Author Topic: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....  (Read 30952 times)

पंकज सिंह महर

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Re: From My Pen : छायांकित कविता
« Reply #70 on: July 08, 2010, 02:44:57 PM »
प्रस्तुत है एक कविता,
जिसे शब्दों में उकेरा श्री दयाल पाण्डे जी ने,

चित्र में उकेरा श्री हेम पन्त जी ने,
यहां पर उकेरा ? मैने भई....कन्फ्यूज क्यों होते हैं?

 

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #71 on: July 10, 2010, 03:08:31 PM »
प्रस्तुत है एक कविता,
जिसे शब्दों में उकेरा श्री दयाल पाण्डे जी ने,

चित्र में उकेरा श्री हेम पन्त जी ने,
यहां पर उकेरा ? मैने भई....कन्फ्यूज क्यों होते हैं?

 
aap sab ko badhai hai. kavita kee bhee aur barkhaa kee bhee.

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #72 on: July 10, 2010, 03:10:53 PM »
GADBADJHAALAA

वो आमतौर पर जो लोग बड़बड़ाते हैं,
हम उसे शेर बता,तुमको गड़बड़ाते हैं.

ज़रा रुक और दिल में झाँक कर देख,
कितने अरमान यहाँ पंख फड़्फड़ाते हैं.

अपने हालात में क्या क्या पचाए बैठे हैं,
ग़ुस्सा आ भी जाए,यों ही बड़बड़ाते हैं.
 
बसंत रुत में जब फूल नए आते हैं,
वो कहीं बैठ कर हिसाब गड़बड़ाते हैं.
 
वो उनके हाथ में चप्पू मेरी नाव का है,
ज़रा सी तेज़ हवा में जो हड़्बड़ाते हैं.
 
यहाँ तो शाह का ईमान डोल जाता है,
ग़नीमत है मेरे बस पैर लड़खड़ाते हैं.

हेम पन्त

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #73 on: July 10, 2010, 03:49:07 PM »
वर्मा जी अच्छी पंक्तियां लिखी हैं आपने.... वैसे तो बारिश का इन्तजार करते-2 अब घुटन सी होने लगी है, फिर भी बारिश पर कुछ और लिखिये प्लीज..

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #74 on: July 13, 2010, 11:45:50 AM »
                          "मै भी गरीब था.."

मै भी गरीब था, गरीबी था इस लिए कह रहा हु क्योकी वो गरीबी का सख्त वक्त बीत गया.
प्याज कूट के रोटी मे लगा के खाता था जब प्याज भी न हो तो रोटी मे नमक लगा के खा लेता था पानी पिके अपनी घास की बनी झोपडी मे सो जाता था न अधिक पड़ा लिखा बस किसी तरहै प्राईमरी स्कूल से अक्षर बोध हो गया. क्योंकी मै गरीब था.

अगर कभी घर मे मेहमान आ जाये तो बात ही कुछ और होती थी क्योकी उस दिन देहाती बाजार से कुछ नई सब्जी आनी तय होती थी.

मेहमानो की किसमत हमारी किसमत को कुछ दिन के लिए ही सही पर धक्का मार देती थी जब मेहमान जाने लग जाते थे तो हम उनहे जाने के लिए मरे मन से मना किया करते थे क्योकी हमे पता था कि

"हम गरीब है"

हम शब्द का प्रयोग इस लिए कर रहा हु क्योकी इस गरीबी मे मेरा गरीब परिवार भी सामील था हमे पता था कि जायदा दिनो तक मेहमानो को बाजार से खरीद कर खाना नही खिला सकते है.
भई मेहमान तो मेहमान ही होते है कुछ दिन रहे और चले गये फिर क्या वही गरीबी प्याज कुटी रोटी मे लगाई खायी और पानी पीया.

"जिन्दगी युही चल रही थी" "क्योकी वो मेरी गरीबी थी"

आधे सही आधे फटे कपडे हमारे तन ढका करते थे क्योकी वो मेरी गरीबी की निसानी थी.
पैरो मे आधी टुटी चप्पल पहन के जंगल घुम लेते थे जुते तो हमने देखे तक नही.

"क्योकी मै गरीब था".

उस गरीबी ने मेरे आंखो मे आंसुवो के समुंदर के आलावा और कुछ नही छोडा़ मै रोता था अपनी माँ के सामने वो आशा दिला के चुप करा देती थी.
पिताजी तो कहते थे अरे बेटा तु आठवी पास करले तुझे फोर्थ क्लास की नौकरी मिल जायेगी जब मैने आठवी पास की तो पिताजी गुजर गये.

