Uttarakhand > Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य

Exclusive Garhwali Language Stories -विशिष्ठ गढ़वाली कथाये!

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jagmohan singh jayara:
उत्तराखण्ड के लोकगायक बाद्दी

उत्तराखण्ड राज्य में निवास करने वाले बाद्दी समाज के लोग आदिकाल से गायन एवं नृत्य करते हैं।  लोकगायक बाद्दी जटा धारण करते हैं और अपने को शिव का वंशज मानते हैं। उत्तराखण्ड राज्य में इनके कई गांव हैं।  टिहरी जनपद में इनका गांव डांगचौंरा प्रसिद्ध है।  गायन और नृत्य में निपुण होने के अलावा ये लोकगीत रचने में पारंगत होते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी इनके रचे गीत मौखिक रुप से संकलित गाए जाते हैं।  इनके गीत घटनाओं पर आधारित भी होते हैं। सतपुलि, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड में संवत 2008 में आई विनाशकारी बाढ़ पर रचित इनका कालजई गीत आज भी गया जाता है। इनके रचे गीतों में अतीत का सुंदर संकलन होता है।  देवी देवताओं पर आधारित गीत भी ये लोग गाते हैं।   अतीत में आज जैसे मनोरंजन के साधन नहीं होते थे।  ये लोग गांव गांव भ्रमण करते हुए हर इलाके की खबर का प्रसार करते हुए, गीत और नृत्य के माध्यम से लोगों का मनोरंजन करते हैं।

अतीत में गांव गांव भ्रमण करते हुए ये लोग लांक और वर्त का प्रदर्शन करते थे।  जहां वर्त खेली जाती थी, वहां का नामकरण वर्ताखुंट हो जाता था।  वर्त खेलने के लिए बाबुल घास की एक मोटी एवं लम्बी रस्सी तैयार की जाती थी।  उसे खूंटे से ढ़लान में बांध दिया जाता था।  लोकगायक बाद्दी उस रस्से पर लकड़ी की काठी पर बैठकर फिसलता हुआ जाता था।  यह प्रदर्शन जोखिम भरा भी होता था।  सकुशल प्रदर्शन के बाद स्थानीय लोग लोकगायक बाद्दी को अनाज, कपड़े एवं धन प्रदान करके मान सम्मान करते थे। वर्तमान में यह परंपरा विलुप्ति की कगार पर है। 

लांक खेलने के लिए बांस का एक डंडा खड़ा किया जाता था।  उसकी धुरी पर लकड़ी की काठी लगाई जाती है।  लोकगायक बाद्दी उस पर पेट के बल लेटकर घूमता है। ये भी एक जोखिम भरा कार्य होता था।  प्रदर्शन के बाद लोग लोकगयक बाद्दी को सम्मान स्वरुप अनाज, कपड़े एवं धन देते थे। आज यह परम्परा भी विलुप्त होती जा रही है।

बाद्दी लोकगायक सर्दियों के मौसम में गांव गांव जाकर गायन और नृत्य करके अपनी आजीविका चलाते हैं।  लोकगायक बाद्दी सिर पर पगड़ी और दाढ़ी रखते हैं और ढ़ोलकी बजाते हैं।  लोकगायक बाद्दी की पत्नी को बादिण कहते हैं।  बादिण घाघरा और घुंघरु पहनकर नृत्य करती है और बाद्दी के साथ गीत गायन में जुगलबंदी भी। शादी विवाह के सुअवसर पर इन्हें बुलाया जाता है।  ये बरात के साथ जाते हुए गायन और नृत्य की प्रस्तुति करते हैं।       

