*********फर्शी *********एक गढ़वाली कथा.
कथाकार- डा. नरेंद्र गौनियाल
सफ़ेद धोती,सफ़ेद कुर्ता,कबरिणी-डबरिणी फतुगी अर कांधी मा लाल गमछा पंडजी पर खूब खिल्दु छौ.कपाल मा लगीं चन्दन की लाल-पीली पिठे त 'सून मा सुहागा'.खानदानी पंडित का साथ, इलाका का नामी-गिरामी मन्खी.कर्मकांडी होणा का कारण जात-पात को कुछ जादा ही ख्याल करदा छाया.उंकी अपणी एक अलग फर्शी छै.वै पर तम्बाकू कै हैंका तै नि खाणि दीन्दा छाया.मेहमानों का वास्त एक हैंकि फर्शी,अर एक चिलम-सजुडा छौ.गस्त मा बि अपणि एक छवटि चिलमणि धरीं रैंदी छै.जजमान लोग,कामी-काजी सब्बि ऊंको भौत मान-सम्मान करदा छाया,पण जरा ऊंका च्व्ख्यापन से डरदा छाया.
एकदा धन्नू लोहार कु नौनु घंतू छवटा नौन्यालोँ का दगड़ पिट्ठू खेलदा-खेलदा गिन्दू ल्य़ाणा का वास्त गलती से उंकी तिबारी मा चलि गे.वैका खुटन पंडजी की फर्शी भुयां लट्गीगे.छवटा नौन्यालोंन हल्ला मचे दे अर य बात सरि गौंमा फैलिगे.पंडजी जब गश्त बिटि घार ऐनी त य बात ऊंका कंदुणों मा चलिगे.ऊंतई भौत गुस्सा ऐ अर ऊंन धन्नू लोहार तै अपणा घार बुलाए.धन्नू बिचरु डरदु-डरदु ऐ अर वैन हाथ जोड़ी कै माफ़ी मांगी.वैन अपणु काल़ू टुपला पंडजी की खुट्यूं मा धरि कै बोलि,''ननु छवारा से गलती ह्वैगे.'' पण पंडजी नि माना अर बोले,''ईं फर्शी तै तू ही लीजा.अर एकी कीमत द्वी सौ तीस रुप्या दे दे.मि हैंकि ले औंलू.अब य फर्शी म्यार काम की नि रैगे.धन्नू बोले,''तुमारा ही लूण-गुड से पल्याँ छौ.माफ़ करि द्या.'' पण पंडजी टस से मस नि ह्वाया अर ऊंन फर्शी धन्नू का तरफ चुटे दे..आंख्यूं मा डब्ब-डब्ब अयाँ आंसू फुंजदा-फुंजदा धन्नू फर्शी लेकि अपणा घौर चलिगे.द्वी सौ तीस रुप्या कख बिटि ल्यूं अचनचक... स्वच्दा-स्वच्दा वैकु ध्यान लुवनी कि हंसूळी पर चलि गे.घार ऐकि वैन हंसूळी सुनार मा बेचिकै पंडजी का रुप्या दे दीं.घंतू तै पकड़ी कै खूब चट्गे दे.अर बोले,''निकळ जा तू घार बिटि.तिन आज सरि गौंमा मेरी नाक कटै दे''. घंतू राति रूंदा-रूंदा बिन खाणु खयां ही सेगे.वैकि निंद बार-बार टुटी जाणी छै.ऊ यु ही स्वचणु रहे कि अब क्य करलू,कख जौंलू?
