Author Topic: Garhwali Poem by Mahendra Singh Rana -गढ़वाली कविताएं - महेंद्र सिंह raana  (Read 8486 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Dosto,

We are sharing here garhwali poems written a young poet Mahendra Singh Rana.



“मन मा खुशी होन्दी

 
गैल दगरियों का जब मी रेन्दु

 
झिकुडी कु बिस्वाष जगेन्दु

 
गैल दगरियों का जब भी रेन्दु,

 
 
उबाई रे झिकुडी

 
निसास लगी, झुरी रे प्राण

 
दगरियोंक फाम औणी रे

 
इनु दिनोन बॉडी के नि आण,

 
 
काखड़ी, संतरा, दाड़िम

 
अर चोरी स्यो का बग्वान भी

 
केन द मंदिरों पुज्ये भी खाई

 
नि छोड़ी भगवान भी,

 
 
सारा सारा दिन घूमी

 
रात खुणि निंद नि आई

 
भोल जै के क्या होलु

 
ये सोची के निंद नि आई,

 
 
उठी के सुबेर

 
दूनी-प्रिथी कु चक्कर

 
न खे, न पिनि

 
खेलदा रे दिनभर,

 
 
याद जब दगरियों की आन्दी

 
आख्यों मा पाणी ही होन्दु

 
आजाद आज भी नि भूली

 
हे! तुमु ते क्ने बिसरी जान्दु।”
http://www.garhwalikavita.blogspot.com/

M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
 बौड़ी ऐजा गढ़देशी   
 
डांडी-कांठी धै लगाणी
रौड़ी-दौड़ी तू ऐ
ज्यू नि लग्दु त्वे बिगेर
प्न्देरी भी खुदेणी रे॥१॥
सैरा-सोपाटा, गौं-डिंड्याली
त्येरु बाटु देखणा चा
बौडी ऐजा मेरा लाटा
उरख्याली धाद लगाणी चा॥२॥
कफुवा-घिनुडी अर घुघुति
त्यारा ही गीत गान्दा
गुणी-बाँदर की टोली भी
त्वे ते ही टोक मारदा॥३॥
काखड़ी-मुंगरी, गौं का अल्वाड़
त्येरी खुट्यो ते जुगाया
नारेणो मंदिर अर भगवती थान
त्येरी पुज़्ये ते रुसाया॥४॥
निस धार मा त्येरी कुड़ी-बाड़ी
खोज्याणी च आज त्वे ते
कुड़ी-बाड़ी यख खेली के
सुपन्यु ते किले बिसरी गै॥५॥
गौं की पधानी बौडी
त्येरी छ्वीं लगाणी च
किले नि आणु मास्ता तू घौर
पूरा गौं गयाणु च॥६॥
माँ, त्यारा बाबू भी
अब आंशु नि पौछ्दा
इन आंशुओ की गाड़ मा
त्येरी मुखुदी देखदा॥७॥
बौड़ी ऐजा म्यारा गढ़देशी
यों गढ़देश ते त्येरी जरूरत चा
रौड़ी-दौड़ी ऐजा परदेशी
'आज़ाद' भी अब घौर जाण्यु चा॥८॥
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
 आज त त्येरी याद छ:   
[/t]
आज त त्येरी याद छ:
 
"तेरी याद औणी च प्यारी आज परदेश जै के 
पुरेणी शिवरात्रि याद ऐगे आज परदेश जै के॥१॥
याद औणा वूँ दिन जब हम म्योड़ा मा साथ घूमणा ची
आज परदेश जै के वे स्वाणौं दिन की याद औणी च॥२॥
याद औणा वु दिन जब मी एकटक त्वे देखी रोन्दा
आज परदेश मा तेरी मुखड़ी नि देखी के रुन्दा॥३॥
मी लुक-छुप के त्वे से प्यार छों करदु
म्यारा प्यार की त्वे तैँ खबर नि चलदु ॥४॥
याद आन्दी-रेन्दी तेरी मीते हमेशा दिन रात
कन व्होलु वु दिन जब होली प्यार की बात॥५॥
मी त्वे से अपु जन से ज्यादा प्यार करदु छ:
लेकिन तवे तें बतोण में मेरो दिल डरदू छ:॥६॥ 
आज दूसरी शिवरात्रि तें ये लेख छ लेखणु
मी त्वे से कति प्यार करदु ये शिवजी ही ज्याण्दुं॥७॥ 
'आजाद' आज बोलदु  जरूर आलु दिन वु 
जब तू मीते खुद बोलेली आई लव यू॥८॥"

 
 रचनाकर:-
 महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद[/td][/tr][/table]

