Author Topic: Exclusive Poems of many Poets-उत्तराखंड के कई कवियों ये विशिष्ट कविताये  (Read 30862 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दोस्तों,     

उत्तराखंड की धरती में कई प्रसिद्ध कवियों एव साहित्यकारों ने जनम लिया है   जैसे.. सुमित्रा नंदन पन्त, श्री शैलेश मटियानी, हिमांशु जोशी आदि!  इन   महान कवियों के आलवा बहुत से कवि है जिनकी कविताएं आम लोगो तक नहीं पहुच   पायी ! उत्तराखंड में कई पत्र पत्रिकाओं में कभी -२ इन कवियों के कविताये   पड़ने को मिलती है हम इन्ही कविताओ को इन पत्र पत्रिकाओ के माध्यम से यहाँ   प्रस्तुत करंगे! लेकिन सभी सदस्यों से अनुरोध है, कवि का नाम जरुर लिखियेगा!   
पहरू "कुमाउनी" भाषा में छपने वाली एक मासिक पत्रिका है जिस पर उत्तराखंड   के कई कवियों के कविताये मिलती है! आपको पहरु के कविताये भी यहाँ पर पड़ने   को मिलेंगे! 

लेकिन ब्लॉग लेखक और अन्य साईट के मालिको से अनुरोध बिना अनुमति के ये कविताये अपने नाम पर एव ब्लॉग पर ना डाले! 


Regards,

एम् एस मेहता

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कवि : किशन सिह बिष्ट 'कत्यूरी"

जनम - ०5 मई 19३२

निधन  -  25 जून, २००५

निवासी -   ग्राम - सेलीघात, बैजनाथ

जिला   -    बागेश्वर

छपी किताब - "पन्यार"  कुमाउनी कविता संग्रह
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पिरूल -

जेल उनरी,
ज्यूंन हुनाकी, सबूत दे!
हरियाए दे,
छाये दे !
उनरी तडयाई - निखेडी
ठुल सवा डावाक भी खेडी!
बेशक मी पुराण है ग्यूं!
फिर ले गरीबो तली, बिछी जोल,
गौ की स्याव में,
सुत्राक काम ये जोल!
गोत, गुबर, मिली मोव बणी जोल!
मई कानी जड़व में,
आग नी लगाओ
सुकी झुनी पिरूल छयो मै!

साभार : पहरु पत्रिका - अंक जून २०१० पेज 16
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कवि का नाम - बहादुर सिह बोरा "श्रीबंधु"

जनम  =   २१ जुलाई १९३९

निधन -   १३ जून २००८

ग्राम  - गड़तिर, बेरीनाग - जिला - पिथोरागढ़
लेखन -  कुमाउनी व् हिंदी में कविता  .. कहानी लेख!

छपी किताब -  मन्याडर (कुमाउनी कहानी संग्रह)
 
कुमाउनी काव्य संकलन - पछ्याँन व् उम्माव में कविता संकलित
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रुडिक दिन
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रुडिक दिन दुखान दिन
रुडिक दिन पिदान दिन !

पाणिक ऊपर हाय तवाय
धकुडा, धकुड हक हाक !
शान्क्क रग्ग लूछा लूछ,
गाली मखाली घाताघात!
दिन पौरियूंन रात उनिंन !
रुडिक दिन ..............

समेरा  समेर, चुटा चुट!
फडयाल बतून, सुखण, तपूँण
डान भुय अच्छयटा पछयट !
स्वेरा स्वैर, छवपंण उछ्यूण
कतुक पुजल चारे  दिन !
रुडिक दिन!!!

धुर जंगल बण बणाक,
खेत साड़ी, क्याड़ अग्योल
अगास क्वीर धुरमन्योल!
जथैक चावो, घुड धुद्योल !
जथैक चावो घुड धुयोल !
आड़ चिलैल पीसनी पसिण  !
रुडिक दिन............

उलटी दस्त जर बुखार !
हणकाट चणकाट बीडौल हाल!
दियोखड़ी  दयोपतोली डाड टुक्याल!
मासान घाट.. अस्पताल!
धो काटण रुडिक दिन!
रुडिक दिन दुखान दिन
रुडिक दिन पीडांण दिन !

इस - कविता में कवि ने गर्मी में के दिनों में पहाडो में होने वाली पानी की दिक्कत और अन्य परेशानियों के बारे में जिक्र किया है!