             आज इस समाज के लोग अपना पारम्परिक गायन एवं नृत्य का कार्य आगे ले जाने में असमर्थ हो गए हैं।  जब से आडियों/विडियों का प्रचलन हुआ,    तब से इनके इस पारम्परिक व्यवसाय में पहले वाली बात नहीं रह गई।  इस समाज के कुछ लोग नौकरी पेशा वाले हो गए हैं।  इस कारण से अपनी विधा को आगे ले जाने में ये असमर्थ है।  आज गिनती के लोकगायक बाद्दी अपनी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।  उत्तराखण्ड सरकार के लोक संस्कृति विभाग को आर्थिक मदद करके लोकगायन  एवं नृत्य विधा के धनि लोकगायक बाद्दी समाज को आगे अपनी परम्परा निभाने को प्रोत्साहित करना चाहिए।  इनके पास अतीत से लेकर आज तक के लोकगीतों का पारम्परिक मौखिक संकलन मौजूद है।  उत्तराखण्डी साहित्यकारों ने इन पर लेख लिखकर संग्रह के माध्यम से इनके लोक गीतों का संकलन किया है। उत्तराखण्ड की लोक भाषाएं इनके गीतों में संकलित है।

        समाज भाषा, संस्कृति और विरासत का वाहक होता है। आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी संस्कृति और विरासत का त्याग करते जा रहे हैं।  संपूर्ण भारत की लोक संस्कृति अनोखी है।  हम विकास करें लेकिन, भाषा, संस्कृति और विरासत का त्याग न करें। उत्तराखण्ड राज्य में निवास करने वाले लोकगायक बाद्दी समाज के लोगों की वर्तमान और अतीत की झलक प्रस्तुत करने का मैंने प्रयास किया है।  कवि और लेखक होने के नाते फर्ज निभाने का भी। 


जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासू”
ग्राम: नौसा बागी, पट्टी: चंद्रवदनी,
पोस्ट औफिस: कुन्डड़ी,
टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।
दूरभाष: 9654972366
प्रवास: दर्द भरी दिल्ली।
दिनांक 23/5/2019
ई-मेल: jjayara@yahoo.com

jagmohan singh jayara:
उत्तराखण्डा बाग

 

कुमगढ़ पत्रिका का संपादक जी कु मैकु फोन आई।  मैंन जोशी ज्यू सी कुशल मंगल पूछि। जोशी ज्यून बताई, अब स्वास्थ्य ढ़ीलु हि रंदु।  मैंन ब्वलि, आप सुबेर सुबेर घुमण जया करा।  जोशी ज्यून बताई, गौला पार हल्दवानि मा सुबेर सुबेर बाग की भारी डौर रन्दि। मैंन ब्वलि, जोशी ज्यू मैं “उत्तराखण्डा बाग” शीर्षक सी एक लेख भेज्लु कुमगढ़ पत्रिका का सितम्बर-2018 का अंक मा प्रकाशनार्थ।   

     म्येरी कवि नजर मा 9 नवम्बर, 2000 कु उत्तराखण्ड राज्य बण्न फर उत्तराखण्डा बाग भौत ऊदास था।  बाग स्वचणा था अब उत्तराखण्ड कु यनु बिकास ह्वलु, जु हमारा उड्यार तक पौंछ्लु, तब हम कख रौला?

            उत्तराखण्ड जब बण्न लग्युं थौ,
                     भारी ह्वयिं थै डौर,
            बाग अपणा मन मा स्वचणा,
            छ्वडण पड़लु अब घौर।

     बिकास की बयार कतै नि बगि अर पलायन की धार जरुर लगि।  आज गौं का गौं बिना मनख्यौं का बंजेण लग्यां छन।  हम प्रवासी भौत फिकर करदौं पलायन की।  सभा, गोष्ठ्यौं मा पलायन फर भौत चर्चा ह्वदिं।  उत्तराखण्ड सरकारन पलायन आयोग भी बणैयालि।  बाग अब उत्तराखण्ड मा मनस्वाग बाग बणिक मनख्यौं तैं खाणा छन।  बाग की भारी डौर ह्वेगि, अब यकुलि कखि औणु जाणु भि खतरा सी खाली निछ।  उत्तराखण्डा बाग धैं बिल्क किलै कन्ना छन? म्येरी कवि नजर मा बाग इलै हम फर बिल्कणा छन।


