Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 65346 times)

devbhumi

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मेर अंख्याळी
« Reply #880 on: November 03, 2018, 11:50:32 AM »
मेर अंख्याळी

अंख्याळु अंख्याळु तेर इन छुईं कैर
बात जिकुड़ी न जिकुड़ी थे बतेई  मजा ऐग्याई 
मुलमुल यूँ की इन जबै भेंट हुन लगि
सुबेर छ्या रुमुक छैगयी मजा ऐग्याई 

कबलाट हुँयुं छ्या इन ज्यू मां मेरु
भेद तेर जिकुड़ी न जब उघड़ी मजा ऐग्याई 
अँगिठि मां मेर सिईं आगि छ्या
तिल बल इन सिल्गाई मजा ऐग्याई 

त्वै थे देखणु मेरु अब इन ढब ह्वैगयी
तिन तुक नजरि का मिलाई  मजा ऐग्याई 
अच्छेण लग्युं छ्या अब मेरु बालपन
ज्वनि को इन मौल्यार आई मजा ऐग्याई 

कुसग्वर छ्या मि पैली ईनि ऊनि
बाटों माया को तिल हेराई मजा ऐग्याई 
डिबली थे मेर अब इन सुख मिल
रौस आंख्युं मॉ ढबलाई मजा ऐग्याई 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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जरासि घड़ेक
« Reply #881 on: November 03, 2018, 11:52:00 AM »
जरासि घड़ेक

जरासि घड़ेक बैठी जा
ना छुछी ना ईनि तू दूर जा

ना ईनि तू अंग्वठा दिखा
मेरु ज्यू थे इन ना  लुछी जा

अंजूळ मां अपड़ी माया धौळी कि
अंध्यारु जिबन मेरु  उजाळू कैरी जा

ना  ईनि ना मैसे रूसै  कि जा
ना ईनि मेर जिकोडी थे झपाका लगा

अछलेण हुँई च माया मेरी
अजब्याळि ऐकी तू मि भेंटि जा

ना  इन ना मि  टिरुमिरु कैर
अपछयाण मेर पछयाण कैरी जा

घसर-पसर हुंईं च मेर जिंदगी
अंग्वालु मां अपड़ी अंगरेण कैरी जा 

जरासि घड़ेक बैठी जा  ......

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जामा मौरी गे
« Reply #882 on: November 03, 2018, 11:52:56 AM »
जामा मौरी गे

जिबन झंडमंड ईनि व्हैग्याई
धंकततोळ मां सदनी रैग्याई
अंख्याळु हुयुं  छ्या थुड़ भौत
वै थे बी भीर भीर कैग्याई

धुँवळि धुँवळि सब  व्हैग्याई
घरबाड़ा, सगोड़ा थे ऊजाडी ग्याई
गिज्यू रै ईनि अपड़ा मां रै
वै थे बी ऊ ठमसाट कैग्याई

कटवट,खटपट इन लगि रै
माया पिछने पिछने. ऊ भागि रै
लु कै रखी छ्या ,हाता थे  ना कुच लगि रै
वै थे बी ऊ  ले भागि रै

जदबद जदबद ऊ बोल्न लग्युं
अपड़ी मां खिकलाट ऊ कन लग्युं
कन वैकि अब जामा मौरी गे
छवरा- छापर व्है की रिगण लग्युं

बालकृष्ण डी ध्यानी
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जागी जा रे माटू मेरु जागी जा रे   

जागी जा रे माटू मेरु जागी जा रे   
हुड्का,ढोल, दमाउ बाजै जागी जा  रे   

बाइसी" बि तू  "चौरास बि तू छे
जगारी बि तू  डंगरीया तू ही छे जागी जा  रे   

सवाल बि तेरु  पास जवाब बी तेरु साथ
ताल मां नचण लग जा अपडों  देब्तों को प्रताप जागी जा  रे

