Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253380 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कैका बणा औरृ किलै कि
भल-भळी सुपनिया सब देख्दा जी
हुण-हुणायाळी सुपनिया सब हेरदा जी
लाख भीड़ मां हुंदु क्वी एक ही
वै बाटा ऊ यकाळु हिटदू
..यकाळु हिटदू
निरगास माया जै मां हुन्दी
घास जमी मां वा बगरैली बेलि हुन्दी
बूतिकि बूतिकि जैमा आन्दु निखार
हैरि-भैरि धरती मा जन हुन्दु द्ढ़ीयु पियारा
वैमा ही छुपियुं जीवन कु सार
बैठ बैठिक खाणु सब सोचदा जी
टिरकम लड़ै झट पैंसा कमांणु सब चैन्द जी
लाख भीड़ मां हुंदु क्वी एक ही
सचै कु कमांणु खाणु यकाळु सोच्दु जी
..यकाळु सोच्दु जी
ग्वरूम जैकि जैळ बसुळि बजाई
हरि भरी वसुंधरा थे कैळ खिळई
यूँ डाळीयों बोटियूं मां फूल कैंन खिलेंन
जीबन कु भेद इन मां कैळ दडेन
बसगाळ हिंवाल घाम कु ळाणू ह्वालु
भल-भळी सुपनिया ......
हुण-हुणायाळी सुपनिया ......
बैठ बैठिक खाणु ......
टिरकम लड़ै झट पैंसा कमांणु ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बाबा जी कि पुछडी छो
बाबा जी कि पुछडी छो
ठंडू मठू बाटु छो
तन कि पीड़ा ,मन कि पीड़ा कि
बोगदी गदनी छो
बाबा जी कि पुछडी छो
मन कि आस छो
ऋतु बसंत कि भासा छो
गारा कांडु छैलू -पाणी
अगनै बाटु कु पिछणे बाटु छो
बाबा जी कि पुछडी छो
अंद्यरु रात कु द्यू बत्ती छो
सारू कु जग्वाळ छो
भर भर ऐजाँदी आँखियों मा
ऊ आँखियों कु पाणी छो
बाबा जी कि पुछडी छो
मौळयार कि बयार छो
उजाड़ा कु हैराल छो
बिंसरी बेल भतिक
जून की कि जुनयाळ छो
बाबा जी कि पुछडी छो
बालकृष्ण डी ध्यानी
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नौं हर्चि जाळो जी
नौं हर्चि जाळो जी,
मुखड़ी ऐ बदल जाळ जी
मेर बाणी ही मेर पछाँण च ,बल याद राल
...नौं हर्चिजाळो जी ....
बगत कु पीड़ा कम बिगरैली नि छे
आज यख च भौल कखि ना
बगत सै पैल हम मिलिगयां कखि
...नौं हर्चि जाळो जी ....
जो झड़ी गै छे ब्याळ कि छुईं छे,
उमरी त ना एक रात छे
रात कु सिरा
बल मिळ जाळो कख ..
नौं हर्चिजाळो जी ....
दिन बिती जख राति जब दगड हो,
जियुंदगी कु दियू थे ऊब कैरी हिटो
याद आली
बल कबैर जी उदास ह्वै
..नौं हर्चि जाळो जी ....
बालकृष्ण डी ध्यानी
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एक एक्लो ऐ सैर मा
एक एक्लो ऐ सैर मा रति मां दोपहरी मां
ठौर थिकाणो खोजणो छो कुड़ी थे खोजणो छो
दिस रीटा रीटा भांडा छन और्र रति छे जन अंधो कुंओं
इन शांत अंधारी आँखियों मां नेडु का बदलि आणू च धूंऊँ
जियुणा को आस क्वी निच मरणा कु भानो खोजणो छो
एक एक्लो ऐ सैर मा .....
इनि उमरी से लंबी सड़की थे गंतव्या तक पौन्च्दा देखि ना
बल अटकदि घुमणी रैन्दि च हमण त रुकदा देखि ना
इन अजाण सैर मा जणण वाळा पछांण वाळा खोजणो छो
एक एक्लो ऐ सैर मा .....
बालकृष्ण डी ध्यानी
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तुम से ना हो पालो
तुम से ना हो पालो
रे दग्ड़या तुम से ना हो पालो
कख फंसी छाया ऐ जान मेरी
आटो दलों कु भाव मिल तौलियाली
तुम से ना हो पालो
रे दग्ड़या तुम से ना हो पालो ......
लाख लाख कुछ निछ अब
अब करोड़ो को च रे सवालो
खरा खरी मिल अब सुणीयाली
जब अफ थे मिल बीच बाजार बेच्याली
तुम से ना हो पालो
रे दग्ड़या तुम से ना हो पालो ......
