Author Topic: Exclusive Garhwali Language Stories -विशिष्ठ गढ़वाली कथाये!  (Read 48848 times)

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
*****जोगण कु उपकार *****एक गढ़वाली कथा.


  डॉ नरेन्द्र गौनियाल.


कुछ दिन पैली ही जोगण दीदी जांठि टेकी  हमारू घौर मा ऐछे. मेरी ब्वैन दीदी तै सुबेर कल्यो रोटी का टैम पर ढबोण्या रोटी दगड़ मूल़ा अर छीमी कु साग दे.जोगणदी जब बि कब्बि औंदी छै,मेरी ब्वे खाणु- पीणु जरूर दीन्दी छै.अर घार मा लिजाणो बि दीन्दी छै.आज जोगणदी न बोली की ब्वारी !द्वी क्वासा मर्च दे दे.ब्वैन थ्वड़ीसी मर्च,ग्यूं कु पिस्स्युं अर  कंकरेल़ू लूण दे.
     पैली त बिचारी काम-काज का टैम पर खूब औंदी छै अर मदद करदी छै.ग्यूं,झुन्गोरा,मंडुआ,की दाँय मा खूब लगीं रैंदी छै.भट,मास,गैथ,चुआ,काण-मास सब कुटे दीन्दी छै.हर चीज  से थ्वडा-थ्वडा मिलि जांदू छौ.लूण,गुड,साग-पात,नाज-पाणि की कुटरी बाँधी कै दीदी ब्यखुन्या अपणा घौर चली जांदी छै.पैली त बिन काम कर्याँ कुछ नि मंगदी छै,पण अब बुढ़ापा का कारण  कुछ नि कैरि सकदी छै.ये वास्त जब बि औंदी,कुछ नकुछ दे दीन्दा छाया.
गौं मा सुणे कि जोगण दी बीमार पडीं.खाणु-पीणु बंद ह्वैगे.पास-पड़ोस वलोंन बगत-कुबगत मुंगणी कु पाणि दे.मंततु पाणी अर च्या बि दे.पण हर्बी-हर्बी हालत जादा खराब हून्दी गे. अर एक दिन सुबेर भितर म्वरीं ही देखि
जोगण का दगड़ अपणो क्वी नि छौ. बालपन मा ही ब्यो का बाद द्वी नौनि ह्वैगीन.अर निर्भगी इनि कि जवानी मा ही नौन्यूं कु बुबा अचंचक्क बिमार पड़ी कै मरि गे.जवैं ख़तम होना का बाद  सौरास मा क्वेई नि छौ देख-भाल करन्य.कै तरीका से द्वी नौन्यूं का हाथ पिला कैरिकै व बेफिक्र ह्वैगे. यकुलो जीवन वो बि विधवा को ,जीणु कठिन ह्वैगे. कब्बि भूखा-प्यासा दिन बि कटण पडीं.आखिरकार व अपणो मैत जमणधार ऐगे.कुछ दिन अपणा मैत्यों का दगड़ रैणा का बाद वींन गौं मा ही एक कूड़ी मा ठिकणो बनै  दे.वीं कूड़ी वल़ा नौकरी-चाकरी मा देरादूण चली गे छाया.तौन जोगण तै एक ओबर दे दे रैणो.
हमन त जोगण दी तै सदनि वीं ओबरि मा ही देखि. अचार-विचार ठीक हूँणा का कारण कैन बि कब्बि वीं पर अंगल़ू नि उठाई.अप नि क्वी खेती-पाती नि छै,पण लोगों का दगड़ काम करी कै ही गुजर-बसर ह्वै जांदू छौ.सब लोग खुला मन से दे दीन्दा छाया.मेरी ब्वे बि राशन-पाणि ,पुरणि धोती-बन्यान सब दीन्दी छै.अपणि कुटम्दरी मा ब्यो-बंद का टैम पर दक्षिणा,नै धोती-अंगडु बि दीन्दा छाया.जोगण दी तै तम्बाखू पीणे आदत छै,ये वास्त घर्या तम्बाखू बि लिजांदी छै.
पड़ोस वालों जब जोगण सुबेर मरीन देखि ट खबर सारी गौं मा फैली गे..अरे !.जोगण मरि गे.....जनु नाम.तनि बिचरी जोगण.अपनों-पर्या क्वी बि ना .लोगोंन सोची कि बूडा का भितर जी क्य मिलन. गौं का दाना -सयाणों न बोली कि खतड़ी-कम्बळी भैर धारा.बिष्ट बूबा जी न बोली कि देखि ल्या कुछ छा कि ?निथर कफ़न त ल्याणु ही च.हैंका दिन कूड़ी बि त चुख्याण. मौ-मिटोंण त कर्ला.
सरि गौं का दाना-दिवना,बैख-ब्यटुला कट्ठा ह्वैगीन.भितर जैकि बुढड़ी तै भुयां धरी कै ढिकण -डिसाण उठाई.डिसाण मूड़ रुप्या मिलि गैनी.लोगन सोची चलो ठीक ह्वैगे.कफ़न का पैसा त कम से कम बुढड़ीन धरयां छाया.कैको बि नि लीगि परलोग.सर्या गौं क लोग गैनी अर जोगण तै फूकी कै ऐगेनी.
बाद मा सरी गौं क लोगोँन ओबर बिटि एक-एक समान भैर करी.पुराना झुल्ला-झुल्ली,भांडी-कूंडी भैर निकाली कै देखि.भितर तीन ढ्वकरों   मा धान,तीन मा ग्यूं,एक मा चौंल,एक कनस्तर मा सोयाबीन.छवटा-बड़ा कतगे भांडों मा मास,रयांस,गैथ,भट,मंडुआ,झुन्गोरू धर्यूं मिलि गे. एक द्वी किलो कु डब्बा घर्या घ्यू कु बि मिलि...फिर एक डब्बा मिलि.वैपर भैर बिटि एक झुला लपेट्यूं छायो.जब खोली त वै पर कतगे रुप्या मिलि गईं.एक-एक करी गैणीइ त पट्ट डेढ़ हजार.लोग छवीं लगाणा कि जोगण अपणो काम-काज  अर कूड़ी चुख्याणो सब इंतजाम करिगे.अब त सब खाणु-पीनु बि ह्वै जालु अर बोक्ट्या बि ऐ जालो.
सब लोग हक़-चक तब रैगेनी जब एक हैंका डब्बा पर हौरि रुपया मिलिनी.गिणदा -गिणदा  पट्ट १६ हजार.अलग-अलग मुखै बनि-बनि बात.कब बिटि जमा करनी रै होलि जोगण यू सब..के खुणी करी होलू..
दसवों दिन भितर चुखेकी गौं वालों हलवा-परसाद,पूरी-सब्जी खै.एक बोक्ट्या बि मरे गे.इनि चखळ-पखळ त भला-भलों कि दावत मा बि नि हून्दी.सब काम निबटि कै मीटिंग ह्वैगे.भितर कि राशन-पानी जु बचि गे वैतई द्वी हजार मा बेचिदे.अब सवाल यू ह्वै कि यूं रुप्यूं कु क्य कन.?जोगण कि एक बेटी बम्बई अर एक दिल्ली रैंदी छै..पण कैकु अता-पता नि छौ.कब्बि जोगण तै द्यखणो बि नि आया.गौं क पञ्च-परवाण  सब्यों ण आखिर यू फैसला ले कि गौं कि इस्कूल हुईं च उजड़न्य.स्टील कि चादर ल्हेकी मरम्मत ह्वै जाली.गौं वालों सालों बिति इस्कूल कि चूंदी पातळ ठीक नि कारी सकी,अर जोगण बिचारी एक ही झट्गा मा गौं क नौन्यलों क वास्त इतनो बड़ो काम करी गे.जोगण कु ये उपकार तै गौं कि द्वी-चार पीढ़ी का लोग कम से कम याद त रखी सक्दन.जैका कफ़न का वास्त कपडा अर झ्वपडा चुख्यानो वास्त गौं वाला परेशान ह्वै गे छाया,वींन इस्कूल कु जीर्णोद्धार करी कै सर्या गौं चुखे दे.