ये लो अब फोर्थ क्लास की नौकरी कोंन दिलायेगा वो मेरी गरीबी ही जानती थी.

अब गरीबी ने अपना रूख और सख्त कर लिया क्योकी अब रोटी खिलाने वाला ही नही रहा.
हैरान परेसान मेरी जिन्दगी ने रूख मोडा शहर को और मै गरीबी के ठोकर खाते-खाते इतना निठुर हो गया कि जिन्दगी से ही जी भर गया.

लेकिन उस गरीबी ने मेरा इतने लम्बे समय तक इंतिहान लिया की मै माँ की दी हुई वो आशा भी खोने लगा.

लेकिन अचानक जिन्दगी मे एक मोड आया कि मै आज अपने, पडे लिखे और अपनी मात्र भाषा की तरहै अंग्रेजी मे बोलने, लिखने वाले लोगो के बीच मे सामील हु. और आज अपनी गरीबी की एक सिढी उपर चढ गया हुं.

सुन्दर सिंह नेगी 13 /07 /2010
sunder singh negi

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #75 on: July 13, 2010, 12:21:45 PM »
सुंदर जी ४ लाइन प्रस्तुत हैं -

तेरा क्यां न्याय हे इस्वर
क्यूँ दुःख का संसार दिया
क्यों सुख छिना भाग से मेरे
क्यों आह आहार दिया
क्यों दर्द मिला हरबार मुझे
क्यों आँशु की सौगात मिली
मेरे अल्प जीवन के पथ पर
क्यों हर पल ही हार मिली
इस दुखांत ह्रदय को अपने
धैर्य एक पल भी दे न सका
यु असहाय हुवा मन मेरा
न रो पाया न हाश सका
xx           xx              xx
जन-जीवन जलधि दुखो का
सुख एक पल सपना है
जो कल है वह और किसी का
जो इस पल वह अपना है
काहे निराश करे मन अपना
ये क्षण भर की महफिल है
जीवन एक बहती नदी है
सागर मोक्ष मंजिल है
जौ भर के इस जीवन में
क्यों द्वेष ह्रदय में लाता है
प्यार के बदले प्यार किये जा
यही मानवता का नाता है ,

 
 
 

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #76 on: July 13, 2010, 12:46:27 PM »
जय हो दयाल जी की बहुत खुब लिखते रहिए मैने तो बस अपनी उस गरीबी को सेयर किया है जो हम, मै कभी थी आज भी गरीब ही है मगर अन्तर 75 - 25 का है यानी 75 % गरीब और 25 % अमीर. =  कुल मिलाकर पहले से बेहतर.

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #77 on: July 15, 2010, 08:19:17 AM »
ओ बादल
 
ओ बादल,अझ्यालूँ तुम हमर याँक बाट भूल गे छा,
कभै आ लै जाँछा तो बरसण,भिजूँण भूल जाँछा.
 
तुम आला कैभेर हमुल फ़ोर लेन सड़क बणाईं,
स्वागत देखि छोड़,तुम जो पेड़ कटीं ऊ गिणछा.
 
हमुल तुमर लिजि गाड़ि बणै,आरामैल आला कैभेर,
गाड़ि छाड़,तुम गाड़ीक पिछाड़ी छुट्नेर धुँग देखछा.
 
हमुल तुमर लिजि ठन्ड हूँ एसीक इन्तजाम लै करौ,
हमर नीयत देखि छोड़,तुम पर्यावरण वाल गीत गाँछा.
 
ओ बादल,अझ्यालूँ तुम चुनावी नेता जस है गो छा,
घुमड़ भेर ऊँछा,गरज भेर आश्वासन दिंछा,न्है जाँछा.
 
अब हम जंगल काट भेर वाँ बाट बणूँन में लागि छूँ,
सहराक सड़क देखि नाराज छा,के पत्त यो बाट ऐ जाँछा.
 
 

 
 

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #78 on: July 15, 2010, 03:12:03 PM »
बहुत खुब धरमा जी

तुम सही कौण लाग रछा
आगीलै दुवारै बाट जै बेर
साल पिछाडी दुवारै बाट भ्यार ऐ जा.

हा हा हा

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #79 on: July 15, 2010, 04:05:11 PM »
बहुत खुब धरमा जी

तुम सही कौण लाग रछा
आगीलै दुवारै बाट जै बेर
साल पिछाडी दुवारै बाट भ्यार ऐ जा.

हा हा हा
dajyu tumar baat mer akal me ni aai.

 

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