Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 63365 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आज म्यारा मन मां....
कन बरखा बरखी
आज म्यारा मन मां
चखल पखल कैगे
सखी म्यारा तन मां
हैरी भैरी कैगे जियू
चूड़ी की छम छमा
फिरि आस बलिगे सखी
म्यारा भीतरी मन मां
सरगै किड़कता लग्युं
मन मां खूब डौर लगी गे
पळ्यां दण्डा मां मांजी
बीदा द्योकू बजर पोडिगे
मन मां पठाल्यूॅ जनि
मची छया थर थर्राट
गाड़ गदन्यूॅ जनि मन मां
किले ह्वैगे हुलु सुस्यांट
कन बरखा बरखी ....
बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ऐ ऐना मेरा
ऐ ऐना मेरा द्वि आँखा का
दगडी मेरा हिट
नि तर छूट जाली
जीमो की बस सुट
पहाड़ो मां टेरन आली
अब हिमाल का टुक
झुक झुक कैरी पहाड़ों मां
विन देनी सिटी सुक सुक
हे पहाड़ी बेटा लगा दे
द्वि का पाड़ा झक झक
कुल्हण बैथ्यून बाड़ा जी को
जीकोडो क्नॉ धक धक
पुरण रेडियो बजनो च
ऑल इंडिया समाचारों सुख
दगड बैठ्यों लल्या कुतर
अजानों देखी क्नॉ भूक भूक
पहाड़ की ऐ छुवीं ऐ खुद देंदी दीदा
परम् आनंद को सुख
किलै यख भत्ते मिल पालयन कैरी
कन मेरु ऐ कपाल फुट
ऐ ऐना मेरा द्वि आँखा का
दगडी मेरा हिट
बालकृष्ण डी ध्यानी
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परती की
कख तू जैली ,यख ही ऐली
हे मेरु छैलू , हे मेरु घाम
दिन राति का सुपनिया
तू गेढ ही जैली
हे मेरु छैलू , हे मेरु घाम
जिकुड़ी की मां माया गिंदी सी
तू तप तपरण ही रैली
हे मेरु छैलू , हे मेरु घाम
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मिन त देकि छया
मिन त (देकि छया) .... २
सुपनिया हजार
कन औरृ कब फल-फुल्लो
मेरु पहाड़
दिन राति कि फिकर मां
म्यारू छूटगे गौ - गोठ्यार
कन औरृ कब बॉडी आली प्रगति कि
म्यारा डंडा-कंडो मां मौल्यार
अपडों थे देकदा देकदा
मि बस वैकु कैरदु रैग्यु बिचार
भागी भागी वैका पिछने मि
पहाड़ छोड़ी कि बल भैर म्यारू ब्यापार
कन सुपनिया देकि मिल
सब ह्वैगे अब तार तार
बुढ़ेंदा मां अब सोच्दु मि
ना मि ऐ पार ना वै पार
मिन त देकि छया
सुपनिया हजार
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बग्दी जांदी छे न्यार अ
अल्या डण्डा पल्या डण्डा
बिच कबि बग्दी जांदी छे न्यार अ
वख देखा अब सूना हुंयाँ
पड्युं अब अपडो गौं गोठ्यार
कन बिन्सरी सुबेर ऐई
अब की बारी ऐ मेरु पहाड़ा
१७ बरस ह्वैगे राज्य बणिक
पलायन परी अब बी चिंता बिचार अ
कख देखन हुमन भगी
अब रौला ,थौला वो गौला
कख ग्युं हुला मेरु ढूँगा गारों
मां हरयूं बलपन कु बौला
अल्या डण्डा पल्या डण्डा
बिच कबि जांदा छ टिपण हिंसोला
वख देखा अब सुखंण गलण लग्युं
काफल आरु औरृ कीनमोडा
बालकृष्ण डी ध्यानी
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अब मोबिल मां
आच भौल अबि
सबि गिज्यां
