Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253807 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जीमो की बस चले हिले डुले पहाड़ों मां
जीमो की बस चले हिले डुले पहाड़ों मां
धका धक ई जीकोडी करण लगे किलै दिल्मा
एक बी टका निच मेरा सुलार का किसा मा
झक मक झक मक किलै कारण लगे वा मेरा आंखां मा
जीमो की बस चले हिले डुले पहाड़ों मां .........
यात्री छों सीट मां सिरदा ही अबै बिछे जांदो
जणू छों जणू छों तै छोड़ी की अब कख जणू
आंख्युं मा छन दड़याँ वा मेरा हजार सुप्निया
टूटी टूटी उजड़ी कि सबी का सब यखी छन पौड्यां
जीमो की बस चले हिले डुले पहाड़ों मां .........
और्री लगा देंदी जोर दीदी ज़रा हाक दे देंदी वैथे
कख ऊ जांदू जो परती की तेरा आँखा मां ऊ जबै देक देन्दु
न ईन धक धका फिर ईं जीमो की बस अब हुँदा
जबै सब दीदा भुला अपरा पहाड़े मा ही राजी कुसी हुँदा
जीमो की बस चले हिले डुले पहाड़ों मां .........
बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बुरांस फूली लाल मेरो पहाड़ों मा आच
बुरांस फूली लाल मेरो पहाड़ों मा आच... २
ऐग्याई दीदी भूली भूलों बोई की फिर याद मेरो पहाड़
बोई पैठा दे मिथे लेणा कुन झट रैबार
भेजी दे भुला थे जल्द तू म्यारो सौरास
बुरांस फूली लाल मेरो पहाड़ों मा आच... २
दे दे ऊं थे तू मेरो बाडोली मेरो पियार मेरो पहाड़
कन लगणू ये दूर भ्तेक लाल लाल मेरो पहाड़
देक णा कुन तू ऐजा ऐबारी तू मेरो घोर सौंसर
बुरांस फूली लाल मेरो पहाड़ों मा आच... २
रंगमत व्हैकि ऐग्याई बसंत मेरो पहाड़
ढोल दामो की अब छै जाली अब गोँ गोँ ब्यार
सुर्ख लाल ग्लोडी मा देकिले प्रेमा की उल्ल्यार
बुरांस फूली लाल मेरो पहाड़ों मा आच... २
इनि खिल्दा रयां ये बुरांस हर बरसी मेरो पहाड़
बालकृष्ण डी ध्यानी
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मिथे ....तैथै
हुम् म म अ .........
कद्ग छुईं लगणी छे .....
कद्ग छुईं लगणी छे मिथे ....तैथै
कद्ग छुईं लगणी छे ..... २
खली जिबान च मेरो
समण चार दिवाल
इन सातो ना मिथे
आस क्षण मां टूट तिल
ब्याकुल सुप्नीयुं का
चखुला हर्ची जाला
जिकोडी को ये इच्छा थे
अपरी बसमा रखु काद्गा ...... अ
हुम् म म अ .........
कद्ग छुईं लगणी छे .....
कद्ग छुईं लगणी छे मिथे .... तैथै
कद्ग छुईं लगणी छे ..... ३
जीकोडी को इच्छा को
इनि सुपनियु का घोल
जीकोडी को सरगा मां
इनि चखलों का गीत
जीकोडी को गौं मां
इनि दोइयों को अपरो सैर
लेंन दया तुम हमार जीकोडी थे स्वास अपरी ...... अ
बालकृष्ण डी ध्यानी
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लग्यां छन सब अपरा अपरा
लग्यां छन सब अपरा अपरा
अपरी जल्म भूमि थे बचाण बान
भूकी तिसी रैकी पड्यां छन अपरा
अपरी बोई भूमि थे बचाण बान
लग्यां छन सब अपरा अपरा
क्वी क्वी हुँदो इन बिरला रे
जैथे मातृभूमि की पीड़ा दिक जांदी
छटपट वैकु जियु तबै कै जाँदु
अपरू हाक मगणे ऊ भैर आन्दु
लग्यां छन सब अपरा अपरा
सैंण ना वै थे तब हुँदो
जल जंगल जमीन परी अपरी जब घात हुँदो
निकली पड़दा वा यखुला बाटा
हीटेदरी ऐंदा फिर ऐथर पैथर एक तबै व्है जाँदा
लग्यां छन सब अपरा अपरा
बालकृष्ण डी ध्यानी
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कथा माया कि
कथा माया कि मि लगै ना पाऊँ
बियोगा मा तेर मि देक हँसै ना पाऊँ
आँखों का धारा बग्ने आँखों माँ तेर देके ना पाऊँ
युखलि बी ईन तेर बिगर मि किलै रै ना पाऊँ
कथा पिरिति कि मेरा पिरिति कि
कन च ये मेर माया मि तैसे लगै ना पाऊँ
तैसे बते की बी मि ये बात बते ना पाऊँ
ये आँखा मां जुनि सी तै थे बसै ना पाऊँ
ये गिच से किले विंथे मि बते ना पाऊँ
कथा पिरिति कि मेरा पिरिति कि
आच देकि छे विंथे थे फिर मिन समण
किले ये जियू की बात मि विंसे बोले ना पाऊं
दिन रात इनि फिर दूँ मि माया मां विंकी
अपरी ये प्रेम कबिता किलै विंथे सुने ना पाऊं
कथा पिरिति कि मेरा पिरिति कि
बालकृष्ण डी ध्यानी
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जबै सब दीदा भुला अपरा पहाड़े मा ही राजी कुसी हुँदा
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अब मेरो पहाड़ बोलण लग्युं रे
मिथे मेरो पहाड़ बोलण लग्युं रे
देक दीदा ऊ मिथे रे धैय लगाणु लग्युं रे ... २
मिथे मेरो पहाड़ बोलण लग्युं रे ......
