Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 70864 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तै सति तै बान

मीनी त तै दगडी
कुच वादा करयां छिन
ऊँ वादों थे पुरु कना कुन
अपरू घार गढ़वाल छोड़ी च

तै सति तै बान
मिल नि कै कुच बी भाना

ना मि मतलबी छों
ना मि फरेबी छों
जै बाटो मि बड़ो हुंयां
ऊँ बाटों थे तै बान छोड्या छन

तै सति तै बान
मिल नि कै कुच बी भाना

आणो मिल परती आन
सुप्निया मिल तेरा सात सजाणा
ये मेर सौंजडया ये मेर सति
यकुली तै बिन मिल कन कै रै पान

तै सति तै बान
मिल नि कै कुच बी भाना

मीनी त तै दगडी
कुच वादा करयां छिन
ऊँ वादों थे पुर कैना कुन
अपरू घार गढ़वाल छोड़ी च

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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ओ मेरी भैना

खुद मेरी तिथे....ऐ कि नि ऐ
ओ मेरी भैना
बालापण का खेल ते थे रुले की नि रुले
ओ मेरी भैना

याद आणु मी थै
रखड़ि कु धागो तेरु
ऊ बत्ती कु उजाळु मा
कपाली हल्दू लगणु तेरु
ओ मेरी भैना

छुटपन की खोड़ी
हमलू कै छे थोडी थोडी
भूकी हमरी पोट्गी
भूक मिटे हमुन ऊ तिमला तोड़ि
ओ मेरी भैना

दोई भैइयों की
एक बगेरेली मेरी भैना
सौरास जैकी भैना
भूली गे तू दोई मैता कु गैना
ओ मेरी भैना

खुद मेरी तिथे....ऐ कि नि ऐ
ओ मेरी भैना
बालापण का खेल ते थे रुले की नि रुले
ओ मेरी भैना

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 22
ऐगे जाडो

ऐगे जाडो
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी जाडो ऊँ हिंवाली चूलों
ऐगे जाडो

कन कोयेड़ी छैईंचा
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी कोयेड़ी ऊँ डंडों कंठों
ऐगे जाडो

पिरित लागो
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी पिरित ऊँ शरमे ग्लोडी
ऐगे जाडो

झुमैलु लगो
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी झुमैलु ऊँ मेरु गौंऊं
ऐगे जाडो

ऐगे जाडो
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी जाडो ऊँ हिंवाली चूलों
ऐगे जाडो

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 21
शिव कैलास भूमि मा

शिव कैलास भूमि मा
डमरू बाजै डामा डम……२
शिव कैलास भूमि मा

ये त्रिकाला जटे मा
गंगा बोगे झमा झम……२
शिव कैलास भूमि मा.

ये नरंकार तपोवन मा
घाण बाजै घणा घण……२
शिव कैलास भूमि मा

ये हिमाल बद्री-केदार
कंस्यां थकलू बाजे टना टन……२
शिव कैलास भूमि मा

उत्तराखण्ड ये पहाड़े मा
ढोल दामू रणसिंगा गरजे टरा टर……२
शिव कैलास भूमि मा

माँ भगोती मेर बोई
शंख की ध्वनी करे ष्णा ष्ण
शिव कैलास भूमि मा

शिव कैलास भूमि मा
डमरू बाजै डामा डम……२
शिव कैलास भूमि मा

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 20
छूछा बोळ दे रे

रुंदा दिस कब जाला
हैंसदरा दिस कब आला

बैठ्युं छों ठार मा
गौंऊ गोठ्यार मा
दिके ना दिके तू
क्ख्क तैथे खोज्युं बथे तू
देदे रे तू तेरु ठौर पत्ता

ना कैर जल्दी झूठी सब दगडी
बात कैल पकड़ी कैल इथे छोडी

आंख्युं का आस मा
दोई छुईं कैदे सात मा
ना कैर इंन सिकेसेरी
पछताण पड़लु बाद मा
ये ऊंदारे की रात मा

नि मानी नि मानी रे जियु
पड़गे तू माया कु घात मा

यक्लु रेगे यक्लु कैगे
बोळ कया ऐई तेर हात मा
क्या ऐई मेर हात मा
ये पाडे का भाग मा
उत्तराखंड का बाट मा

