Author Topic: Articles & Poem by Sunita Sharma Lakhera -सुनीता शर्मा लखेरा जी के कविताये  (Read 28364 times)

Sunita Sharma Lakhera

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मानव

देखो इंसानियत से भागता आज मानव
मिथ्या का आवरण ओढ़ता मानव
अपनी छवि को संवारने में मदहोश मानव
दूसरों के कंधो पर से वार करता आज मानव
अपने अहंकार में रिश्तों की बुनियाद हिलाता मानव
प्रेम ,प्यार ,वात्सल्य को दरकिनार कर विश्वाश को दंश देता मानव ......

देखो इंसानियत से भागता आज मानव
इर्ष्या ,द्वेष का आवरण ओढ़ता मानव
अपने अहंकार में मदहोश मानव
छोटे मोटे विवाद को विषाद बनाता मानव
जीवन अर्पर्ण से खिलवाड़ करता मानव
घर ,गली ,शहर ,नगर में हिंसा फैलता मानव ...........

.देखो धरती से विश्वाशघात करता मानव
प्रदुषण ,वन्नोमूलन ,और हिंसा का आवरण ओढ़ता मानव
अपने निज स्वार्थ की खातिर धरती का विनाश करता मानव
लहुलुहान होती माटी पर अपने विवेक को खोता मानव
बर्बरता व् पशुता सा जीवन जीता मानव
खून का प्यासा बन रौंद रहा मानवता को अब मानव .......

.देखो प्रेम को केसे कुचल रहा आज मानव
पुरातनपंथ का आवरण ओढ़ता मानव
अपनी परवरिश की बलि लेता मानव
अपनी पंचायतो के तालिबानी फैसलों से भय फैलता मानव
चढ़ रहे भेंट युवा वक़्त, तकदीर और मौत से विभस्त मानव
प्रगतिशील समाज पर प्रतिबंधो को प्रमाणित करता मानव .........

देखो कन्या रहित परिवेश चाहता मानव
बेटों की चाह में समाज को गतिहीन बनाता मानव
अपने निज हित की खातिर भ्रूण हत्या फैलाता मानव
बेटों से तिरस्कृत जीवन को बेटियों के लहू से सींचता मानव
कन्या को गर्भ में कुचलकर खूब इतराता मानव
दहेज़ के विषाद से बचने के लिए हत्यारा बन रहा अब मानव .....

Sunita Sharma Lakhera

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देखो धरा  रो  रही है .......
देखो धरा  रो  रही है .......


देखो धरा  रो  रही है .......
चारो  ओर फैलता देख वैर -वैमनस्य ,
नैतिकता रौंदी जा रही अनैतिकता के हाथों !

देखो धरा  रो  रही है .......
अवचेतन होती मूल्य  धारा  से ,
ममता छिन रही बर्बता  के हाथों !

देखो धरा  रो  रही है .......
मूर्छित हो रही वज्र कठोर धर्मनीति  अब ,
कुलाचे मार रहे आतंकी निर्ममता  के हाथों ,

देखो धरा  रो  रही है .......
हिंसक बनती उसकी रचना ,
निष्क्रिय  होता मानव आत्मबल  शोषण  के हाथों  !

देखो धरा  रो  रही है .......
जाती पाती की विभस्तथा बढ़ रही ,
बन रही महाकाल रंजिशों के हाथों  !

देखो धरा  रो  रही है .......
कास्तकारों के उजड़े  बंजर भूमि ,
बन रही बली  बिजली कटौती  के हाथों !

देखो धरा  रो  रही है .......
धर्म क्षेत्रवाद  से बंट रहा रास्ट्र ,
स्वर्ग सी इस धरा को रौंद रहे आन्दोलनों  के हाथो !

देखो धरा  रो  रही है .......
मोह ,माया ,मृगतृष्णा  से शुब्ध सब जन ,
कुचल रही मानवता बढती महंगाई  के हाथों !

देखो धरा  रो  रही है .......
बिसर चुके हैं परतंत्र की बेडी,
स्वतंत्रता खो रहे हैं ,विदेशी पूंजीपत्ति के हाथों !