हैरी भैरी दांडी कंठी
ऊ बिगरेली ह्युं कि चलों-चांठी
ढुंगा गार ऊ देक हाक देंण लग्यां रे
मिथे ऊ मेरा अपरा पास बोलण लग्यां रे
मिथे मेरो पहाड़ बोलण लग्युं रे ......
कंडो धारों मा ऊ बिज्यां उकाळो
विपदा पीड़ा खैरी को सदनी मेरो पहाड़ो
हर्ची गे मेरो बालपन फिर मिथे देख्णु लग्युं रे
देक मेर सुकी तांसी मां ऊ बडुळि लगाणु लग्युं रे
मिथे मेरो पहाड़ बोलण लग्युं रे ......
मि त बल अब इतगा ही जण दू
वै दस डंडा परी छ मेरो गौं मुल्को
वै का ही बणा अटक्यूँ छ ये मेरो जियू परणु रे
अणु मि अणु दीदा जरा ठैर देक तैथे
मिथे मेरो पहाड़ बोलण लग्युं रे ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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जैवों मि जख बी
जैवों मि जख बी
रावों मि कख बी भुलो ना भुल्दी मि गढ़वाली छों
पिरिती मेरो ये गढ़वाली गीत मेरो गढ़वाली
मेरी बोली बी गढ़वाली मी पहाड़ी छों
जैवों मि जख बी .......
खै मि खै यख मा पिज्जा
पर मैसे वो चुनो को रौव्टा स्वाद भुल्दु निछ
यख सब परया छन पर मि कबी अपरो थे भुल्दु निछो
मेरो जोकोडी मां सदनी म्यारा ढोल दामो बजदीन
यख ऐकि बी ऐ परै भूमि मां मेरो दगडी गढ़वाल कामो नचदिन
जैवों मि जख बी .......
कन परित दंडीचा कन माया लगींचा
कन ऐ जीकोडी भित्र ये घुघूती की घूर घूर लगींचा
को हाक देणु व्हालु क्वी खुद लगाणु व्हालु
बोई को बोगोणा मेरा आंसूं को मिथे रोलाणु व्हालु
मिथे ये परदेश रै रै की को बोलाणो व्हालु
जैवों मि जख बी .......
ये कोना कोना संसार को मिल अब नापी लिंयां जी
जै सुख म्यारो पहाड़ों डंडा धारों मा छ्या वा कखि ना मिल्यां जी
उडों मि अब कख बी परी भुल्दी ना वा आपरी भुंई
ऐंदी रैंदी च पिछने पिछने मेरा अपरे पहाड़े की छुईं
काद्गा भलो लगदी बोलणा कुन मेरा वा दीदी भूली
जैवों मि जख बी .......
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होली की रस्याण
होली की रस्याण
कया देवरु कया जेठान
रंगमत बणया छन सबी का सबी
रंगी गे मेरो बी पहाड़
होली की रस्याण ...........
कया फ्योंली कया बुरांस
डंडा को टोक चङयूं च ये उल्यार
डळियू डळियू मा छैई मौल्यार
दीदी भुलियूं की मुखड़ी व्हैगे लाल
होली की रस्याण ...........
गद्नियों का छला बी रंग गैनी
बैरी मन बी गौळी से गौळी मिल गैनी
दानों स्याणौ अद्मुख पौडीकी
दीदा आच असीस छकैकी मिल गैनी
होली की रस्याण ...........
पाकी गै मीठा मीठा पकवान
भंगलो पकोड़ा खूब नाचै द्याई मिथे आच
गीतों को पिली मिल रसपान
धन्य मेरो पहाड़ धन्य मेरो कोमो-गढ़वाल
होली की रस्याण ...........
बालकृष्ण डी ध्यानी
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मिथे ....तैथै
हुम् म म अ .........
कद्ग छुईं लगणी छे .....
कद्ग छुईं लगणी छे मिथे ....तैथै
कद्ग छुईं लगणी छे ..... २
खली जिबान च मेरो
समण चार दिवाल
इन सातो ना मिथे
आस क्षण मां टूट तिल
ब्याकुल सुप्नीयुं का
चखुला हर्ची जाला
जिकोडी को ये इच्छा थे
अपरी बसमा रखु काद्गा ...... अ
हुम् म म अ .........
कद्ग छुईं लगणी छे .....
कद्ग छुईं लगणी छे मिथे .... तैथै
कद्ग छुईं लगणी छे ..... ३
जीकोडी को इच्छा को
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इनि चखलों का गीत
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