Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253744 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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होली की रस्याण

होली की रस्याण
कया देवरु कया जेठान
रंगमत बणया छन सबी का सबी
रंगी गे मेरो बी पहाड़
होली की रस्याण ...........

कया फ्योंली कया बुरांस
डंडा को टोक चङयूं च ये उल्यार
डळियू डळियू मा छैई मौल्यार
दीदी भुलियूं की मुखड़ी व्हैगे लाल
होली की रस्याण ...........

गद्नियों का छला बी रंग गैनी
बैरी मन बी गौळी से गौळी मिल गैनी
दानों स्याणौ अद्मुख पौडीकी
दीदा आच असीस छकैकी मिल गैनी
होली की रस्याण ...........

पाकी गै मीठा मीठा पकवान
भंगलो पकोड़ा खूब नाचै द्याई मिथे आच
गीतों को पिली मिल रसपान
धन्य मेरो पहाड़ धन्य मेरो कोमो-गढ़वाल
होली की रस्याण ...........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी

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किलै कि समज मा नि ऐई

अबी बी मिथे मि
किलै कि समज मा नि ऐई
बिरदयूं ही रेगे मि
किलै कि खुद थे मि खोज नि पाई
अबी बी मिथे मि ........

ये आँखा बी नि छन मेरा
वे बी व्है गे अब बिराण
खोज्नु छे वै थे पैल मिथे
वैल खोजी दयाई पैल ऐ जमणा
अबी बी मिथे मि

कै पर करुलो मि भरोसा
जबै अपरि परी भरोसा नि राई
धोक दयूं छे मिल अपरि थे छकैकि
अब पछतानु छे तू अब किलै कि
अबी बी मिथे मि

देवों की भूमि छे वा मेरी पियारी
मि वै दगडी बी लाडा पियार नि कैर पाई
अब रिटनु छों मि यक्ला यकुलू
कख बी मिल अब धार नि पाई
अबी बी मिथे मि

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तर ऊ हैरी का आँखा कैका छन

पछाँण बी मि छों
में से अजाण बी मि छों
कदगा .... २ खोज मि मिथे
यख हरच्युं बी मि छों

टूटी गे छे वे धागा
विं परी अल्जी गेढ बी मि छों
ऊ उंदरु का बाटू बी मि छों
ऊ उकालो को चढ़े बी मि छों

ये मौल्यार ये फुल्यार मेरा छन
ये भुकी और्री तिसी बी मि छौं
ये पोटगी को सुकसुकहाट बी मि छों
औरी वैकि कबलाहट बी मि छों

सुख बी मेरा दुःख बी मेरा छन
हैंसदी आँखि मेरी रुंदरी बी मेरी च
सबी का सबी यख मेरा छन
तर ऊ हैरी का आँखा कैका छन

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तै देख्द .......
तै देख्द
जिकुड़ी मेर लूछी गे
अग्ने-पिछने दौड़ी भागी
वा त्वैमा जै लूकिगे
तेर मुखडी से
मेर माया इन जुडी गे
झणी सोँण भोंदों बरखा
आच झम झम बरसी गे
तै लिपटी की
ऊं बरखा धार मेसै कैगे
ज्वानी को पियार मा
तू बी पौड़ी गे
तै देख्द .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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तेरु बकी बात रूप कमयु च ...

तेरु बकी बात रूप कमयु च ...
ओ तेरु बकी बात रूप कमयु च ...
ओ त्वे मा सेरु गढ़वाल समयु च .
ओ त्वे मा सेरु गढ़वाल समयु च
तेरु बकी बात रूप कमयु च ...

पौड़ी की रौनक तेरी गलोड़यु मा ..
जोंसार जादू तेरी लटल्यु मा ...
पौड़ी की रौनक तेरी गलोड़यु मा ..
जोंसार जादू तेरी लटल्यु मा ...
श्रीनगर की गंगा तेरी आंख्यु मा ।
फूलो की घाटी तेरी उट्ठरयु मा ।
ओ दन्तर्यु मा ..दन्तर्यु में हिमालय बसयु च ..
तेरु बकी बात रूप कमयु च ...
ओ तेरु बकी बात रूप कमयु च ...

गौचर गोपेश्वर भी कन्द्र्यु मा ..
उत्तरकाशी तेरी उन्गाल्यु मा ...
डिब्रागढे की बोली तेरी कवलि मा ..
देहरादून बस्यु तेरी खुचली मा ...
पीठ मा ..पीठ मा चमोली अड्युंचा.

कमर मा टिरी की लसक ..
छुयु मा सालाणी मजाक ..
कमर मा टिरी की लसक ..
छुयु मा सालणी मजाक ..
सतपुली सी तेरी लपाक ..
चाल मा भाबर सी ठसाक ..
चंबा जनू ओ चंबा जनु सुरंग क्या पयु च

ओ तेरु ..बाकि बाक रूप कमयु च ...

लैंसडोन सी तेरी नकोडि
केदरनाथ सी तेरी जिकुड़ी
चौंदकोट तेरी ज्वानी
बद्रीनाथ सैनी मुखोडि
खुट्यूं मा खुट्यूं मा ऋशिकेष बसयुंचा
ओ तेरु ..बाकि बाक रूप कमयु च ...

