कविता--
पतंग की डोर-सी, सपनों की उडाने दे दो,
दो घडी के लिए, बचपन के जमाने दे दो।
जहां ये मतलबी है, दिल यहां नहीं लगता,
मुझपे एहसान कर, दोस्त पुराने दे दो।
गांव की हाट को बेमोल है रूपया-पैसा,
बूढे दादा की चवन्नी के जमाने दे दो।
थके-थके से हैं, दिन रात, मुझे ठहरने को,
मां के घुटनों के, वो गर्म सिरहाने दे दो।
निगाहें ढूढंती हैं, उन सर्द रातों में,
मुझे फ़िर ख्वाब में, परियों के ठिकाने दे दो।
ये तरसी हैं, बहुत, ला अब तो, मेरी
इस भूख को, दो-चार निवाले दे दो।