छन अब मोबिल मां
अपडा अपडों मां
नि रेंदु क्वी सबि रैंदा
छन अब मोबिल मां
दादा दादी बी
बोई बाबा बी
छन अब मोबिल मां
आस ख़ास
बात चित्त सबी धाणी
छन अब मोबिल मां
देबि देबता
सबी पहाड़ गोठ्यार
छन अब मोबिल मां
देक बल इन चलणू
रीती रिवाज को घार बार
छन अब मोबिल मां
पलायन कु मार
सारू कबिता कु सार
छन अब मोबिल मां
टैम कैका पास निछ
सबि की हर्चि नींद
छन अब मोबिल मां
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बौग मारिले
ना हुन जब बिकास
बुझण लगि जिंदगी की आस
बौग मारिले छुछा बौग मारिले
घाम यो ऐगे बुढेंण दा को
बँटवारु ऐगे कुढ़ेण दा को
बौग मारिले छुछा बौग मारिले
गेड़ी धरि गठोली ई
खुचण लगि अब झगोली ई
बौग मारिले छुछा बौग मारिले
सुधि ना ईनि गपोड़ लगा
कदग सम्भलि धरि ना ईनि सपोड़ लगा
बौग मारिले छुछा बौग मारिले
बटण बाँधी ले तै लगे ले
हौळ सिंघोड़ छोड़ि की सत भगिले
बौग मारिले छुछा बौग मारिले
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ओंसिल बून्द
ओंसिल बून्द
जबै ग्लोडि भतेक
टप टप चुनि होली जी
अंख्यों भतेक
वा माया विंकी
आज कया बिगोंणि होली जी
कब्बि खैल मां ले जैकि
भंडया छुईं दगडी लगैकि
यखुलि कै जांद वा
इन अपड़ी
तुक की बिसात बिछे कि
मिथे अफ से अजाण कैजांद वा
ओंसिल बून्द
जबै ग्लोडि भतेक
टप टप चुनि होली जी
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हे मेरी बिगर्याळि-नखर्याळि
हे मेरी बिगर्याळि-नखर्याळि
आज (झप्प.. २) किलै की तू आंदि जांदी छा
पैलु दफा मिथे देखि कि ऊ झसकणु तेरु
अब बी याद आणु छा
इतगा अजाण मां वा मिथे पछाण ग्याई
वा म्यळि अंख्याळि कि खुद आणि छा
हे मेरी बिगर्याळि-नखर्याळि
आज (झप्प.. २) किलै की तू आंदि जांदी छा
वा तेरी दंतपंक्ति कि हैंसि उजाळि फिर कैग्याई
जिकोडि मां छाया गैरु अंद्यारू वा दूर ह्वैग्याई
भूम्याळि बणकै ऐई ऐ ज्यू हरयाळू कैगैई
पहाड़ कु ठंडो मिथु पाणि जनि तिस बुझैगैई
हे मेरी बिगर्याळि-नखर्याळि
आज (झप्प.. २) किलै की तू आंदि जांदी छा
बालकृष्ण डी ध्यानी
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मौळन लग्यां छन
मौळन लग्यां छन
सबि कोंगळा पात कुयेडि थे सरके कि
माय कु हुलु पैलु स्पर्श जनु
तू ऐकि ऊनि मि थे बि छू जैई
भूमि का खेल सबि बिगरैल
हैरी भैरी धरती ऊंचा निसा डंडों कि धैल फ़ैल
किलै बग्दी हुलि गदनि सागर का छोर
राति थे छोड़ी कि जन आणि हुलि भोर
ऐठन लगिन्छ सूना की मुंदरी
घंघतोळ मां छ वा चांदी की चदरि
अंजूळ भोरी कि तू बी ऐजा कख भत्ते
ऐ अगास जनि तू मिथे कै जैई
मुलमुल लंगिं चा खित खित कनि चा
सुबेर-ब्योखोंण वा अपड़ी मां लगिं चा
भूम्याळ मयाळ वा मेरी मया भूमि
कुज्याणी क्यपता कख आज ख्वै होली
मौळन लग्यां छन ..................
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