खुदी स्योँकार बणी की ऐजा अपड़ो को साथ दे जा
खेत खल्याण देबता हाक देंण लगी रे जागी जा  रे

हैरी भैरी होली धरा चकबन्दी जबै जगैली
अपड़ा औरृ अपड़ों का बान ऐ बारी जागी जा  रे

चकबन्दी कि जो जलि रै जागी जा  रे
रुमनी-झूमनी रै तेरु हर बगत जागी जा  रे

पलायन तू यख भत्ते व्हैजा नदरद तू जागी जा  रे
अपड़ो उत्तराखंड त्वे जगाणु तू जागी जा  रे

जनजागर हो चकबन्दी जनजागर हो
पंचमुखी दीपक जो जलि रौ चकबन्दी जनजागर हो

माता पिता गुरु देवत को आदर हो चकबन्दी जनजागर हो
म्यारा पंचनाम देबो अब जगा हो चकबन्दी जनजागर हो

तुमरो नौ लीनू मिन अब चकबन्दी .....जनजागर हो
रुमनी-झूमनी हर बगत हो तेरु चकबन्दी .....जनजागर हो

कंसासुरी थाली बाजनै,तामौ-बिजयसार को नगाड़ो
तुमरी नौबत मां जो लागि रै चकबन्दी जनजागर हो

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बात मेरी मान जा छुची मेर

उंचा धारू निस गाडों मां
एक बारी ऐजादी स्वाणी मेरा   पाडू़ मां
ढुंगु गारों मां

इतगा इम्त्यान ना ले मेर
कया च इरादु तेरु .......कया च  तेरु इरादु
इखारी जिबान इखारी माया अपड़ी
यखुलू च यख भति जाणू .......यखुलू ही यख भति जाणू

छोड़ी दे अपड़ो हट चल
एक बारी अपड़ा पाडू़ मां .....ढुंगु गारों मां

एक खोंकाल च बल जी बस ऐ जीबन
कया धरियूं च  यख तेरु च कया धरियूं च यख मेरु
खुदेण रै जाली खुद बस अपड़ी
खिकराण मिरचो जन खँखरलो  ....मिरचो जन खँखरलो

इन रूसै ना मेरी पियारी चल
एक बारी अपड़ा पाडू़  .....ढुंगु गारों

कमोली जन ये काया च अपड़ी
करार च बस दुई जूनि को ...करार दुई जूनि को
कुंद किलै हुनि च जिकुड़ी अब मेर
खडयोणु छौ जब  अपड़ो ही माटो ....अपड़ो ही माटो

बात मेरी मान जा छुची मेर  चल
एक बारी अपड़ा पाडू़  .....ढुंगु गारों

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कुच स्वास दे दे  मिथे

दिस बिति जाळा
अपडा कब परति का आळा
रैंदु इनि खैला मा
ऊ दिस कब आळा
दिस बिति जाळा ..........

अन्गरा  कब ब्याळा
कब  हैरा भैरा व्हळा ये गारा
रैंदु सदनि इनि ऐ सोच मां
अन्ध्यागोर कब छटळा
दिस बिति जाळा ..........

अल्खण लग्युँच मि बी   
कंडाळी सि झरकण लग्युँच मि बी   
ऐ झिबराट कन पसरीयूँच मैमा
कब म्यारा ऐ चित शांत व्हला
दिस बिति जाळा ..........

अल्जाट हुंयांचा ऐ बाटा
खुद दगडी  खुदयांचा ऐ बाटा
खुज्यांण किलै मिल यखुली
कुस्वाणु व्हैग्या ऐ बाटा
दिस बिति जाळा ..........

कुतरान लगि ऐ जिकुड़ी
झुसलाण लगि ऐ जिकुड़ी
कौंठ मां बैठ्युं मि यखुली
कुछलि मां बैठाण लगि ऐ जिकुड़ी
दिस बिति जाळा ..........