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
 "चैत कु मैना"   
“बासाणा ले घूघूती मैना चैत को लगी गैनबेवायी बेटियों ते मैत की याद औणा लगी गैनसोचणी होली बेटी ब्णो मा बुरांश फूली गैन
जैका भाई घौर छन वूँ झट भिटोली ल्यै गैन॥१॥
ग्यूँ-जौ की सारी फूली पिंगड़ी ह्वे गैन पुंगड्यू का तीर-डीस फ़्योलीं फूली गैनऊँची-नीसी डाल्यों मा बुरांश फूली गैनडांडी-कांठी ग्वालों से गूँजना लगी गैन॥२॥बौणों का बीच मा लाल बुरांश खिली गैन डाल्यों मा भाँति-भाँति का मौल्यार ऐ गैनगों-गोड़ों मा सब कल्यों पकुणा लगी गैनअपुण बेटी तै सब भिटोली पणस्युँण लगी गैन॥३॥भैजी अपु बैणी तै भिटोली ल्यै के पौँछी गैनबैणी अपु हाथ की दूध-खीर भैजी ते खवुण लगी गैनभै-बन्धो तुम भी झट घौर चली जावाअपु प्यारी बैणी ते तुम स्वाणों भिटोली द्यावा॥४॥ कण स्वाणों रिवाज यू हमार पहाड़ कीजै संभाली के धन जु बात हमार हाथ कीघूरण ले घूघूती ये स्वाणों चैत कीब्वारियों ते याद ऐगे अपु प्यारो मैत की॥५॥“
 
रचनाकर:-
 
महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद'

http://www.garhwalikavita.blogspot.com/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
उड़ जै रे पंछी तू
“उड़ जै रे पंछी तू
जै के इति दूर,
पंख लगे के जाई तू
जाई तू फ़ूर-फूर...
मुख मा त्यारा एक तिरण
जन लगदी सौ किरणों की घाम,
त्यारा इन तिरणों से ही ह्वायी
ये संसार का सारे धाम।
उड़ जै रे पंछी तू ........................
त्यारा इन तिरणों को यू घ्वोल
जन लगदी कटोरी सुनै की,
त्यारा इन घ्वोलों से ही
सीख ल्यही ब्रह्मैं की।
उड़ जै रे पंछी तू ............................
त्यारा घ्वोलों मा यूं प्वोथील
ज़्वु लगड़ा द्येव स्वरूप,
त्यारा इन प्वोथीलों से ही
बन्यू मन्ख्यैं कौ रूप॥”

रचनाकर:-
महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद

"चैत कु मैना"

“बासाणा ले घूघूती मैना चैत को लगी गैन
बेवायी बेटियों ते मैत की याद औणा लगी गैन
सोचणी होली बेटी ब्णो मा बुरांश फूली गैन
जैका भाई घौर छन वूँ झट भिटोली ल्यै गैन॥१॥

ग्यूँ-जौ की सारी फूली पिंगड़ी ह्वे गैन
पुंगड्यू का तीर-डीस फ़्योलीं फूली गैन
ऊँची-नीसी डाल्यों मा बुरांश फूली गैन
डांडी-कांठी ग्वालों से गूँजना लगी गैन॥२॥

बौणों का बीच मा लाल बुरांश खिली गैन
डाल्यों मा भाँति-भाँति का मौल्यार ऐ गैन
गों-गोड़ों मा सब कल्यों पकुणा लगी गैन
अपुण बेटी तै सब भिटोली पणस्युँण लगी गैन॥३॥

भैजी अपु बैणी तै भिटोली ल्यै के पौँछी गैन
बैणी अपु हाथ की दूध-खीर भैजी ते खवुण लगी गैन
भै-बन्धो तुम भी झट घौर चली जावा
अपु प्यारी बैणी ते तुम स्वाणों भिटोली द्यावा॥४॥

कण स्वाणों रिवाज यू हमार पहाड़ की
जै संभाली के धन जु बात हमार हाथ की
घूरण ले घूघूती ये स्वाणों चैत की
ब्वारियों ते याद ऐगे अपु प्यारो मैत की॥५॥“


रचनाकर:-
महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद'


गढ़वाली कविता:- मेरो गाउँ मुलुक

“पैलि कति बड़िया ची मेरो गौं मुलुक
अब कतक्या बदलीगे यख का यूँ लोग,
पैलि सब आपस मा स्यों-सिमेन लगूँ छि
अब यख हैलो-हाय, गुड़-बाय बोल्दा छि,
पैलि नांगा खुट्योन क्ख-क्ख दौड़या चि
अब भैर-भितर जाण तै हिल वाड़ा बूट चि,
पैलि सब बुड्या बैठी के तम्बाकू घुड़-घुड़ करदा छिन
अब ज्वान नौन्याड़ गुटका-सिगरेट खाण्या छिन,
पैलि ब्याखुनी सब बैठी के औण्ण-कथा बरात लगूँ छिन
अब यख आपस मे क्वे प्यार से बोल्दा भी नी छिन,
‘आजाद’ की आंख्यों मा आज पाणी ऐ गे
क्वी द मेरो मुलुक मीते वापस लोटे दे।”

