खबर्या बौ
by Hari Lakhera
ये बात तबैकी च जब गाँव मा लोग रंद छे। रस्ता मा, पाणीम, खेतु मा, घट्ट म, घास या लाखड जांद वखत, कखि ना कखि दिन मा द्वी चार वखत आमिणी सामिणी हूंण मामूली बात छे।
मी त तब छोटु छे। पर रति बौ ताई कभी नी भूलि नी सकुद। गाँव मा अजीब रिस्ता हूंदन। तब मेरी समझ मा नी आंद छे कि चालीस सालूक घनश्याम कुण त मी भैजी बोल्दु और तीस सालूक धनि मेकुण चच्चा बोल्द। पर ईं बात ताई समझण क वास्त त पूरी वंसावली निकाला पडली।
रति बौ घनश्याम भैजी कि घरवाली छे। जब भी मिलदि त ये द्वूर खूब छे बोलीक मेरी भुक्की लींद छे। और मी शर्म क मार मुंडि नी उठै सकुद छे। जनि पता चलदु कि रति बौ आणाईं च त लुक जांदु। पर रति बौ से कु छिपी सकुद छे भला। मां (मि माँ ही बोल्दु छे, ब्वे ना। शहरी पैदायस ) न कति बेर ब्वाल कि न चिढ़ाया कर मिताई पर रति बौ कैक बोल्णू पर कख आई। बीच बीच मा कबी ककड़ी, कबी मुंगरी, कबी बुखाण देकन पुल्या पत्या लींद छे। रति बौ क व्यवहार सब बच्चौंक दगड यनी छे। हम सब रति बौ देखीक भागद बी छे पर रति बौ क बग़ैर रै बी नी सकद छे।
आज क संदर्भ मा बोलु त रति बौ गाँव मा चलद फिरद अख़बार छे। गाँव क हर परिवार कि, हर मनखी की ख़बर रति बौ की ज़ुबान पर। कैन रात क्या पकाई, कैन दै छ्वाल, कैन घी ब्याच, छांछ कख मिलली, कु कख जायूं च, कु कब आलु, कैकि शरीर ख़राब च और यख तक कि कैकी ब्वारी उम्मीद से च। ग़नीमत छे कि बौ क ज़ुबानी अख़बार गाँव की सासु, जिठाणी, ननद, देवरानी तक ही सीमित छे नी त मर्द जात पता नी क्या क्या नी बोल्द।
मीन कति बेर रति बौ ताई कबी घास क बिठुकु, कबी लाखुडूक बिठुकु त कबी ख़ाली हाथ रति बौ ताई कै न कै दगड बात करद द्याख। बीच बीच मा यन बी कि देर हूणाई च पर बात खतम ही हूंदी ददछे। एक दिन नि रयाई त मीन ब्वाल ये बौ मुंड मा यतुक बोझ धर्यूं च वे ताई पगार मा धर देदी और फिर चैन से छ्वीं लगाई लेदी। बौ ब्वाल द्यूर दगड्या तिताई नी पता पर तु बी ठीक ही बुनाई छे। बाद मा समझ मा आई कि बौ क खबर्या कु छे। बौ की सब्यूंक दगड पटरि बैठीं छे। सब ताई पता छे कि बौ ताई बताणौकु मतलब गाँव ताई बताण पर बौ त बौ । बुझ्यां चुल्लू बीटीन भी अंगार निकालि दींद छे।
चुल्लसे याद आई, वे टाइम पर माचिस त सब्यूंक घरम हूंदी छे पर चुलु मा आग दीण कुण अग़ल बग़ल क घर बिटिन जख बि पैलि चुलु जल्यूं मील आग ली आंद छे। छिल्लूकी गड्डी लेकन ग्ये, आग उठाई और अपण चुलु पन लग्या दे। आग की आग और छ्वीं कि छ्वीं। बौ ताई इ सब नी करण पडद छे किलाई कि जिठाणी सब पैली कर दींद छे।
गाँव मा सब बौ कुण छुंयाल बोल्द छे। छुयांल वन त वूं कुण बोल्दन छे जु यना की वना लगांदन, जै आपस मा मन मीलु ह्वा या झगड़ा ह्वा पर बौ यन नी छे। बस गाँव क कुशल समाचार दीण तक ही बौ की पौंच छे। बौ क गिचन क्वी गलत बात नी सुणै। बात बात मा हंसि। मुख पर कबी बी परेशानी कि झलक ना। ख़ुश मिज़ाज।