रतबियन्य मा जनि धन्नू उठिकै दिसा-फरागत गै,घंतुन वैकी फतुगी का खीसा जपगे अर डेढ़ सौ रूप्या खसगे दीं..यु वैकी ब्वैकी हंसूळी बेची कै पंडजी का रूप्या देकी बच्यां छाया.जब तक धन्नू हाथ-मुख ध्वेकी कि ऐ तब तक घंतू चम्पत ह्वैगे.ऊ सुबेर जडाऊखांद बिटि छै बजी वळी बस से रामनगर चलिगे.पुछदा-पुछदा दिल्ली वळी बस मा बैठिकी ब्यखुन्या पांच बजी आनंदविहार बस अड्डा पहुँचीगे.वख जैकि वैकि आंखि रकरे गीं.वैकी समझ मा नि आई कि कै रास्ता भैर निकलूँ. आखिर कुछ मुसाफिरों का पिछ्नैं -पिछ्नैं ऊ भैर ऐगे.एक प्राईवेट बस वल़ो बुनू छौ,''सेवानगर,लोदी रोड,प्रेमनगर.'' वैन सूणि अर चट बस मा बैठिगे.कंडक्टरन पूछे,''कहाँ जाना है ? घंतुन बोलि,''सेवानगर जाण,माधु भैजी का क्वाटर मा.'' कंडक्टर तै ख़ित्त हैंसी ऐगे. वैन घन्तु कु गिचु देखि अर वैन पांच रूप्या कु टिकट दे दे.
सेवानगर मा उतरी कै ऊ फिर रिंगण बैठिगे इना-फुना,पण माधु दा कु क्वाटर नि मिलो.माधु वैकु ठुलू मामा कु नौनु छा जु एक सरकारी दफ्तर मा चपडसी लग्यूं.घर बिटि आन्द दा मारामारी मा ऊ माधु कु क्वाटर नंबर ल्य़ाणु बिसरिगे.रिंगदा-रिंगदा द्वी घंटा ह्वैगीं.हर्बी रुमुक पड़नि शुरू ह्वैगे.चरि तरफ चमाचम लाइट जळणी छै.वैन चलदा-फिरदा लोगोँ तै पूछी पण सब्युंन यी बोलि कि कै ब्लॉक मा,कतगा नंबर च ? आखिर घुमदा-घुमदा ऊ सेवानगर सब्जी मंडी मा पहुँचीगे.वख वैन देखि कि गढ़वळी भौत छन.वैते कुछ सहारो मिलगे.इना-फुना द्यखदा अचणचक वैते धनुली बौ टिमाटर बिरांद दिखेगे. ऊ चट वींका समणी ऐ अर बोलि,''सिमनी बौ.'' धनुली हकचक रैगे कि यु कु ऐगे.वींन वैतै नि पछ्याणि अर द्यखणि रै. वा स्वचणि रै कि कु होलू यु जलांगण.घंतुन बोले,''मि घंतराम छौं बौजी,गनधार गौं कु.तुमरु द्यूरू'.'धनुली तै तब कुछ याद ऐ.वींन बोले,''हाँ रे तू तो तब भौत छोटा था,जब हम एकदा घार आये थे.अब तो तू जवान ह्वै गया है''.फिर वींन साग-पात ले अर घन्तु तै दगड़ मा लेकि क्वाटर मा ऐगे.भैजी तै सेवा लगौणा बाद वैन अपणि आप-बीती सुणाई अर बोले,''अब त मिन कतई घौर नि जाणु,मै तै अपणा दगड़ ही रखा अर कखि नौकरी पर लगाई द्या.माधुन बोले,'तू अबी छवतू छै.' पढ़ी-लिखी ले.घार चलि जा अर बाद मा ऐ जैलू''.घंतुन बोले,''भैजी अब त मि घौर कतई नि जण्या''. वैन ह्यळी लगाई दीं.धनुलिन वैते समझाईकि चुप कराइ दे.राति खाणु खैकी ऊ सेगे..आधा-राति मा स्वीणो मा ऊ बबणाणों छायो,''हमारू पिट्ठू बणिगे.मिन कुछ नि कारो,मै तै नि मारा.'' माधु अर धनुली कि निंद खुली त देखि कि घन्तु बबडान्दा हाथ-खुटा बि झट्गाणू छौ.माधुन वैतई हैंका हैड पडाळी दे.
