Author Topic: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....  (Read 29697 times)

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #60 on: June 21, 2010, 04:27:01 PM »
दोस्तो आप सभी का मै आभार प्रकट करता हु कि
आपने मुझे अपना अनमोल प्यार दिया, अपने अनुभवो को मेरे साथ बांटा
और मेरे साथ जिन्दगी के अनछुवे पहलुओ को छुआ
मुझे आप सभी लोगे से प्यारे दोस्तो से इसी तरहै स्नेह मिलता रहे
मै यही आपसे भीख के रूप मे ही सही मगर अपनी करूणा से मागता हु।

सुन्दर सिंह नेगी 20/06/2010

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #61 on: June 21, 2010, 04:51:33 PM »
क्यों होती हो हमसे खफा,
तम्हें हमारा ध्यान नहीं है,
लिखी जाती हो रेत पर कविता,
तुम्हें लहर का ज्ञान नहीं है

शब्द शब्द बोलने से अक्सर
विवाद खड़े हो जाते हैं
ना मैं समझू ना तो तुम समझो
बस यु ही बेरूख हो जाते हैं

जीवन के इन हशी पलो को,
तनहा में ना छोडो तुम
हाथ छुड़ा लो सपनों से
सच से नाता जोड़ो तुम,
  .

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #62 on: June 21, 2010, 10:12:16 PM »
क्यों होती हो हमसे खफा,
तम्हें हमारा ध्यान नहीं है,
लिखी जाती हो रेत पर कविता,
तुम्हें लहर का ज्ञान नहीं है

शब्द शब्द बोलने से अक्सर
विवाद खड़े हो जाते हैं
ना मैं समझू ना तो तुम समझो
बस यु ही बेरूख हो जाते हैं

जीवन के इन हशी पलो को,
तनहा में ना छोडो तुम
हाथ छुड़ा लो सपनों से
सच से नाता जोड़ो तुम,
 
dayaal bhai badhiyaa vichaar hai,par sapne hee to aadmee ko chalaatey hain.

iskaa bhi intezaam ke bezaar na hon log,
har roz naee aas bandhatee hai zindagee.

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #63 on: June 21, 2010, 11:38:22 PM »
लोग
 
संगीत सभा में,
सम से दो मात्रा पहले,
ताली देने वाले लोग.
 
उन्यासी या इक्यासी,
अंगेज़ी में बताओ,
कहने वाले लोग.
 
अपनी धुन छोड़,
पराई धुन पर,
थिरकने वाले लोग.
 
मंदिर की क़तारें तोड़कर,
दर्शन पा कर,
धन्य होने वाले लोग.
 
रात के अंधेरे में,
तरह तरह से,
लूट लेने वाले लोग.
 
तिफ़्ल को कूड़ेदानों,
पर बेफ़िक्र होकर,
फ़ेंक जाने वाले लोग.
 
महापंचयतों में,
विभिन्न मुद्राओं में,
मुद्रा लहराने वाले लोग.
 
घर की ख़बरें,
साहूकार के पास,
देकर पाने वाले लोग.
 
एक ख़बर को,
बहुत बेख़बरी से,
दबा देने वाले लोग.
 
 
मेरे और आप से,
दुनिया में रहने वाले,
दुनिया के वाले लोग.
 
हर्षवर्धन.
 
 
 
 
 
 
 
 
 

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #64 on: June 22, 2010, 10:12:55 PM »
 no one since the last 3 days.

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #65 on: June 29, 2010, 04:10:35 PM »
                  ( जिन्दगी )

एक फूल की तरहै है तु "जिन्दगी"

पहले खिलने के लिए,
फिर मुझॉने के लिए,
फिर बीखर जाने के लिए।


दो रास्ते है "जिन्दगी",
तेरे चलने लिए।
एक जुदाई के लिए,
एक मंजील के लिए।


मंजील कितनी दूर है,
सभी जानते है "जिन्दगी" की।

जीतकर "खुशी", मनाने के लिए,
हार कर "मुस्कराने" के लिए।

मर कर रूलाने के लिए,
जल कर मिट जाने के लिए।

सुन्दर सिंह नेगी 09/03/2010

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #66 on: June 29, 2010, 04:22:13 PM »
सभी कवि साथीयों के स्वरचित स्वप्रेम लेख पढकर बहुत आपार हर्ष हो रहा है आघे भी लिखते रहिए अपने विचार मेरा पहाड़ पर बाटते रहिए.

सुक्रीया साथीयों

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #67 on: June 29, 2010, 09:49:19 PM »
paili padhee likhi hoonchi. ab lekhi padhi huni.

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #68 on: June 30, 2010, 12:41:22 PM »
बहुत गहरी बात कही है भाई


paili padhee likhi hoonchi. ab lekhi padhi huni.

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #69 on: June 30, 2010, 01:15:32 PM »
खेल-खेल मे तेल ढोई जाँ खेल-खेल मे दुध ढोई जाँ तेल जसी चीज दुध जसी चीज कै फिर बटोउण मुस्किल है जाँ. बाटा घाटा भली कै जाया राम- हनुमान जपनै राया य शहर छा भुला य हामर गौ नैहैती जां गीत कनै-कनै बाट कटी जां य शहर मजी आँखम घूण जाण मे गाडी वाल टक्कर मार जानी सडक पार करण मजी गजबजाट नी करण चैन अगर तुम गाडी चलाण ज्यांणछा तो गाडी जायदा तेज नी चलाण चै. आब तुम य झन सोचीया कि मी तमुकै डरुणई. जब तुम सलामत रौला तो हमुकै लै भल लागल.

सुन्दर सिंह नेगी
30/06/2010

 

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