     उत्तराखण्डा बाग बण्यां छन,
            आज द्येखा खौंबाग,
            मनख्यौं मारी मारी खाणा,
            ब्वन्न लग्यां छन जाग।

     सच मा स्वचा आज लठ्याळौं,
            क्या छ ऊंकू दोष,
            कर्म हमारा द्येखि द्येखि,
            औण लग्युं ऊं रोस।

     हम संस्कृति कु त्याग कन्ना,
            ब्वलणा निछौं अपणि भाषा,
            नौं का उत्तराखण्डी रैग्यौं,
            बाग तैं ह्वणि भैात निरासा।

 

          सरकार ब्वन्नि छ बाग बचावा अर हम ब्वन्ना छौं, हे नेतौ! उत्तराखण्ड तैं पलायन अर बाग सी बचावा। उत्तराखण्डा गौं मा जू मनखि गणति का रयां छन ऊ बाग सी भौत डरयां छन।  हम प्रवासी ह्वेक पलायन की मार सी मरयां छौं। एक दिन यनु आलु, उत्तराखण्डा बाग अर भैर का अयां मनखि वख रला अर उत्तराखण्डी गैब।  बाग तैं क्वी मतलब निछ, उत्तराखण्ड मा उत्तराखण्डी रौन या न रौन। बाग मनख्यौं फर बिल्कदा हिछन, तब्बित जिम कार्बेट कुमाऊं अर रुद्रप्रयाग का मनस्वाग बाग मान्न कु ऐ थौ। आज ऊंका नौं फर जिम कार्बेट पार्क बणैयुं छ, बागु की जनसंख्या बढ़ौण का खातिर।

 
     बाग त बाग होंदु पर मनखि भी बाग की तरौं होन्दन।  हम उत्तराखण्डी उत्तराखण्डा बिकास की आस करदौं पर हमारा बणैयां नेता बाग बणिक देरादूण मा मौज मनौणा छन।  उत्तराखण्ड ऊताणदंड होणु छ, बाग भी उत्तराखण्डा हाल द्येखिक रोणु छ।  योजना बाग बचौण की भी बणि छन।  बागा नौं फर भी धोळ फोळ होलु होणु।  हमारा उत्तराखण्डा कै मनखि कु नौं बाग सिंह थौ।  गौं की ब्वारि नौं बर्जदि थै, तब ऊ बाग तैं लुकण्यां ब्वल्दि थै।  आज या परंपरा भी बग्त का दगड़ा खत्म ह्वोणि छ। उत्तराखण्डा बाग तू जुगराजि रै अर हमारु उत्तराखण्ड भी।

 
       जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासू”
       दर्द भरी दिल्ली प्रवास बिटि
       दूरभाष:9654972366
       दिनांक 25/9/2018         

jagmohan singh jayara:
दर्द भरी दिल्ली

भौत पैलि बिटि उत्तराखण्डी लोग पाड़ बिटि पलायन करिक दिल्ली मा रोजगार का खातिर औन्दा रैन।  पैलि परिवार गौं मा हि रंदा था अर दिल्ली बिटि गौं जाणु अर औणु लग्युं रंदु थौ।  पैलि संचार का साधन बिल्कुल नि था।  चिठ्ठी पत्तरी का माध्यम सी खूस खबर मिल्दि थै।  1990 का लगभग बिटि प्रवासी उत्तराखण्डी सपरिवार दिल्ली मा हि रण लग्यन। दिल्ली मा नौकरी कन्न वाळौं तैं गौं का लोग नौकर्याळ ब्वल्दा था।  नौकर्याळ जब गौं औन्दा त गौं का लोग ऊंकू खूब मान सम्मान करदा था अर नौकर्याळ भी।  नौकर्याळ जब छुट्टि खत्म ह्वोण फर दिल्ली औन्दा त गौं का लोग दूर तक अड़ेथण औन्दा था।

