Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 63320 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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म्यारा बाठों मां
म्यारा बाठों मां अयां अद कच्चा रास्त्ता
म्यारा भागों मां कु कु उकेरी कि गयां
सिपुड़ा नाक मेरु मिन इन लिपि सिपी
स्लेट कु आखर बस मिथे लेकि ऊ दौड़ी
पिंगळा लाल फूल नि मिथे इन रसाई
लाल सारी हैरी चूड़ी पैनी कि वा घार आई
कमरी तौड़ी मेर इन गरीबी की छैलि न
फिर अद कच्चा रास्त्ता म्यारा बाठों मां अयां
बालकृष्ण डी ध्यानी
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मन की पीड़ा थे
मन की पीड़ा थे
मन मा दबै ई दे
हेरि तिळ कन मि थे
ईन दवा ई दे
अपड़ी अंगडी मा
मिथे तू कढे ई दे
अंजुली भोरी कि
ई जुन्याली मां मि सम ई दे
मिळूलू दगड तेर तर
भोरी कि मिल् गठरी जम ई दे
ई आँखि बुझ्न स पैल
ई दुनिया तू मि दिखै ई दे
चुखुला बणन स पैल
मिथे तू इन ना उड़ै ई दे
कड़ी मीठी जन बी हुली
अपड़ा हाथों मिथे पिलै ई दे
मन की पीड़ा थे ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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आळी मेर बेळ बी
आळी मेर बेळ बी
मि दिखाळु अपड़ो खेळ बी
कन के नि पोछलि जी
मेरा पहाड़ों मां रेल जी
रंगीली दुनिया का छन
रंग छन न्यारा न्यारा
सुपनिया उंका छन
बड़ा जी पियारा पियारा
आली तेर जब बेल जी
बोगी जालो तेरो सारू खेळ बी
कन आळी फिर मेरा पहाड़ों मां रेल जी
ना ना इन नि हुलु
मि इन कन के करलू
अपड़ो पहाड़ अपड़ो घर थे
कन के यखुली छोड़ी जोंलू
जब पुंगड़ी बांज पौड़ी जाली
पोट्गी की भूक तिस तै सतैलि
देखिकी सिकासैरी तेरी खुटी हटेली
कख जालो तेरो बिस्वास जी
इखि रालो तेरो ऐ पहाड़ जी
पर तू बोगी जालो यखुली छोड़ी जालो
बालकृष्ण डी ध्यानी
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कोई नग्मा पहाड़ों का
कोई नग्मा पहाड़ों का
पहाड़ों में गुनगुनाया जाए तो कैसा हो
राज़ – ए – अल्फ़ाज़ दिल के
सारे दिल से निकले जाए तो कैसा हो
घघुती के बने घोल में
खुद को अगर अब ढूंढा जाए तो कैसा हो
"गिर्दा" की लिखी कविताओं के
हर अक्षर में खुद को गर पायें तो कैसा हो
आओ सीखें अब शब्द गढ़वाली
अपनी भाष में गर बोला जाए तो कैसा हो
बहती रहती है वो धारा गंगाजी की अविरल
माँ को अब जीवित समझ जाए तो कैसा हो
नेगी जी के बिना ये पहाड़ सूना सूना है
ढोल दामो पहाड़ में ना सुनाई दे वो मण्डन सूना है
भगवती का जयकर यंहा दुगुना है
मेरे पहाड़ पर अब भी प्यार चौगुना है
वही प्यार तेरे मन में गर उभर जाए तो कैसा हो
कोई नग्मा पहाड़ों का
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निंदी
ढुल ढुल कैकि
आंदि जांदी छे
मुंड थे झुल झुल कैकि
हिलांदी छे
कु हुलु निर्जक सियुं
गुर गुर करनु
नाक कु छिद्र कु बथों थे
सुर सुर करनु
कैथे ऐजाँदी
सिंकुली सुरक करि की
मिठा सुपनीयू ले जांदी
अंचल भौरि कि
कैथे याखुली याखुली
क्दगा तड़पादीं छे
पिछणे पिछणे अपडा
क्दगा दौड़ांदी छे
खेळ छन विंक
रति बेराती न्यारा न्यारा
कबि हसंदी रुलांदी
कबि खूब बचांदी छे
निंदी जबै
में पास आंदि जांदी छे
बालकृष्ण डी ध्यानी
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जिकुड़ि
जिकुड़ि धड़क धड़क कनि
क्वै कुंन आजा ..... २
झप झपिगे पराणी मेरी
कु लुक्यों ऐ मन का बाटा
जखन तखन सरग गिड़िके
स्यां स्यां (बिजुलि कु धागा) .... २
तड़क झड़क कन फरक कैगे
पाणी का ऐ धारा
रुणन झुणन बिजली बलिगे
उलरि (जिकोडी कु ऐ सांझ).......२
मन कदों कदों कख बिरदी छा.