देखो धरा  रो  रही है .......
देखो धरा  रो  रही है ......

Sunita Sharma Lakhera

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भावना
 
भावना के मोल  न समझे कोई ,
इसके भाव होते सदा अनमोल ,
जीवन की कठपुतली नही है ,
यह तो जीवन की मार्गदर्शी है ,
भावना कोई खिलवाड़  की वस्तु नहीं ,
इसे मसलकर  खो रहा मनुजता मनुष्य ,
अपने निज स्वार्थ हेतु इस्तेमाल न कर ,
भावना  तो है दैवीय व् ईश्वरीय  केंद्र ,
यह भोले का स्वरुप भी है ,
तो यह अग्नि सा प्रचंड भी है ,
लोग सितमगर हैं ज़माने में ,
 मासूम समझ , रौद्कर खूब इतराते हैं ,
भावना न मांगे पाबंदी
न पसंद उसे तिरस्कार ,
भावना तो है स्वछन्द पंछी,
हर डेरे पर उसका बसेरा ,
भावना से आती भावुकता ,
आत्मीयता  और सहानुभूति ,
इसके मार्ग के अवरोधक  बनते
क्रूर ,हिंसक और  स्वार्थी ,
भावना हर व्यक्ति की समान,
इसका कभी अपमान न करना !! ३/७/१२

Sunita Sharma Lakhera

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दोस्ती

दोस्ती होती है चंदा -कुमुदनी सी
जुडती और फैलती धरा से गगन तक
जाती पाति का भेद न जानती
छोटे बड़े ,अमीरी गरीबी सभी से हाथ मिलाती ,
हृदय है इसका विशाल सागर सा ,
नजरें हैं इसकी गहरी झील सी ,
अपने भीतर न अभिमान आने देती
मित्रों की तकलीफों में स्वयं भावुक होती
सुख दुःख की वो तो है जीवन संगीनी !! ५/८/१२



मित्रता दिवस की आप सभी को मंगल कामनाएं !

fariaydhi

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दी आप ने सुन्दर अभिवयक्ति के रूप में मित्रता प्रस्तुत कर दी क्या बात,
आप को भी मित्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !!!!!!!!

Sunita Sharma Lakhera

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माँ में भेद न कर प्राणी

माँ कौन है ...? केवल नौ दुर्गे जो आपकी यादों में नवरात्रों में चली आती हैं ! माँ के नौ रूप जो हम सभी के दृष्टीकोण में सैदेव रहने चाहिए ! धरती ,अन्नपूर्णा , गौ , गंगा ,दुर्गा ,जन्मदायित्री, कर्मदयित्री , व् बूढी काया !
प्रत्येक घर -२ में देवी के नौ स्वरूपों की विधि विधान से पूज कर व्यक्ति अपने आपको महान देवी का उपासक मानने लगता है ! इन नौ दिनों में व्यक्ति के व्यक्तित्व
में एक अलग निखार दिखने को मिलता है ! वर्ष में दो बार आने वाले इन नवरात्रों की धूम गली -२,नगर -२ देखने को मिलती हैं !इस समय तो कन्याओं की घर -२ में तलाश होती है और फिर झूठ , आडम्बर और भगती के परचम लहराने में प्रत्येक घर आगे रहता है ! विडम्बना यह की जिस नारी के नौ स्वरूपों का जीवन भर तिरस्कार किया जाता है वे इन नौ दिनों में इतनी पूजनीय क्यों हो जाती है ?

आप सभी के दृष्टीकोण में शायद देवी के नौ स्वरुप धार्मिक महत्व के होंगे किन्तु मेरे लिए माँ के नौ स्वरुप हैं -दुर्गा माँ , धरती माँ ,अन्नपूर्णा माँ , गंगा माँ ,गौ माँ , जन्मदायत्री ,कर्मदायित्री अर्थात शिक्षिका ,गुरु माँ अर्थात टेरेसा माँ जैसी समाज सेविका ,और सर्वोपरि बुढ़ापे की दहलीज पर खड़ी बूढी माँ सबसे गूढ़ ज्ञानि ! यदि हमारा जीवन इनके लिए पूर्णतया समर्पित हो जाये तो असल में हम सभी के व्रत सफल हो जायेंगे ! व्रत का परम ध्येय अपनी आत्मा की शुद्धी कर उसे परमात्मा में लीं करना किन्तु हम जाते हैं तीर्थाघटन पर ..किन्तु किसलिए ? दुर्गा माँ के भक्तो की संख्या में इजाफा तो हो रहा है तो क्या पापियों की संख्या घट रही है?