बग्त बदलि, नौकर्याळ दिल्ली मा बसण वाळि कच्ची कलोन्यौं मा पलौट ल्हीक जीवन बसर कन्न लग्यन।  यमुना पार भौत लोगुन पलौट लिन्यन अर बिना बिजली पाणी का तंगी मा दिन बितौण लग्यन।  जब बरखा ह्वन्दि त पाणी भरे जान्दु थौ।  यमुना पार रण वाळा बतौण मा शर्मान्दा था कि मैं यमुना पार रंदौ। तबरि दिल्ली मा गाड़ी मोटर भौत कम थै।  सैकिल सी भौत सी लोग औणु जाणु करदा था। भीड़ भाड़ तबरि कम हि थै। पाड़ की भौत खुद लगदि थै।  ये कारण सी मैं फर कवित्व जागि अर मैं गढ़वाळि कवि “जिज्ञासू” बणिग्यौं। 

12 मार्च, 1982 कु मैंन भी रोजगार का खातिर दिल्ली पलायन करि।  दिल्ली ऐक रोजगार की तलाश थै।  रोजगार मिलि अर रौण कु ठिकाणु पांडव नगर मा।  कुछ टैम बितण का बाद म्येरा गौं का नजिक का श्री अनंत राम नौटियाळ जिन विनोद नगर मा पलौट लिनि अर वख एक कच्चु कमरा बणाई। मैं वे कमरा फर यकुलि रण लग्यौं।   पलौटिंग की जगा फर पैलि बड़ु भारी तलौ थौ। जब जब भारी बरखा ह्वदिं त कमर कमर का पाणी मा लोग अपणा घर मा औन्दा था। बिजली की क्वी व्यवस्था नि थै अर हैंड पंप कु पाणी हि पेण कु एक साधन थौ।

आज दिल्ली मा गाड़ी मोटरु कु जाम भौत लग्दु।  ड्यूटी टैम फर पौंछणु संभव नि होन्दु।  बायोमैट्रिक हाजरी अब सरकारी औफिसु मा लग्दि छ।  कलोनी सी भैर अवा त जगा जगा टैक्टर अर पाणी का टैंकर जाम लगै देन्दन।  बस की जग्वाळ मा हि काफी टैम बिति जान्दु।  भीड़ भरी बस मिलि भि गि त जेब कतरा अब मोबैल कतरा बणिक पिछ्नै पड़्या रन्दन।  हर दिन बस मा मोबैल की चोरी आम बात छ।  दिल्ली मा अयां भैर का लोग बस मा अंट शंट ब्वल्दन अर लड़ै झगड़ा आम बात छ।

दिल्ली मा अब मोटर गाड़्यौं कु भौत धम्मद्याट छ।  कंदूड़ फूटि जान्दन हो हल्ला सी। तेज चन्न वाळि मोटर सैकल अर गाड़्यौं देखि भारी डौर लग्दि।  अपणा घौर ब्याखुनि बग्त जब तक नि पौंछ़्या भगवान हि मालिक छ।  दिल्ली मा उत्तराखण्ड दर्शन ह्वन्दन अर यनु लग्दु जन उत्तराखण्ड यखि छ।  बदरपुर, संगमविहार, यमुना पार जख भि जवा उत्तराखण्डी लोक जीवन की झलक यख दिखेन्दि छ। म्येरी एक गढ़वाळि कबिता छ “धन बे दिल्ली” जैंका अंश ये प्रकार सी छन।


उत्तराखण्ड की रौनक हर्चिगि, दिल्ली मा सदानि बग्वाळि,
घर घर जख्या कु तड़का लग्दु, बणौन्दा पकोड़ी स्वाळि।


पाड़ बिटि पलायन कन्न का बाद हमारु रिस्ता अजौं देवभूमि सी कायम छ।  जू पाड़ नि जान्दु ऊ मनखि हंत्या, द्येव्ता अर हंकार पूजण गौं जरुर जान्दु।  वंत अब यी काम दिल्ली मा भि ह्वे जान्दन।  म्येरी रचना कु एक अंश ये प्रकार सी छ।


             घड्याळा लगणा भूत पूजेणा, पित्र भि यखि थर्पेणा,
                               दिल्ली भारी स्वाणि लगणि, द्येव्ता भि यखि नचेणा।