अपडा मनमा ही लाटा
हिरे-हिरे की बथो आंदि
क्वी औरृ (क्वै की खबर लांदी) ....२
कनु कै ऐ अशांत जी
कन हुलु आज शान्ता
जिकुड़ि धड़क धड़क कनि
कै कुंन आजा ..... २
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बिराणी
हे री तेर देरी ....ऐ बेरी
इत्गा किलै ह्वैग्याई
आंखियुं का आंसू पुछ्दा सुख्दा
जिबन भोळ ह्वैग्याई
हे री तेर देरी ....ऐ बेरी ........
अकुलौ माया
मन माया बाई मा समागैई
लांद, झूटा-फीटा
सऊँ खंद दिटा किलै इन कैरगैई
हे री तेर देरी ....ऐ बेरी ........
झुटि सच्ची स्याणी
कंठि किलै गोठ्याणी काणि
मैंत बोदू बात सोच दिन रात
मुरखू कु संग किलै कैरगैई
हे री तेर देरी ....ऐ बेरी ........
आँखु देखि लाडी
बात कैगे लाटी बुरु ना मानी
जगत की गालि पोट्गी की खाणी
मिथे इन बिराणी ना कैजादि
हे री तेर देरी ....ऐ बेरी ........
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किले हुलि
किले हुलि
बैठी मांजी आज ऐ घघुति उदास
कैका बाना धैरी हुलि
इन हैरा भैरा डालियों मां आस
झम झम झम बर्खाणी
हुलि यूँ का आंख्युं मां बरसात
तीळ तीळ कैकी मौरनि हुलि
ऐ यखुली यखुली किले की दिन रात
बल्दू की घांडी बज्दी
घस्यारियों गीतों न ऐ दांडी
कैका हेर मां हुलि तांसि जीकोडी विंकी
किले हुलि यखुली तप्राणी
टुकड़ी टुकड़ी कु
जीकोडी को हेर नि च वींको क्वी ठौर
यखुली सोचणी कै बाना सजायूँ हुलु
हमुन ऐ अपड़ो घौर..... २
बालकृष्ण डी ध्यानी
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दूर भतेकि
दूर भतेकि कैदे प्रणाम
हे बड़ोली दे दे मेरु तू ......सलाम
राजा कि गद्दी कैल छुड़ाण
वख जैकी कैल कैल चौंल बुकाण
सदनियों कु तुम छोड़ दिना
भौत म्वाट मनखीयों कु रुझान
दूर भतेकि कैदे प्रणाम
हे बड़ोली दे दे मेरु तू ......सलाम
अब नि ऐ सकदु मि तेर पास
क्वी नि रेग्यूं जब मेर आस पास
अब मिथे जी भोरिकी तेर याद आई
जब बोगीगे मेर खैर कमाई
दूर भतेकि कैदे प्रणाम
हे बड़ोली दे दे मेरु तू ......सलाम
छान,तिवारी,भूमडू ई कुड़ी
अब तक नि देक नि टूटी मेर खुंटी
मोअरी भतेक को मारलू हाक
सब चली गेनी अब देब्तों का पास
दूर भतेकि कैदे प्रणाम
हे बड़ोली दे दे मेरु तू ......सलाम
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तेर घुटी
तेर घुटी कु पीणा
अब त मेरु मन करदु
तेर दगड इण जीणा
अब त मेरु मन करदु
वा क़्या तेर नत की बात
अब त मेरु मन करदु
कै दे मिथे स्वीकार अ
अब त मेरु मन करदु
झम झम प्रेम बरसात
अब त मेरु मन करदु
इन कोयड़ी लागे बारामास
अब त मेरु मन करदु
कैर ले मेसे बात इन दिन रात
अब त मेरु मन करदु
किले ह्वैगे ह्वैली ऐ संकुली रात
अब त मेरु मन करदु
कबिता मां तेरु पाठ
अब त मेरु मन करदु
दे दे तू मिथे अपडो साथ
अब त मेरु मन करदु
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