एक झूला कल की आस झूलते जाते हैं,
हम अपना इतिहास भूलते जाते हैं.
खरबूजों की बात छोड़िये दुनिया में,
आसमान भी रंग बदलते जाते हैं.
हैं कुछ ऐसे सम्हल सम्हल कर गिरते हैं,
कुछ ऐसे गिर गिर के सम्हलते जाते हैं.
आज फिर नए फूल खिले हैं बगिया में,
जाते जाते लोग मचलते जाते हैं.
पाप पुण्य की हथेलिओं के बीच दबे,
मेरे सब अरमान मसलते जाते हैं.
जीत सका है कौन वक़्त की महफ़िल में,
खेल,जुआरी,दाँव बदलते जाते हैं.
हर्षवर्धन.