        डॉ नरेन्द्र गौनियाल.....सर्वाधिकार सुरक्षित...       
--

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
Characteristics of Garhwali Short Stories by Bhagwati Prasad Joshi ‘Himwantwasi ‘

                                                   Bhishma Kukreti

[Notes on Characteristics of Fiction, Tales by regional short story writers; Characteristics of Fiction, Characteristics of Fiction, Tales by Garhwali short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by Uttarakhandi regional short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by Mid Himalayan regional short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by Himalayan regional short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by North Indian regional short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by Indian regional short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by SAARC Countries regional short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by South Asian regional short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by Asian regional short story writers]
[कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; गढ़वाली कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; उत्तराखंडी कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; मध्य हिमालयी कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; हिमालयी कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषा के कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; भारतीय क्षेत्रीय भाषा के कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; सार्क देशीय क्षेत्रीय भाषा के कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय भाषा के कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; एशियाई क्षेत्रीय भाषा के कथाकार की कहानियों कि विशेषताए लेखमाला ]


                       Bhagwati Prasad Joshi ‘Himwantwasi’ has a prominent place in Garhwali short story world. Joshi has specific style in Garhwali short story world.  Joshi was born in Joshiyana village, Parsundakhal, Pauri Garhwal in 1927. Joshi started his literature career as Hindi writer and he created Hindi Garhwali stories with vigor. Bhagwati Prasad wrote more than fifteen stories in Garhwali published in various periodicals.  ‘Dhanga ki Atmkatha’ story collection book was published in 1988 just after his death.
    The plots of stories of Joshi are simple from the daily life but the way he narrates the situation the simple situation becomes interesting.  Joshi is an expert in narrating subject with phrases and the symbols make the stories more readable. Joshi uses known and new phrases for creating humor and satire. Dabral states that for Joshi the satire is not the style but a concept of looking at life that makes the story realistic as per time, place and class. The stories are with full of spirituality, philosophy and realism. Even the imaginative characters seem as if they are true from this earth.
                  Joshi is master of creating and developing his main characters. The characters in the stories of Bhagwati Prasad are energetic and nearer to the life. The readers get images of real life from the characters and characterization.  One example of characterization is from ‘Head master Hirdairam’-
प्राइमरी पाठशाला हैड़ाखाळ, जख हेडमास्टर हृदय राम हरबोला, एक शरीर त एक आत्मा, छडि सा छड़ छड़ा, झुंगरण्या जून्गा, तण्या सांखा अर हर बखत चढ़याँ (आधी ढ़ ) आंखां. जनु परुशराम का कंधा मा फरसा. तन्नी हृदयराम जी क हाथ मा डंडा, स्यू अछू खासू नौ, बच्चू ण बिगाड़ी कि करी डे , निरदैराम बमबोला. पर डौर इतनी कि जु वै सडक पर निकळ दा ट बच्चा उड़्यार मा छिप्दा, गौं गाल़ो मा दिखेंदा त गुठ्यारु मा लुक दां, अखळा चखळी मा इना कि जानू बाग़ पड़ी गे हो बखरौं मां, इन लगी जांदी बग्बौला, बचणा कु क्वी ठौर नि छयो . स्कूल आवा त डंडा. डंडा कु वो डंडा नि बोली कि शुद्ध संस्कृत मा बोल्दा छया -दंडिका .पर नौ बद्लिक क्या हूंद/ जानू नागनाथ तन्नि सांपनाथ, जानू डंडा तन्नी दंडिका.

  The language and style of the stories of ‘Himwantwasi’ is his own. Joshi is a specialist of making words as his slaves. The language is lucid, memorable, with full of phrases and proverbs.  Joshi sees the situation from newer angle.  The timing and order of events are consistent in his tries.  The dialogues are from daily life and accelerate the speed of story. 
   The story writer creates mood as per the need of story and that helps the readers in making images.
   Dr. Nand Kishor Dhoundiyal states that Bhagwati Prasad is the ‘Premchand (a greatest Hindi fiction writer) of Garhwali story world.

Reference-
1-Anil Dabral, 2007, Garhwali Gady Parampara
2- Shailvani, 2011 Kotdwara (Short stories by Joshi were republished in this newsletter)
3- Nand Kishor Dhoundiyal 2011, Garhwal ki Divangat Vibhutiyan, part 2

Copyright@ Bhishma Kukreti, 3/7/2012

Notes on Characteristics of Fiction, Tales by regional short story writers; Characteristics of Fiction, Characteristics of Fiction, Tales by Garhwali short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by Uttarakhandi regional short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by Mid Himalayan regional short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by Himalayan regional short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by North Indian regional short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by Indian regional short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by SAARC Countries regional short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by South Asian regional short story writers; Characteristics of Fiction, Tales by Asian regional short story writers to be continued….
कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; गढ़वाली कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; उत्तराखंडी कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; मध्य हिमालयी कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; हिमालयी कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषा के कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; भारतीय क्षेत्रीय भाषा के कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; सार्क देशीय क्षेत्रीय भाषा के कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय भाषा के कथाकार की कहानियों कि विशेषताए; एशियाई क्षेत्रीय भाषा के कथाकार की कहानियों कि विशेषताए लेखमाला जारी ...