ऐ उज्यड़ा मा कन बसै हैरयाळी
गैरी घाटी बाटी की माया छे मयाळी
ऐ ह्यूंचुलि कांठी की बात छे निराळी
ज्वान मन पांखि छे बल जी उडाणू कु
तुम से ना हो पालो
रे दग्ड़या तुम से ना हो पालो ......
बुढेन्द की हर्ची गे रे यख लाठी
हेर लगणी कै ठौर ऊबी हुलि लाटी
खरडू पूसा कि बिछी हुली यख वख डालि
माया को मौल्यार यौ पर तू मेरी बात ना मानी
तुम से ना हो पालो
रे दग्ड़या तुम से ना हो पालो ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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फिर बी त ऐ आस छे
फिर बी त ऐ आस छे
ये जियु किले तू उदास छे
आणि जाणी वाळी सांस ये
ये तर अब बी अप्ड़ पास छे
आज नि हुळू भौळ त हुळू
अजी हां ये बात त छे
पहाड़ मा बिकास को नोऊ छे
ऊ बी नऊ दर्जा द्वि दफा फेल छे
खिल्दा फूल हैंस ही जाला
कंडो थे तिळ किलै इल्जाम दे
माळु ग्वीराळ कु ऊ हैरू घासु
भौरीक अब बी मेरा पास छे
डंडियों मां बांसुरी कि धौण छे
मेरा नेता लुक्यां कै कै कुण छे
गदन्यों कु सुस्यांट आणू ह्वालु
बल अब ये बगता कु पास छे
रूणु-हैंसणु को जोग ये
बिधाता ने लेखि कै का पास ये
हमरु पाड़ा अब कया बुनु
सिंकोलि सैजा खेजा भात ये
फिर बी त ऐ आस छे
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मेरा माँ न मेसे कबी ऐ बोलि
कुच इनि छुई हुन्दी दुनिया मां
मेरा माँ न मेसे कबी ऐ बोलि
वे बग्त बेल बदली जान्दु जिबान
जब सचि मां जिकोडी थे ठेश लग्दी
वे आस थे कबी कथै ना छोड़ि
बेटा वै बात थे कैसे कबि ना बोलि
ठंडू मठू कै बाटु बी मिले तैथे
वै अप्ड़ी धास से तू कबी ना छोड़ी
छैल छबीली ऐ दुन्या का रंग
वै बाटा मां कतै , कबी ना दौड़ी
द्वि दिना का मौळयार छन ओ
देखि की दुःख थे,कबी ना परती
त्वैमा मां ही तू लुकियुँ छे
खोजी ले अफ थे पैल तब बोलि
हैंसदर त ,इल मिल जाला तैथे
जैं रुळै तै थे ऊं को साथ कबि ना तोड़ी
मेरा माँ न मेसे कबी ऐ बोलि
कुच इनि छुई हुन्दी दुनिया मां
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डाळयोंन माया लगै
ये जंगलात वै गौं मां
तू कख बी रै यों थे लगै
डाळयोंन माया लगै
डाळा डाळा दगडी राला
कदगा फल फूल
वा हम थे कया कया द्याला
डाळयोंन माया लगै
जड़ों मुल्ल हैंसण लगे
धरती कु दुःख झणी कख गे
ऐ उज्यड़ा थे इन तू सजै
डाळयोंन माया लगै
बेबस ना यूँ थे कै जे
आँखों अगनै ये सुपनीय रैं दे
अप्डू जल्म सफल कैजे
डाळयोंन माया लगै
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी with Dinesh Dhyani and 140 others.
November 2 at 12:53pm ·
कैका बणा औरृ किलै कि
भल-भळी सुपनिया सब देख्दा जी
हुण-हुणायाळी सुपनिया सब हेरदा जी
लाख भीड़ मां हुंदु क्वी एक ही
वै बाटा ऊ यकाळु हिटदू
..यकाळु हिटदू
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बाबा जी कि पुछडी छो
बाबा जी कि पुछडी छो
ठंडू मठू बाटु छो
तन कि पीड़ा ,मन कि पीड़ा कि
बोगदी गदनी छो
बाबा जी कि पुछडी छो
मन कि आस छो
ऋतु बसंत कि भासा छो
गारा कांडु छैलू -पाणी
अगनै बाटु कु पिछणे बाटु छो
बाबा जी कि पुछडी छो
अंद्यरु रात कु द्यू बत्ती छो
सारू कु जग्वाळ छो
भर भर ऐजाँदी आँखियों मा
ऊ आँखियों कु पाणी छो
बाबा जी कि पुछडी छो
मौळयार कि बयार छो
उजाड़ा कु हैराल छो
बिंसरी बेल भतिक
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