कविता नं-17
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ओ भाई साहब जी नमस्कार
भै नि पछ्यणना छौ कि तुम,
याद कारो भै ज़रा अक्वेकि
सालेकि पैलि त मीला छौ हम...
खादी कु सफेद सुलार-कुर्ता
अर् मुंडमा मा टुपला धर्युं छाई,
म्यारा चौकमा बैठा छौ घड़ेक अर्
एक च्या कु गिलास भि सड़काई..
वे दिन त कुछ हैंकि बनिं का सि
खूब हथ फर् हथ जोड़णा छाई,
क्या मैलंण्यां अर् क्या सिप्लंण्यां
सब दगड़ प्यार से मिलणा छाई...
टक्क लगैकि मिथैं याद च
सुरुक मेरि उबरि मा औ तुम,
द्वी बोतल अर् हज़ार कु नोट
मेरि जलाठी मा धैरि ग्यो तुम...
सबका समणि बोलि तुमन कि मि
जीतिकि अथेला-पथेल कै ड्युंलु,
क्वी भूखु, तीसू, नांगु नि रालु, मि
विकास कि इनि गंगा ब्वगे ड्युंलु...
अर् अब सर्र कन बिसरो तुम
कब तक जि सिन मुख फिरैला,
देखुलु मी भि चार साल बाद फिर
म्यारा चौकमा कन जि नि ऐला...
©® धर्मपाल रावत.,
ग्राम-सुन्दरखाल, ब्लॉक- बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल।