चहुं ओर सुख - संपदा की गीत गाए जाएंगे
बस प्रकृति के गर्भ पर प्रहार मत करना
सृजन स्वर युगों से वो गा रही, गाती रहेगी !

सुनीता शर्मा ' नन्ही '
प्रतिष्ठित हलंत में पूर्व प्रकाशित

Sunita Sharma Lakhera:
वो कौन सा दिन है जो मां के बिन है । मां तो मां है उसमे भेद कभी मत करना । दिन ,महीने या हो सालों साल। सभी माताओं का सम्मान ही भारतीय संस्कार हैं।
वंदे मातरम 🇮🇳🙏

Sunita Sharma Lakhera:
कविता - पहाड़ी मां
***************
हालातों का झीना गिलाफ़ ओढ़े बैठी
मौन रहती  अक्सर मगर नि:शब्द नहीं
भावनाओं के झरने सी निरंतर बहती 
नित्य अश्रुधार लिए भीतर - बाहर
मनन करती कर्मों को बोलती कुछ नहीं
गुजरे दौर के उमंगों से आज भी भरी हुई
मगर आवेग के आवेश में उठती नहीं
तानों में तपी जो बचपन से हरदम
 हौसलों के दम पर कहीं रुकी नहीं
कष्टों से भरी मां अभिशाप देती नहीं
पहाड़ों में एकाकी जीवन जीने को मजबूर
मगर किसी से कोई उम्मीद करती नहीं
जीवन भर पहाड़ का बोझ सहती रही
पहाड़ पर पहाड़ सा जीवन कटता नहीं
जीवन झंझवातों में हमेशा डटी रही
 किसी भी उलझन से कभी डरी नहीं
बीच मंझदार छोड़ गए रोजगार के बहाने
वो जो उसके अपने थे बने अब सब सपने
जीवन मरण की जद्दोजहद शेष अभी बाकी
गांव में अब आदमी हुए कम बाघ हैं काफी
अपने दम पर  जीती  आसानी से हारती नहीं
मां तो मां होती बच्चों के जीवन में बाधा बनती नहीं


©® सुनीता शर्मा  ' नन्ही '

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