माधु की द्वी नौनि छै.दिन भर ऊ उंकी देखभा ळ करदू छौ.हर्बी ऊ धनुली का दगड़ काम-धंधा बि सीखी गे.धनुली चार-पांच महीना बाद फिरि हुण्या छै.कुछ दिन बाद त खाणु -पीणु,लत्ता-कपडा,झाड़ू-पोंछा सब कुछ घन्तु ही करदू छौ.पैली त वती गैस जा ल़ा नि बि नि आंदी छै,पा न अब ऊ एक्सपर्ट ह्वैगे.खुशकिस्मती से यींदा धनुली कु नौनु ह्वैगे.माधु अर धनुली कि ख़ुशी जनु कि घन्तु ही लेकि आई.घंतुन स्वीली कि सेवा-पाणि से लेकि पुरु घर समाळी दे.
कुछ दिन बाद घंतुन बोलि कि भैजी मि तै कखि नौकरी मा लगाई द्या.माधुन बोले,''भुला घंतराम तू कुल आठ पास छै.जादा पध्यूं हूंदू,य फिर आई टि आई करीं हून्दी त नौकरी चट लगी जांदी,पण इनि हालत मा क्य होलू ?फिरबी तू फिकर नि कैर.मि कोशिश करदू.तीन साल तक घन्तु भाई-बौजी कि ही सेवा मा लग्युं रहे.तब माधुन घन्तु तै एक साब कि कोठी मा लगाई दे.यख वै तै खायी-पेकि पांच सौ रूप्या मिलणा शुरू ह्वैं.वै तै कोठी मा ही एक सर्वेंट क्वाटर मिलि गे.अब घन्तु का भला दिन शुरू ह्वैगीं.
घन्तु अब अपणा ब्वे-बाब तै मन्योडर भ्यजण लगी गे.घन्तु का गौं का दगडया दस-बार मा फेल ह्वैकी सुद्दी लट्गीणा रैगीं अर ऊ गौं बिटि भज्युं छवारा मन्योडर भ्यजण लगी गे.जब-जब धन्नू लोहार मन्योडर फॉरम मा अंगुठो लगैकी रूप्या अपणि खीसी मा धर्दु छौ,तब-तब वैकि आंख्युं मा पाणि ऐ जांदू छौ.अपणा हाथों तै ऐथर कैरिकै ऊ द्यख्दु छौ कि यूंली ही मिन अपणो बाल़ो नौनु तै थींचु छौ.हस भरिकै वैकि आंख्युं मा पाणि ऐ जांदू छौ.वैन घन्तु का वास्त एक चिट्ठी भेजवाई,''तेरि ब्वे बुनी च कि मै तै अपणा घन्तु कि खुद लगीं.टक लगेकि कुछ दिनौ वास्त घार ऐजा.''चिट्ठी पढ़ी कै घन्तु तै बि खुद लगी गे,पा ण गौं कु नौ सु णि कै जनि फर्शी कि याद ऐ , वैका बदन पर झर कांडा बबरी गीं.वैन जबाब भेजि कि मितै अबी छुट्टी नि मिलणी छन.
