Author Topic: Batuli From Dayal Pandey: दयाल पाण्डे जी की बाटुलि  (Read 15308 times)

Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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jai ho dajyu .. in sabko pad kar to mujhe khud batul lagne lag gaye hai..


dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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        महंगाई
तू डायन छै या कसाई छै
जानि को मुलुक बै आई छै
गरीबो पेटम लात मारी
तू सरकार की  पठाई  छै
पेट्रो डीजल पैलीकै खाई गिची
अब साग पात ली खाई है लो
गैस महेंग चुली निमाण ही गे
दाव स्वेणा देखिन है गे
चीनी चसक देखू नै
चाय धो ल्यून है रै
ढूध आब ३५ लै गो
पुसू चावो लै महंग है गो
गरीबो दुश्मण बनी बेर
तू घर घर आई छै
तू डायन छै या कसाई छै
सरकार की पठाई छै
   

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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एक देश भक्ति गीत आपके नज़र

बन्दे मातरम बन्दे मातरम
हे भारत भूमि तेरी बन्दे मातरम
हिमाला मुकुट तेरे पहाड़ विशाल छू
  खुटा तवा सिंद देखो सागर कमाल छू
हाथ फैली रई येका पूरब पश्चिम
बन्दे मातरम बन्दे मातरम
हे भारत भूमि ..............
अलग छी बोली भाषा, अलग छी नामा
अलग- अलग कुड़ी अलग छू कामा
जस सारे फूल गथया राइ माला एकम
बन्दे मातरम बन्दे मातरम
हे भारत भूमी ...............
सीमा में पहर दिनी फोजिया जवान छी
धरती चीरना राइ कर्मठ किसान छी
विज्ञानी खोजने राइ पानी जूनम
बन्दे मातरम बन्दे मातरम
हे भारत भूमी .............
आंख नी दिखा पडोसी मानी जा तू बाता
तीन बार आइ गे छै मुक्क खाई लाता
खुत नी धारण ड्यूला आपु जागम
बन्दे मातरम बन्दे मातरम
हे भारत भूमि तेरी बन्दे मातरम

 

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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               कुण्डलियाँ
मेरा पहाड़ तुम्हें बताओ, राजधानी की बात
बारिश पड़े बरसात में, दिल्ली झट रुक जात
सड़क ऊपर से भली दिखे, पाँव धरे धस जात
पाँव धरे धस जात ले कमर तक डूबे
बस, कार गर पास चले तो हाथ मुह भी धोले

कलयुगी प्रजातंत्र की बड़ी अनोखी बात,
प्रजा मुख ताके खड़ी नेता सब ले जात
नेता सब ले जात और आश्वाशन दे जावे
अगली बार जिताओ तो कुछ तुम्कैं दे जावे

संसद महासंग्राम है जो जीते सो जाने
कही मेज कुर्शी चले कही हैं जूते खाने
कही हैं जूते खाने, सो हेल्मट पहनकर ही जाना
देश बचे न बचे तुम अपनी जान बचाना




 
 
 

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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बरश बरश फिर और बरश
अबके बरश लगातार बरश
स्नान करा कोम्मन wealth को
दुरुस्त करा आयोजको के हेअलथ को
पैसा नहीं पानी बहा दो
भ्रस्टाचार को हवा न दो
तू घट न घटा और बड़ा दे
तनमन को जलामय करदे
अबके बरश कुछ ऐसे बरसों
लालच ,ईर्ष्या, क्रोध सब धो दो
निर्धन - धनवान सब एक बना दो
   

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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तू तांडव न मचा ए निष्ठुर परिवर्तन
अँधेरा न कर किसी आँगन में
दीप न बुझा किसी घर में
आह न भर किसी मन में
बदलाव ही लाना है तो धरती को चौड़ा कर दे
रेगिस्तान में हरियाली भर दे,
बंजर में फसलें उगा दे
नदी नालूं को पानी से भर दे
परिवर्तन ही लाना है अगर,
क्रोध ,लोभ ,लालच मिटा दे
झूठ फरेब को दिलो से हटा दे
इमानदारी का पाठ सबको पड़ा दे
परिवर्तन ही लाना है अगर
दुनियां से दुराचार हटा दे
प्रसाशको से भ्रष्टाचार हटा दे
सांसदों को शिष्टाचार शिखा दे 
 
 
 

सत्यदेव सिंह नेगी

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करार जबाब है गुरूजी क्रूर परिवर्तन को
इस उम्मीद में की जबाब आयेगा

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अति सुंदर कविताये हमारे वरिष्ठ सदस्य दयाल पाण्डेय द्वारा!

दयाल जी के कविताओ में .. पहाड़ के बाटुली जरुर झलकती है !

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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  मोहीले गिर्दा
कहाँ गए मोहीले गिर्दा
कहाँ गया वो अपनापन
ईजा - बबा की मोहिनी भाषा
बरकत दे जोशीला मन
कभी देखो तुम्हें जनगीतो में
कभी प्रखर कविताओ में
कभी मुखर आंदोलनों में देखों
कभी जन भावनाओं में
झलक एक फिर से मिल जाए
तड़प रहा है ये तन मन
कहाँ गए मोहिले गिर्दा
कहाँ गया वो अपनापन
जैता में हो दीगो लाली में हो
उत्तराखंड में हो हिमाला में हो
हुड़के की थाप मुरली की धुनों में हो
झोडा चाचरी भगनोलों में हो
रiह तुम्हारी चलते चलते कर लेंगे जीवन यापन
कहा गए मोहीले गिर्दा
कहाँ गया वो अपनापन   

दीपक पनेरू

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बहुत ही मार्मिक शब्दों का प्रयोग किया है सर, अपनी भावना को कविता का ऐसा रूप देना बहुत ही कठिन काम है, बहुत बहुत dhanyabad

   मोहीले गिर्दा
कहाँ गए मोहीले गिर्दा
कहाँ गया वो अपनापन
ईजा - बबा की मोहिनी भाषा
बरकत दे जोशीला मन
कभी देखो तुम्हें जनगीतो में
कभी प्रखर कविताओ में
कभी मुखर आंदोलनों में देखों
कभी जन भावनाओं में
झलक एक फिर से मिल जाए
तड़प रहा है ये तन मन
कहाँ गए मोहिले गिर्दा
कहाँ गया वो अपनापन
जैता में हो दीगो लाली में हो
उत्तराखंड में हो हिमाला में हो
हुड़के की थाप मुरली की धुनों में हो
झोडा चाचरी भगनोलों में हो
रiह तुम्हारी चलते चलते कर लेंगे जीवन यापन
कहा गए मोहीले गिर्दा
कहाँ गया वो अपनापन   
 

 

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