Author Topic: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....  (Read 25937 times)

Meena Pandey

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #40 on: June 17, 2010, 03:21:19 PM »
  • समाज....
  • मैंबहसहूं
  • इससभाकी
  •     इसीजगहमेरेलिए
    कईवादतलाशेजायेंगे।
    जबपुंजीवाद
    [/color]मेरे[/color][/color]बदुवेमेखसोटा[/color]गया[/color][/color]होगा[/size]
    समाजवाद [/color]केबल[/color][/color]पर[/color][/size]
    [/color]प्रसारित[/color][/color]हो[/color][/color]रहा[/color][/color]होगा[/color][/size]
    "" घरकीखिडकीमें
    [/color]पसरे पडेखेतोंपर[/size]
    दूरतक [/color]उग[/color][/color]आयाहोगा[/size]
    माक्स्रवादहीमाक्स्रवाद।

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #41 on: June 17, 2010, 03:36:39 PM »
क्या खूब लिखा है सर +१ कर्म आपको.

मुझको मत पी बहुत खराब हूँ मैं,
तुझको पी जाउँगी,शराब हूँ मैं.

मेरा वादा है अपने आशिकों से,
रुसवा कर जाउँगी,शराब हूँ मैं.

है बदन और दिमाग़ मेरी गिज़ा,
नोश फ़रमाउँगी,शराब हूँ मैं.

तुम मुझे क्या भला ख़्ररीदोगे,
तुम को बिकवाउँगी,शराब हूँ मैं.

हर्षवर्धन.



Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #42 on: June 17, 2010, 03:37:59 PM »
इसमें बहुत कुछ माँ बाप होने के नाते हमारे भी योगदान है. बच्चे जो मांगे उसे पूरा कर के.

                       "कल का जिद्दी हिन्दुस्तान"

अब बच्चे जायदा ही जिद्दी होने लगे है, जिस काम को बार-बार करने के लिए मना किया जाता है वो उसे बार-बार दोहराते है जब हम बच्चे थे तब मम्मी पापा के एक आवाज देते ही डर के मारे अनुशासन मे खडे हो जाते थे लेकिन आज बच्चो मे माँ बाप की डर का कोई खौफ नही है एक माँ ने अपनी लडकी से घर देर से लौटने का कारण पुछा उसका जवाब लडकी ने आधे घंटे के बाद आत्म हत्या करके दिया बच्चे आज कुछ भी वो सुनना पसंद नही करते जो उनके लिए जवाब देह हो। इसलिए हमारे कल के भविष्य की नीव कच्ची पडती नजर आ रही है।

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #43 on: June 17, 2010, 03:38:48 PM »
Welcome back Meena ji in full form after a long long time.

साहित्यकार....


साहित्यकार प्रेम नही करते
प्रेम मे घायल होते हैं
झोली भर अश्रु
सैकडों झंझावत
"औ" पीडाऒं का इतिहास
होती है एक रचना।

साहित्यकार श्रायित है
दर्द से उद्वीग्न
छलनी अंर्तमन को।

साहित्यकार अस्पर्श है
विचारों की गंध
विद्रोहों की छुअन
संक्रमित कर देती है
उनके कल, आज "औ" कल को।


Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #44 on: June 17, 2010, 03:42:41 PM »
                                "गौरया"
 
हमारे घर आंगन की शोभा, होती थी कभी, ये गौरया।
दाल का दाना,चावल का दाना,खूब चुगती थी, ये गौरया।

चु-चु करती फुटक-फुटक कर, दाना पानि चुगती थी।
हल्ला करते ही गौरया, फुर्र-फुर्र, उड़ जाया करती थी।
 
मगर आज की चका चौध मे, दुर्लभ है यह गौरया।
बाग बगीचे कच्चे मकान, होता था इनका आशियाना।
 
खत्म होते बाग बगीचे, सिमन्टेट हमारे घर आंगन से।
पेड़ पौधो के न होने से, विलुप्त होती जा रही ये गौरया।
 
चिड़िक-चिड़िक करती गौरया, मन को भा जाया करती थी।
आधुनिक है आज आंगन हमारा, पर गायब है नन्ही गौरया।
 
स्वरचित
सुन्दर सिंह नेगी 26-03-2010

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #45 on: June 17, 2010, 03:46:20 PM »
वाह सुन्दर जी बहुत ही सुन्दर शब्दों मैं आपने बचपन की याद दिला दी. हम भी गोरैया को देख देख के ही बड़े हुए हैं और अब वोह शहर मैं दिखती ही नहीं है. +१ कर्म आपको इस बढ़िया कविता के लिए.

                                "गौरया"
 
हमारे घर आंगन की शोभा, होती थी कभी, ये गौरया।
दाल का दाना,चावल का दाना,खूब चुगती थी, ये गौरया।

चु-चु करती फुटक-फुटक कर, दाना पानि चुगती थी।
हल्ला करते ही गौरया, फुर्र-फुर्र, उड़ जाया करती थी।
 
मगर आज की चका चौध मे, दुर्लभ है यह गौरया।
बाग बगीचे कच्चे मकान, होता था इनका आशियाना।
 
खत्म होते बाग बगीचे, सिमन्टेट हमारे घर आंगन से।
पेड़ पौधो के न होने से, विलुप्त होती जा रही ये गौरया।
 
चिड़िक-चिड़िक करती गौरया, मन को भा जाया करती थी।
आधुनिक है आज आंगन हमारा, पर गायब है नन्ही गौरया।
 
स्वरचित
सुन्दर सिंह नेगी 26-03-2010

Meena Pandey

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #46 on: June 17, 2010, 03:49:09 PM »
Dhanyawad Anubhaw Jee

Welcome back Meena ji in full form after a long long time.

साहित्यकार....


साहित्यकार प्रेम नही करते
प्रेम मे घायल होते हैं
झोली भर अश्रु
सैकडों झंझावत
"औ" पीडाऒं का इतिहास
होती है एक रचना।

साहित्यकार श्रायित है
दर्द से उद्वीग्न
छलनी अंर्तमन को।

साहित्यकार अस्पर्श है
विचारों की गंध
विद्रोहों की छुअन
संक्रमित कर देती है
उनके कल, आज "औ" कल को।


Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #47 on: June 17, 2010, 03:55:40 PM »
जय हो सभी लेखको की मुझे उक्त टोपिक को पढकर एक और टोपिक का नाम सुझ रहा है कि.

"उत्तराखण्ड लेखको की भुमी"

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #48 on: June 17, 2010, 04:01:14 PM »
गौरया की सुन्दरता ने मुझे लिखने को प्रेरित किया और मैने कुछ इस तरहै लिख दिया अनुभव जी.

खीमसिंह रावत

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #49 on: June 17, 2010, 04:21:09 PM »
Thanks


 

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