रुंदा दिस कब जाला
हैंसदरा दिस कब आला

बैठ्युं छों ठार मा
गौंऊ गोठ्यार मा
दिके ना दिके तू
क्ख्क तैथे खोज्युं बथे तू
देदे रे तू तेरु ठौर पत्ता


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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
2 hours ago
बटयूँ छों

तुकड्युं बटयूँ छों
कै का बान अटक्यूँ छों
कैल जाणा
कैल उड़े ले जाणा
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

कबी गौं कबी दून मा
कबी लून कबी रुन मा
नि जाणा मिल ये देब्तों
कखक कख मि अटक्यूँ छों
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

जीकोडी कि तुकड़ मा
आंख्युं की रटन मा
बोल्यूं की गिच्न मा
अपरुँ कि रिसण मा किस्क्युँ छों
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

देर मा अबेर मा
बौल्या परित कि फेर मा
टक्कों की रेस मा
खाली किसों की जेब मा रच्यूं छों
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

तुकड्युं बटयूँ छों
कै का बान अटक्यूँ छों
कैल जाणा
कैल उड़े ले जाणा
बटयूँ छों मी
बस जी मी बटयूँ छों

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Yesterday
तै सति तै बान

मीनी त तै दगडी
कुच वादा करयां छिन
ऊँ वादों थे पुरु कना कुन
अपरू घार गढ़वाल छोड़ी च

तै सति तै बान
मिल नि कै कुच बी भाना

ना मि मतलबी छों
ना मि फरेबी छों
जै बाटो मि बड़ो हुंयां
ऊँ बाटों थे तै बान छोड्या छन

तै सति तै बान
मिल नि कै कुच बी भाना

आणो मिल परती आन
सुप्निया मिल तेरा सात सजाणा
ये मेर सौंजडया ये मेर सति
यकुली तै बिन मिल कन कै रै पान

तै सति तै बान
मिल नि कै कुच बी भाना

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ऊँ वादों थे पुर कैना कुन
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
September 24
ओ मेरी भैना

खुद मेरी तिथे....ऐ कि नि ऐ
ओ मेरी भैना
बालापण का खेल ते थे रुले की नि रुले
ओ मेरी भैना

याद आणु मी थै
रखड़ि कु धागो तेरु
ऊ बत्ती कु उजाळु मा
कपाली हल्दू लगणु तेरु
ओ मेरी भैना

छुटपन की खोड़ी
हमलू कै छे थोडी थोडी
भूकी हमरी पोट्गी
भूक मिटे हमुन ऊ तिमला तोड़ि
ओ मेरी भैना

दोई भैइयों की
एक बगेरेली मेरी भैना
सौरास जैकी भैना
भूली गे तू दोई मैता कु गैना
ओ मेरी भैना

खुद मेरी तिथे....ऐ कि नि ऐ
ओ मेरी भैना
बालापण का खेल ते थे रुले की नि रुले
ओ मेरी भैना

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September 22
ऐगे जाडो

ऐगे जाडो
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी जाडो ऊँ हिंवाली चूलों
ऐगे जाडो

कन कोयेड़ी छैईंचा
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी कोयेड़ी ऊँ डंडों कंठों
ऐगे जाडो

पिरित लागो
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी पिरित ऊँ शरमे ग्लोडी
ऐगे जाडो

झुमैलु लगो
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी झुमैलु ऊँ मेरु गौंऊं
ऐगे जाडो

ऐगे जाडो
ऐ मेरु पहाडो
ऐगे जाडो
देक पौड़ी जाडो ऊँ हिंवाली चूलों
ऐगे जाडो

एक उत्तराखंडी

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September 21
शिव कैलास भूमि मा

शिव कैलास भूमि मा
डमरू बाजै डामा डम……२
शिव कैलास भूमि मा

ये त्रिकाला जटे मा
गंगा बोगे झमा झम……२
शिव कैलास भूमि मा.

ये नरंकार तपोवन मा
घाण बाजै घणा घण……२
शिव कैलास भूमि मा

ये हिमाल बद्री-केदार
कंस्यां थकलू बाजे टना टन……२
शिव कैलास भूमि मा

उत्तराखण्ड ये पहाड़े मा
ढोल दामू रणसिंगा गरजे टरा टर……२
शिव कैलास भूमि मा

माँ भगोती मेर बोई
शंख की ध्वनी करे ष्णा ष्ण
शिव कैलास भूमि मा

शिव कैलास भूमि मा
डमरू बाजै डामा डम……२
शिव कैलास भूमि मा

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