Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 70886 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी
 

देख वो अंधेरा हो रहा है
उजाला अपने को क्यों कर सौंप रहा है
हार कर ना बैठे तू ऐसे लड़ उससे अब ध्यानी
आशा की एक तो तू बाती जलकर देख
तुझे वो दूर से सवेरा देख रहा है

शुभ रात्रि दोस्तों

ध्यानी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी
22 hrs ·

मेरे गुरु

गुरु की याद दिलाने
इस सुबह ने पूरब में लाली बिखेरी
नमन मेरा हो गुरदेव चरण में
आपकी शिक्षा मुझे हरी घर ले आयी

मर मर बोल कर शब्द ये राम बना
गुरु आपके कारण वाल्मीकि इंसान बना
काट अंगूठा मैं एकलव्य बन जाऊंगा
दोणचार्य जैसा गुरु अगर मैं पाऊंगा

चरणों की धूल तुम्हरी अपने मस्तक लहरों
मात पिता गुरु तुम्हे जब जग संग पाऊं
बलिहारी हो गुरु मेरे इच्छा मेरी पूर्ण करो
आपके मार्गदर्शन बिना कैसे जग से तर जाऊंगा

शाम को सुनहरी शीतल किरण मेरे गुरु
दोपहर के चिलमिलते धुप की छंव हो गुरु
मेरे सुख दुःख गरीबी अमीरी राह हो तुम गुरु
मैं शिष्य तुम्हारा नमन मेरा स्वीकार करो

एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी
Yesterday at 6:54am ·

फिर आज घर के छत पर बैठ उस काले ने कांव कांव किया
फिर उस अँधेरे ने सवेरे की ओर चमकते उजाले को छोड़ दिया
फिर सर दौड़ी बूढ़ी काठी उस गाँव की मेढ़ की ओर जोर से
फिर उस सुनी डगर और गुमसुम सड़क ने उसे निराश किया

ध्यानी का शुभ प्रभात प्रणाम मित्रों

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी
Yesterday at 12:19am ·

वो उधार अब भी बाकी है

एक उम्र हो गयी है ,वो उधार अब भी बाकी है
माँ तेरे आँचल का ,वो प्यार अब भी बाकी है
एक उम्र हो गयी है ,वो उधार अब भी बाकी है..............

उन बूढी आंखों को किसका इन्तजार अब भी बाकी है
उस कलेजे में ममता का धड़कता संसार अब भी बाकी है
एक उम्र हो गयी है ,वो उधार अब भी बाकी है..............

अंजुमन तेरे गीत का गुनगुनाता वो सार अब भी बाकी है
माँ तेरे पहले स्नेह प्रेम का वो पहला पाठ अब भी बाकी है
एक उम्र हो गयी है ,वो उधार अब भी बाकी है..............

रहूँ ना रहूँ इस धरा पर माँ तेरा वो उधार अब भी बाकी है
अधूरा संसार बिना तेरे माँ देख तेरा उधार अब भी बाकी है
एक उम्र हो गयी है ,वो उधार अब भी बाकी है..............

आ जाओ माँ तेरा उधार अब भी बाकी है
तेरे बेटे की तेरे लिये पुकार अब भी बाकी है
एक उम्र हो गयी है ,वो उधार अब भी बाकी है..............

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
3 hours ago
जियू मेरु आच बैथि बैथि

कया सोच्न व्हालु
जियू मेरु आच बैथि बैथि
कैकू बाट हेनु व्हालु
कूच आनू व्हालु यख अपरू
कया सोच्न व्हालु

क्द्गा घाम चैई
चैत पूस मंगसिर ऐई गैई
दिन आंदा जांदा रैगे हो
जैकू बाटू हेनु ऊ ना ऐई
कया सोच्न व्हालु

धीर धैर ना इनि उकाल सैर
मेरी जीकोडी मेसै बोल
चल सड़की का बाटा बाटा
मिली जालु मीथे मेरु सैन
कया सोच्न व्हालु

रोटी सगा की पोट्गी
जियुंदगि की ई लपड़ा सपोड़ी
दोई दानी खैरी का मित्रा तेर बिना
मिल ना यख चैन से खै
कया सोच्न व्हालु

