Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253378 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी 
·

हाक दी छे मिन

हाक दी छे मिन
कैल वै थे सुणी णी
बौल्या मनखी की पीड़ा
यक कैल बिंगी णी
हाक दी छे मिन

वै पीड़ा थे लिख्दा रायुं
वै थे गीतों ढालि की गै दा रायुं
कोरा पानी थे आंसू साथ भरदा रांयुं
पैड़ी ना सैकी विं थे कैल सुणी नि साकी

हाक दी छे मिन
दूर जांदा ऊँ उंदरुन बाटों थे
दोइ बायां खोली की
अंग्वाल लेणा कुन ऊँ अपरु थे

कया पाई मिल यक इनि लेखी की
अपरी खूने दगडी होली खेळी की
स्वास परी स्वास खोयी की
इन यखुली इन जग्वाली की

हाक दी छे मिन
टूट दा फुंडा जांद ऊं गारुं थे
आंध्रारु लुकी गै
ऊं तिमणार तिम तिम गैणु थे
हाक दी छे मिन

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ऐ मेरा गेल्या

ऐ मेरा गेल्या की हुलु
ऐ मेर जीकोडी थे की व्हैग्याई
हम त ते थे ही देकता
ऐ जीकोडी मेर तेर व्हैग्याई

ये बौल्या मी बानि गे
तेर माया मी परी पौडी गे
बस तेरु खेल तेरु सवाल
तू मेरु सारू जवाब बनि गे

ऐ मेरा गेल्या की हुलु
ऐ मेर जीकोडी थे की व्हैग्याई

मेर पास च क्या देणा कुन
मी तुम थे जी क्या दूंली
जो बी च मेरु औ च तुमरु
तुम परी सब कुच वार दूंली

हम त ते थे ही देकता
ऐ जीकोडी मेर तेर व्हैग्याई

सरग अकास मा लिख्याली
ई बगदी न्यार मा लिख्याली
तुम छों मेरा मी छों तुमारी
अपरी ई आत्मा मा लिख्याली

हम त ते थे ही देकता
ऐ जीकोडी मेर तेर व्हैग्याई

हम दोइयाँ मिल की रूंला
गीत यख माया का लगुला
तू छे मेरी मी छों तेरु
ये आपरी दांडी कंडी सजोंला

ऐ मेरा गेल्या की हुलु
ऐ मेर जीकोडी थे की व्हैग्याई
हम त ते थे ही देकता
ऐ जीकोडी मेर तेर व्हैग्याई

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी with Manoj Bhatt and 110 others
23 hrs ·
·

ना ना नि चैनी ईनि नीति

ना ना नि चैनी ईनि नीति
इन राज नीति मेरा पाड़ों मा
ना ना नि चैनी ईनि नीति
इन राज नीति..............

प्रगति का नाम परी यूँ की
झौलम-झौल
वादों और्री छुईं मा यूँ की सब
गौळम-गौळ
कब मिलालू बगत यूँ थे
कब करला काम जी
कब हुलु बिकसित राज्यों मा
मेरु उत्तराखंड कु नाम जी

ना ना नि चैनी ईनि नीति
इन राज नीति मेरा पाड़ों मा
ना ना नि चैनी ईनि नीति
इन राज नीति..............

टाक्कों बंडल यख संगी साथी
सबु लमाड़-लाम जी
कैन कारण यख काम काज
सबु सुरसुर-सार जी
सीयँ छन यख सबी का सबी
मिल नि लेण यख कैकु नाम जी
टक्कों दगडी इन अल्जी जीयु
ये घियु सबुल बकौरी खाण जी

ना ना नि चैनी ईनि नीति
इन राज नीति मेरा पाड़ों मा
ना ना नि चैनी ईनि नीति
इन राज नीति..............

कब आलू दिन ऐ मेरा देबता
ले ले सुबू कु राम-राम जी
मेरु पाड़ा मा पलयान दगडी
व्हैगे बुरु हाल- काज जी
अपरुँ थे मि कया कया बुलूँ
क्ख्क मि जाकी वैथे खोज्युं
हर्ची गै न सब अपरा परया
सम्लौणा व्हैगे बिरदया बाटा

ना ना नि चैनी ईनि नीति
इन राज नीति मेरा पाड़ों मा
ना ना नि चैनी ईनि नीति
इन राज नीति..............

