Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253913 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हा कुच बात च छे भैजी मा
हा कुच बात च छे भैजी मा
इन दौड़ी नि जांदू जी मि कैमा
हा कुच बात च छे भैजी मा
खिंची ले जांदी उंकी वो अदा
बल ऊ कलाकार व्हैकि छन जन्मा
हा कुच बात च छे भैजी मा
टॉपलु पैरी की वो पहड़ी बन
देखणा कु ऊँ को अगलू चलन
हा कुच बात च छे भैजी मा
कबि हैंसदरा छन कबि चुप
कबि गुसैल छन कबि मिसैल
हा कुच बात च छे भैजी मा
माटु छे ऊ मेरो ये पहाड़ा को
वै बाना तपरणु रैंदु सदनी ऊं को मन
हा कुच बात च छे भैजी मा
ओंकार सिंह नेगी भाई जी प्रणाम
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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हा कुच बात च छे भैजी मा
हा कुच बात च छे भैजी मा
इन दौड़ी नि जांदू जी मि कैमा
हा कुच बात च छे भैजी मा
खिंची ले जांदी उंकी वो अदा
बल ऊ कलाकार व्हैकि छन जन्मा
हा कुच बात च छे भैजी मा
टॉपलु पैरी की वो पहड़ी बन
देखणा कु ऊँ को अगलू चलन
हा कुच बात च छे भैजी मा
कबि हैंसदरा छन कबि चुप
कबि गुसैल छन कबि मिसैल
हा कुच बात च छे भैजी मा
माटु छे ऊ मेरो ये पहाड़ा को
वै बाना तपरणु रैंदु सदनी ऊं को मन
हा कुच बात च छे भैजी मा
ओंकार सिंह नेगी भाई जी प्रणाम
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मेर छुईं मेरी च
मेर छुईं मेरी च
और्री ना वा कैंकि रे
वैमा ही मि रैंदु रे
वै दगडी ही मि सेंदु रे
मेर छुईं मेर च
ना फिकर च ना कैकि चिंता
ना भीतर ना भैर की चिंता
अपरा ही छुईं मा रेंदु रे
आपरी मा ही बचेन्दु रे
मेर छुईं मेरी च ...................
ना आच ना भोळ ना परबत की चिंता
जबै भी जलैई मिल अपरी छुईं की चिता
वा ही मेर भूक च वा ही मेर तिस रे
वा ही मेरो परण वा ही मेरो जियू रे
मेर छुईं मेरी च ...................
बालकृष्ण डी ध्यानी
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ऐग्याई मेरो मेरो रैबार अ
ऐग्याई मेरो मेरो रैबार अ
मेरा डंडा कंठों- कंठों को पियार अ ये
तिस्सलू व्हैगे ऐबार मेरो नैनीताल-मसूरी
बरखा नि पौड़ी ना ह्युंद ही बौडी ऐ बार ये
प्रताप बी रैगे ऐबार बी रीता
नि बणी वैंकू डोबरचांटी को पूल ये
देरा ना बणी ना बणी गैर बी अबै तक
रह्ग्याई असमंजस किलै ये सरकार ये
यौजना बणणी भंडया जोर-शोर दगडी
वैकी असर किलै नि देख्णु च मेरो पहाड़ ये
ऐई ऐ मी थै ऐ रैबार अब त ऐजावा अब अपरा घारा
कु बी नि कुछ कनु बस बस एक दूजै मुख थे हेनु ये
बालकृष्ण डी ध्यानी
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देखि ले ...देखिले
देखि ले ...देखिले
टोपली मेर देखिले
जंचणु छों ना मि लगणु छों ना मि
पहाड़ी भुला पहाड़ी भुला
देखि ले ...देखिले ..... २
हैरी-भैरी छन मेर डंडी कंठी
मि छों यखा को रैबासी
ऐ मेरी धुन ऐ मेरा गीत
ऐ मेर भाषा च मि ऐको मित
देखि ले ...देखिले ..... २
मि ऐ माटा को बगवान
ऐ मेरा खेत ऐ मेरा खैल्यांण
ऐ मेर कर्म भूमि ऐ मेर जल्मभूमि
ऐजा तू बी यख येथे भेंटि ले
देखि ले ...देखिले ..... २
बालकृष्ण डी ध्यानी
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ऐग्याई ऋतू बसंत मेरा पहाड़ों मां
ऐग्याई ऋतू बसंत मेरा पहाड़ों मां
दानि गलोड़ियों मां इन बिगरेली मुखड़ियों मां
ऐग्याई ऋतू बसंत मेरा पहाड़ों मां .......