साभार - पहरू कुमाउनी मासिक - जून अंक पेज १६
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  कवि =  दान सिह रौतेला
  जनम = ०१ जुलाई १९४७
  ग्राम =  नरगोली, जिला बागेश्वर
  रचना - कुमाउनी / हिंदी में कविता गध लेखन

  परहोशिया मन
  ---------------

  परहोशिया मन मेरो !
  उड़नै रौछ फुर फुर !
  डान - जंगल
  भेव भाकर
  चाईया रूछ
  सुर सुर !
  वरसात मौसम उंछ
  पाणी टपकछ
  छुर छुर ! परहोशिया !
  भीजी हुयी चाड प्वाथ!
  न कारन फुर फुर !
  भासि जंगल हौलाड़ी देखि
  पराण करछ झुर झुर
  छीड़क क छणछणाट
  कनान में करो कुर कुर परहोशिया .....
  भासि जंगल देव क थान!
  देखांण में उंछ तुर तुर
  ली चन्दन, पिठ्याँ अक्षत
  जनै रूनी खुर खुर
  हाथ जोड़ी खवर झुकाई
  बरदान कहानी पुर पुर - परहोशिया

  (प्रियालय, शीशमहल)
  प्रो - काठगोदाम (हल्द्वानी)

  साभार - पहरू मासिक पत्रिका - अंक सितम्बर .. पेज १७)

         

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ब्रिजेन्द्र लाल साह (बेडू पाको बारो मासा के गाने के रचियता)
जनम - १३ अक्टूबर १९२८

निधन -  ०२ जुलाई २००२

छपी किताबे - १) कुमाउनी भाषा में राम लीला नाटक, २) अष्टबक्र (नाटक) ३) शैल्सुत्ता (उपन्यास)

 निश्वास ------------

टुली टुली आसू रवेली
कब लागी आँखों मेरी .......?     
           
          पराणी कुरेदी खाई
         कल्माली लागी हाई .       
          कै ले आजी लगा जाणी
 
क्वाथा उन हौली जसी ,
फुकी जेछ घेरी घेरी,. टुली टुली आसू  रवेली !         

        यो अनियारो नेली खा छ ..         
        काउ जै कथा बाटो जा छ         
        मी आगास चाने रैयो         
        निमैलो उजियालो का छ एक धुरा रिटी गियु!यति ओ छो हेरी फेरी. टुली टुली आसू रवेली         
तारु माजा जोती नै छ     
 जून कथा लुकी रै छ         
हाथ छोड़ी मेरी सड़ी         
 कै खुवा .. पसरी रेछे ?भेटी लहे अडावा हाली ,एके आसा रै गे .. टुली टुली आसू रवेली ...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कवि का नाम गोविन्द सिह असिवाल
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जनम - २९ दिसम्बर १९३६

निवासी -  ग्राम गुजरडी, ताडीखेत (अल्मोड़ा)

छपी किताब - तेरी मीके याद वै इजा , रोटिया, नागफनी के जंगल, शब्दों की झील, कागज़ के नाव अन्य..


----------------------उत्तराखंड भूमि - ----------------------

हमू बड़ी प्यारी लागेछि
उत्तराखंड भूमि !
जग भे न्यारी लागिछी!
उत्तराखंड भूमि !
ऊँचा ऊँचा डान यां छे !
जंगला हरिया!
हिमाले की चोटी चोटी हिम ले भरी !
सुन सीडी की सारी लागेछि
उत्तराखंड भूमि !
बार मॉस गाड गधेरा!
संगीत सुणानी,फूल फोलुकी खसबू यांच!
ठण्ड ठण्ड पाणी,
उडती जय फाटी लागेछी
उत्तराखंड भूमि !
दूंन मंसूरी नैनीताल अदभुत
 सीन,बद्रीनाथ तीर्थ  धाम!
चडखुला रंगीन!
सात रंगोकी क्वारी लागेछे!
उत्तराखंड भूमी !

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कवि - पूरन मठपाल "सौम्य"
२४२ नया बाजार, तल्लीताल, नैनीताल
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नेता कूनी हमर छु देश
असफर कूनी हमर छु राज !
जनता मलि रोग गिरी गाज !
कास बखत अब एगे आज !

देश का जनता भूखी सी रे!
डेपू डबल बिन दुखी है रे !
इनर गोदाम में सड़ी रो अनाज!
कस बखत अब एगे आज !

पेट भर हूँ नि मिलन रुवात गास
इनार योजनाओं खूब है रु विकास !
अरबो रुपे का जा नि उन के अनाज !
कस बखत अब एगो आज !