कया सोच्न व्हालु
जियू मेरु आच बैथि बैथि
कैकू बाट हेनु व्हालु
कूच आनू व्हालु यख अपरू
कया सोच्न व्हालु

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
Yesterday
कब आलू बसंत मेरु

कब आलू बसंत मेरु
कब बोई ये मेरु पाड हसला
दानी गलोड़ी का बाटा
वो हर्याळु बणीकी बौगला
कब आलू बसंत मेरु

यूँ डंडो कब काफल पाकला
ऊं कंठो जैकी कब किन्गोड़ा चाखला
नारंगी जनि मुखडी बौऊ की किले उदास हुँयीच
हिंसोला जनि कब खिद खिद हैसेली

मेरा भागा की क्यारी तू झूले रे तू फुले रे
ये विपदा पीड़ा की पाड़ी तू झूले रे तू फुले रे

गीत पिरीती समासूम हुंयां छन
ढोल दामू वो कुल्हण रुश्याँ छन
बांसुरी की धुन किले रूनी च आच
बेटी बिमला की आंखीं कैकी खुद हेरणी आच

कब आलू बसंत मेरु
कब बोई ये मेरु पाड हसला
दानी गलोड़ी का बाटा
वो हर्याळु बणीकी बौगला
कब आलू बसंत मेरु

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 10
कब जाग्ला

कब जाग्ला
कब जगा व्हाला
कब अपरा पहाड़ थे
कब ये अपरा समझला

नींदि इनि चढ़ीच
चौतरफा देक सियिंच
ह्युंद जनि जमीच
उकालु मा दाढीच

भैर ना भित्तर
गैर जनि व्हैगे छित्तर
उड़्ना बन तित्तर
जनि माया की छतर

पैल कैल बुलण
धैल कैल लगण
कुम्भकरण नींदि से
पैल कैल जगण

कब जाग्ला
कब जगा व्हाला
कब अपरा पहाड़ थे
कब ये अपरा समझला

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 8
देक तेरी लाडी थे

देक तेरी लाडी थे
आच नींदि नि आनि
आँखि ते बुलानि बाबाजी
मांजी मी रुलाणी
देक तेरी लाडी थे
आच नींदि नि आनि

रुसों बैठ्युं छों कुलण
जिकोड़ी ते धैय लगानि
आच बोई ने मार मि थे
मिल दाल भात नि खानि
देक तेरी लाडी थे
आच नींदि नि आनि

खुज्दा रैंद तै खुटा मेरा
झट ऐजा लाडी की बोल्यूं मानी
जब लगाली तै बडुळि बाबाजी
बिंग ले मिल ते थे हाक मारी
देक तेरी लाडी थे
आच नींदि नि आनि

देक तेरी लाडी थे
आच नींदि नि आनि
आँखि ते बुलानि बाबाजी
मांजी मी रुलाणी
देक तेरी लाडी थे
आच नींदि नि आनि

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 7
देक तेरा बाना

देक तेरा बाना
मी छोड़दुल सब
अब त छूची मानले
मेर छुईं अब

नि पीलू शराब
नि खेळलु तास
कैर मेरु बिस्वास
थम ले मेरु हात

रैललू ते दगडी
कबि नि कटलु तेरु बात
अच अबी से मिल
कैदेई ये बात की शुरवात

तू छे मेरी भगवती
तू मेरु सौंसार
ते छोड़िक की मिल
मिल जानू कै घार …… ३

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 5
लाटा बोई बाटू हेरनी ऐजा

देख्णु बी नी कया कनु वहलु
लाटू मेरु दुधा को
केले रोसो वहलू किले नी आन वहलु
परती को ऐ पहाड़ को

देख्णु छों मी बाटू तेरु ऐ
तू ऐजा ऐ घार दौड़ी की
कब जान अब
ऐजालु व्ख जना कु संदेशो

देक देर नि कैर छुचा अबैर नि कैर
बची छी दोई सांसी
देक विं का छुटन से पैली
देके दे तेर मुखडी स्वानी सी

देख्णु बी नी कया कनु वहलु
लाटू मेरु दुधा को
केले रोसो वहलू किले नी आन वहलु
परती को ऐ पहाड़ को

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