कुछ दिनों का बाद घंत राम कि सेवा से खुश ह्वैकी साबन वै तै अपणी फैक्ट्री मा चौकीदार लगे दे.एक कमरा -कीचन वा ल़ो क्वाटर बि मिलि गे.अब त घन्तु असली घंत राम बा णी गे.ऊ फैक्ट्री कि बर्दी मा भौत बढ़िया दिखेंदु छौ.हर्बी ऊ खूबसूरत जवान ह्वैगे.बैशाख का मैना वै तै इक्कीस साल पूरा ह्वैगे छाया.जात-बिरादरी का लोग अब वैका क्वाटर मा घुसी ण लगी गीं.ऊ स्ब्यों कि इज्जत-खातिर करदू छौ.जब भी माधु का क्वाटर मा जांदू छौ,वैका नौनूं का वास्त टॉफी,चौकलेट,सेब-संतरा जरूर लिजांदु छौ.माधु का पास अब घन्तु का बाना कतगे रिश्ता आणा शुरू ह्वैगीं.पण ऊ सब्यों तै टळणु रहे.दरअसल वैकि अपणी एक स्याळी छै,जेंका का दगड़ ऊ घन्तु कु जंकजोड़ कन छंदु छौ.माधु कि ब्वारी धनुली कि जिद्द छै कि घन्तु कु ब्यो मेरी भुली चंपा का दगड़ ही कन..माधुन अपणी स्याळी सिलायी-बुनाई सिखणा बहाना से दिल्ली अपणा पास बुलै दे.
चंपा घार बिटि त सुद्दी आईं छै त्यूरण्या ह्वैकी,पण दिल्ली मा चार दिन मा ही वीं पर चल्क्वार ऐगे..गौंकि कळपट्ट छोरी का कुछ दिन मा ही गल्वडा लाल ह्वैगीं.वींतै ये साल सत्रह साल पूरा ह्वैगे छाया.ये बीच ऐतवार का दिन घंतु सेवानगर ऐगे.वैकि बौजिन बोलि कि मेरी ताब्यात कुछ ख़राब च.तू जरा सब्जी मंडी चलि जा ,साग-पात ले आ.मीत-माछी बि लेलु त ले ऐ.चंपा तै बि दगड़ लीजा.घूमी कि ऐ जाली वा बि.दीदी का बुन पर चंपा नयो सूत पैनी कि सेंत चिद्की कै दगड़ मा चलिगे.द्वी गप शाप लगन्दा चलि गीं.एक जगा मा घंतुन वींतै दूध-जलेबी खिलै.सब्जी लेकि आन्द दा चौकलेट बि खिलै. राति चंपा ही खाणु बणाण लगी गे.बीच-बीच मा घंतु बि कीचन मा घुसेणु रहे.धनुली जाणि-बुझिकै बौगि ह्वैगे.खांद बगत माधुन मजाक करे कि आज त घंतु रे ! खाणु कुछ जादा ही स्वादिस्ट हुयूं.घंतु बात समझी गे अर चंपा बि शर्मैकी किचन मा चलिगे.खाणु खैकी कुछ देर बाद घंतु अपणा घौर चलि गे.राति बड़ी देर तक वैतै निंद नि आई. वैकि आंख्युं मा रात भर चंपा ही रिंगणी रहे.अर यख चंपा का हाल बि कुछ इनि छाया.राति बड़ी देर तक वल्या-पल्य हैड पलटणी रहे.सुबेर बिन सियाँ वींकी आंखि कुछ लाल सि हुईं छै.
अब त घंतराम हर इतवार चंपा तै मिलणा बाना माधु का घौर चलि जांदू छौ.कब्बि त बीच मा बि ऐ जांदू छौ.चंपा तै बि हर इतवार कि इंतजारी रैंदी छै.माधु अर धनुली ईं बात से खुश ह्वैगीं कि घंतु अर चंपा एक दूसरा तै पसंद करदीं.कुछ दिन बाद माधुन घंतु का बूबाजी तै बुलैकी द्वीयोंकु रिश्ता पक्कू करि दे अर दशहरा का दिन दिल्ली मा ही ब्यो बि ह्वैगे.घंतु घर-गृहस्थी मा रमी गे.चंपा वै तै मनपसंद ब्वारी मिलिगे.द्वी साल बाद वैकु नौनु ह्वैगे.हर्बी तनखा बि भलि ह्वैगे.अब ऊ एक इज्जतदार आदिम बणीगे.