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
*******बंदरी ******एक गढ़वाली ननि कथा.******

 

कथाकार- डा. नरेंद्र गौनियाल

 


ब्वे-बाप बचपन मा ही स्वर्गवासी ह्वैगे छ्या.अब त उंकी अन्द्वार बि बिसरि गे.हम  छवटा-छवटा सि इस्कूल जान्द दा सदनि बंदरी तै सड़क का किनर गोर-बखरा चरांद द्यखदा छ्या.ऊ तब बि आण-जाण वलों अर इसक्वल्या छोरों मा बीड़ी मंगदु छौ.पुराणा,थेकल्यां लारा,मैल से चिपक्याँ लटुला अर बारा सींकों कु एक टुट्यू  छतल़ू बस यी छै वैकी पछ्याण. 
           काका-काकीन अपणा नौनौं तै त इस्कूल भेजी पण बंदरी तै ग्वैर बनै दे..द्वी यकुळी रुखु-सुखु एक गफ्फा का बदल ऊ दिन भर काम-काज मा जुट्यों रैंदु.राति ऊ छनुड़ा मा ही से जांदू अर सुबेर गोर-भैंसों कु मोल सोरी कै थुपड़ी लगान्दु..घौर मा ऐकि लखड़ू-पतड़ू,खैड-कत्यार सोरणु,नवाल़ा बिटि तीन-चार कसेरा पाणि ल्याणु,इनि कतगे छवटा-म्वटा काम करदू छौ. ग्वर म्यलाक से पैली भैंसों तै पाणि देकी मारा मारि मा द्वी-चार गफ्फा भात सळकैकि कांधी मा कुल्याड़ी अर कमर मा ज्यूड़ी लसगे कि गोर-बखरों तै मेली कै डांड ल्ह़ी जांदू.बस वैकी रोज कि य ही दिनचर्या छै.
            इस्कूल भले ऊ कबी नि जै सको,पण इस्कूल जान्द बगत सदनि इस्क्वल्या छोरों तै द्य्ख्दु छौ.इस्कूल जाणे-आणे टैम पर ऊ गोर-बखरों तै सड़क का नजीक ले आन्दु छौ.इसक्वल्यूं अर आंदा-जांदा लोगोँ से ऊ रोज बीड़ी मंग्दु छौ.द्वी बीड़ी मांगी कै ऊ एक तै कंदूड मा लगे दींदु अर हैंका तै जलाणो माचिश बी मंग्दु छायो.बीड़ी सुल्गैकी ऊ मुंड हलैकी मुल-मुल हैन्सदु.बीड़ी का दगड़ द्वी-तीन तिल्ली बी मंग्दु छौ.बाद मा कैइ  चिफल़ा ढुंगा पर कोरि कै बीड़ी जलांदु छौ.
            पौड़ी बिटि डीएम् साब धुमाकोट-नैनीडांडा  का दौरा पर अयाँ छया.ऊ धुमाकोट तहसील बिटि जीप-गाड़ी से अदालीखाल पी डब्ल्यू डी  बंगला मा जाणा छया.संगल्या खाळी का समणी बंदरी तै जीप औंद दिखे.वैते बड़ी देर बिटि बीड़ी कि तलप लगीं छै.पैली द्वी-तीन पैदल जाण वलोंन वैतई बीड़ी नि दे.एक ठ्यल्ला बि गै,वैन बीड़ी त नि दे पण काल़ू धुंवा वैका समणि छोडि कै घ्वां चलिगे.
             बंदरी तै जनि जीप औंद दिखे,वैकी तलप और बढ़ी गे.वैन सड़क मा खड़ू ह्वैकी दूर बिटि ही हाथ हिलाणु शुरू करी दे..वैन सोचि कि कखि यू बि खसगी नि जा.डरैबरन दूर बिटि ही खूब हौरन बजाई ,पण बंदरी टस से मस नि ह्वै..ऊ गाड़ी रुकाणो हाथ हिलाणु रहे.डीएम् साबन सोचि कि क्वी जादा परेशान होलू..ऊंन डरेबर तै रुकणो इशारा करी.गाड़ी रोकी कै साबन पूछी--क्या बात है ?कोई परेशानी है.?.बंदरी न मुल-मुल हंसी कै बोली--कुछ न यार ..एक बीड़ी पिलाई दे.
              डीएम्  साब वैकी पूरी बात त नि समझा पण जाणि गईं कि यू बीड़ी मांगणु.ऊंन अपणो अर्दली तै इशारा करी.डरेबर ब्वल्द ,''चलते हैं सर,कुछ नहीं है.ऐसे ही पागल आदमी है.''.बंदरी न फिर बोलि-दे-दे यार दे दे.,क्य बिगड़णु तब....डी एम् साब का ब्वलण पर अर्दलीन  सिगरेट कि डब्बी निकाळी अर द्वी बत्ती दे देनी..बंदरीन एक सिगरेट अपणा कन्दूड़ मा लगे अर हैंकि गिच्चा मा लगे कि बोलि--सल़े डब्बा बि त होलू.? अर्दलीन  लैटर  निकाळी कै सिगरेट जलै दे..डरेबरन गाड़ी start करी दे..बंदरी सिगरेट कि कश मरदू ,मुल-मुल हैन्सदु तब तक हाथ हिलांदु रहे,जब तक गाड़ी ढैया का पली तरफ नि चलिगे.
 

           डॉ नरेन्द्र गौनियाल   ....सर्वाधिकार सुरक्षित . 

--

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
******हिसाब*****गढ़वाली ननि कथा.



                  कथा--- डा. नरेंद्र गौनियाल 


हमर गौं का बगल मा च मैलगाँव.यख छाया एक संतू काका अर उंकी घरवाळी सावित्री काकी.काकी त अब भग्यान ह्वैगे अर काकाजी भाबर अपणि नौनि का दगड़ चली गैनी.संतू काका पोस्टमैन छाया.सरकारी नौकरी  छै पण अपणा गौं से दूर.एक हफ्ता मा ही घौर आंदा छाया.
         सावित्री काकी गौं मा ही काम-काज मा घुसेणि रैंदी छै.शरीर भौत कमजोर पण लोभ तै कख औंद चैन.लगीं रैंदी छै रक्कोडिकी.कुछ काका बि चैन से नि रैणी दींदु छौ. छुट्टी का दिन ही लग्यूं रैंदु छौ घचर-घचर. यख मा इनु ना,वख मा उनु ना.काकी का तिन्गड़चा लगे दींदु छौ.जोग बि इनु खोटु कि एक नौनि का पिछ्न्या  हैंकि नौनि.बर्स्वन्या ह्वैगैनी पण एक बि सारू सि ना.काका-काकीन बि एक नौना का बाना नौन्यूं कि थुपड़ी लगे दे.पट्ट छै छोरियों का पिछ्नाएँ एक ह्वै बि पण ऊ नि राई.
        अब त काका -काकी द्वी जनकि बौल्ये गईं.बड़ी मुश्किल से कुछ महीनों मा ठीक-ठाक ह्वैनी. पण हे निर्भगी जोग ! काकी तै राजयक्ष्मा रोग (टीबी )ह्वैगे.काकाजिन इलाज करी पण कबी कखी,कबी कखी.ठीक से इलाज नि ह्वै.आखिर काशीपुर अस्पताल मा जैकि एक्स-रे,खून-बलगम जांच का बाद टीबी कु इलाज शुरू ह्वै.कुछ दिन इलाज का बाद काकी का मुख पर कुछ पाणि ऐगे.काकाजीन हर्बी फिर लापरवाही शुरू करी दे.एक साल तक लगातार इलाज नि ह्वै.अर काकी फिर बिमार पड़ी गे.तब काकाजी एक दिन दवे कि पर्ची लेकी ऐगेनी.
        काकन बोली -डॉ साब नमस्कार.
        मिन बोली -काकाजी नमस्कार .क्य हाल छन. कनि च अब काकी ?
         काकाजिन बोली-अरे ब्याटा क्य बुन.काकी त फर भौत बिमार पड़ी गे.
         मिन बोली-तुमन बाल इलाज नि कारू पुरु.टीबी कु इलाज साल भर करदा त काकी बिलकुल ठीक ह्वै जांदी.
         काकाजिन बोली-अरे डॉ साब क्य बुन तब.ह्वैगे गलती.पण अब त हालत भौत खराब च.
         मिन बोली-तुम तुरंत ऊंतई अस्पताल लिजावा अर भर्ती करी द्या.
          काकाजी-अब त क्वी उम्मीद नि छा.तुम ईं पर्ची से द्वी दिन कि दवे दे द्या.तब बचीं रैली त देखि ल्यूला.
मिन ऊंतई द्वी दिन कि दवे दे.काकाजीन  पूछी कि कत्गा ह्वै.? मिन बोली कि चालीस रुपया ह्वैगेनी.काकाजिन अपनों बटवा निकाली कै सौ रुपया कु नोट हैंका हाथ पर रखी,दस रुपया देकी बोली-बाकी हैंका दिन..मिन बोली काकाजी तुमारा हाथ मा त यू सौ रुपया छन.काकाजिन बोली-ब्याटा क्य बुन तब.आज मेरो ठुलू जंवाई अर समधी अयाँ छन वींकी खबर लीणो.तौन एक अद्ध्या त जरूर ही पीण.अर कुछ रुपया बचि जाला त  दगड़ मा नमकीन कि थैली बि त लीण.



