Author Topic: Dr Vidhya Sagar Nautiyal, पहाड़ का प्रेमचंद - विद्यासागर नौटियाल  (Read 10891 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dhaad - धाद विद्यासागर नौटियाल पर युवा हिंदी कवि शिरीष कुमार मौर्य की कविता.
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 विद्यासागर नौटियाल के नाम
 
 काली फ्रेम के चश्मे के भीतर
 हँसती
 बूढ़ी आँखें
 
 चेहरा
 रक्तविहीन शुभ्रतावाला
 पिचका हड़ियल
 काठी कड़ियल
 
 ढलती दोपहरी में कामरेड का लम्बा साया
 उत्तर बाँया
 जब खोज रही थी दुनिया सारी
 तुम जाते थे
 वनगूजर के दल में शामिल
 ऊँचे बुग्यालों की
 हरी घास तक
 
 अपने जीवन के थोड़ा और
 पास तक
 
 मैं देखा करता हूं
 लालरक्तकणिकाओं से विहीन
 यह गोरा चिट्टा चेहरा
 हड़ियल
 लेकिन तब भी काठी कड़ियल
 
 नौटियाल जी अब भी लोगों में ये आस है
 कि विचार में ही उजास है !
 बने रहें बस
 बनें रहें बस आप
 हमारे साथ
 हम जैसे युवा लेखकों का दल तो
 विचार का हामी दल है
 
 आप सरीखा जो आगे है
 उसमें बल है !
 उसमें बल है !
 
 शिरीष कुमार मौर्य की कविता युवा कवि लेखक और एक्टिविस्ट विजय गौड़ के ब्लॉग लिखो यहां वहां  से साभार.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 पहाड़ के ‘प्रेमचंद' विद्यासागर नौटियाल नहीं रहे  शालिनी जोशी

हिंदी के जाने-माने उपन्यासकार और कहानीकार विद्यासागर नौटियाल का निधन हो गया है. वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे.
उनका जन्म 29 सितंबर 1933 को टिहरी के मालीदेवल गांव में हुआ था.
  इससे जुड़ी ख़बरें    ‘उत्तर बायां है’, ‘यमुना के बागी बेटे’, ‘भीम अकेला’, ‘झुंड से बिछुड़ा’, ‘फट जा पंचधार’, ‘सुच्ची डोर’, ‘बागी टिहरी गाए जा’, ‘सूरज सबका है’ उनकी प्रतिनिधि रचनाएं हैं.
’मोहन गाता जाएगा’ उनकी आत्मकथात्मक रचना है. पहाड़ के लोकजीवन पर आधारित टिहरी की कहानियां उनका लोकप्रिय कथा संग्रह है.
उनकी रचनाओं का कई देशी-विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ और हमेशा ही उनका एक बड़ा पाठक वर्ग रहा.
वकालत में डिग्री हासिल करने के बाद उन्होने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एमए किया था.
जन संघर्ष से भी था सरोकार
     विद्यासागर नौटियाल की उपस्थिति इसलिए भी महत्वपूर्ण थी कि वो लेखन के साथ-साथ राजनीति और जन संघर्षों से भी सक्रियता से जुड़े रहे.
13 साल की उम्र में वो गढ़वाल में राजशाही और सामंतवाद विरोधी आंदोलन में शामिल हो गए थे और जेल भी गए.
उनका काफ़ी समय आज़ाद भारत की जेलों में बीता. वो ऑल इंडिया स्टुडेंट्स फ़ेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी चुने गए.
   विद्यासागर नौटियाल   <blockquote> "नेता चाहे भाजपा का हो या कॉंग्रेस, किसी नेता को भी साहित्य का क..ख..ग भी नहीं पता है."
 </blockquote>      अपनी राजनीतिक सक्रियता के कारण उन्होंने कुछ वर्षों के लिए अपने साहित्यिक रुझान को भी पीछे धकेल दिया था.
वो साहित्य, समाज और राजनीति के आपसी सरोकार में गहरा विश्वास रखते थे और हिंदी पट्टी में साहित्य की उपेक्षा से काफी चिंतित रहते थे.
हाल ही में एक इंटरव्यू में उन्होंने ये कहकर चौंका दिया था कि, “नेता चाहे भाजपा का हो या कॉंग्रेस, किसी नेता को भी साहित्य का क..ख..ग भी नहीं पता है.”
विद्यासागर नौटियाल इन दिनों देहरादून में अपने परिवार के साथ रहते थे और उत्तराखंड के हालात से क्षुब्ध थे.
उत्तराखंड के 10 साल पूरे होने पर उन्होंने अफ़सोस व्यक्त करते हुए कहा था कि, “राज्य बनने से इतना ही फ़र्क पड़ा कि बड़े माफ़िया की जगह छोटे माफिया ने ले ली. “
हाल ही में उन्हें पहले श्रीलाल शुक्ल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.हिंदी के सुपरिचित कवि मंगलेश डबराल ने उनके निधन पर गहरा शोक प्रकट किया है.
उनका कहना था, “उनके दो बड़े योगदान हैं वामपंथी आंदोलन की स्थापना और सामंतवाद विरोधी आंदोलन.उनकी रचनाओं में प्रेमचंद की यथार्थवादी परंपरा का सार्थक विस्तार मिलता है.वो पहाड़ के प्रेमचंद थे.”
मशहूर साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी का कहना है, “वो काफी ऊर्जावान साहित्यकार थे.उनका जाना इसलिये भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि काफी कुछ अधूरा रह गया .वो अभी भी लिख ही रहे थे और उनके पास लिखने के लिये काफी कुछ था. उनसे काफी उम्मीदें थी.पहाड़ के जीवन और समाज का जैसा चित्रण उन्होंने किया वो दुर्लभ है.”