ओ तेरु ..बाकि बाक रूप कमयु च ...
उत्तराखंड मनोरंजन तुम थै कंण लग जी?
उत्तराखंडी गीत है
उत्तराखंडी भाषा को बढ़वा देने के लिये
चलचित्र के नीचे गीत लिखा है बस
बालकृष्ण डी ध्यानी
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धूं धूं कैकि जळणी च
धूं धूं कैकि जळणी च
मेरी दंडी कंठी किलै कि ये बारी
कया हुनु कया हुलु जी
मेरो देबता तू मै थे बता
किलै की तू इन नारज व्हैगे
किलै तिन इन भस्मत मचै दे
रोँतैलो मेरो जंगलात बणो थे
अग्नि देबता को किलै भेंट चढ़े दे
ख़ाक हुनि लगिंच तेर ये डाली बोटी
दिन रति जळणी तेर ये स्वणी घाटी
मुका जिबों न तेरो कया च बिगाड़ी
किलै तिन ये भूमि मां जोलपोल मचे दे
ना ना कैर अब बुझै दे तिन जो रच्युं च
तेरो नौको उचांडो निकली मिन धरयुंचा
नारज ना व्है भांड्या मेरो वन देबता
मानी जा शांत व्हैजा अब ना जरा बी कैर अब देर
धूं धूं कैकि जळणी च ........
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कया भुल व्हैगे मैसे
कया भुल व्हैगे मैसे
तू में दगडी किलै बोल्दि ना
कया भुल व्हैगे मैसे
ये माया को बुखार चडैकि
किलै वैथे अब दवाई पिलैदी ना
कया भुल व्हैगे मैसे
ये आँखा आँखा से मिलैकी
किलै अब ऊंथे चोरैन्दी तू
कया भुल व्हैगे मैसे
उजालों दिन दिखेकि मिथे
यखुलि अंधरों बाटा किलै छोड़ देंदी तू
कया भुल व्हैगे मैसे
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कदग दिनों का बाद दिके आच वा
कदग दिनों का बाद दिके आच वा
फिर अपरि ही बता कैगे मेर साथ वा
जिनु को मिथे देंगे फिर नै आस वा
कदग दिनों का बाद दिके आच वा .......
कुच ना ब्वालि मिन विंसे आच बी
बस मि विंथे थे ही देकदू रैग्युं वै बाटा जी
पैली भेंट मा खोली गे छ्या मि
ऐ मुलकात मां बी खोल्युं रैग्युं आच बी
कदग दिनों का बाद दिके आच वा .......
मिठू बोल पड़ी कनुडी मा विंकी जबै
ईं जिकुड़ी मा कन के प्रित रास घुल ग्याई
मिथे मिसे ना जाण वा कख क ले जांण लगे
अब रोज ही में दगड़ किलै कि इन हुण लगे
कदग दिनों का बाद दिके आच वा .......
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मिल कया सोची मिल कया लयखि
मिल कया सोची मिल कया लयखि
सब ऐ आखर मां ही दाड़ी रैग्याई
गीत लयखि इन फूल परी मिन
पर ऊ भोंर मिसे विन्थे लुछी लेग्याई
मिल कया सोची मिल कया लयखि
सब वै आखर मां ही दाड़ी रैग्याई .......
कैंण बणे व्हली ये बिगरैलि दुनिया
को हुलु ऐको रख-रखवलदरो
कैल सैंती पाली धरि छे इंथे
कू हुलु इंथे इन संभळनु व्हलु
कदग प्रसन पडण छन मिथे को देलु ऐको जवाब
मिल कया सोची मिल कया लयखि
सब वै आखर मां ही दाड़ी रैग्याई .......
अपरा अपरि मा ही अब लिख दूँ छों मि
सुख दुःख गैनु दगडी अब यखुली गिणदू छों मि
रति के बेली अब मेरी च दिस तुमरा वहैगेनि
सुख म्यार तुम ले लिंवा दुःख तुमरा मिथे दे दिंवा
इन ये पका वादा तुम मै दगडी कै जैंवा
मिल कया सोची मिल कया लयखि
सब वै आखर मां ही दाड़ी रैग्याई .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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हेर मेरो मन को
हेर मेरो मन को
हेर मेरो तन को
म्यार तन मन ही राई
सुधि सुधि ऊ मि मा आई
सुधि सुधि ऊ मि सै ग्याई
हेर मेरो मन को ....
छुंई लगाई मिन वै दगडी
मिन बात बी बड़ई अब वै दगडी
अध बाटा तक वैल मेरो साथ निभै
यखुली छोड़ि मिथे वैल अपरि बाट निभै
हेर मेरो मन को ....
कैथै जैकी अब मनेऊ मि
कैथे जैकी अब समझैऊ मि
जब खुद ही नसमझ बनि मि
कैथै जैकी बतैऊ कैथै हरेऊ मि
हेर मेरो मन को ....
बगदि जनि वा न्यार बनि
मेर से अब औ भांड्या दूर जानि
आँख्यु छोड़िकी ऊ आस को पाणी
टिप टिप किलै वहलि आँखा टप्राणि
हेर मेरो मन को ....
बालकृष्ण डी ध्यानी
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