दिल्ली मा गौं का प्रवासी बंधुओं कि संस्था''विकास समिति लमधार''को वै तै उपमंत्री बणये गे.महीना कि हर मीटिंग मा ऊ जांदू छौ.एक दिन जब ऊ मीटिंग मा गए,तब वै पता चलि कि गौं बिटि पंडितजी एक जजमान का घौर अयाँ छाया.दूसरा जजमान का क्वाटर मा जांद बगत बस से उतरंद दा भुयां पडिगीं अर कपाळ मा भौत चोट लगीगे.ल्वे-खाळ हालत मा अस्पताळ भर्ती कर्यूं.अब्बी ऊ सफदरजंग मा इमरजेंसी मा छन.ल्वे भौत गिरण से हालत खराब च.डाक्टर खून कि व्यवस्था का बान बुना छन.मीटिंग बंद करि कै सब लोग ऊंतई द्यखणो चलि गीं.पंडत जी अबी बेहोश पड्यां छाया.खून दीणकि बात सूणी कि कुछ लोग खिसगी गीं. अपणो बौंल़ू उब कैरि घंतुन डाक्टर से बोलि,''मेरी खून निकाल़ा,जतगा चएणी''.देखा -देखि कुछ हौरि बि तैयार ह्वैगीं,पण बाकी लोगोँ कु खून मेल नि कारो,सिर्फ घंतु कु खून मैच करि.घंतु कि एक यूनिट खून पन्डतजी तै चढ़ीगे.वैका बाद घंतु अपणा क्वाटर मा चलिगे.
कुछ दिन बाद पंडितजी ठीक ह्वैकी अपणा एक जजमान का घर आर के पुरम ऐगीं.जब ऊं तै पता चलि कि घंतु का खून से उंकी जान बचि त ऊंका आंख्युं मा डब्ब-डब्ब पाणि ऐगे.भौत साल पैली करीं अपणि गलती पर ऊंतई खुद से नफरत सि ह्वैगे.ऊ तुरंत शाम दा घंतु का क्वाटर मा एक डब्बा मिठाई लेकि पहुँची गीं.क्वाटर मा पहुँची कि घंतू तै भट्ट अंग्वाळ डाळी दे.घंतू अर पंडितजी द्वीयों कि आन्ख्यों मा पाणिकि धार ऐगे.पंडित जिन बोलि,''बेटा मि तै माफ़ करि दे.' तेरो यु एहसान मि....'' घंतुन बोलि,''इन ना बोला.आप हमारा पूज्य छन.मिन क्वी एहसान नि करि.यु त मेरो फर्ज छा.मि आज जु कुछ बि छौं सिर्फ आप कि कृपा से छौं.'' पंडितजिन बोलि,'' ना ना ब्यटा मि तै अब जादा शर्मिंदा नि कैर..तेरो यु एहसान मि कबी पुरु नि करि सकदु.'' घंतुन बोलि,''एहसान त आपन करि मी पर.तुम फर्शी का बाना बबंडर नि करदा त मेरो बुबन मीतै नि मरणू छौ, तब मिन भाजि कै दिल्ली नि औणु छौ.अपण बुबा का दगड़ अनस्यळ मा ही घैण लगाणु छौ.भाजि कै ऐग्युं त एक गफ्फा ठीक से खाणू छौं.
कुछ दिन बाद पंडित जि गौंमा वापस ऐगीं.ऊ एक डब्बा मिठाई कु धन्नू लोहार का घर बि लेकि गैनी अर बोलि कि, ''धन्नू मेरि फर्शी मी तै दे दे.मेरी आंखि खुलि गैनी..मी अपणि गलती पर भौत शर्मिंदा छौं''.ऊंन एक हजार रूप्या धन्नू का खीसा मा धरीं अर खटुली मूड़ धरीं फर्शी तै लेकि अपणा घौर चलिगीं.अब पंडितजि रोज तिबारी मा बैठि कै खुटी मा खुटी धरि गुड़-गुड़-गुड़ लग्यां रंदीन.
डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित...