कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी with Dinesh Dhyani and 140 others.
November 2 at 12:53pm ·
कैका बणा औरृ किलै कि
भल-भळी सुपनिया सब देख्दा जी
हुण-हुणायाळी सुपनिया सब हेरदा जी
लाख भीड़ मां हुंदु क्वी एक ही
वै बाटा ऊ यकाळु हिटदू
..यकाळु हिटदू
निरगास माया जै मां हुन्दी
घास जमी मां वा बगरैली बेलि हुन्दी
बूतिकि बूतिकि जैमा आन्दु निखार
हैरि-भैरि धरती मा जन हुन्दु द्ढ़ीयु पियारा
वैमा ही छुपियुं जीवन कु सार
बैठ बैठिक खाणु सब सोचदा जी
टिरकम लड़ै झट पैंसा कमांणु सब चैन्द जी
लाख भीड़ मां हुंदु क्वी एक ही
सचै कु कमांणु खाणु यकाळु सोच्दु जी
..यकाळु सोच्दु जी
ग्वरूम जैकि जैळ बसुळि बजाई
हरि भरी वसुंधरा थे कैळ खिळई
यूँ डाळीयों बोटियूं मां फूल कैंन खिलेंन
जीबन कु भेद इन मां कैळ दडेन
बसगाळ हिंवाल घाम कु ळाणू ह्वालु
भल-भळी सुपनिया ......
हुण-हुणायाळी सुपनिया ......
बैठ बैठिक खाणु ......
टिरकम लड़ै झट पैंसा कमांणु ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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