Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253744 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बांदों मा

बांदों मा …
बांदों मा बांद
मेर उत्तराखंड की बांदा
काँटों मा खिल्दा हैंसदरा फूलों की माला
मेर उत्तराखंड की बांद

क्द्गा काद्गा बोलो मि
ये जीकोडी ऊँ का बाण क्द्गा खोलो मि
हर बारी रै जांदी आखर अपुरा
मेर पास ऊँ का बाण
बेस्ट मा सर्वश्रेष्ठ
मेर उत्तराखंड बांदा

तू बी दाद दे दे दीदा भुला
यूँ थे ये छन अपरा उत्तरखंड की बांदा

हरी का हरिद्वार देखा
यूँ थे मिल कोटद्वार मि बी देखा
उकाली उंदार ऊँ बाट हिट्दा देखा
पौड़ी को बाजर मा बी डुल दा देखा
मेरु जीयु थे ऊ कै जांदी उधारा
ऊँ का पास भर्युं माया कु उल्यार
मेर उत्तराखंड की बांद

बोल दे अब तू बी टिहरी कुमो गढ़वाल
कैक थम्युं च ये पुरु पहाड़
कैदे अपरी मनसे जैकार
ये छन अपरा उत्तराखंड की बांदा
जौनसार व्हैगे पुरू निसार
मेरा उत्तराखंड की बांदा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हे उत्तराखंड सदा तेर जयकार

जब बी सुणदो मि तेरु नौव्
जीकोडी मेरी नचण लगद जी
भैर भीतर चौदिस छोर और्री
तेरु नौव् थे रटन लगद जी

हे मनखी मा अभिमान ऐ जांदू
छाती मा मेरु कण तान ऐ जांदू
रचक रचक देक कण हिटदी मेरी चाल
सिंह जनि ये अब फोडणी डरकाल

पूरब देकि मिल पश्चिम देकि
उत्तर की च तेर अलग ही न्यारी
सबी देबतों को च ये तेरु घार
बोई गंगा भी बोगनि ये तेरा पहाड़

मयाल्दु च म्यारु ये देस सारु
भिन भिन च यख सबकु भेष सारु
एक छतर च बस तेरु एक झंकार
हे उत्तराखंड सदा तेर जयकार

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कब यख भत्ते लमडी

कब यख भत्ते लमडी
कब वख भत्ते लमडी
इतगा जियु की हानि
इतगा घैल व्हैगे प्राणी

कबै फुट गे कपला
कबै टूटगे ये खुठी
कन निंदि तै ऐगै ई
कन तुंड तिन गाडी चलैई

कन सड़की ये मेरी
कन वोंका ये तिरका मोड़
सर सर र र चलीगै
ये जीप मेरी रोला खोल

पांच हजार ट्क्का घैल कू
द्वि लाख ट्क्का मोर्युं कू
बल छूटगे इनि सब कूच
द्वि दीना दुःख कु मोल

कब यख भत्ते लमडी
कब वख भत्ते लमडी
इतगा जियु की हानि
इतगा घैल व्हैगे प्राणी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बल लिखण दे मिथे एक कबिता

बल लिखण दे मिथे एक कबिता
बल जमण दे वै थे सरिता

उत्तराखंड मा हुनू सब गुम
खोजंदे कया चो यख बिखरो ग़म

चोरै चोरै कि ले जाणा सब
पूरै पूरै कि सब खै जाणा अब

बेचेकि कि खैगे वो सारू झुंड
देखि ले अब ये च अपरुँ कू गुण

दोई आखर लेखी वै बी हैगे गुम
कबीता मेर पौड़ीगे तू किले सुम

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कख मिलालू सरग इनि मि थे तू बतै दे

कख मिलालू सरग इनि मि थे तू बतै दे
वै बाटा वै उकाल बोई मि थे तू अब हिटै दे

मि थे बी बचण दे त्यूं ह्युं की चलूँ चांठी
कण आंदी हुली रस्यांण बोई ते चलूँ गाठी

हर्षण लगे अब मेरु जियूं तर्स्नू अब मेरु हियू
कैन छबी बणई हुली राति मा ऐकि रंगाई हुली

एकदूजा रंग मा सबु का सब यख रंग्या छन
एकदूजा मा मिस्ली की सब रंग पसरया छन

अब इत्गा ही लिक स्कदु मि देणु च विराम अ
कैल बाची ये मेर रचना वैल बी मेर दगड आन

कख मिलालू सरग इनि मि थे तू बतै दे
वै बाटा वै उकाल बोई मि थे तू अब हिटै दे

बालकृष्ण डी ध्यानी
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द्वि भैनी

द्वि भैनी बैठिक छँवि च लगनी
पहाड़े कु ठंडो पानी बगदि जनू

बगत अब अपरू कथा च लगानू
द्वि आंसूं तेर द्वि मेरा भैनी चुलानू

दिस इनि अला सुधि बित ही जला
सोची रेगे हम द्वि थे कन चार बणला

सौंण- भादों की कन बरखा लगींच
पुरू गढ़वाल मेरु वैमा झिर-झिर भीज्युं च

खुद आंदा जांदा रैंदा बिता सड़की ऊ मोड़
हुम्लु कैथे ध्ये लगान अब जणा कै ओर अ

द्वि भैनी बैठिक छँवि च लगनी
पहाड़े कु ठंडो पानी बगदि जनू

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तेर कंडो मा

तेर कंडो मा
खिल्दा फूल छों मि ऐ माँ
तू इनि सम्भली रखी सदनी
अपरी गोदी मा मिथे ऐ माँ
तेर कंडो मा...............

