"गढवाली हो या कुमाऊनी"
मे गढवाली हु या कुमाऊनी हु कहने का अर्थ यह नही समझना चाहिए की हम अलग अलग है यह तो मात्र हमारे बीच के एक एरिया कोड को दर्शाना भर मात्र है. जैसे आपने पुछा कहां के हो मैने कहा उत्तराखण्ड आपने कहा उत्तराखण्ड कहा से मैने कहा रानीखेत आपने पुछा रानीखेत कहा पडता है मैने कहा अल्मोडा आपने कहा अल्मोडा किस जगह पडता है कुमाऊ मे या गढवाल मे मैने कहा कुमाऊ मे.
वैसे भी हम खुद एक ही एरिया के होने बावजूद भी यह पुछते है अल्मोडा किस गांव से हो गांव का क्या नाम है मैने कहा दियालेख किसके पास पडता है रानीखेत के पास तो दोस्तो इसे मात्र एरिया कोड ही समझना चाहिए न कि अलगाव या एरिया पक्षपात.
इसका मतलब हमे यह नही समझ लेना चाहिए कि हमारी यह पहचान अलग-अलग विघटनकारी है.
सुन्दर सिंह नेगी 16 /07/2010.
बहुत सही बात लिखी है आपने, क्षेत्र विशेष से अपनी पहचान को जोड़ना चाहिये, संकीर्णता को नहीं। जैसे मेरा देश भारत है, उससे मेरी पहली पहचान है तो मैं सबसे पहले
भारतीय हूं , फिर मेरी प्रादेशिक पहचान में मैं
उत्तराखण्डी हूं, आंचलिक या मण्डलीय पहचान के लिये मैं
कुमाऊंनी (मण्डल- कुमाऊं) हूं, जिले की पहचान के लिये
सोरयाल (जिला पिथौरागढ़) हूं, पट्टी की पहचान के लिये
बारबीसिया (पट्टी-बाराबीसी) हूं और गांव की पहचान के लिये
खोल्याल (गांव-खोला) हूं। लेकिन यह सब मेरी स्थानीयता को जोड़ने वाले कारक ही हैं, क्योंकि इन्हीं छोटी-छोटी क्षेत्रीयताओं से ही राष्ट्रीयता सुनिश्चित होती है, संकीर्णता के लिये इनमें कोई जगह नहीं है।