Author Topic: Batuli From Dayal Pandey: दयाल पाण्डे जी की बाटुलि  (Read 15307 times)

पंकज सिंह महर

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 शायद ??? भाभी जी को समर्पित

सोचा न था की तुम वही हो
सुंदर हंसमुख भावुक लड़की
उर मे समेटे स्नेह संसार
जन्नत वहीं जहां कहीं हो
                    सोचा न था की तुम वही हो
शायर की शायरी तुम हो
कवि की मधुर कल्पना
संगीत के सुरों में बैठी
गीत, गजल ठुमरी तुम ही हो
                      सोचा न था की तुम वही हो
मन करता है कि पास रहूं
खेलूं संग परिहास करूं
टूटे-जुड़े हर पल तुमसे
अर्पण करू ये सांस तुम ही को
                       सोचा न था की तुम वही हो
ख्वाबो में पाया जिसको
पलकों में बसाया जिसको
आँगन को महकाया जिसने
इन्द्र लोक की हूर तुम ही हो
                      सोचा न था की तुम वही हो
चुनौतियो से मिलाया है
आत्मविश्वास बढाया है
प्रेरणा और प्रोत्साहन की
मेरी आश - विश्वास तुम ही हो।

Raje Singh Karakoti

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Dhanyavaad sirji, for your prompt reply.
please keep writing in kumaoni only.
 
Karakoti ji Namaskaar,
I am not very fleunt in garwali but I use to write in Kumaoni, these days I am prcticing garwali also hopfuly after few day able to write in garwali also,

Devbhoomi,Uttarakhand

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बहुत शानदार कवितायेँ हैं वा मजा आ गया, पोस्ट करते रहे !

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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आदरनीय पंकज महर जी बहुत बहुत धन्यबाद मेरे बिखरे पन्नो को संजोने के लिए और जाखी जी तथा राजे सिंह जी का भी धन्यबाद इस होंस्लाप्जाही के लिए, अपनी भावनाओ को सब्दो में लाने की मेरी कोशिश जारी रहेगी,

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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प्रस्तुत है एक कुमाउनी गीत -

घुट -घुटा बटुली लागी यो  परदेश मा
मेरी सुवा डानो में होली घस्यारी वेश मा

चौमासी का दिना होला
लागी होली हौली
तन लै भिजिया होलो मन भीजी रौलो
डबडबान आंख होला हिय भरी रोला
एकली परानी सुवा मन झुरी रोला

पापी दिन काटी नई यो परदेश मा
मेरी सुवा .......................

पांख हुना उडी जानो लहै जानो पहाडा
सुवा कैन देखि उना झट डाना पारा
सैपो म्यार छुट्टी दियो बस एकबार
मुख मुलैजी रुला रोज तुमोरा
 
घुट -घुटा बटुली लागी यो  परदेश मा
मेरी सुवा डानो में होली घस्यारी वेश मा

विनोद सिंह गढ़िया

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नमस्कार पाण्डे सर,
बहुत अच्छा कुमाउनी गीत लिखा है, आजकल चौमास के दिन चल रहे हैं और घस्यारी लोग भी आजकल घास काटने में मस्त होंगे ! मुझे तो बहुत अच्छा गाना लगा और पहाड़ के वो चौमास के दिन याद आ गए.............

Vinod Jethuri

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पान्डे जी नमस्कार ! बहुत ही सुन्दर रचनायें बस योंही लिखते रहियेगा.. आपको बहुत बहुत सुभकामनाये.. "जय उत्तराखन्ड"

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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विनोद जी and जेथूरी जी  नमस्कार,बहुत बहुत धन्यबाद आपकी सराहना के लिए,

Pawan Pahari/पवन पहाडी

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दयाल जी की कविताओं को मैंने पहले भी सुना है. मैं इस पे क्या लिख सकता   हूँ. उनकी तारीफ में जो लिखू वो कम है.

jagmohan singh jayara

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कवि के लिए कोई कोना दूर नहीं.....कल्पना जगि रहे....
लिखो दयाल पाण्डे जी....दिल खोलकर...कवि मित्र तो यही कहे....
बाटुली....आपको....मुझे तो पहाड़ की बाडुली लगे....
रह रह कर पहाड़ प्रेम.....कसक में...ख़ुशी में.....
हमारे मन में अगर जगे......पहाड़ की खुद भि लगे....
"जि ज्ञा सु"
   

 

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