सर्वप्रथम दुर्गा माँ , इसके विषय में तो सारा जगत जानता है और उसकी मौजूदगी का अहसास हम सभी के भीतर विद्यमान है !हर कार्य के प्रारंभ में विशेषकर विद्यार्थी या शिक्षण क्षेत्र में माँ दुर्गा की स्तुति का महत्वपूर्ण स्थान है !
वह जीवन वही अर्पण है और हम सभी शक्ति भी ,प्रेरणा भी ! किन्तु माँ ने कभी नहीं सिखाया की हम अपने स्वार्थ के खातिर जीव हत्या करो ,कन्या का तिरस्कार करो या फिर कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा दो !

दुसरे स्थान पर हैं धरती माँ जिसमे हमने जन्म लिया और पले बढे उसके प्रति हमारी नैतिक जिम्मेंदारी की शिक्षा कौन देगा ? प्राकृतिक संसाधनों का हनन कर उसके संतुलन को बिगाड कर शायद हम धरती माँ के प्रति अपना फ़र्ज़ भूल चुके हैं !धरती के प्रति प्रेम भाव पुन जागृत करना अत्यंत जरुरी है ,नहीं तो ध्यान रखना होगा उसके कोप का भाजन बनना होगा ! इस माँ ने अपने प्रयासों से अनेको उपभोग की वस्तुएं हमे प्रदान की हैं ,देखो इसके आँचल मैं ममता रूपी कितनी संजीवनिया छुपी हैं ,सूखे की स्तिथि हो या बाड की देखो धरती फिर भी हमारा दुःख समझती है ! इस माँ के उपकार को हमे न कभी भूलना चाहिए !

तीसरे स्थान पर अन्नपूर्णा माँ ! भोजन के प्रति अभिरुचि व् प्रेम तो शायद तो शायद युवा पीढ़ी भूल चुकी है ! विदेशी भोजन के प्रति अभिरुचि में प्रेम व् संस्कार की कमी तो है ही अपितु अनगिनत बिमारियों की जन्मदाय्त्री भी !और उसी भोजन को अपनाकर हम अपनी रसोई को नैतिकहीन बनाते जा रहे हैं !जैसे खाएं अन्न वेसे होए मन ..ये तो हम सभी जानते हैं !चूल्हे की पूजा ,अग्नि को भोग लगाना ,तत्पश्चात स्वयं सात्विक भोजन ग्रहण करना ,तो अब रुढ़िवादी परम्पराओं में आँका जाना आज की शान व् पहचान हैं !जब आप हम अपनी अन्नपूर्णा माँ का सम्मान नहीं करेंगे ! थाली में परोसा गया भोजन का सम्मान नहीं करेंगे तो बच्चो को अच्छे संस्कार कहाँ से प्राप्त होंगे !

चतुर्थ स्थान पर आती है गौ माँ ,जिनके प्रत्येक अंग में ब्रह्मांड समाया है किन्तु उसकी पूजा तो दूर ,सड़क पर उसको जख्मी पड़ा देख किसी का कलेजा नहीं पसीजता तो उसकी उपासना तो मील का पत्थर है ! धन्य हैं वो लोग जो गौ की पूजा अपना धर्म समझते हैं !

पंचम स्थान पर हैं गंगा माँ जो सदियों से हमारे कर्मो का भार सहन करके फिर भी निर्मल बन हमे ढेरों आशीष देती हैं ! देश की इस अमृतधारा को हमने अपने स्वार्थ के चलते इतना प्रताड़ित किया है की आज वह अपना मार्ग बदलने पर विवश है ! माँ करुणामयी तो होती है किन्तु जब उसका क्रोध जगता है तो संसार को उसका परिणाम तो भुगतना पड़ेगा !हिम ग्लेश्यर में बढ़ते कूड़े के अनुपात ,हमारे द्वारा किया जा रहा जल प्रदूषण सब हमारी इस पावन धारा पर भारी पड़ रही है !

छठे स्थान पर अपने जनम देने वाली माँ हैं जो हमे इस संसार में लायी ,उसका मान रखना और उसके अभिमान की रक्षा करना हमारा दायित्व है किन्तु विडंबना देखिये ,आज युवा माँ को माँ कहने में अपमानित महसूस करते हैं ! उन्हें तो मम्मी शब्द इतना प्यारा लगता है की वे तो उसे जीते जी कब्र में पहुंचा देते हैं !

सातवें स्थान पर कर्मदायिनी अर्थान शिक्षित करने वाली जो माँ /पिता तुल्य स्थान पर होती है !विद्यालय से विश्व विद्यालय तक शिक्षिका का स्थान भी देव तुल्य होता है !और हमे अपने आचरण से उनके मार्ग में खुशियाँ प्रवाहित करना चाहिए !युवा पीढ़ी चरण स्पर्श करने में अपमानित महसूस करती है ! उन्हें यह ज्ञात नही की शिक्षक के चरणों में साक्षात् सरस्वती माँ विराजमान है !

आठवें स्थान पर सत्संग की और प्रेरित करने वाली वह साध्वी जिसका जीवन समाज कल्याण हेतु समर्पित होता है जिस तरह माँ टरेसा / उन जैसे अनेको जिनकी संगती करने से हमारे आचरण में सुधार तो आता है साथ ही समाज के प्रति हमारे दायत्व की ओर हमे प्रेरित करती है ! हमे अपने अपने तरीके से अपने को सत्संग की ओर प्रेरित करना चाहिय !

नवे स्थान पर मेरे दृष्टी मैं आपके हमारे घर मैं वह बुजुर्ग जिन्हें हमारे द्वारा सर्वाधिक पूजनीय होनी चाहिय क्योंकि जर्जरावस्था में यह ज्योतिर्पुंज है और उसका सम्मान हमारा मान होना चाहिय ! किन्तु वास्तविकता यह है की उन्हें हम अपने स्वार्थ व् उपयोगिता की दृष्टी से देखते हैं ! यदि हमे अपने उपर जिम्मेदारी सी दिखती है तो हम उन्हें प्रताड़ित करने से नहीं चूकते !उसकी जीवन संध्या हमारी लिय बोझ क्यूँ बन जाती है ,जब उसने सारी उम्र हमारी भलाई में न जाने कितने आंसू पिए होंगे ....क्या फिर से मरण तक आंसू बहाने के लिए !

मेरे दृष्टीकोण में आपके जीवन की नौ देवियाँ आपके अपने सामने हैं !इनका तिरस्कार कर मन्दिरों में घंटो और नगाडो को बजाकर कोई लाभ न होगा ! नवरात्रों नही, नव देवियों का अभियान छेडिये -घर घर ,नगर -२ ,पूरे देश में ! यदि यह संभव हो गया तो माँ दुर्गा के नौ स्वरुप आपको हर्षित कर देंगे! ! आयें प्रकृति के साथ चलें ,उसके अपने बनकर ! !

