Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 64176 times)

devbhumi

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मयारू  ऊ अप्डू

म्यार अग्ने बी कुई निछ
म्यार पिछने बी कुई निछ
बल बस जी छै जो बी
निलू  अगास छ
म्यार अग्ने बी कुई निछ ....

हैरी भैरी गैरी धरती
एक खुटा अग्ने छ
एक खुटा पिछने छ,कै बाटा  च जाणि
कै बाटा वा अब हिटने छ
म्यार अग्ने बी कुई निछ ....

अग्ने उजालु  छया जी
पिछने अंद्यारु छया,यखुल मां बैठी
सोची मिल वा जून
किलै यखुलि  हैसनि छया
म्यार अग्ने बी कुई निछ ....

मयारू  ऊ अप्डू बिरड़ी
अध् बाटू वा कख हर्चिग्या
पञ्च बरसा को बसंत
ऐ बरसा को बितीग्या
म्यार अग्ने बी कुई निछ ....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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गौं गळयूं

गौं गळयूं कि पीड़ा
कैन नी जाणी
कैमा लगाणी
यूं  की बचाणी

जै  कुड़ी मां
जलम ल्यायी
वा  कुड़ी
खंदवार  ह्वैग्याई 

कास गौं मा सड़क हूंद
क्वी हमसे इन दूर निहूंद
यूँ सड़कियूं न इन जाल बिछेई
विकास न हम थे रीता कैग्याई

पाणी सोत अपडु  ह्वेक भी
अपडु अधिकार कख ख्वैग्याई
ई दुंन्यादारी चलण नि सिका
लाटू छ्या मि लाटू ही रैग्याई 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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अबै की बारी हे मोहन

अबै की बारी हे मोहन
श्याम थे तू लेकि ऐई
पीड़ा मेरी देखि कि तू बी
मि थे तू ना बिसरि जैई

बांसुरी कि सुर सुर मां
मिथे तू बल  इन गेड़ी जैई
राधिक ना बने ना गोपी मिथे
बल  ऊंटडी से अपड़ी सटे जैई

कनुडि का ना बने कुंडल
ना मुकटो को हीरा पन्ना
बल आस च मेरी इतगी
बनेदे मि जोडा तेर चपलों का

पैरी  की हिटन लगेलु जबै तू
तू जख जैलु मि वखि औंलू
मुखड़ी तेरी मि दिखे ना दिखे
बस तेर खुतड़ियूं मां पौड़ी रोलों

अबै की बारी हे मोहन   ........

बालकृष्ण  डी ध्यानी
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इन लागी गैल्या

त्वै थे अंग्वाल मां भेंटि
इन लागी गैल्या
जन मिथे अपडों देब्तों को
ठो  यखी मा मिल ग्याई
जन मिथे अपडों गौं मिल ग्याई
त्वै थे अंग्वाल मां भेंटि .....

बस इत्गा ही छे माया मेरी ...२
जन हैरा भैरँ बणु मा खिलदा बुरांस
त्वै थे देख्दा ऊ खिल खिल हैंसी ग्याई
जन ऐग्याई व्हाळु ऐ उमरी मां वेमां मौल्यार
त्वै थे अंग्वाल मां भेंटि .....

पोटली मां दड़यां ऊ चौंवळो को बुका
देखद ते कछि मां लुकि लालु चुलग्याई
अरसों की सूंघ कण आणि छे त्वैमा गैल्या
मेर नकुड़ी अप्डू सुख दुःख सबि बिसरिग्याई
त्वै थे अंग्वाल मां भेंटि .....

क्दगा बरसी बाद तेर मेर भेंट व्हाई गैल्या
मेरा जाणा का बाद तिन कन गुजारी ऊ छूईं लगा
बैठूँल दुईयाँ अब यखमा निरजक व्हैकि
मिथे तू अपड़ी दुःख सुख कि सरि कथा लगा 
त्वै थे अंग्वाल मां भेंटि .....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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माया लगौण  नि औंदू मिथे

माया लगौण  नि औंदू मिथे... २
कन लगाण
कै कितब मां छ्प्युं छाया बथा दे मिथे

निलू आग्स को कै छेड मां छे 
माया लुकि च  कै गेड मां छे 
जांदू छलै अफि से ही मि
इन बाटू सगेरु बथे  दे मिथे

माया लगौण  नि औंदू मिथे... २

आँखियूँ आँखियूँ को खेल च  यु
द्वि मायदार जिकुड़ी को घेर च यु
कैल बथाई मि ,ना मि मां समै
अंग्वाल मां लेकि तू जतै दे सरै