Copyright @ Dr .Narendra Gauniyal

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
                                  Sab: A Garhwali Story about Pride Love for Native Place and Progeny

               
                 (Review of Garhwali Story Collection ‘Gari’ by Durga Prasad Ghildiyal)

                                   Bhishma Kukreti


[Notes on Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; Garhwali Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; Uttarakhandi Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; Mid Himalayan Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; Himalayan Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; North Indian Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; Indian Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; Indian subcontinent Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; SAARC Countries Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; South Asian Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; Asian Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny]
[आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण गढ़वाली कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण उत्तराखंडी कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण मध्य हिमालयी कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण हिमालयी कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण उत्तर भारतीय कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण भारतीय कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण दक्षिण एशियाई कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण एशियाई कथाये -कहानियां लेखमाला ]

    ‘Gari’ is first Garhwali story collection by prominent Garhwali fiction writer Durga Prasad Ghildiyal (Padalyun, P.G.1923-2002) who published three Garhwali story collections. Ghildiyal published forty Garhwali stories.
                ‘Sab’ is one of the most discusses stories of ‘Gari’. The daughter of a school teacher was ignored by her parents. In retaliation, she aspired for her son becoming ‘Sab’ or big man. Her son becomes an officer (Sab). However, the son does not care about her mother and his native place.
 The central theme of ‘Sab’ is pride by a daughter ignored by parents, love for own mother land and progeny. The story blends philosophy, spirituality and materialism together with outstanding class for which Ghildiyal is famous.
Reference-
Abodh Bandhu Bahuguna, Gad Myateki Ganga
Dr Anil Dabral, 2007 Garhwali Gady Parampara
Bhagwati Prasad Nautiyal, articles on Durga Prasad Ghildiyal l in Chitthi Patri
Dr. Nand Kishor Dhoundiyal, Garhwal Ki Divangat Vibhutiyan


Copyright@ Bhishma Kukreti 5/7/2012
Notes on Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; Garhwali Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; Uttarakhandi Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; Mid Himalayan Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; Himalayan Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; North Indian Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; Indian Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; Indian subcontinent Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; SAARC Countries Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; South Asian Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny; Asian Stories of Pride, Love for Native Place and Progeny to be continued….
आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण गढ़वाली कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण उत्तराखंडी कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण मध्य हिमालयी कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण हिमालयी कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण उत्तर भारतीय कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण भारतीय कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण दक्षिण एशियाई कथाये -कहानियां;आत्मसम्मान , निज भूमि प्रेम; वात्सल्य पूर्ण एशियाई कथाये -कहानियां लेखमाला जारी .....

         

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
*********पिठाई*********एक गढ़वाली कथा.

 

                    कथाकार - डा. नरेंद्र गौनियाल 

 

[गढवाली लघु कथा, उत्तराखंडी लघु कथा , मध्य हिमालयी भाषाई लघु कथा, हिमालयी भाषाई लघु कथा, उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा,भारतीय क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा,भारतीय उप माहाद्वीप की क्षेत्रीय भाषाई लघु कथासार्क देशीय क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा;दक्षिण क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा;क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा लेखमाला]

 


