Author Topic: Exclusive Poems of many Poets-उत्तराखंड के कई कवियों ये विशिष्ट कविताये  (Read 30858 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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फूल सग्यान
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कवि = गोविन्द सिह असिवाल


सुफल मंगल हो यौ दिन यौ बार,
खुशियों का फूल खिलो,यौ घर यौ द्वार !
अनियार रातम जस उज्जयाव है रौछ !
कमाई में रोजे रेजो दूध कसी धार!
तारो क बरात जसी जसी आण जाण रेजो,
पुज कौ कलश जस छाजी रौ सिगआर!
सालो की सालो की आस पुरी हने रौ !
उमीदों उमीदों बलबो कि रौ चमत्कार !
यसे दिन रौ जै रेजौ चैतक महैण!
फुलनी फुलनी रेजौ यौ धयेई  यो गाड़





साभार - पहरू कुमाउनी मासिक पत्रिका - मार्च २०१० अंक पेज २३

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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राम दत्त पन्त

जन्म - १९०२ में

निवासी - रानीखेत
निधन -  १९६८

रचना - गीत माला  २) गांधी गीत
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बादल
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आज उरी रो, यो कास बादल
हौल उठी रौ, यो ले कसो बल !

दिन का आंख ड़किये जास रै गयी !
खातड़ो अगास के को जय डकै गयी !
डाना काना, बोट, बाटा लुकी ये गयी!
है जालो अल्ले पै सब जल थल !

चमकन छो बिजुली कसि चम् चम्
धड़कन छो बादल फिर के कम
बरकन छो फिरी खूब झामा झाम
पौन ले  बोट कामन छो दल दल

हौ वे, क्वे कू, अन्ताज नि उनो
पूछियो जब क्वे ये बेर कूनो
कामन है रौ ये बतूनो !
आन्ख्नक सामणि, या मन का तल


 

हेम पन्त

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कवि – राजीव लोचन भण्डारी

अग्रक्रान्ति
(1)
ज्वान गैन, बुड़्या गैन
छ्वटा गैन बड़ा गैन
नयु राज मांगण क
अपणु सब्बि छोड़ी गैन

(2)
आज ल्योंण, अब्बि ल्योंण
उत्तराखण्ड राज ल्योंण
या का बाना चला सब्बि
छ्वटा बड़ा एक होंण

(3)
जै पावन धरति की
जै यखा किसान की
सीमा पर रात दिन
जै यखा जवान की

(4)
जै यखा जवान की
जै छात्र शक्ति की
वीर नारियों कु प्रदेश यू
जै मातृशक्ति की
(5)
जै यखा भूम्याल की
जै देवभूमि की
जै यखै संस्कृति की
जै कर्मभूमि की.

“उत्तराखण्ड शहीद यशोधर बेंजवाल स्मृति संस्था”अगस्त्यमुनि, जिला रुद्रप्रयाग द्वारा प्रकाशित स्मारिका “दस्तक” से साभार

हेम पन्त

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कवियित्री – बीना बेजवाल

बाँज
यों ही खड़े रहो
मेरे गांव के
सिरहाने पर
तुम्हारी जड़ों से
रिसता रहेगा
मीठा पानी.
पत्तियों से
आबाद रहेंगी गोठ-छानी.

कोयलों से
जलती रहेगी
चूल्हे में आग
औजारों को
मिलते रहेंगे
मजबूत हत्थे
.
तुम्हारी दृढता
देती रहेगी
कई उपमाएं
बहती मिट्टी को
तुम्हीं सकते हो बांध
हे बुजुर्ग बाँज

“उत्तराखण्ड शहीद यशोधर बेंजवाल स्मृति संस्था”अगस्त्यमुनि, जिला रुद्रप्रयाग द्वारा प्रकाशित स्मारिका “दस्तक” से साभार

हेम पन्त

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कवियित्री – उमा भट्ट, भटवाड़ी

जय उत्तराखण्ड

भारत का माथा कू चंदन
हिंवाली का जरम्यूं नंदन
हम सब करदा तेरी आरती
हे उत्तराखंड! तेरू अभिनन्दन
धियांण तेरि गंगा-जमुना
प्रसिद्धि पायी जोंनलोक मा
सरि दुनिया कि मां बणि जु
ऊको मैत उत्तराखंड मां
चारधामकू जन्मदाता तू
दुनिया करदि तेरि आरती
हमरि सभ्यता गणि त्वयि से
गुण गांदा हम सब भारती
सदिओं कू तु केसर चंदन
सर्गभूमि गाड़ों कू संगम
सूरिज किरण कू त्वै प्रथम नमन
देवभूमि तू ज्ञान कू संयम
हम सब उत्तराखण्डी सन्तान
करदां तेरू शत-शत नमन

“उत्तराखण्ड शहीद यशोधर बेंजवाल स्मृति संस्था”अगस्त्यमुनि, जिला रुद्रप्रयाग द्वारा प्रकाशित स्मारिका “दस्तक” से साभार

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poet Name - Sri Jeeva Nand Shiyal
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माटो अर बाटो

खणि खणि छणि छणि बगणू छ माटो
अब उदा जाणकु लगणु थ बाटो-2
बरखा का पाणिन बगणू छ माटो
तब उदा जाणकु लगणु छ बाटो।
कुछ माटु खणेंदु जंगलु फुक्यांन
कुछ माटु खणेंदु सड़क्यों सोध्यांन
कुछ माटु खणेंदु पोंगड़यौं बण्यान।
धरति मा जथगा खणेदिन
खांणं बरखा मा ढुंगु माटु बगदो ही जाण
रोजाना बगदू छ कै मणु माटो
अर हल्ला करदन अन्न को घाटो
खणि खणि छणि छणि बगणू छ माटो
अब उदा जाणकु लगणु छ बाटो.

Source: http://hillwani.com/ndisplay.php?n_id=189

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Gopal Dutt is kumaoni poet who have done lot of work in kumaoni/hindi   langauge. below is sarawati vandana wriiten by him is kumaoni langauge

  मति दे ! इजु शारद मति दे
 
          इज बौज्यू गुरु की करू सेवा
          जन्म दिनेर ज्ञान दिनी देबा   
  चकबकान मति  थिर कर दे!
  मति दे, इजु शारद मति दे
          विद्यावल कवि हमर न थाको
          इजु तुमरै बल हो हिय बांको
  झलमल खुट जोत की रति दे
  मति दे ! इजु शारद मति दे
          गटू करुँ ना चुगुली कैकी
          दया धरून सब जीवाम एकी
  दान धरम मति सम्पति दे
  मति दे ! इजु शारद मति दे

  Information provided by : Devesh Bisht
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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झड पड़ी गो

कवित्री : विनीता जोशी
पूर्वी पोखारखाली
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झड पड़ी गो
झुणा-झुण

पानी बरसों
तुना तुन

पाख च्वीगी
टपा टप

कचियार है गो
खपा खप

बिराऊ को
घुर घुराट

भिकानु को
टर टारट

भुटा ध्वग
पिसौ लूणा

झड पड़ी गौ
झुणा झुण

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कवि : शेर सिह बिष्ट "अनपड़"

जनम : ०३ अक्तूबर १९३३
ग्राम - माल रोड, अल्मोड़ा

छपी किताबे : हिंदी कविता

१) ये कहानी है नेफा और लड्दक की (कुमाउनी हास्य गीत संग्रह)
२.  हसन बहार
३.  दीदी बैणी
४. हमर मै बाप - कुमाउनी कविता संग्रह
५. मेरी लटि पटी (१९८१)
६. जाठिक घुघुर (१९९४)
७.  व्यग्य  कविता संग्रह
८. फचैक (१९९६) बालम सिंह जनौती के साथ)
९) शेरदा समग्र

पता - श्याम बिहार, तल्ली बमोरी हल्द्वानी 

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चौमास क ब्याव

भादव भिन निझूत कनई, साइ पौणिक चाव
इन्द्रानी नौली हलानी, हौल के अडाव!
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्याव

छलके हैलो अगास ले आपुन खवर क भान
धुर जगल खकोई गयी, पगोयी गयी डान
गाव गाव तलक डूबी गयी, खेत स्यार सिमार!
नटु गध्यारा दगे बमकाण फैगे गाड़!!
गोठक पिरूल चवीने दाज्युक सुरयाव!!
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्याव


बौडी भूल रुपौल गैनई हंसी खेली दिनमान
दबाब लागी बेर त्वाप मरनायी बादव बेमान !!
हाव बजे मुरूली सीवे दे कान क मुरकुली !
गिज भितेर गिज ताणनयी रुपली दुगुरली !
कोणिक बलाड नाचनई  इचाव निसाव!!
मडुवा हाडनहु  दिनौ झुडर मुन्याव !!