ना अपरी से मिथे कभी दूर कैर
ना कभी नारज व्है तू ना गुस्सा कैर तू माँ
तेर फ़िक्र मि भी कैदु ऐ माँ
पर अपरी माया थे जातौ बतौ नि सक्दु
तेर कंडो मा...............

तेरी आँखि सदनी में दगड बचंदि रैंदी
जीकोडी धड़ धड़ तेरी मिथे धिर बंधोंदी रैंदी माँ
तेर हाक सुनी की मि झट दौड़ी ते पास ऐजांदु
भूकी मिटदी ना दोई घास तेरा हाथा कु नि खान्दु
तेर कंडो मा...............

तू इनि सदनी अपरा हाथ मेर मोंड मसल दी रे
मि तेर दोइया खुठड़ियों मा सदनी इनि पौड़ी रालों
मि थे मिल जालु मेरु सर्ग यखी ये भुंया मा माँ
मि तेर खुठीयूं को धोयुँ पाणी जब रोज प्यालो
तेर कंडो मा...............

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आच १५ अगस्त

आच १५ अगस्त
मेरु देसा को झंडा
ऊँचों रे सदनी इनि ऊँचों रे
बथों दगडी ये हिंवाली काठी मा
सदनी इनि फर-फरनु रे इनि फर-फरनु रे
आच १५ अगस्त
मेरु देसा को झंडा
ऊँचों रे सदनी इनि ऊँचों रे

तीन रंगा कू यु रंगीन कौथिग
यख सदनी लगदु रे इनि सदनी लगदु रे
गढ़वाल रैफाल जिकोड़ो मां शौर्या को तमगा
सजदु रे इनि सदनी सजदु रे
आच १५ अगस्त
मेरु देसा को झंडा
ऊँचों रे सदनी इनि ऊँचों रे

मेर हिन्द की सेना च मेरु गैना
टीम टिप्र्राणु रे इनि सदनी टीम टिप्र्राणु
चन्द्रसिंह गढ़वाली श्री देव सुमन शहीद भगत सिंह
ये माटी ऐ जानू रे इनि सदनी ऐ जानू रे
आच १५ अगस्त
मेरु देसा को झंडा
ऊँचों रे सदनी इनि ऊँचों रे
बथों दगडी ये हिंवाली काठी मा
सदनी इनि फर-फरनु रे इनि फर-फरनु रे
आच १५ अगस्त
मेरु देसा को झंडा
ऊँचों रे सदनी इनि ऊँचों रे

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एक दिन त आलू गुरूजी

एक दिन त आलू गुरूजी
क्वी अपरा अपरू थे भी खोज्यालो गुरूजी
बस सब म्यारु ये सारू लिख्युं
सरस्वती देबी चरणी च गुरूजी

एक दिन त आलू गुरूजी ................

ना लालस च क्वी मेरु गुरूजी
ना चैणु च कुच भी मिथे गुरूजी
पडि ले ला जब भटकि मनखी मिथे
दोई आंसूं त भैर पोडीला गुरूजी

एक दिन त आलू गुरूजी ................

बस आप कु आशीर्वाद चैणु गुरूजी
ये कोरा कागज भला नई दिक्दा गुरूजी
द्वि अखार जबै ऐमा अकरे जाँदा
तब ये जियूं मा जीयु आन्दु गुरूजी

एक दिन त आलू गुरूजी ................

एक दिन त आलू गुरूजी
क्वी अपरा अपरू थे भी खोज्यालो गुरूजी
बस सब म्यारु ये सारू लिख्युं
सरस्वती देबी चरणी च गुरूजी

एक दिन त आलू गुरूजी ................

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मेरी बात माना नि माना

मेरी बात माना नि माना
ब्वे ब्बों की बात जरूर माना जी
सरग बस्युं चा ऊँ खुठीयूं मां
ऊंन खुठीयूं मां रोज शीश न्ववा जी
मेरी बात माना नि माना ………

हुयं चलूं जनि छे ऊ द्वि चलूं चांटी
एक कठोर एक मयाल्दी छे काठी
अंख्यों भोरि राखि माया तेर बान
अब त छूछा तू ऊँ खुठों थे पछाण जी
मेरी बात माना नि माना ………

फूल जनि लगदा ऊ कांडा जनि चुब्दा
बाटा बाटा मां ऊ तै बान बटोई बणदा
ब्वे ब्बों ने तेर बान भोरियों संस्कृति भांडा
वै भांडा थे रे लाटा अब तू संम्भल लेदि
मेरी बात माना नि माना ………

जैंन सम्भली रे ये भांड आखिरी बगता
वैल ही पार पाई सुफल ज्योति जिंदगी कू कर्मा
फिर रै क्वी जाता पात रै क्वी भी धर्मा
कवि मनखी बुल्दु ब्वे ब्बों सेवा तेरु कर्मा
मेरी बात माना नि माना ………

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