बरखा नि ह्वैत गौं वलों कि सगोड़ी सुकि कै तड़म लगीगे.गौं का लोग रोज कूली कु पाणि पैटाणो जएँ,पाणि लेकी ऐं,पण कुछ देर मा ही पाणि अपणा आप बंद ह्वै जाव.शुरू मा कुछ पता नि चली,पण बाद मा असलियत कु पता चलि गे.रौखड़ मा धर्यूं पाणि कु पन्दाल़ो जब भुयां कट्यों मिलि त लोगोँ तै शंका ह्वैगे कि क्वी ये काम तै जाणि -बुझि कै कनूं.
           एक दिन जब गौं का लोग पन्दाल़ो बणेकि पाणि पैटाणो गैनी त नंदू मथि अपणा घौर बिटि गाळी देण बैठ.वैन बोली -''यख बिटि फुंड चलि जाव, निथर मिन तुम घंट्याणा छौ. तब जैला ल्वे चट्दा-चट्दा.'' वैन गौं वलोँ तै गाळी बि दे.वैकी गाळी -ढाळी सूणि कै लोगोँ तै गुस्सा ऐगे.कुछ  वैतई पटगाणो बि गैनी ,पण वो अपणा भितर चलि गे.गौं वल़ा पाणि पैटेकि ले ऐनी.राति फिर पाणि बंद ह्वैगे.नंदून फिर पंदाल़ो काटी कै कूल तोड़ी दे.
           गौं वलोँन प्रधान जी का घौर मीटिंग करे अर पटवारी जी तै खबर देकी धुमाकोट तहसील मा रिपोर्ट करी दे.एक कॉपी डीएम् तै बि भेजी दे. हैंका दिन पटवारीजीन ऐकि पैली खाणु-पीणु करी अर तब गौं वलोँ दगड़ जैकि कूल कु निरीक्षण करे.नंदू तै बुलाई कि खूब हडकाई..द्वी-चार चटग बि लगैनी.अर बोली ''ये सूणि ले तू ! आज बिटि पाणि पर ना छड़े..दुबारा पाणि तोड़ील़ू त हथकड़ी लगैकी लैंसडौन भेजी द्योंलू''.नंदुन बोली-''न . न .साब ! मि त कुछ बि नि करदू.यूं लोगोँन  पाणि लिजैकि कि मेरो घास लतोड़ी दे.पाणि पर क्वी ग्वैर छेडदा होला''.फिर लोग पाणि पैटे कि ऐगेनी.पटवारीजी तै गौं मा च्या पिलैकी जांद दा पिठे लगैकी भेजी दे.
          सबी लोग निश्फिकर ह्वैगे छ्या कि पाणि अब बंद नि होलू.द्वी-तीन दिन तक पाणि ठीक ऐ.पण तीसरा दिन फिर चुकापट .द्वी-तीन नौना पाणि ठीक करणो गैनी त नंदून मथि बिटि गालि देकी घंट्याणु शुरू करी दे.नौना दौड़ी कै वापस ऐनी अर बताई कि पाणि फिर तोड़ी यालि.अर नंदू घंट्याणो बि ऐ.गौं वलोंन एक आदिम पटवारी कि चौकी मा भेजी.पटवारीजी चौकी मा नि मिला.पण पता चलि कि द्वी दिन पैली नंदू बि चौकी मा आयूं छौ.
           दरअसल यू पाणि एक छोया बिटि नंदू कि सिमर्य पुन्गडी ह्वैकी आन्दु छौ.नंदू का बुबाजी का टैम से  ही ये पाणि तै लमधार का लोग पीणा   का दगड़ गोर-भैंसों तै पिलाणो अर सगोड़ी-पतोडीयों मा चरणों काम ल्यान्दा छाया.नंदू पैली त कुछ नि ब्वल्दु छौ,पण हर्बी लमधर्यों का  सगोडा -पतड़ा देखि कै वैकु मन फुके गे.वैकी कूड़ी का मैला तरफ कोनाकोट का लोगोँन बि वैते फुल्से  दे कि त्यारा पाणि से बन्या छन यू लमधर्य फुन्यनात.कबी त्वेकू बि भेज्दीन मूल़ा कि जैडी,प्याजों का घिन्डका,आलू का बियाँ ,गोभी का फूल.नंदू कु बि ख्वपडा घूमी गे.
            नंदू कि कूड़ी लमधार अर कोनाकोट का बीच मा यकुलो धार मा छै.कोनाकोट वालों का दगड़ वैका झगडा रैंदा छाया जबकि लम्धार वालों दगड़ भलि पटदी छै.कोनाकोट वलोंन  चाल खेली कि लम्धर्यों का दगड़ वैका झगडा कन कै करे जएँ.बस नंदू ऊंका बखाण  मा ऐगे.गौं वाला जनि फिर पाणि पैटाणो गयीं,ऊ सरी कुतमदरी दगड़ ऐकि गाळी देण बैठगे अर घंटी चुटाण लगी गे.चार-पांच लोग मथि वैका घार गैनी पण तब तक वैन भितर जैकि द्वार ढकी दे.अपणी कज्यणि तै ऐथर करी दे.भितर बिटि बोले,,''अपणी ब्वे का मैसो..आवो त सै तुम.जणेका कि मुंडली गण्डकी द्यून्लू .कुलाड़ू देखि लियां हाँ.'' गौं वालों सोची कि कखी कुछ बात नि बिगड़ी जाव,ये वास्त ऊ वापिस ऐगेनी.
           दुबारा डीएम् का पास रिपोर्ट करेगे. अबरी दा कानूनगो अर पटवारी द्वीई ऐनी.नंदू जंगल भाजी गे.कानूनगो साबन बोली कि पटवारी जी तुम वैते सम्झैकी  मामलो ठीक करी दियां .झगडा बढाणु ठीक नि छा.गाँव वलोंन  ऊंतई बि खिलाई -पिलाई कि जांद दा पिठाई लगाई.ऊंका जाणा का बाद पटवरीजिन बोली, ''अब एन नि मणि त समझो कि जेल कि ही हवा खालु.''.जांद बगत फिर पटवारी जी तै पिठे लगान पड़ी.
           दिन बितदा गैनी पण पाणि कु मामलू नि सुलझू.अर्जी-पुर्जा चलना रैनी.एक दिन फिर पटवारी ऐगे.गौं वाला अब त परेशान ह्वैगे छाया.परधान सदानन्द जी अर दाना-दीवना सब्योंन एक जुट ह्वै कि बोलि,''पटवरीजी  पैली तुमन बोलि छौ कि दुबारा पाणि तोडालो त वैते जेल भेजि द्योंलू.अब क्य ह्वै ?'' पटवरीजीन बोलि,''देखो भै ऊ अपणी पुन्गड़ी बिटि नि आणि दींदु त हम बि क्य कैरि सकदा.''वैनत सर्या गौं पर फौजदारी केस करी यालि छौ.मिन वैतई समझाई कि चुप करे.निथर तुम सरि गौं का ही जु रैंदा तब जेल.''परधानजिन बोली कि बिन मर्यां -त्वडयाँ   केकु फौजदारी केस ..?पटवरिन अपणी घुमौदार मूंछ मलासी अर बोली,''अरे साब परधान जी ! वैका घर जांठा-बलिंडा लेकि त गया छन लोग.ह्वै सकद द्वी-चार धड़क लगे बि होलि..ऊ त इनु बि बुनूं छौ कि वैकी कज्यणि पर भी छेड़खानी करे.गुलोबंद अर कंदुडा का मुंदडा बि ली गैनी.''परधानजीन बोली,''पटवारी जी यू सब झूठ च.तुम इनु किलै बुना छौ.?.  गौं वलोंन बोली  कि पटवारी जी यू क्य लगणा छौ तुम, कंडली कु सि पात ..द्वी तरफ.?.पटवरिन  बोली,''देखो.,''जतगा दा तुम लोगोँन पिठाई लगाई,मिन तुमर तरफ बोलि,पण जब नंदू बि हौरि जादा पिठे लगे दींद त मि वैका  तरफ आंखि नि बूजि सकदु.'' पिठाई कु कमाल अर पटवारी कि बेशर्मी देखि कै गौं वला हक्चक रैगैनी.अबरी दा पिठाई नि लगाई..पटवारी पिछ्नैं ह्यर्दा-ह्यर्दा अपणी चौकी तरफ चलिगे..हैंका दिन पता चलि कि पटवारी कि बदली ह्वैगे.अर एक मैना बाद ही नौकरी से सस्बैंड ह्वैगे.कुछ दिन बाद ही गौं मा पानी का नल ऐगेनी.अब कूल का पाणी कि जरूरत बि नि रै.झगड़ा खुद ख़तम ह्वैगे.
                                डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित......   


गढवाली लघु कथा, उत्तराखंडी लघु कथा , मध्य हिमालयी भाषाई लघु कथा, हिमालयी भाषाई लघु कथा, उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा,भारतीय क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा,भारतीय उप माहाद्वीप की क्षेत्रीय भाषाई लघु कथासार्क देशीय क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा;दक्षिण क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा;क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा लेखमाला जारी .....