      दिल्ली मा दर्द भौत छन, तौ भि जिंदगी की ठेलम ठेल मा लग्यां छन उत्तराखडी।  पाड़ की काखड़ि, मुंगरी, गोदड़ि, कोदु, झंगोरु भौत भलु लग्दु यख। नौकरी का जंजाळ मा फंसिक हम भौत कुछ ख्वन्दा छौं।  ब्वे बाब का अंतिम दरसन भि नि करि सक्दा। आज सुख सुविधा कु जामनु छ।  सब्बि लोग सुख सुविधा कु आनंद लेणा छन। सब अफुमा मस्त छन अर पैलि की तरौं मेल मुलाकात कु दौर अब निछ।  उत्तराखण्ड की बात अब यख खूब ह्वन्दि, कथ्गै संगठन बण्यां छन पर एक जुट्ट मुट्ट की बात कम छ। सबसि बड़ी विंडबना यछ, हमारु बिकास त ह्वेगि वथैं हमारु उत्तराखण्ड बंजेगि, संस्कृति हर्चिगि, ब्वोलि भाषा भि हर्चिणि छ, अग्लि पीढ़ी हमारी उत्तराखण्डी भाषा नि ब्वल्दि। उत्तराखण्ड लोकभाषा साहित्य मंच अर डी.पी.एम.आई. का सौजन्य सी बच्चौं की छुट्टि का दौरान पूरा राजधानी राष्ट्रीय क्षेत्र मा पिछला द्वी साल बिटि गढ़वाळि कुमाऊंनि क्लास लगणि छन।  छ्वट्टा नौंना नौंनी अपणा गौं कु नौं नि जाण्दा।  मैकु भि बच्चौं तैं गढ़वाळि भाषा सिखौण कु मौका मिलि।  जब उत्तराखण्ड परिचय बच्चौं तैं दिनि त ऊंका मन मा भौत जिज्ञासा कु संचार ह्वे।  कुछ बच्चौंन बताई हम्तैं अपणु गौं भौत प्यारु लग्दु।  वख जंगळ छन, नदी छन अर प्रकृति की सुंदरता भि।

 
कुछ ह्वन्दा खान्दा उत्तराखण्डी अपणा गौं मुल्क तैं बिल्कुल बिसरिग्यन।  जन जन हम संपन्न ह्वणा छौं, दर्द भरी दिल्ली तैं दिल सी अपनौणा छौं। कविमन की आस छ, एक न एक दिन हमारा उत्तराखण्ड कु भलु सी बिकास ह्वलु अर हमारा उत्तराखण्डी भै बंध दर्द भरी दिल्ली त्यागिक उत्तराखण्ड जाला।   

       दिल्ली मा दर्द भौत छन। बरखा ह्वे त परेशानी, प्रदूषण ह्वोन्दु त परेशानी, गर्मी हो त परेशानी, जाम यख भौत लग्दु या भि परेशानी। गुंडा, बदमाश, जेब कतरा यख कै लाख छन।  नेता भि यख सैडा देस बिटि चुनिक औन्दन समस्या दूर कन्न कु आश्वासन दीक,   पर समस्या जन्नि की तन्नि। ऊ चान्दा भि यु हिछन, जंता सदा परेशान रौ।  दर्द भरी दिल्ली मा जिंदगी बितौणु भी जिंदगी मा जीत छ।

 
-जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासू”
  दर्द भरी दिल्ली बिटि।
  दिनांक 22/10/2019