संण संण संण सौंण तड तड तड तड़ात!
द्न्यारे बंधार पूछने घरकी कुशल बाद !!
ओ दीदी ओ आम कुनै जोड़ने जौ हाथ !
ज्यू जाग पैलाग हैर सार दिन पूरी रात !!
दूध जस पानी बगनी कराड़ी महाव !
खोई पटाडन नाचनई  चुपताव खाव !!

भुज तुमाडी, तैड राडा खुसखुसाट
चु उगाव  तिल थमनायी भडरि बुबू हाथ !!
चमेली फूल, छपेली गैनई गुल्डोरी चाचरी!
रंगली देवरों दगे नाचने हाँजरी !
घौत भट्ट मॉस, रेस हालनई अडाव
नाई माण, टुपार फारु मरनायी उछाव!!
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्याव

गदू चिचन, लौकी तोरई, ठासी रेई ठ्दार!
पातो हौ आन, काथ कुनाई रात में ककाड!!
प्याड जा नाशपाती है रई महव जानी म्याव!
बेडू, आडू, घिगाडू,ओ इजा! जाणी मिसिरी गवाव!!
खुंडी ओहरी ब्येरे  बिगौत फराव !
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्याव

रंगली डाना टाक पैरनई, धोती लगुनयी धार !
मखमली पिछौडी ओडनई तलि मलि द्वि सार !!
सौणि धरतिल बने हाली नौणी जै गात !
बौयल जा दिन देखनई ब्योली जै रात !!
छ्वे नैयक पाणी फुटना हियक जौ उमाव
छाती मे कुरकाती लागूना सुवक दी रुमाव !!
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्याव
 




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बंसत
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डा० नन्दकिशोर ढौंडियाल ‘अरूण’
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बन∑म बागम ताल-तड़ ा गम
गा° व गल़ ी अर धू प म-कू प म्
पात-प्र भ् ाातम् फू ल म् कू ल म्
आयु कन्, अर छायु कनू, रस

मौˇिगि डाˇि खिली गिन फूल, ह°सी गिन भौंरि सुहांदु बसंत।
लायु नयू उत्साह उमं ग , बनि बनि रं ग ु म आ° द ु बसं त ।।
कौथिग-ढोल-दमा≈° बजीं, थकुली-चखुली संग गांदु बसंत।
आयि गै, छायि गै, गायि गै, गीत सि पोतˇि़ सू फफरांदु बसंत।।
आयु नयु त्यौहार सुहाणु सि फूल कि कंडि तैं हाथ मा लैकि।
गा°दु च गीत अनौखु बसंत कई रस भूड़ि- पकोड़ि सि खैकि।।
फूल भला संग्राद भली, अर होरिक रंग मुख लपटैकी।।
नाचदु आयि गै रूप बसंत स्वरूप सुहाणुसि जी भरमैकी।।

होरि च होरि च रंग बिरंगि रे आज सभी मिलि ख्यालदि होरी,
गीत लगावदि ढोल-बजावदि, लालि सुणावादि गा°वकि छोरी।
रंग बिरंगी स्वाणि गल्वड़ी कनि पैलि छइ आह, रूप किशोरी।।
भीगि गै अंग, रंगी नया रंग, बसंत क संग म गा°व कि गोरी।।

आयु बसंत खिली गिनि डाˇि, कखी हरियाˇि भी गीत लगांदा।
फूलिगीं साकिनि और बुरांस कि डाˇी कनि यख जी उमगांदा।।
मेˇु फुलिं झकझौर बणि अर पैं∏या सि लै∏या भि झूमि की आंदा।
आह, कनि बिगरैलि बसंति कु गीत धरू-धरू चाखुलि गांदा।।

∂योंˇि क फूल त कंुजु फूल्यां, जख पिंगˇि पोतˇि भी फफरांदा।
भौंर्यूं क गीत कन उमरैल छीं याखुलि मानखी खुद लगांदा।।
आमु कि डाल्यू° मा कोयल गांद ता काफूकि बौलिम जी रर्क्यांदा।
आहा कनि बिगरैलि बसंति कु गीत धरू-धरू चाखुलि गांदा।।

घाटु म बाटु म आयु बसं त ।
रूप अनू प म् छायु बसं त ।।
धू ˇ म नै रस लायु बसं त ।
लायु कनु, मन भायु बसंत।।

 

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