Sunita Sharma Lakhera

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तिरंगे की लाचारी

१५ अगस्त  को मनाई जाती तिरंगे की आजादी ,
पर नहीं दिखती किसी को  क्या  इसकी लाचारी ?
दिनोदिन  नहीं  बढ़  रही  क्या  इसकी बेबसी ?
भारत माँ की बेटियों की लुट रही अस्मत गली -गली ,
भूख ,दहेज़ ,जातिवाद ,धर्मवाद भ्रूणहत्या ,हिंसा इसे रुला रही ,
फिर भी देखिये  हम  सजा  रहे  झाँकी आजादी की ,
अनाचार, दुराचार ,व्यभयाचार व् भ्रस्टाचार की बढ़ रही आँधी ,
कला में नग्नता और  फूहड़ता परोस रहे पर भविष्य की चिंता नहीं ,
भेदभाव में देखो गरीबों के अरमान व् प्रतिभा कैसे  बिक रही ,
जीवन उथान के हर मोर्चे पर कैंसर बन रही रिश्वतखोरी ,
शहीदों की क़ुरबानी जैसे बन चुकी देश की लाचारी ,
तिरंगे का क्या सम्मान जब फ़हराने तक का ज्ञान नहीं ,
रौंद रहे इसके मान सम्मान को ,पैरों की  समझकर जूती ,
राजनीती  तो जैसे  बन चुकी  है  तिरंगे की फाँसी ,
बेच रहे निज स्वार्थ में तिरंगे की अनमोल ख़ुशी ,
भूल चुके पराधीनता की वो खौफनाक व् दर्दनाक कहानी ,
और  देखो क्या धूम से मनायेंगे  कल सभी तिरंगे की आज़ादी !!

Sunita Sharma Lakhera

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स्याह  बचपन

संघर्षों  में गुजर रहा है स्याह सा बचपन ,
दिन भर की कड़ी मेहनत में ढूंढता अपनापन ,
घर का कर्ज मिटाने फर्ज़ बन आया दूसरे आँगन ,
पालनहार की तिजोरी भरने हेतु पिटता हर क्षण ,
झूठन भर मिले न मिले नही जाने इसका मन ,
सख्त  जीवन को झेल रहा जिसका तन ,
लताड़ व् मार में गुजर जाता जिसका सारा दिन ,
कूड़े  की ढेर मैं बैठा  सिसक  रहा  देखो  स्याह बचपन !

Sunita Sharma Lakhera

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जागरण

जागरण बनाम दिखावा का जोर हर कहीं ,
ईश्वर  की पुकार होती गली गली

जागरण बनाम शोरशराबा का शौक  हर कहीं
बहरा  करने का ठेका लेते गली गली

जागरण बनाम आडम्बर का बढता रिवाज हर कहीं
असहाय को ठुकराकर मौज मानते गली गली

जागरण बनाम अध्यात्मवाद का कुचलन बढ़ रहा हर कही
मिथ्या को अपनाकर विवेक खोते गली गली

जागरण बनाम निन्द्राहर्ण  का बढ़ता फैशन
पीड़ितों ,शिशुओं और बुजुर्गों को प्रताड़ित करते गली गली

जागरण बनाम धार्मिक विज्ञापन का दौर हर कहीं
अंत :करण को झुठलाकर,ज्ञानी बन रहे सभी गली गली ,

जागरण बनाम ध्वनि  प्रदूषण का फैलता आचरण  हर कहीं ,
रौद रहे  मनुजता ,ईश्वर को  मनाने   में गली गली !! १८/८/२०१२

Sunita Sharma Lakhera

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जीवनदर्शन

ईश्वर को अलभ्य जान ,जीवन को यूँ नष्ट न करो ,
समय के पल ,जीवन के वर्ष को  यूँ ही  न खोने दो ,
वाणी मिसरी सी हो ,कर्म चींटियों सा तुम निसदिन करो ,
इस क्रूर जगत में न किसी के संग दुर्व्यवहार करो
स्पर्श ईश्वर का करना हो तो सम्पूर्ण उसका ध्यान करो ,
मृदुल भाव से शीश झुककर ,इस जग में ऊँचा नाम करो ,
प्रतिदिन एक प्रहर उसके नाम को याद करो ,
अपने भोजन की एक थाली ,दूसरों के हित में त्याग करो
अपने ज्ञान के दीपक से दूसरों का जीवन रोशन करो
व्यसनियों का बहिस्कार न कर उनका जीवन उन्नत करो ,
असाध्य रोगों से लड़ रहे जीवन की तुम भरपूर सेवा करो ,
अपने आत्मिक उथान की धारा निसदिन तुम प्रबल करो

 

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