Bhishma Kukreti:
 Review of Ek Yatharth Sacch:  Vidanku lekh kwi Ni Mitai Sakdu

: An inspirational Garhwali long story (novelette)
 (Chronological Critical Review of modern Garhwali fiction)
 (Let us celebrate 108 years of Modern Garhwali Fiction!)
(Reviewed a long fiction Created by Fiction Writer Bacchiram Baurai)
Literature Historian: Bhishma Kukreti
-
 Bacchiram Baurai is a well-known Garhwali poet and a well-known teacher of the Beeronkhal region of Pauri Garhwal.
The present ‘Ek Yatharth Sacch: Vidanku lakh kwi Ni Mitai Sakdu a ‘Garhwali long fiction by Bacchiram Baurai is totally an inspirational long story.  There are sayings in each page.
 The story is about spoiled sons and a good son of a Thokdar ‘Krishna ji’. The aim of Baurai is to teach the young generation for going to a good path and leave the wrong path.
 Though the story is inspirational but Baurai used techniques to make it interesting, and not only children take interest the adult will also take an interest.
 Baurai used tens of sayings/proverbs in Hindi, Garhwali, and English to stress the aim that we should take the correct path and not to take wrong path.
The language is suitable for the young generation that is simple and speedy. There are twists in the story too for teaching purposes.
The dialects used by Baurai n the long story are of Beeronkhal (Pauri Garhwal) . The booklet or novelette is one of rare fiction where there are so many proverbs or sayings.
Story Book reviewed- Ek Yatharth Sacch:  Vidanku lekh kwi Ni Mitai Sakdu
Story Writer – Bacchiram Baurai
Year of publication- 2017
Published and printed by Bacchiram Baurai
Beeronkhal , Pauri Garhwal, UK
brbaurai@gmail.com 
 Copyright@ Bhishma Kukreti, 2021

Bhishma Kukreti:
  फूक सरिकि ग्याइ
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हरी लखेड़ा की एक प्रेरणात्मक संसमरण
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पब्लिक इंटर कालेज कोटद्वार की बात च जु कभी नि भूलि सकुदु। छटि क्लास मा छे। हिंदी की क्लास। शास्त्री जी हमार हिंदी क अध्यापक, बौत सख़्त। पढांद भी बौत प्यार से छे। मे पर विशेष क्रिपा किलै कि पिता जी से जाण पछांण त छेइ मी पढण लिखण मा भी हुस्यार छे बल। मास्टर जी क मे पर बौत विश्वास छे।
मास्टर जी क आण से पैली होम वर्क की कापी कठ्ठी कैक मेज़ पर रखण क काम म्यार ज़िम्मा छे। क्लास मा आंद ही पुछद जैकि होम वर्क की कापी यखम नी खडु ह्वे जा। बाद मा पता त चलण ही छे तो डर क मार जैकी कापी नी हूंदी खडु ह्वे जांदु। पैली बार चेतावनी, दुसर बार पैमाना से हाथ पर द्वी चार निशान, तिसरी बार क्लास से भैर जु बौत कम।
वे दिन भी तनि ह्वे। पता नी किलै पर वे दिन मी होम वर्क नी करि पै। त खडु ह्वे ग्यूं। सारी क्लास मा मी खडु छे। सारी क्लास मा चुप्पी।
मास्टर जी न प्यार से पूछ किलै नी कर होम वर्क।
मीन ब्वाल जी कर त छे पर कापी भूलि ग्यूं।
मास्टर जी तै पता छे घर नजदीक च। ब्वाल जा भागी कन जा और लै आ।
मीन ब्वाल जी घर क्वी नी।
अब मास्टर जी क चेहरा पर ग़ुस्सा साफ नजर आणै छे। ऊँ तै पता छे कि घर की चाबी मीम भी रंद। जनि मितै लग कि यू झूठ पकडे गे, मीन ब्वाल जी होम वर्क नी कर।
फिर क्या छे! ब्वाल-होम वर्क नी कर त क्वी बात नी कभी कभी ह्वे जांद पर झूठ पर झूठ! सामिणी पैली पंक्ती मा बैठुद छे। लंब हाथ क एक थप्पड़ दांय गाल पर, एक बांय गाल पर!
जब तक पीरियड खतम नी ह्वे, द्वी लाइन किताब से पढांद और द्वी चार थप्पड़ म्यार गाल पर रसीद करद। विश्वस हनन की सज़ा।
आज भी जब याद आंद त फूक सरिक जांद।

सर्वाधिकार @ हरी लखेड़ा

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