फ्योंली फुलली अब यों इन डंडी कांठ्यों मां
छोटा भुला भुलियों की हैंसदरी इन मुखड़ियों मां
ऐग्याई ऋतू बसंत मेरा पहाड़ों मां .......
बुरांसी का ये फूल छन मेरा दीदी भुलियों
बसंत ऋतू का ये मूल छन मेरा दीदी भुलियों
ऐग्याई ऋतू बसंत मेरा पहाड़ों मां .......
ब्रह्मा को कमल च यख फूलों की घाटी मा
रामी बुरानी तिलु रौतेली खिली छन इन डालि डालियों मां
ऐग्याई ऋतू बसंत मेरा पहाड़ों मां .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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ऐग्याई मेरो मेरो रैबार अ
ऐग्याई मेरो मेरो रैबार अ
मेरा डंडा कंठों- कंठों को पियार अ ये
तिस्सलू व्हैगे ऐबार मेरो नैनीताल-मसूरी
बरखा नि पौड़ी ना ह्युंद ही बौडी ऐ बार ये
प्रताप बी रैगे ऐबार बी रीता
नि बणी वैंकू डोबरचांटी को पूल ये
देरा ना बणी ना बणी गैर बी अबै तक
रह्ग्याई असमंजस किलै ये सरकार ये
यौजना बणणी भंडया जोर-शोर दगडी
वैकी असर किलै नि देख्णु च मेरो पहाड़ ये
ऐई ऐ मी थै ऐ रैबार अब त ऐजावा अब अपरा घारा
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और्री ना वा कैंकि रे
वैमा ही मि रैंदु रे
वै दगडी ही मि सेंदु रे
मेर छुईं मेर च
ना फिकर च ना कैकि चिंता
ना भीतर ना भैर की चिंता
अपरा ही छुईं मा रेंदु रे
आपरी मा ही बचेन्दु रे
मेर छुईं मेरी च ...................
ना आच ना भोळ ना परबत की चिंता
जबै भी जलैई मिल अपरी छुईं की चिता
वा ही मेर भूक च वा ही मेर तिस रे
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ये म्यारा गुलाब छन
ये म्यारा गुलाब छन
ये म्यारा पहाड़ छन
दे साथ दे बोई दौड़ी ऐजा दीदी भूली
रिंगा रिंगा ये मेरो पहाड़
ये छन म्यारा झुमैला झौड़ा
ये छन म्यारा छपेली न्योली
आँगड़ी घाघरा कनुडि कुण्डल
गलो गलोबन्द पिछौड़ा पाजैब
ये छन म्यारा बाल मिठाई
ये छन म्यारा गैंता की दाल अ
गौचर मेला ये उत्तरायणी
हरेला की ये देख पूर्णागिरि
ये छन म्यारा कामो गढ़वाल
ये छन म्यारा उत्तराखंड
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क्वी नि रुंदो रे
क्वी नि रुंदो रे अब कैका बाना
रीत हैगे ये पहाड़ ईं लदोड़ी का बाना
क्वी नि रुंदो रे ...............
बल इतगा च ये उकाली को रैबार
उन्दरु का बाटा मा बल रौड़ीगे मेर ब्यार
क्वी नि रुंदो रे ...............
कैल देखण तेथे अब पैथर बौड़ी की
छोड़ीगे तेथे तेर ढुंगा गारो मा खेली की
क्वी नि रुंदो रे ...............
धैरी ले आंसूं अब अपरा आंख्युं पाख्युं मा
क्वी नि आलू अब वैथे मैट ना कुन
क्वी नि रुंदो रे ...............
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