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
******बिष्ट बूबाजी******एक गढ़वाली कथा



कथाकार- डा. नरेंद्र गौनियाल




काफलागैरी पिर्मू का ब्यो का दिन हम लोग न्यूतेर मा जाणा छाया.उकाळी का बाटा का बाद सड़क मा पहुँची के थ्वडी देर सुस्ताण बैठि गयाँ.सड़क का किनर पर एक अंग्रेजी अखबार कु टुकड़ा छौ. बिष्ट बूबाजीन भुयां बिटि अखबार कु पन्ना उठे कि द्वी हाथों मा पकड़ी अर दड़ा-दड पढ़न लगी गईं.मि हक्चक ऊंतई देख्दू रै गयूं.जु मन्खी अपणु नौं हिंदी मा बि बड़ी मुश्किल से लिखी सकदा छाया ,ऊ फ़टाफ़ट अंग्रेजी .....? मेरी त खोपड़ी चकरे गे.मिन समझी कि बूबाजी पर क्वी द्यब्ता य भूत ऐगे.मि पुछ्नु कि बूबाजी क्य ह्वै तुमते ? अर बूबाजी मुल-मुल हैंसदा अख़बार पढ़द रयान.बाद मा बताई कि अंग्रेज साब का दगडी सीखी थोड़ी-भौत.उन बूबाजी निरट अनपढ़ छाया.
           बहुमुखी प्रतिभा का धनी बिष्ट बूबाजी जमणधार गौं अर नजीक सर्या मुल्क का गार्जियन छाया.गौं कु गरीब-अमीर सब ऊंकु तै एक समान छौ.हर मवासा का दुःख-सुख मा ऊ शामिल हूंदा.सदाबहार मुल-मुल हैंसी का दगड ऊ लोगोँ कु बि खूब मनोरंजन करदा छाया.हाजिर जबाबी मा ऊंकु क्वी जबाब नि छौ.क्वीई बनावटीपन बि ना.अकबर का दरबार मा बीरबल का जनि ऊ सरि गौं-मुल्क मा मनोरंजन अर बुद्धि-विवेक कु खज्यनु छाया.दुःख-सुख,खैरि-बिपदा,ब्यो-बरात,पूजा-पाती हर मौका पर ऊंकु अलग ढंग छौ.उंकी छवीं सूणि कि लोग अपनों बड़ो से बड़ो दुःख बि बिसरि जांद छा.
          कुछ लोग समाज मा कब्बि-कब्बि इन बि पैदा ह्वै जन्दीन जु अपणा आप मा एक मिशाल बणी जन्दीन.इनि एक महान विभूति छाया गुजडू पट्टी का जमणधार गौं मा स्व० श्री खुशाल सिंह बिष्ट जि .अजी साब क्य बोलि सक्दान ..पण  समझो गजब कि पर्सनालिटी.हमन त ऊंका फुल्यां जूंगा अर अध् फुल्यों बर्मंड ही देखि.अपणा बचपन से लेकि ऊंका आखिरी दिनों तक हमन ऊंतई एक जनु ही देखि.
            गौं का हरेक परिवार दगड़ ऊंको निकट सम्बन्ध छौ.हर ब्यो-पगिन मा भण्डार (स्टोर) कि ड्यूटी उंकी ही रैंदी छै.हैंका का सुख से सुखी अर दुःख से दुखी होण वल़ो इनु इन्सान मिन हैंकु क्वी नि देखि.कैकि चीज पर क्वी निंगा ना. खाण -पीण मा भौत मितव्ययिता रखदा छाया. द्वी घुसळी सुबेर कल्यो का टैम पर अर द्वी राति खाणा का बगत.हौरि खाणो  जिद्द कन पर बोल्दा छा कि बुढ़ापा मा मशीनरी कमजोर पड़ी जांद.तुम लोग जवान छा,लक्कड़-पत्थर सब हजम कैरि सकदा.
            तब हमर गौं मा स्यारा(धान कि रोपणी ) मिलि जुली के लगदा छाया.बूबाजी सेरा लगाण वलोँ का वास्त रोटी,साग,परसाद बणान्दा छा.मर्द लोग पाटा सांदा अर ब्यटुला धान लगन्दा छाया.बूबा जि कि ड्यूटी,च्या पिलाने अर खाणु खिलाने रैंदी छै.सेरों मा इनु आनंद आन्दु छौ कि क्य बुन तब.(अब त सेरी-घेरी सब बांजी पड़ी गैनी.)
        बूबाजी समय का बड़ा पाबन्द छाया.सबेर जल्दी उठ्णु अर राति जल्दी से जाणु.खाली कबी नि रैंदा छाया. बैठि बैठि कै बि कुछ न कुछ करणु उंकी आदत छै.चौक मा बैठ्याँ जब लोग छवीं -बत्त लगान्दा,तब बि ऊ दगड़ मा थाड़ मा जम्यूं घास-पात चुंडदा छाया.खेती का काम तै ऊ बोल्दा छा कि यू कृषि कु पेपर छा सबसे बड़ो अर सबसे कठिन.पण छा यू कम्पलसरी...नौकरी-चाकरी,व्यापार,काम-धंधा सब कृषि का समणि कुछ नि छन.रुपया-पैसा त कुछ बि करि कै कमाए सकेंद पण बिन खेती का सब कुछ बेकार च.अगर खेती नि होलि त अनाज पैदा नि होलू.तब सरि दुन्या क्य खाली.?मंखिं त सदनि अन्न ही खाण.रुप्या खैकी पुट्गी नि भोरे सकेंदी.
             भारी ग़मगीन वातावरण तै बि ऊ अपणि स्वाभाविक हास्य वृति से हल्कू-फुल्कू बणे दीन्दा छा.गौं मा जब क्वी बुड्या -बुढडी  सख्त बीमार हून्दो त बूबाजी बोल्दा छा कि ,''टिकट त कटिण वलो च पण अबी जब तक सीट खाली नि हून्दी,तब तक कुछ नि हूंदू.जब ओर्डर ऐ जालो,तब अफु ही सटगंद बिन बतयाँ.ऊ बोल्दा छा कि ब्यटाओ ..मुर्दा का दगड बि आज तक क्वी नि गै.अर सदनी भूकी बि क्वी नि रहे.यू माया जाल इनु छा कि मुर्दा फुकी के कुछ देर मा ही मन्खी फिर काम-धंधा पर लगी जांद.
             अपणा आखिरी टैम पर जब बूबा जि बीमार ह्वैनी त ऊं खबर भेजि कि मै तै देखि जा.मि द्वी अनार कि बीं अर कुछ दवे ल्हेकी  घार गयूं.मिन बोलि कि बूबाजी तुम भौत कमजोर ह्वै गयां.तुमते इलाज का वास्त दिल्ली भेजि द्यून्ला.वख तुमरो नौनु,ब्वारि,नाती तुमरि देखभाल कारला.इलाज बि ठीक ह्वै जालो...बूबाजीण मेरो हाथ पकड़ी अर बोले,''बेटा मिन  अब कखि नि जानू.अब आखरी टैम ऐगे.जिंदगी भर ईं कूड़ी  मा रयूं.तुम सब्बि गौं वालो दगड़ जिंदगी बताई.तुम सब लोग म्यारा अपणा छा.सारा गौं अर मुल्क मेरो अपनों छा.मि दिल्ली चलि जौंलू त तुमन एकन बि मिताई लखड़ो नि दे सकणु.मेरी कुटमदरी वलों का भाग पर मेरी सेवा कनि होलि त ऊ मीम आला.जिंदगी कु दुःख-सुख मिन तुमारा दगड यख देखि त सिर्फ म्वार्ने खातिर दिल्ली किलै जौं.अप णा उद्गार व्यक्त करि कै ऊंको हस भोरी कै ऐगे.उंकी आन्ख्यूं मा मिन पैली बार आंसू कि धार देखि.मेरो मन बि दुखी ह्वैगे..मेरा बि आंसू टपगण लगी गईं. बूबाजिन बोलि,''बेटा मैते देखि गे तू.अब दवे कि जरूरत नि छा.बस जैदिन चलि जौंलू,जरूर एक लखड़ो धरनों ऐ जै. ऊंको प्यार,विश्वास अर इच्छा शक्ति देखि कै मि सन्न रै गयूं.बूबा जि का दगड उंकी घरवाली बि छै.बाद मा ऊंको नौनु,ब्वारी,नाती बि ऐगेनी.
             एक दिन ऊ ईं दुन्य छोडि कै चलि गईं.सरि गौं का लोग शोक मा डूबी गईं.देवलगढ़ नदी का श्मशान घाट पर  ऊंको अंतिम संस्कार ह्वै.मि बि लखड़ो दीणो गयूं.बूबा जि कि चिता धू-धू करि जळी गे.उंकी याद हमरि जिकुड़ी मा बसीं रैगे.ऊंका बिचार,संस्कार,प्यार-प्रेम सदनि याद आन्द..
            डॉ नरेन्द्र गौनियाल.. सर्वाधिकार सुरक्षित ...                     