रैबार दे दे को मिथे
ऐ बारी कुई साथ दे दे  मिथे
यखलु ना खैंचे जान ऐ जिबन
कुच इन स्वास दे दे  मिथे
दिस बिति जाळा ..........

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त्यों लटुल्यों मा

त्यों लटुल्यों मा अल्जी गियूं
विं उंटड़ी मा लिपि गियूं
माथा कि बिंदी विंकि गोळ गोळ 
भेद अप्डी जिकुड़ी का छुछी खोळ खोळ 
त्यों लटुल्यों मा ......

अँखियुं कि भाषा विंकि मयादार
नकुड़ि मां नथुली कुच भार
कंदूड़ मां सोना को संकुल
गौळु मां गुलूबंन्द को आधार
त्यों लटुल्यों मा ......

दान्तुड़ी विंकि हैंसेलि
गिच्चुड़ी विंकि छुयांलि
जिबड़ी बोळ बळ छन जन बाल मिठेई
गलोठि  भीतर विल क्या च लुकैई
त्यों लटुल्यों मा ......

पौड़ी गौं कि वा बिगरैली
शर्म्यली वा च  नखर्याली
कमरि की लसाक विंकी पाणी सैण
कुछ मेरा इना कुछ विंका उना  विचार
त्यों लटुल्यों मा ......

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अधुरु  ही रेहन्दू

म्यार त इन ख्याल च
बल भाव्नौं कु यु उम्माल च
बौगी जांदा ओ आंसूं सर-तर
आंखों मां लुकयूं यूँ को गुठयार छन 
म्यार त इन ख्याल च  ..........

जीबन  संगी  गेठी पीड़ा
सुख दुःख दगडी कटे जांद वा
बोल सक्दि अगेर या प्रकृति
विंकु उम्माल बी ब्गे जांद जी
म्यार त इन ख्याल च  ..........

इन यूँ सब्यु मां मि बी बस्युं छौं
बथों दगडी मि बी उडी छौं
कल छळ बग्दी जांद गागा धार वा
यखुली रैण मिल मेरा पहाड़ मां
म्यार त इन ख्याल च  ..........

इन यूँ सब्यु का बिन
म्यार ऐ दिंन पुरु नी हुंदू
नि मिस्युं मि यों दगडी
वे दिन मि अधुरु  ही रेहन्दू
अधुरु  ही रेहन्दू  .... २

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छुईं त हम बहोत लग्दीन

छुईं त हम बहोत लग्दीन
जवाब त कुच बी नि आदीन
वादा भी बहोत हुन्दी ओंका
आखेर कब होलू विकास हमरू
हम त बस सोचद छन

इलेक्शन का टैम फिर ऐगैनी
बड़ा बड़ा वादा ओ कैगेनी
उम्मीदवार ऊ  अपड़ा वादों ते
कबि पूरा नि करदीन
छोल्यों मुखड़ी से हम बस हेरदीन.

बैठाग मा बैठ्यां सबि भाई लोक
अच्छी बात अपड़ी मां राई यख
एक बहुत बडू कदम उठाण पड़लू
फेसबुक बैठी कुच नि हुणुवाळू
छुईं त हम बहोत लग्दीन

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वख वै पार

मौल्यार,रूडी, चौमास ,क्वठार
ह्यूंद बी ऐगे अब आणु हुलु झड़पात

घाम ,बथों,ह्युं , ढान्डू का खेल
छेल बैठि बैठि ऐगे ओडल

बरखा भीजीगे सर्ग को प्रताप
आज,भोल,ब्याली,परस्यो कि बात

पर्सी सुबेर  दोफरा  पिछलु ओर्री अग्लू
सरासर टेम सरसरी  मैनु ह्वेगे पोर-परार

ट्टकार  चस्सू ठन्डू ओ स्वान्दू
मंततु उमल्दु ओर्री  खिटखिटू  कै जांदू

जिबान  को ये  सबि छिन चसकार
कबै यख  छिन कबै वख वै पार

बालकृष्ण डी ध्यानी
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