का मिलल पानी त्वप रूज है जै यो फिकर
इनर फाईल न में रोज खोदनी नहर
जियूंन मैस नेली दिनी निकरण के लिहाज
कास बखत अब एगो आज!

आतंकील बिगे हालो देश
  बेरोजगारील खे हालो समाज
  कुड़क डेर बै लोग आपण चलुनई
  कस बखत अब एगो आज !

Courtesy - Pahru Magazine - April issue - Page 23

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कवि त्रिभुवन गिरी
हुक्का क्लब - अल्मोड़ा

बौडी
=====

दातुल कुटल और ज्योडा का, छान जै चन सोल सिंगार
गोथ पान, धाण - बुति, घर बाण, छान कै रोजा तयार !

बाबिला बाटीणा जाता जैका, ख्वार माँ बाबो जाल !
आड़डी भीदडि में टोकी राखी, जेल सौ सौ टाल!

एक कातरि है दुहरी नियाती, जनम भरी है लाग !
हसी मानिक हौसी रै जै, कब फेडली फुट भाग !

हियूंन, रूडी, चौमास सब ठेलन छू जन्मे रीति
चुरैन पट्ट दिशाण मणी, वीकी जन मानी बीती !

इकली दुकली सुत्केली रेई, चिहडि मिली भे नाम !
जैल जनम देछी उ के, धरी दे छू जानी डाम !

धान झुवर मडुवा , गोदान, कुटन पिसण जान घट ,
सिरिकाव तेरी सुकी गयी, सुकी पटयल  कसी पट !
लुवक पिटाव काठा खुटा धन छौ तुहनि वो बौडि
बेलिया आज भोल एकनस्से, जान छू दौड़ा दौड़ी !

   

Bhishma Kukreti

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कवि : किशन सिह बिष्ट 'कत्यूरी"

जनम - ०5 मई 19३२

निधन  -  25 जून, २००५

निवासी -   ग्राम - सेलीघात, बैजनाथ

जिला   -    बागेश्वर

छपी किताब - "पन्यार"  कुमाउनी कविता संग्रह
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पिरूल -

जेल उनरी,
ज्यूंन हुनाकी, सबूत दे!
हरियाए दे,
छाये दे !
उनरी तडयाई - निखेडी
ठुल सवा डावाक भी खेडी!
बेशक मी पुराण है ग्यूं!
फिर ले गरीबो तली, बिछी जोल,
गौ की स्याव में,
सुत्राक काम ये जोल!
गोत, गुबर, मिली मोव बणी जोल!
मई कानी जड़व में,
आग नी लगाओ
सुकी झुनी पिरूल छयो मै!

साभार : पहरु पत्रिका - अंक जून २०१० पेज 16
Dear Mehta Ji!
This is one of the most appreciable tasks you took in hand . Your initiative is for popularizing Kumauni/Garhwali literature among young generation and web-visitors as well. The Kumauni and Garhwali literature history will always mention your efforts in coming years.
I thank you on behalf of literature creative of the both languages - one of oldest languages (Kumauni and Garhwali) of India

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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धन्यवाद भीष्म जी.
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कवी - डॉक्टर सी बी जोशी ' चनरी'

सिनेमा लाइन - पिथौरागढ़ 

दैण हो फाग
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साल भारिक त्यार
होरि दिवाली
मुबारक हो तुम हि
घर क घारण हि
कुडिक भारांन  हि
गोठाक थुमिया हि
माटिक भूमिया हि
सड़ाक सुरुख हि !

दैण हवों होरि
दैण हो फाग
घटाक घटवार हि
किलाक रजबार हि
तोताक तोक्दार हि

दैण हवों होरि
दैण हो फाग
गैला पातल हिन्
ऊँचा हिमाल हिन्
नौल धारण हिन
बुत कारन हिन्
खेत क बौशिया हिन्
खालिक धौशिया हिन्
गीदार होसिया हिन्

दैण हवों होरि
दैण हवों फाग
चेली बटिक लाज हिन्
नान्तिक पाज हिन्
भोटक आछरीन हिन्
झवाड चाचरीन हिन्
जाएगो जागरण हिन्
सुकुन आखरण हिन्

दैण हवों हरी
दैण हो फाग
रुखाग चडान हिन्
बाजक झायाडान हिन्
औंन जय्याँन  हिन्
पौन पंछिन हिन्
देली पूज्या चेली बटी हिन्
दैण हवों होरि
दैण हवों फाफ

साभार - पहरू मासिक पत्रिका - अंक फ़रवरी २०१० पेज 17

 

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