क्वी त मज़ाक़ मा बोलि दींद छे कि ये रति सारी गांवैकि ख़बर तीम च पर तेरी ख़बर कैम च। बौ त बौ। तपाक से बोल्दी कि कोशिश चलणाई च जनि पता चललो सारि गाँव मा ढिंढोरा पिटौलु। तब त समझ मा नी आई पर अब जब याद करदु त लोगुक मतलब छे कि रति बौ माँ कब बणैली। व्या ताई कति साल ह्वे गे छे पर रति बौ क घरम कै नवजात बच्चैकि किलकार नि सुणै।
बौ क परिवार मा सबी छे। सासु, जेठ-जिठाणी और ऊँक द्वी लड़का, एक लड़की। परिवार संयुक्त। रति बौ काम कुण मर्कट। जिठाणी घर संभालदि, बौ भैरुक सारि काम। सुखी परिवार। खेति से और बाखरूक क व्यापार से आराम से गुजार।
समय कब रुकुदु। सबी दिन समान कैक रैन। पढ़ाई क चक्कर मा मी शहर चलि ग्यूं। बीच बीच मा गाँव आण जाण रौं। मेरि तरां और कति पढ़ाई क वास्त क्वी यना गे क्वी वना। रति बौ क जिठाणीक लड़का भी देहरादून गेन, लड़की व्यवाये गे। बौ ताई संतान प्राप्ति नी ह्वे। बौ फिर भी ख़ुश। जिठाणीक बच्चा बी त म्यार ही छन।
मेरी बी नौकरी लग, व्या ह्वे, और गाँव लगभग छुटि गे। बीच बीच मा परिवार क काम से घर जाण त ह्वे च पर खडा खड़ी। फिर दस साल बाद जब गाँव ग्यूं त सब कुछ बदल्यूं छे। ए बीच चिठ्ठी पतर्यूं से, आण जाण वालों से मोटी मोटी ख़बर त मिलणाई रै पर जु द्याख वैकी उम्मीद नी छे।
बौ अपर कूडम अकेला। बाकी सब यना वना। भैजी बि नी रै। जेठ जिठाणी बड़ लड़का दगड दिल्ली । गाँव मा गिनती क परिवार। अद्धा से ज्यादा पुंगड बाँझ।
बहुत देर तक बौ दगड छ्वीं लगाणाई रौं। मीन पुछ ए बौ तु बी दिल्ली चली जाँदि। बौ न ब्वाल क्या बोन द्यूर, गे त छे। चार मैना रौं। बहुत ख़्याल राख वून। म्यार ही मन नी मान। कख गाँव, कख द्वी कमरों कु बंद मकान जैकुण फलैट बोल्दन। न कै दगड उठण बैठण न बात चीत। सब दर्वाज बंद करीक बैठ्यां रंदन। बेटा ब्वारी दिल्ली घुमाणकु लिगिन। सब जगह भीड़ ही भीड़। म्यार त जन दम घुट्यूण रै। मी त बिना बोल्यूं सुन्यूं रै नि सकदु। वख कैक दगड बोलन, कैकि सुनन।
यखी ठीक च। चार बीसी उमर हूण कुन च। अब कतुक रण। टकेरी मा बैठ्यूं रौंदूँ। सब्यूंक दगड बोल चाल च। ख़ाली ख़ाली नी लगदु। वन त अब ज्याद लोग नी छन गाँव मा पर जतुक बी छन, म्यार अपण छन। सरकार कुछ दे दींद। मी त दुकानीम जै नी सकुदु पर जै कुण बी बोलि दींदु, ना क्वी नी करदु। दुकानदार दुकानीम जाण से पैली पुछि लींदु कुछ चायांणाई त नी। दिल्ली वाल बी आंदन । वूंकि बी अपरि ज़िम्मेदारी छन। जब तक हाथ खुट चलणाई छन, ढीक च। ऐथर कैन द्याख।
बाकी तु सुणा। अब मी क्या सुणौ?
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