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
 Dhauns: Garhwali Drama about Role of Parents in Children Education

(Review of a Garhwali Play ‘Dhauns’ (2002) by playwright Om Prakash Semwal)

                             Bhishma Kukreti

[Notes on Dramas about Role of Parents in Children Education; Garhwali Dramas about Role of Parents in Children Education; Uttarakhandi Dramas about Role of Parents in Children Education; Mid Himalayan Dramas about Role of Parents in Children Education; Himalayan Dramas about Role of Parents in Children Education; North Indian Dramas about Role of Parents in Children Education; Indian Dramas about Role of Parents in Children Education; SAARC Countries Dramas about Role of Parents in Children Education; South Asian Dramas about Role of Parents in Children Education; Asian Dramas about Role of Parents in Children Education]
[शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी नाटक; शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी गढ़वाली नाटक;शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी उत्तराखंडी नाटक; शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी मध्य हिमालयी नाटक;शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी हिमालयी नाटक;शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी उत्तर भारतीय नाटक;शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी भारतीय नाटक;शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी दक्षिण एशियाई नाटक;शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी एशियाई नाटकलेखमाला ]


         There have been scenes in many Hindi and other Indian language films wherein the parents of spoiled children harass the teachers who want students take right path and there should be restrictions or a system to bring the spoiled students on main stream.  There have been never ending discussions and debates at many forums about the problems of spoiled students and their problems against the role of parents in proper education of their children.
      Om Prakash Semwal wrote a Garhwali drama ‘Dhauns’ staged in Government Inter College, Chopta, North Garhwal in 2002. Sons of Gumanu and Rati don’t take interest in study. Gumanu and Rati bribed head master of middle school for passing their sons. The principal of local Inter College resists admitting these spoiled students in the college. The local political leader comes to rescue the parents of spoiled students. One day, these two students indulged into theft and police has to take the stock.
          Semwal wrote the drama for teen age students and the simple language of drama fulfils the aim of playwright. The drama portrays that in education system, there is a specific role of parents and governing bodies of the school or college.  The drama leaves space for discussion on the subject of role of parents in providing better education for their children.

Copyright@ Bhishma Kukreti, 5/7/2012

Notes on Dramas about Role of Parents in Children Education; Garhwali Dramas about Role of Parents in Children Education; Uttarakhandi Dramas about Role of Parents in Children Education; Mid Himalayan Dramas about Role of Parents in Children Education; Himalayan Dramas about Role of Parents in Children Education; North Indian Dramas about Role of Parents in Children Education; Indian Dramas about Role of Parents in Children Education; SAARC Countries Dramas about Role of Parents in Children Education; South Asian Dramas about Role of Parents in Children Education; Asian Dramas about Role of Parents in Children Education to be continued …
शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी नाटक; शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी गढ़वाली नाटक;शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी उत्तराखंडी नाटक; शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी मध्य हिमालयी नाटक;शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी हिमालयी नाटक;शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी उत्तर भारतीय नाटक;शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी भारतीय नाटक;शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी दक्षिण एशियाई नाटक;शिक्षा में अभिभावकों का योगदान सम्बन्धी एशियाई नाटकलेखमाला जारी .....

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
                  Chhorichhapar:  Garhwali Story about Struggle by a Girl for Family 


                      (Review of Garhwali Story Collection ‘Gari’ (1981) by Durga Prasad Ghildiyal)


                                    Bhishma Kukreti   

[Notes   on Stories about Struggle by a Girl for Family; Garhwali Stories about Struggle by a Girl for Family; Uttarakhandi Stories about Struggle by a Girl for Family; Mid Himalayan Stories about Struggle by a Girl for Family; Himalayan Stories about Struggle by a Girl for Family; North Indian Stories about Struggle by a Girl for Family; Indian Stories about Struggle by a Girl for Family; Indian sub continent Stories about Struggle by a Girl for Family; SAARC Countries Stories about Struggle by a Girl for Family; Asian Stories about Struggle by a Girl for Family]
[ स्त्री संघर्ष की कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की गढवाली कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की उत्तराखंडी कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की मध्य हिमालयी कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की हिमालयी कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की उत्तर भारतीय कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की भारतीय कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की सार्क देशीय कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की एशियाई कथा कहानी लेखमाला ]
 

  Chhorichhapar is a specific word in Garhwali language. ‘Chhora’ or ‘Chhori’ means the child without parents or without father.  ‘Chhorichhapar’ is the story of a mother of three daughters and eldest daughter. Her father left them for another woman. The eldest daughter and her mother struggle for the survival of family. After the death of mother, the eldest daughter takes all responsibilities for upbringing her two younger sisters.  At the end a moment comes in the life of eldest sister to choose between her responsibility and for her own life. The story has tragic emotion throughout. However, this continuous tragic emotion does not break the intensity of the story, and does not become hurdle for compelling situation for the readers. Durga Prasad Ghildiyal has the capacity for compelling the readers reading the story till end.
 Reference-
1-Abodh Bandhu Bahuguna, Gad Myateki Ganga
2-Dr Anil Dabral, 2007 Garhwali Gady Parampara
3-Bhagwati Prasad Nautiyal, articles on Durga Prasad Ghildiyal l in Chitthi Patri
4-Dr. Nand Kishor Dhoundiyal, Garhwal Ki Divangat Vibhutiyan

Copyright@ Bhishma Kukreti, 6/7/2012

Notes   on Stories about Struggle by a Girl for Family; Garhwali Stories about Struggle by a Girl for Family; Uttarakhandi Stories about Struggle by a Girl for Family; Mid Himalayan Stories about Struggle by a Girl for Family; Himalayan Stories about Struggle by a Girl for Family; North Indian Stories about Struggle by a Girl for Family; Indian Stories about Struggle by a Girl for Family; Indian sub continent Stories about Struggle by a Girl for Family; SAARC Countries Stories about Struggle by a Girl for Family; Asian Stories about Struggle by a Girl for Family to be continues…
स्त्री संघर्ष की कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की गढवाली कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की उत्तराखंडी कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की मध्य हिमालयी कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की हिमालयी कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की उत्तर भारतीय कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की भारतीय कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की सार्क देशीय कथा कहानी;स्त्री संघर्ष की एशियाई कथा कहानी लेखमाला जारी ....


