मौळन लग्यां छन
मौळन लग्यां छन
सबि कोंगळा पात कुयेडि थे सरके कि
माय कु हुलु पैलु स्पर्श जनु
तू ऐकि ऊनि मि थे बि छू जैई
भूमि का खेल सबि बिगरैल
हैरी भैरी धरती ऊंचा निसा डंडों कि धैल फ़ैल
किलै बग्दी हुलि गदनि सागर का छोर
राति थे छोड़ी कि जन आणि हुलि भोर
ऐठन लगिन्छ सूना की मुंदरी
घंघतोळ मां छ वा चांदी की चदरि
अंजूळ भोरी कि तू बी ऐजा कख भत्ते
ऐ अगास जनि तू मिथे कै जैई
मुलमुल लंगिं चा खित खित कनि चा
सुबेर-ब्योखोंण वा अपड़ी मां लगिं चा
भूम्याळ मयाळ वा मेरी मया भूमि
कुज्याणी क्यपता कख आज ख्वै होली
मौळन लग्यां छन ..................
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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