कुण्डलियाँ
मेरा पहाड़ तुम्हें बताओ, राजधानी की बात
बारिश पड़े बरसात में, दिल्ली झट रुक जात
सड़क ऊपर से भली दिखे, पाँव धरे धस जात
पाँव धरे धस जात ले कमर तक डूबे
बस, कार गर पास चले तो हाथ मुह भी धोले
कलयुगी प्रजातंत्र की बड़ी अनोखी बात,
प्रजा मुख ताके खड़ी नेता सब ले जात
नेता सब ले जात और आश्वाशन दे जावे
अगली बार जिताओ तो कुछ तुम्कैं दे जावे
संसद महासंग्राम है जो जीते सो जाने
कही मेज कुर्शी चले कही हैं जूते खाने
कही हैं जूते खाने, सो हेल्मट पहनकर ही जाना
देश बचे न बचे तुम अपनी जान बचाना