शब्द
शब्दों में क्षमता होती है
हंसती है कभी वो रोती है
मजबूर कर देती है सोच ने के लिये
अपने से ही कुछ कर ने के लिये
किसी को अपना बना देती
किसी को वो परया कर देती है
कल्पना की उड़ान में उड़ने वाली
यथार्त की पहचान भी करा देती है
सामर्थ्य भरा है उस मे सारा
गुण अलंकारों का उसका खेल न्यारा
सजती है संवरती अपने से वो
अपने आप से ही वो निखर आती है
ध्रव तारे जैसा सितारा है वो
अँधेरे में दीपक का सहारा है वो
ज्ञान की है वो बंद ऐसी कुंजी
जिसको पाने में ना लगती पूंजी
बिखरे पड़े हैं समझना है बस
उन मे गोते लगाकर तैरना है बस
भाव सागर भी वो पार कर देंगे
उन शब्दों को समेटना है बस
शब्दों में क्षमता होती है
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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