रचनाकार - महेन्द्र सिंह राणा ‘आजाद’
दिनाँक -   ०७/०६/२००६
Copyright © Mahendra Singh Rana

Blog Address – http://garhwalikavita.blogspot.in/2012/01/blog-post_15.html



गढ़वाली कविता:- मि छों गढ़देशी

“निस कैलाश कु छाला बसी देवभूमि ते मेरु परणाम
भगवान भोलेक भूमि गढ़देश ते झिकुडी से लगाण॥१॥

मि छों गढ़देशी अर यी छ मेरी पछ्याण
यखी माया लाण अर ये का बाना ही जाण॥२॥

इनी माया लगोण की दुनियान देखि रे जाण
मि छों गढ़देशी मिन त गीत यखी का गाण॥३॥

बांजेक जड्यू कु ठंडों पाणि अर रोटी कोदे की खाण
हिसोल, काफल, स्यु अर पुलम छकी के चबाण॥४॥

छोड़ी की सब, बाटा उकाल का ही जै लगाण
बिपदा त आणे रली पर हमेश गुत्थी सुलझाण॥५॥

पुरखों की पोराई गढ़देश ते सब्यु मा सुफल बनाण
पुरखों का देख्या सुपन्या अब उनु ते नि रूसाण॥६॥

अजैपालेक सै खोद्धि छ हमुन त महल बनाण
बीर-भड़ु कु कमायु गढ़देश अब हमुन सजाण॥७॥

इष्ट देवी माँ भगवती की खुट्यू मा जिंदगी बिताण
चार धामो की महता यख हमेश सेवा लगाण॥८॥

‘आजाद’ बुणु हे! गढ़देशियों सब्यून बौड़ी ऐ जाण
मि छों गढ़देशी ये ते बनौण अपरि पछ्याण॥९॥“

रचनाकार - महेन्द्र सिंह राणा ‘आजाद’
दिनाँक -   २०/०१/२०१२
Copyright © Mahendra Singh Rana

Blog Address – http://garhwalikavita.blogspot.in/2012/01/blog-post_28.html



गढ़वाली कविता:- ह्यूँद

"ह्यूँद...
अर ह्यूँदी दिनो कु
तैलु चड़चड़ु घाम,
सुबेर र ब्याखुनी कु
फुर्फुरिया बथौँ,
रात इणी पौट मरी जाण
वलु जड़्ड़ू।

मंगसीर कु
सुरसूर्या बथौँ,
पूस कु
घुनघुनयाँ ह्यूँ,
माघ की
घाम तपी खिचड़ी।

वनी ता डाल्युं-बोटो मा
पतझड़ ह्वयूं,
वै मा भी ऐँच बे
सफेद ह्यूँ पड्यू,
धार-खरगा गाड़-गधन्या
सब ह्यूँ भरयु।

ऐ के ह्युंद
विसात छोड़ी गे,
ह्यूँद का दिन
बौड़ी ऐ गे,
ह्यूंद की हिँदोली
जिकुड़ी मा रै गे।"

रचनाकार - महेन्द्र सिंह राणा ‘आजाद’
दिनाँक -   १५/०२/२०१२
Copyright © Mahendra Singh Rana

Blog Address – http://garhwalikavita.blogspot.in/2012/02/blog-post.html


गढ़वाली कविता:- "कब आलु चैत"

"सोचदी रे बारोँ मैना
 कब फूलला बोण्णौँ मा बुराँश
 कन ह्वोलु घुघूती को घूर-घूर
 कब आलु डाल्यु मा मौल्यार
 दिखेली घरिया की पिगंड़ी सारी
 पुगंड़्युँ मा फ्योँली का फूल
 कफुवा भी बासेली
 क्खी रेली स्येड़ा-पातलो मा सिलपुड़ी भी कुमलाई
 कन स्वाणुँ दिखेलु मेरु पहाड़
 कन स्वाणीँ यख की रीत
 आला बाबाजी अलिवार ल्यै के
 मैँ ते दगड़ी लिजाला मैत
 सभी गैल्याणी आई रेली
 खूब हौँस-उलार रलौ
 दिन मा खौला निमुआ की खटै
 राती मा गौठ भरी के कछेड़ी
 सोचदी रेँदी दिशा-ध्याणी
 कब आलु चैत
 गैल्याणुँ गैल रलु मी मैत।"
रचनाकार:-
महेन्द्र सिँह राणा 'आजाद'
Copyright © Mahendra Singh Rana
www.garhwalikavita.blogspot.com


 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22