Author Topic: Dr Renu Pant's Poem & Article - डॉक्टर रेणु पन्त की कविताये एवं लेख  (Read 3403 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We will be posting here Poem & Article written by our Member Dr Renu Pant ji. Dr Renu Pant has written various Book. One of her Book 'Phir Pankh Lage Pahad Ko'. (
फिर पंख लगे पहाड़ को )

A brief introduction about Dr Renu Pant in Hindi here :

डॉक्टर रेणु पन्त


शिक्षा  - एम ए (इतिहास) बी एड, एम  फिल, पीएचडी (एम् फिल में मेरठ विश्वविधालय में सर्वोच्च स्थान एव स्वर्ण पदक) शिक्षा  देहरादून व् मेरठ  विश्व विधालय से ! अत्यंत मेधावी व कई स्कालरशिप प्राप्त !

अभिरुचि - कविता व कहानी लेखन, संगीत, फैशन डिजाइनिंग, पेंटिंग, पर्वतारोहण, (जून 2009 में पर्वतारोहण अभियान  के अंतर्गत लाका ग्लेशियर पहुची)

प्रकाशन : इतिहास विषय से सम्बंधित लेख समय समय पर प्रकाशित, देश की विभिन्न पत्रिकाओ, अखबारों में रचनाओ का प्रकाशन! कवि गोष्ठियों व साहित्यिक गतिविधियों में सहभागिता!


फिर पंख लगे पहाड़ नामक कविता संग्रह प्रकाशित

विशेष -  संसदीय कार्य मंत्रालय भारत सरकार, नयी दिल्ली द्वारा आयोजित संसद भवन में युवा संसद का परिक्षण प्राप्त किया व् युवा संसद के लिए पुरुस्कृत!

सम्प्रति - प्रथम श्रेणी अधिकारी भारत सरकार

Email - dr.renupant12@gmail.com

She hails from District Bageshwar.

Dr Pant Blog here is

http://renupant.blogspot.in/



M S Mehta



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  फिर पंख लगे पहाड़ को
  हर समय, हर युग में
 पहाड़ कभी जड़ नहीं थे
 पहाड़ कभी पत्थर नहीं थे, और
 पहाड़ सिर्फ पहाड़ भी नहीं थे
 चेतना के आकार थे
 पहाड़ पर जब-जब बजी बांसुरी
 गूंजा  मधुरिम स्वर
 तब-तब पहाड़ को पंख लगे
 और पहाड़ उड़ने लगा।
 जब-जब पहाड़ पर
 युवा पक्षियों ने
 विरह से आतुर हो
 अपने पंख फड़फड़ाये
 तब-तब पहाड़ को पंख लगे
 खुले आकाश में उड़ने के लिए
 और पहाड़ उड़ने लगा।
 यान में बैठे राक्षस ने
 जटायु पक्षी के पंख काट
 उसे किया था लहू-लुहान
 तभी से पक्षी खामोश नहीं बैठे हैं
 नये-नये पंख लेकर भरते हैं उड़ान
 किसी से भी टकरा जाने को
 और, तब-तब पहाड़ को पंख लगे
 और पहाड़ उड़ने लगे।
 काटे होंगे किसी युग में
 इन्द्र ने पर्वतों के पंख
 और डर कर छिप गया होगा
 मैनाक पर्वत समुद्र में
 क्योंकि पहाड़ हिंसक नहीं होते
 पहाड़ पर शान्ति पाने,
 मुक्ति और वैराग्य पाने को
 बड़े-बड़े ज्ञानी-अज्ञानी
 धूनी रमाते हैं
 इसीलिए पहाड़
 आज भी जीवित हैं, साक्षात हैं
 लाखों वर्षों से आसमान छूता है
 लेकिन घमण्डी इन्द्र
 कहीं भी, कहीं नहीं पूजता  है।
 पहाड़ की तो बात क्या
 पत्थर का छोटा टुकड़ा भी
 ईश्वर के रूप में घर-मंदिर में
 जन-जन से पुजता है।
 पहाड़ तो सदैव जीवन रक्षा करता है
 कभी उसे पवन पुत्र ने उड़ाया
 और कभी कृष्ण ने, अपनी उंगली
 पर उठाया।
 आज, फिर पंख लगे हैं पहाड़ को
 और
 पहाड़ उड़ने लगा है
डा0 रेणु पन्त

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dr Renu Pant's Book Phir Pankh Lage pahad ko was released by then Governor of Uttarhkand Marget Alva.



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रेम
कैसे परिभाषित करू 
कि प्रेम क्या है ?
प्रेम की अपनी होती है भाषा
उसका अपना होता है स्वभाव
प्रेम नहीं है इतना सीमित
कि उसे किसी परिभाषा की सीमा में
कैद कर दूं ।
यह वह सुगन्ध है
जो कांटो के साथ भी
आजीवन रहती है ।
प्रेम चिन्तन हैं, प्रेम मनुहार है
ईश्वर का दिया उपहार है
प्रेम बोया नहीं जाता, उगता है
कभी हॅसी में
कभी आंसुओ में ढलता है
कोई भी दूरी, कोई अन्तराल,
बदरी के समान
प्रेम के उजाले को
ढक नहीं सकता
प्रेम की परिभाषा कौन गढ सकता है ?
स्पर्श का सुख, दृष्टि का सुख
वियोग का सुख -
प्रेम की कल्पना ही
कितना कुछ दे जाती है
प्रेम बूँद  है, सागर है
प्रेम दर्शन है, मनोविज्ञान है
प्रेम त्याग है, अभिलाषा है
प्रेम सृजन की आशा है
कभी खिला फूल
तो कभी तपती हुई रेत
कभी टीस तो कभी मुस्कान
प्रेम के अनगिनत आयाम हैं !
जो प्रेम को जीता है
अपने अन्दर पालता है
आँखों  में  स्वप्न  बसाता है
पाने की बेचैनी में
अदभुत  सुख पाता है
प्रेम को वही समझ पाता है ।
प्रेम शाश्वत सत्य है !
जो मृत्यु के बाद भी
शेष रह जाता है । 
डा0 रेणु पन्त ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रेम की उम्र
 तुम
 चाहे कितनी भी
 कोशिश कर लो
 मेरे आकर्षण से
 बच नहीं सकते
 बार-बार छिटक
 देते हो मेरा हाथ
 यह कहकर
 कि यह प्रेम करने की
 उम्र नहीं है ।
 पर कैसे समझाऊ तुम्हें
 कि प्रेम करने की
 कोई उम्र नहीं होती
 यह यौवन की दहलीज
 पर पैर रखते भी
 फूट पडता है ।
 और चादी होते बालों के
 बीच से भी
 झाकता है
 तुम्हारी सारी कोशिशें
 व्यर्थ जायेगी ।
 क्योकि  कि जानती हू
 कि मन ही मन
 तुम मेरे
 आकर्षण में बधे हो
 मेरी खूबसूरत बडी-बडी 
 आखों में तुम्हें
 अपनी ही छवि दिखती है
 मेरे भोलेपन,मेरी बातों में
 तुम न चाहते हुये भी
 खो जाते हो
 और अक्सर
 सिर झटककर
 सोचते हो
 इस उम्र में
 यह प्रेम का
 अहसास सही नहीं है
 पर कैसे समझाऊ, तुम्हें
 कि प्रेम किसी सीमा में
 बधा  नहीं होता
 वह तो फूट पडता है
 कहीं भी
 उम्र के किसी भी पडाव पर ।
 दुनिया के रिश्तों-नातों
 की बार-बार सौगन्ध
 दिलाते हो
 पर जानती हूँ!
 उन सभी रिश्तों से उपर
 मेरी आखों से तुम्हारा
 अटूट रिश्ता है ।
 तुम्हारा  बार-बार
 मुझे
  प्रेम के विरूद्,
 समझाना
 पर तुम क्या जानो
 तुम्हारे उन्हीं तर्कों से
 मेरा-तुम्हारा
 प्रेम और गहराता है ।
 तुम जानबूझकर
 मेरी आँखों में
 नहीं देखते हो
 क्योंकि डरते हो
 कि तुम्हारी आखों में
 प्रेम का जो समुद्र
 मेरे लिए
 हिलोरे ले रहा होता है
 कहीं मै उसे देख न लू ।
 पर सब जानती हू मैं
 तुम असीम प्रेम
 करते हो मुझसे
 और तुम्हारा ये
 शिष्ट आचरण
 और गम्भीर आवरण
 भी तुम्हारी भावनाओं
 को छिपा नही पाता ।
 
  डा0 रेणु पन्त

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बलिदानों से बना राज्य

यह राज्य बना बलिदानों से!
    विकसे संस्कृति अरमानो से!
          दुष्कर जीवन है पहाड़ का,
कंटकमय रहना है पहाड़ का!
       यहाँ चित्र उभरते कैनवास पर
             यहाँ नदियाँ गाती है गीत मधुर!
हवा सुनाती है राग अलग
     गाँवों का सौन्दर्य सजग!
         देखकर पलायन प्रतिभा का
जब राज्य बना आशा जागी
    सूरज ने भी निद्रा त्यागी!
         यह पावन धरती हिमगिरी की,
यह देव भूमि आस्थाओ की!
       यहाँ सदा नीरा नदियाँ बहती
          उत्तराँचल की सुन्दरता कहती!
गंगा यमुना का उद्गम यह,
        गंगोत्री का उल्लास यहाँ
            पर्वत जीवन का यथार्थ है यह!
यह राज्य नहीं है तीर्थस्थल
       ऋषियों मुनियों का तपस्थल है!
              दुनिया के सारे पुण्य धाम,
बद्री और केदार धाम!
       आस्था-श्रद्धा के केंद्र यहाँ,
          लगता विश्वासों का कुंभ यहाँ!
यह राज्य नहीं, है धर्म धाम,
     होते विनष्ट सब तामसी काम!
            यहाँ नंदा देवी की राजजात,
यहाँ बात बात में नयी बात!
        यहाँ वादी है यहाँ घाटी है,
         आश्रम मठ की परिपाटी है!
इसका जल पवन विशुद्ध रहे
         आचरण हमारा शुद्ध रहे
             हर दूषण और प्रदूषण से
               यह राज्य हमारा मुक्त रहे!

डॉक्टर रेणु पन्त


Rajen

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प्रेम की उम्र
   यह यौवन की दहलीज
 पर पैर रखते भी
 फूट पडता है ।
 और चादी होते बालों के
 बीच से भी
 झाकता है
  ।
 
  डा0 रेणु पन्त

अति उत्तम.

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पहाड़ बौना नहीं होता

पर्वत पर
लफ्फाजी नहीं चलती
वहाँ क्ष्रम जीता है
वहाँ कमर झुक जाती है
दूध का वर्तन को
या कपड़ो का गट्ठर
पीठ पर लादे-लादे।
       पर पहाड़ कभी नहीं झुकता
       वह सिर्फ
       प्रेम की गर्मी पाकर
       पिघलता है।
पहाड़ कभी बौना नहीं होता
वह बौनों को भी
ऊँचाई देता है
सिर पर बिठाता है।
       पर्वत पर
       सूरज की गर्मी है
       हिम का मुकुट है
       पर सुलगते हुए सवाल है,
कुछ लोग
पहाड़ को भुनाते है
वातानुकूलित कक्षों में
संगोष्ठियों करते है
और कुछ लोग पहाड़ पर
कंक्रीट के महल खड़े कर
अर्थ ही अर्थ पाते है
      पहाड़, फिर भी पहाड़ ही रहता है
       स्वाभिमान का प्रतीक। 

By - डॉक्टर रेणु पन्त
   

हेम पन्त

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Bahut sundar Kavitaaye likhi hain, Renu ji ne..

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By Dr Renu Pant

बहुत कठिन हूँ मै

कितना कठिन है तुम्हारे लिए
मेरे चेहरे पर मुस्कान
बनाये रखना।

मै जानती हूँ
कि तुम सदैव कोशिश करते हो
मै रूठने न पाऊ
लेकिन फिर भी
मै रूठ जाती हूँ बार बार
किसी न किसी बार पर
यह देखने के लिए
कि तुम मुझे कैसे मनाते हो,

मै जानती हूँ
मुझे तुम मना लोगे!
तुम्हारे लिए बहुत कठिन है
मुझे समझ पाना
इसलिए तुम मुझे
आघन्त पढते हो
और समझने का स्वांग भरते हो

तुम्हारी कोशिशो पर
मुझे ख़ुशी होती है।
मै तुम्हारी क्या हूँ ?
तुम्हारी मित्र
लेकिन बहुत टफ, बहुत कठिन

जब मै चीखती हूँ
चिल्लाती हूँ
तब तुम्हारी  विवशता
तुम्हारे चेहरे पर झलकती है
एक निश्छल, सौम्य चेहरा
कितना उद्धिग्न  हो जाता है
मेरे लिए।

तब में चाहती हूँ
तुम्हारी कठोरता
भिगो दे मुझे पूरा का पूरा
अपने अहसासों से।

तुम्हारे लिए कितना कठिन है
मुझे प्यार करना
क्योकि
मेरा मिजाज
और प्यार का मिजाज
एक जैसा है

दोनों को समझ पाना
आसान नहीं है
लेकिन में चाहती हूँ
तुम्हारा प्यार
मेरे लिए कठिन न  हो

सचमुच
मै बहुत कठिन हूँ
तुम्हारे लिए भी
और ..........


 

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