"मेरा जीवन मेरा अनुभव"
गर्त मे क्यो ढुड रहा हु मै जीवन,
जीवन तो खुद ही मेरा गर्त मे है.
ये सोचकर हर लमहां बाट रहा हु मै,
कि सायद मन का बोझ कुछ हल्का हो जाये.
मेरा हर हर्दय का घाव कहता है मुझसे,
मत छु मुझे, मे अभी हरा ही हु.
जिन्दगी सवाल करती है कितनी मिट्टी बाकी है तु,
मै उत्तर देता हु कि बस एक सावन आना और बाकी है.
अश्क हजार न हो पर एक हो तो वही सही,
काफी है एक ही अश्क,मेरी चिता बुझाने को.
सुन्दर सिंह नेगी 31-07-2010