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
*********शहीद बीरू हवालदार********एक गढ़वाली कथा.



कथाकार- डा. नरेन्द्र गौनियाल 


वै दिन बीरू कु रेस्ट छौ.वैका दगडया कि डयूटी छै.राजौरी सेक्टर मा कुछ फौजी बौडर तक भ्यजणो गाड़ी लिजाणी छै.ड्यूटी वलो दग्डयन बोलि कि आज मेरि तब्यत कुछ ठीक नी.बीरून बोलि कि तू आराम कैर,मि चलि जौंलू.ऊ चट्ट तैयार ह्वैकी गाड़ी लेकि चलिगे.बौडर मा जनि गाड़ी अपणा ठिकाना पर पहुँचण वली छै,वाँ से पैली ही छोप मा बैठ्याँ दुश्मन कु फायर खुलिगे.हमारा फौजी भयोंन मोर्चा संभाली कै जबाबी फायरिंग करे.बीरून गाड़ी हैंका तरफ सुरक्षित जगा मा घुमाणे कोशिश करे पण एक गोली वैका बरमंड मा लगी गे.कुछ लोगोँन मोर्चा समालि अर कुछन बीरू तै अस्पताल पहुँचने कोशिश करे,पण बीरू तै इलाज कि जरूरत नि पड़ी.ऊ मुल्क का वास्त शहीद ह्वैगे.
         ''जतो नाम ततो गुण'',य कहावत अपणा मुल्क का बीर सपूत बीरून पूरी करे.मौत हो त इनि. दुःख का दगड़ गौरव.वियोग का दगड़ अमरत्व.कारगिल युद्ध का दौरान अपणु क्षेत्र कु यू पैलू बीर छौ जैन बीरगति प्राप्त करे.जनि यूनिट बिटि बीरू कि शहादत कि खबर लैंसडाउन पौंछि पूरी छावनी मा मातम छैगे.यख ही गढ़वाल राईफल मा बीरू भर्ती ह्वै छौ २० साल पैली.दुःख का दगड़ छावनी मा फौजी वैकी शहादत पर फख्र बि महसूस करना छाया.बीरू कु पार्थिव शरीर लैंसडाउन पहुँची, तब वख बिटि सैनिक सम्मान का साथ शवयात्रा शुरू ह्वैगे.
               पौड़ी जिला मा नैनीडांडा विकास क्षेत्र,गुजडू पट्टी मा बसोली गौं मा स्व० तेजराम सुन्द्रियाल जि कु ठुलू नौनु छौ बीरू.दर्जा पांच तक डूंगरी मा पढ़णा का बाद दस पास  इंटर कॉलेज अदालीखाल बिटि करे.मि बि फख्र करदू कि बीरू शहीद मेरो क्लास फैलो छायो.दर्जा छै बि टि दर्जा आठ तक हम नजदीक ही क्लास मा बैठ दा छाया.नौ मा सेक्सन बदली गे.दस पास करिकै बीरू गढ़वाल रायफल मा भर्ती ह्वैगे.जब बि कबी छुट्टी मा घौर आन्दु छौ,तब खूब छवीं लगान्दु छौ फौजी जीवन कि.२० साल नौकरी करना बाद रिटेर्मेंट कि तैयारी करीं छै.जेठ कु मैना ऊ छुट्टी आण वालो छौ,अचानचक कारगिल युद्ध शुरू ह्वैगे अर छुट्टी कैंसिल ह्वैकी ड्यूटी राजौरी सेक्टर मा लगीगे,जख ऊ शहीद ह्वैगे.
               शवयात्रा लैंसडाउन बिटि कोटद्वार,नजीबाबाद,धामपुर ह्वैकी जनि काशीपुर पौंछि,भीड़ और जादा बढ़दी गे.काशीपुर मा पूरो बाजार बंद ह्वैगे.हजारों-लाखों कि संख्या मा जनता फूल-माला लेकि  शहीद बीरू तै श्रद्धांजलि देणी छै.काशीपुर बिटि रामनगर तक घंटों लगी गईं.रामनगर मा  पूरी सड़क भीड़ से भारी गे.हजारों लोग शहीद का दर्शन का वास्त जमा ह्वैगेनी.प्रशासनिक अधिकारी,सामाजिक कार्यकर्त्ता,राज्य आन्दोलनकारी संगठन,,महिला,छात्र,शिक्षक,कर्मचारी,नाना-ठुला सब ऐगीन.फूल मालाओं कि ढेर.बीरू हवालदार जिंदाबाद,,..बीरू त्यारो यो बलिदान,सदनि रालो हमते ध्यान..ये तरह का नारों का दगड़ शवयात्रा डूंगरी-बसोली का तरफ चल पड़ी.
             क्षेत्र का सांसद,विधायक,मंत्री,डीएम्,एसडीएम्,ब्लॉक प्रमुख,हौरि सबी जनप्रतिनिधि,समाजसेवी शवयात्रा मा शामिल ह्वैगीं.राति ८ बाजी जनि शवयात्रा बसोली गौं मा पहुची त गौं बि छावनी का रूप मा ही बदली गे.गौं मा खड़ू हूणों जगा बि नि छै.लैंसडौन बिटि बीरू कि घरवाली अर नौनु-नौनि बि दगड़ी ऐगे छाया.घार मा ब्वे-बाप छाया.
            सुबेर स्थानीय श्मशान घाट सल्डमहांदेव तक तीन घंटा मा शवयात्रा पौंछि.ये इलाका का सबी बाजार,स्कूल बंद ह्वैगी.सुबेर बि टि ही शहीद तै आखरी बिदाई देनो भारी जनसमूह जमा ह्वैगे.फौजी भयों सैनिक सम्मान का दगड़ शहीद तै अंतिम सलामी दे.बीरू कु १२ साला नूनं अपनों शहीद बुबा कि चिता तै मुखाग्नि दे...नारा लग्न रैं.--जब तक सूरज चाँद रालो..बीरू तेरो नाम रालो.
           द्वी-चार दिनों तक अख़बारों मा बीरू ही रहे.शहीद का आश्रितों अर परिवार का वास्त,गौं का वास्त कई सरकारी घोषणा ह्वैगीं.कुछ पूरी ह्वैनी अर कुछ उन्नी रैगेनी..कुटमदरी का आंसू बि हर्बी सुखन लगी गी.अपणी शहादत से ठीक एक साल पैली बीरू अपनों एक शहीद फौजी चिनवा  ड़ी  को बीर सतपाल सिंह को पार्थिव शरीर लेकि खुद ऐ छायो.तब ऊ एक बात बोलि गे छयो कि,''देश का वास्त शहीद हूणों हरेक फौजी को कर्तब्य अर दिली इच्छा हूंद.,पण इनु गौरव हरेक तै नि मिलदु..आखिर बीरून अपणी शहादत कि कामना पूरी करे अर अपनों मुल्क,गौं,ब्वे-बाप सब्यूं कु नौं रोशन करे.



Copyright@ Dr. Narendra Gauniyal           

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22