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
January 19 ·
·

हाक दी छे मिन

हाक दी छे मिन
कैल वै थे सुणी णी
बौल्या मनखी की पीड़ा
यक कैल बिंगी णी
हाक दी छे मिन

वै पीड़ा थे लिख्दा रायुं
वै थे गीतों ढालि की गै दा रायुं
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स्वास परी स्वास खोयी की
इन यखुली इन जग्वाली की

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टूट दा फुंडा जांद ऊं गारुं थे
आंध्रारु लुकी गै
ऊं तिमणार तिम तिम गैणु थे
हाक दी छे मिन

एक उत्तराखंडी

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हेरी मेरा आँखा हेरी

हेरी मेरा आँखा हेरी
जा ले तू जा देखि ऐ दुःख कख हुलु दाड़ी
खोजी यख सुखा का बाटा तू खोजी
यख देख अब कैकु ना आँखा रोई
हेरी मेरा आँखा हेरी ……………

चल दगड्या चल हिट तू मेरु दगडी
खुठी मेरी तू ना इन पटे जा सिन्कोली
काम ते थे खुभ करन छ रे दगड्या
हिकमत ना हैर मेरु खुठा तू चल अग्ने
हेरी मेरा आँखा हेरी ……………

बोलणु क्या बोलणु की च यख दैर
पैल काम करी फिर गिची तू अपरी गिची खोल
देख छुईं मेरी छुईं मा निज इतगा खोल
तेरु छूटा छूटा काम कियां बनला बड़ा बड़ा बोल
हेरी मेरा आँखा हेरी ……………

हेरी मेरा आँखा हेरी
जा ले तू जा देखि ऐ दुःख कख हुलु दाड़ी
खोजी यख सुखा का बाटा तू खोजी
यख देख अब कैकु ना आँखा रोई
हेरी मेरा आँखा हेरी ……………

एक उत्तराखंडी

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खुद लगींच च ये घारा की

कब जोंलु भुलु मी घार
खुद लगींच च ये घारा की
ये कुमो गढ़वाल की
यूँ चलूँ ह्युंद जम्युं पहाड़ की
कब जोंलु भुलु मी घार
खुद लगींच च ये घारा की ……

तिबरी डांड्याला की
चौक छनि ग्वैरा स्यारा की
कन के गुजरी हुलु कन व्हालु वों कु हाल
गुजरी गे व्हालु अब बस्ग्याल
ऐ बार बी ऐच ये ख्याल ये पहाड़ की
कब जोंलु भुलु मी घार
खुद लगींच च ये घारा की ……

घुघती घूर घुर वो हिलांस उडी आकास की
काफल किन्गोड़ा चख्या बेडू पाको बारा मासा की
कौथिक कु बारा तिज-तियोहरा की
कैल कैल कै हुलु मी याद
ऐ बार बी ऐच ये ख्याल ये पहाड़ की
कब जोंलु भुलु मी घार
खुद लगींच च ये घारा की ……

चैत की ऐगे छैगे वाह्ली ब्यार
स्वामी आणा वहला सब का छूटी मा घार
फागुन मची वाहली हुलयार
मेर गलुडी थे कु रांगाल
ऐ बार बी ऐच ये ख्याल ये पहाड़ की
कब जोंलु भुलु मी घार
खुद लगींच च ये घारा की ……

कब जोंलु भुलु मी घार
खुद लगींच च ये घारा की
ये कुमो गढ़वाल की
यूँ चलूँ ह्युंद जम्युं पहाड़ की
कब जोंलु भुलु मी घार
खुद लगींच च ये घारा की ……

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
 

संभाली नि सैकी मन

संभाली नि सैकी मन
किले तिल नि संभाली सकी बथा
जिकडो कु तू इन सरा सर मा
आंसूं किले बगाली बथा
संभाली नि सैकी मन......

खोजी खोजी तिले कख मन
कख कख खोजी तिल यख बथा
बथों दगडी कै अकास उडी
कै संगी तिल यख बगत बिता
संभाली नि सैकी मन......

एक दिनी सबल यख यकलु रै जाणा
तिल संभाली , खोजी की कया पान
सपनियु कु ये जग जंजाल मा
रे मन तिल खौलयूं खौलयूं रै जाण
संभाली नि सैकी मन......

हात पकड़ी कु ये मेरु मन
बथा कै बाटा कै उकाल उन्दार हिटान
मोरी जालु कया पालु मेरु मन
अब त अपरा थे तू खुद समजा दे
संभाली नि सैकी मन......

संभाली नि सैकी मन
किले तिल नि संभाली सकी बथा
जिकडो कु तू इन सरा सर मा
आंसूं किले बगाली बथा
संभाली नि सैकी मन......

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बालकृष्ण डी ध्यानी
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January 26 ·
·

जीयु मेरु बस झूरे नु

गौडी बल्दी बेचीं की बी
मेरु कर्ज नि उतेर नु
ऐ बिपदा बी नि सरे नु
जीयु मेरु बस झूरे नु

बल आच मि थे किले
बड़ा ऐ बिचार नि घेरी
कप्ली मा मेर हाथा नि
कै बारी मार फेरी

हल नि निकेल नु
बल बगत बस यकुली सरेनु
चिंता नि खैयी इतगा मि थे
मि थे किले नि चिते नु

बैठ्या छन सब अपरा
सब लगण छन परया
कया जन कया खाण हुलु
अणू वहलू दीण कण आलु

गौडी बल्दी बेचीं की बी
मेरु कर्ज नि उतेर नु
ऐ बिपदा बी नि सरे नु
जीयु मेरु बस झूरे नु

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
January 25 at 11:45am ·

तेर नथुली बुलनि चा

तेर नथुली बुलनि चा
बंद गीचुड़ी कु गीच खुलनि चा …… २
तेर नथुली बुलनि चा

कै सरगा भ्ते ऐ अछेरी तू
मेर मायाबांद जनि देखेनी छे तू
जिकोड़ी मेरी धक धक कैनी चा
भेद मेरा मन का खुलनि चा
तेर नथुली बुलनि चा

छम छम खुठी पैजणी बजनि चा
चाल जनि वा चम चमकनी चा
कण सर उजाळु छै ग्याई
मेरु मन तेरु अंधरु हर्ची ग्याई
तेर नथुली बुलनि चा

तेर बिंदी गोळ गोळ लाल
क्ख्क उङनि छोरी ऐ तेरु रेशमी रुमाल
देख ले मेर आंखियों को हाल
तेर गोरी मुखडी कु च ये कमाल
तेर नथुली बुलनि चा

कनुडी झुमका कु देख ठुमका
कमरी पाट लगदे लस्का डस्का
गोलबंद कु देख गालो परा ताल
लूटगे ते देखि कु पुरू पौड़ी बजार
तेर नथुली बुलनि चा

तेर नथुली बुलनि चा
बंद गीचुड़ी कु गीच खुलनि चा …… २
तेर नथुली बुलनि चा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
January 24 at 11:31am ·

ऐ जा बसंत ऐजा उल्यार

ऐगो बसंत मेरु पाड़ा मा
झुमैलो डंडा कांठा ऐ ब्यारा मा

डाली डाली फूल खिल्यां
बुरंस प्योंली गौळी मिल्यां
पिरत को मन कु उल्यार
मन कुतग्यालि लगनी बहार

बिन्सरी सुबेर ऐगे पाड़ा
चकुला न आकास मारी फाल
बांसुरी सुर छेड़ी बसंत ऐ राग
चौदिशा हरेला कु रुबाब

माया कु देख ले सौंसार
मैत सौरास गीतों की भरमार
ऐ जा देली मा मेरी बी तू
ऐ जा बसंत ऐजा उल्यार

ऐगो बसंत मेरु पाड़ा मा
झुमैलो डंडा कांठा ऐ ब्यारा मा

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