माया लगौण  नि औंदू मिथे... २

क्वी बुल्दो जियु  को जंजाल च यु
क्वी बुल्दो सुपनियु को संसार च यु
सबै कि ऐकी कि घंघतोळ मां छु
अपड़ी मजदूरी कि जोड़ तोड़ मां छु

माया लगौण  नि औंदू मिथे... २

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कैल ब्वाली

कैल ब्वाली हे गैल्या
ऊ जमानु कख लुकि ग्याई
कन कै खैंचि लाण वैथे आज
जो हता बठेक कि निस ग्याई

ना छोड़ ना ह्वै उदास
ना छोड़ तू ये अपड़ी आस
रुमक हुँयुं च आज भारी
दियू बलाले तू अपडा साथ

जिकुड़ी माँ धीर धैर औरृ
अफि दगडी बात कैर
बग्दी गदनि को सुस्याट
बगैजांद सिन्कुली किलै आज

आलू क्वी तेरु अन्वार लेकि
तेर स्वाल को जवाब लेकि
देख इन ना अब स्वास छोड़ी
अपडों से बी ह्वैजांदी छे अबेरी

कैल ब्वाली हे गैल्या

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दुई छीटगा

एक और्री दुई छीटगा
मे परि ही तू छीटगे दे जरा
छीटगा .. २ मेर कुर्ती परि तू  बनेदे  जरा
एक और्री दुई छीटगा

सौ बरसी को  पुराना  डालो
आज भेटकु भतेक देख लमडिग्याई
पहाड़ मेरु गैल्या आज ,तू कै बाट बिरदीगे
एक और्री दुई छीटगा

दुई  रंगा मां रंगी छे ये भली बुरी दुनिया
पानी का ऊ छीटगा में परि छीटका
मि  थे वा कैर गंया हैरा और्री सूखा
एक और्री दुई छीटगा

मिथे किलै कि बुरो लगलो
कबि मेरु छ्या कया ऊ
हाक दिल वैल मिथे मिल अणसुनै कै द्याई
एक और्री दुई छीटगा

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कै दगडी

कै दगडी  खेळण होलि भैजी
कख मां पेटण होलि
कैमा लगाण गुलाल आज  भैजी
ओ भैजी कख च हमरु पहाड़
भैजी कख च हमरु पहाड़

रीती रिवाज बी हर्चि
हर्चि बार तियोहरा भैजी
हर्चि बार तियोहरा
कै घार कै गौं जौं
तू बता दे मिथे आज भैजी
तू बता दे मिथे आज

संघोलू ताळो मां मिन
एक न्योत फिर लेखी ऐई
जै बी पड़ला वैथे भग्यान
झट अपडु घार दौड़  ऐई भैजी
झट अपडु घार दौड़  ऐई

कुछ बी नि रैगे यख तेर बिगर
ना रेगै वा सेवा सौंळि  भैजी
ना रेगै वा सेवा सौंळि 
आखेर बगत च आखेर स्वास भैजी
तू झट आ दौड़ी ,तू झट आ दौड़ी

कै दगडी ..............

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रतनली आँखि

छुंयालि..... २
कथे लगे जै यूँ आंखियुं न
त्यूं ऊंटडियों न

रतनली आंखि तेरी
क्दगा मयाळी  मिथे भरमिगे
पुरतो अपड़ो कैगे

छुंयालि..... २
कथे लगे जै यूँ आंखियुं न
त्यूं ऊंटडियों न

जुन की जुन्याली
ऐ मेर लजालि मुखड़ी
माया कु जालो मां मि अड़की गे

छुंयालि..... २
कथे लगे जै यूँ आंखियुं न
त्यूं ऊंटडियों न

भौळ मां आलू
टक रैबर लेकी सुबेर सुबेर
ऐ सूरज बल जी बस तेरो नौ लेकि

छुंयालि..... २
कथे लगे जै यूँ आंखियुं न
त्यूं ऊंटडियों न

त्यारी पैजबि बज्दी च छम छम
बग्दी गदनि लगणा लगि गीत
बल बस तेरु सरगम

छुंयालि..... २
कथे लगे जै यूँ आंखियुं न
त्यूं ऊंटडियों न

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इन ही मेर छूई छे

मि छौ घंघतोळ मां
देख बुरो ना मानी
रै जांदू सुधि  इन टमटोल मां
देख बुरो ना मानी

पुरणा दिन याद कैरी कि
देख बुरो ना मानी
अब त्यारु टैम निछ रे
देख बुरो ना मानी

रैंदा सबि इन टमटोल मां
देख बुरो ना मानी
जिंदगी कि या झमाझौळ थे
देख बुरो ना मानी

इन ही मेर छूई पढ़ै कि
देख बुरो ना मानी
मि सुधि लिख्वादार छौ
पढ़ै ले  बुरो ना मानी

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