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कालिदास साहित्य मा हास्य -व्यंग्य
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(व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का मिऴवाक : ( भाग - 23 )
भीष्म कुकरेती
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महाकवि कालिदास संस्कृत का नाटक शिरमौर छन। ऊंको महाकव्य , गीतों में प्रतीकों से सटीक बिम्ब बणदन, कालिदासन शास्त्रीय शैली अपणाइ। कालिदास का नाटकुं माँ चरित्र अपण पद अर जाती का हिसाबन व्यवहार करदन तो कालिदास का नाटकुं माँ
हास्य -व्यंग्य करणो काम विदूषक /भांड करदन। किन्तु विदूषक का हास्य बि परिष्कृत हास्य व्यंग्य च। बलदेव प्रसाद उपाध्याय (संस्कृत साहित्य का इतिहास , 1965 , शारदा मन्दिर प्रकाशन ) लिखदन बल कालिदास का कवितौं माँ हास्य व्यंग्य पर्याप्त मात्रा माँ च और उंका नाटकुं मा वीम का सिर बि दर्शकों तैं हंसाण मं कामयाब च , हास्य च तो व्यंग्य बि ऐई जांद। गोविंदराम शर्मा (संस्कृत साहित्य की प्रमुख प्रवर्तियाँ, 1969 ) लिखदन की कालिदास का हास्य प्रयोजन बि श्रृंगार कारस का अनुकूल च।.
जे . तिलकऋषिन अपण एक लेख ' THE IMAGES OF WIT AND HUOUR IN KALIDAS'S AND SUDRKA'S DRAMAS ' मा कालिदास अर शूद्रक का नाटकों माँ व्यंग्य की पूरी छानबीन अर व्याख्या कार। कालिदास कृत अभिज्ञान शाकुंतलम का रूपान्तरकार विराजन बि कालिदास कृत ये नाटकम हास्य व्यंग्य का कथगा इ उदाहरण देन।
अनन्तराम मिश्र 'अनन्त ' अपण ग्रन्थ 'कालिदास साहित्य और रीति काव्य परम्परा (लोकवाणी संस्थान , 2007 , पृष्ठ 297 ) मा लिखदन बल 'हास्य -व्यंग्य क्षेत्र में रीतिकवि कालिदास से अधिक सफल हैं। यद्यपि कालिदास ने नाटकों में विदूषक के माध्यम से हास्य रस उद्भावना के विभिन्न प्रयास किये हैं तथापि उनमे हास् भाव रीतिकाव्य के जैसे स्फुट और विशद नही हैं ' ।
सुषमा कुलश्रेष्ठ (कालिदास साहित्य एवं संगीत कला, 1988 ) मा बथान्दन बल कालिदास साहित्य मा हास्य भरपूर च (भरत कु नाट्य शास्त्र माँ हास्य माँ ही व्यंग्य समाहित च ) .
कालिदास का विदूषक अंक मा हास्य व्यंग्य पैदा करणो बाण कालिदासन अलंकार , उपमाओं को बढ़िया प्रयोग कर्यूं च। विदूषक की भाषा में अपभ्रंश व प्राकृत शब्दावली प्रयोग हुयुं च।
विक्रमोर्वशीय का तिसरो अंक मा विदूषक का भोजन की कल्पना व्यंग्य को बहुत सुंदर उदाहरण च जब भोजन व चिन्नी -मीठा प्रेमी प्रिय विदूषक ' चिन्नी ' की याद माँ चन्द्रमा की तुलना चिन्नी -पिंड से करद (ही ही भो खांडमोदासस्सिरियो उदीदो रा। ... ) ।
'मालविकागणिमित्र' मा बि विदूषक का हाव भाव व वार्तालाप हास्य -व्यंग्य पैदा करद ( तिलकऋषि)
शकुंतलम (दुसर अंक ) मा बि विदूषक का भाव भंगिमा , वार्ता से हास्य व्यंग्य पैदा हूंद। विदूषक का वार्तालाप शब्द अर मच्छीमार का शब्द सामयिक प्रशासन अर समाज पर व्यंग्य पैदा करदन।
कालिदास का सभी नाटकों में हास्य व्यंग्य उतपति का वास्ता विदूषक ही मुख्य चरित्र च। कालिदास का नाटकुं मा मुख्यतया उपमा अलंकार का प्रयोग हास्य -व्यंग्य उत्पन करद।
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/ 2/2017 Copyright @ Bhishma Kukreti
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Jaspur Ka Kukreti