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड के 10 साल होने पर फफक पड़े थे विद्यासागर
Story Update : Tuesday, February 14, 2012    2:26 AM
[/t][/t] देहरादून। उत्तराखंड राज्य स्थापना के 10 साल पूरे होने पर मशहूर कथाकार विद्यासागर नौटियाल फफक पड़े थे। वह पृथक राज्य के समर्थक थे, लेकिन जो स्वरूप प्रदेश ने अख्तियार किया था, उससे वह बेहद व्यथित थे। कई कार्यक्रमों में उन्होंने अपने इस दर्द को जाहिर भी किया। एक कार्यक्रम में तो यहां तक बोले-यूपी और उत्तराखंड में फर्क बस इतना है, पहले बड़े माफिया का राज था, अब छोटे का है।
उत्तराखंड की एक दशक की यात्रा में उन्हें सबसे ज्यादा दुख इस चीज से था कि पलायन, बेरोजगारी, बिजली, पानी, सड़क जैसे जिन मुद्दों से पहाड़ का जन-जीवन त्रस्त है, वह वहीं-के-वहीं हैं। राजनेताओं की झोली भर रही है और आम आदमी की बात करने वाला कोई नहीं। कई मुद्दों पर कई बार वह बैठते-इससे अच्छे तो यूपी के जमाने में थे। विद्यासागर नौटियाल को पहाड़ का ‘प्रेमचंद’ कहा ही इसलिए जाता था क्योंकि उन्होंने अपनी कहानियों में पहाड़ के गांवों की, यहां के आम आदमी की बात कही।

‘कम्युनिस्ट कभी रिटायर नहीं होता....’
‘कम्युनिस्ट कभी रिटायर नहीं होता....’। मशहूर कथाकार विद्यासागर नौटियाल बात-बात पर इस वाक्य को दोहराते थे। ‘लाल सलाम’ उनके लिए महज दो शब्द नहीं थे। उन्होंने कम्युनिस्ट विचारधारा को जिया भी। यही वजह थी कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) के समर्पित कार्यकर्ता के बतौर वे कार्यरत रहे।

जेल डायरी में किया था वामपंथ से जुड़ने का जिक्र
विद्यासागर नौटियाल ने ‘जेल डायरी’ में वामपंथ से जुड़ने का जिक्र किया था। उन्होंने अपने एक संस्मरण में 1964 में इस डायरी के पुराने कागजातों से मिलने की बात कही थी। इसी डायरी में नागेंद्र सकलानी से उनकी मुलाकातों का जिक्र था। इसमें उन्होंने स्पष्ट किया था कि  इस विचारधारा से प्रभावित होकर उन्होंने वामपंथी बनने का निर्णय लिया था।

भ्रष्टाचार को लेकर अन्ना मूवमेंट के साथ थे नौटियाल
देहरादून। विद्यासागर नौटियाल देश-प्रदेश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर बेहद व्यथित थे। यही वजह था कि उन्होंने कुछ माह पहले गांधी पार्क में अन्ना आंदोलन में आवाज-से-आवाज मिलाने के लिए हुए कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उत्तराखंड महिला मंच की वरिष्ठ पदाधिकारी कमला पंत, वरिष्ठ कवि राजेश सकलानी के साथ उन्होंने शिरकत की थी।






नेहरू कालोनी स्थित आवास पर वरिष्ठ कथाकार विद्या सागर नौटियाल के पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए  ले जाते परिजन।


Source - Amar Ujala

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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विद्यासागर नौटियाल पर युवा हिंदी कवि शिरीष कुमार मौर्य की कविता.

विद्यासागर नौटियाल के नाम

काली फ्रेम के चश्मे के भीतर
हँसती
बूढ़ी आँखें

चेहरा
रक्तविहीन शुभ्रतावाला
पिचका हड़ियल
काठी कड़ियल

ढलती दोपहरी में कामरेड का लम्बा साया
उत्तर बाँया
जब खोज रही थी दुनिया सारी
तुम जाते थे
वनगूजर के दल में शामिल
ऊँचे बुग्यालों की
हरी घास तक

अपने जीवन के थोड़ा और
पास तक

मैं देखा करता हूं
लालरक्तकणिकाओं से विहीन
यह गोरा चिट्टा चेहरा
हड़ियल
लेकिन तब भी काठी कड़ियल

नौटियाल जी अब भी लोगों में ये आस है
कि विचार में ही उजास है !
बने रहें बस
बनें रहें बस आप
हमारे साथ
हम जैसे युवा लेखकों का दल तो
विचार का हामी दल है

आप सरीखा जो आगे है
उसमें बल है !
उसमें बल है !

शिरीष कुमार मौर्य की कविता युवा कवि लेखक और एक्टिविस्ट विजय गौड़ के ब्लॉग लिखो यहां वहां से साभार.

 

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