"जन्म भुमी दूर हु तुझसे"
तनहा चलता हु सफर मे, सफर तेरी यादो मे थम जाता है.
दूर हु दो वक्त की रोटी के लिए तुझसे, ये सोच के मन भर आता है.
तेरी ठंडी छाँव मे सकुन था मुझे, मेरी किसमत ने मुझे शहर पहुचाया है.
तुझसे बिछडने की न बात करते है हम किसी से, हर घडी़ तुझे दिल मे समाये रखते है.
तेरी गोद मे जब खेला करता था बचपन मेरा,
तेरे प्यार ने हर गम से मुझको दुर रखा था.
तब लगी थी रोटी मे आग उस वक्त,
जब आखो मे घने बादलो का अन्धेरा छाया था,
जब खुली शहर की भीड़ भाड मे आँख मेरी,
तब से और गहरा हो गया है तुझसे नाता मेरा,
आखरी सांस तक जुडा रहेगा, अब तुझसे यह नाता मेरा,
मांफ कर देना मुझे उस वक्त, जब जुड जाये नाता किसी और माँ से मेरा.
सुनदर सिंह नेगी
12/06/2007