Author Topic: Garhwali Poems by Anup Rawat / अनूप रावत की गढ़वाली कवितायेँ  (Read 23258 times)

Anoop Rawat "Garhwali Indian"

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Garhwali Shayari By Rawatji

तेरी छुंयाल आंखी छन मैं सनकाणी।
अपड़ी माया मा छन मैं थे अल्जाणी।
ओंटिडी तेरी प्रीत का गीत छन गाणी।
उनि छै तू हे सुवा मिजाज की स्वाणी।

©2012 अनूप रावत “गढ़वाली इंडियन”
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, (उत्तराखंड)

Anoop Rawat "Garhwali Indian"

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नौकरी का बाना
घर गौं मुल्क छोड्यों च,
ईं पापी नौकरी का बाना।
छौं दूर परदेश मा मी हे,
निर्भे द्वी रुप्यों का बाना।

मेरी सुवा घार छोड़ी च,
ब्वे बुबों से मुख मोढ्यों च।
ईं गरीबी का बाना कनु,
अपड़ो से नातू तोड्यों च।

दिन रात ड्यूटी कनु छु,
तब त द्वी रोटी खाणु छु।
जनि तनि कुछ बचायी की,
घार वलु कु मी भेजणु छु।

ऐ जांद जब क्वी रंत रैबार,
चिठ्ठी का कत्तर मा प्यार।
द्वी बूंद आंसू का आंख्युं मा,
ऐ जन्दिन तब हे म्यार।

हे देवतों मी तुम्हारा सार।
यख रै की भी आस तुममा,
राजी ख़ुशी रख्यां गौं गुठ्यार,
आस पड़ोस अर मेरु घरबार।

कभी बार त्यौहार मा मी,
घार जांदू छुट्टी जब आंदी।
पर यूं द्वी चार दिनों मा,
खुद की तीस नि बुझी पांदी।

घर गौं मुल्क छोड्यों च,
ईं पापी नौकरी का बाना।
छौं दूर परदेश मा मी हे,
निर्भे द्वी रुप्यों का बाना।

मेरी कविता संग्रह “मेरु मुल्क मेरु पराण” बिटि।
©22-12-2012 अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

Anoop Rawat "Garhwali Indian"

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गढ़वाली कविता : जग्वाल

कब बिटि कन्ना छावा हम लोग जग्वाल।
और झणी कब तक कन्न होरी जग्वाल।

गौं-गौं मा सुबिधा होली कन्ना जग्वाल।
होलू चौमुखी विकास बल कन्ना जग्वाल।

स्कूल मा होला खूब गुरूजी कन्न जग्वाल।
अस्पताल मा होला डॉक्टर कन्ना जग्वाल।

घूस न देंण पोडी काम मा कन्ना जग्वाल।
घूसखोरी ख़त्म होली बल कन्ना जग्वाल।

न हो पलायन घार बीटी कन्ना जग्वाल।
यखि मिलु रोजगार यनु कन्ना जग्वाल।

ह्व़े चुनाव ता बोली बल ऐलि बग्वाल।
वादा कै छाया जू उन्कु करणा जग्वाल।

जन लोकपाल कु कन्ना छावा जग्वाल।
ईमानदार नेता कु कन्ना छावा जग्वाल।

समझ नि औणु झनि कबतक कन्न जग्वाल।
रावत अनूप पुछुणु कब तक कन्न जग्वाल?

©19-01-2013 अनूप रावत “गढ़वाली इंडियन”
ग्वीन, बीरोंखाल, गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

Anoop Rawat "Garhwali Indian"

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दहेज़ पर गढ़वाली कविता


कनु फैल्युं च समाज मा,
यु निर्भे दहेज़ कु रोग ।
नि लेणु-देणु दहेज़ कतै,
झणी कब समझला लोग।।

बेटी का होंद ही बाबाजी,
जुडी जांदा तैयारी मा ।
सुपिन्यां सजाण लग्यान,
अपरू मुख-जिया मारी का ।।

कखि जु नि दे सकुणु क्वी,
ता आग, फांसी लगणी चा ।
फूलों सी पाली लाड़ी बेटी,
ज्यूंदी ही वा म्वरिणी चा ।।

शिक्षित छावा तुम लोग सभ्या,
फिर भी नि समझणा छावा ।
यु रोग ता आग सी भब्कुणु,
भलु नि चा यु यैथे बुझावा ।।

ब्वारी किलै बेटी नि समझेणी च,
एक सासू किलै माँ नि बनिणी चा।
घर की लक्ष्मी किलै आजकल,
इनि किलै ये युग मा सतैणी चा ।।

कब तक चलुदु रालू यु खेल,
आवा चला येथें बंद करी दयोंला ।
रावत अनूप बोलणु सभ्युं से,
आज नई शुरुआत करी दयोंला ।।

© अनूप रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – 12-02-2013 (इंदिरापुरम)
ग्वीन, बीरोंखाल, गढ़वाल (उत्तराखंड)

विनोद सिंह गढ़िया

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::: दहेज़ पर गढ़वाली कविता :::

कनु फैल्युं च समाज मा, यु निर्भे दहेज़ कु रोग ।
नि लेणु-देणु दहेज़ कतै, झणी कब समझला लोग।।

बेटी का होंद ही बाबाजी, जुडी जांदा तैयारी मा ।
 सुपिन्यां सजाण लग्यान, अपरू मुख-जिया मारी का ।।

कखि जु नि दे सकुणु क्वी, ता आग, फांसी लगणी चा ।
फूलों सी पाली लाड़ी बेटी, ज्यूंदी ही वा म्वरिणी चा ।।

शिक्षित छावा तुम लोग सभ्या, फिर भी नि समझणा छावा ।
यु रोग ता आग सी भब्कुणु, भलु नि चा यु यैथे बुझावा ।।

ब्वारी किलै बेटी नि समझेणी च, एक सासू किलै माँ नि बनिणी चा।
घर की लक्ष्मी किलै आजकल, इनि किलै ये युग मा सतैणी चा ।।

कब तक चलुदु रालू यु खेल, आवा चला येथें बंद करी दयोंला ।
रावत अनूप बोलणु सभ्युं से, आज नई शुरुआत करी दयोंला ।।


© अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन" ग्वीन, बीरोंखाल, गढ़वाल (उत्तराखंड)

Anoop Rawat "Garhwali Indian"

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“ बाटू ”


बाटू,
टेढू-मेढू बाटू,
कखी उकाल, कखी उंदार,
कखी सैणु, कखी धार-धार।

बाटू,
कु होलू जाणु,
क्वी जाणु च अबाटू,
त क्वी लग्युं च सुबाटू।

बाटू,
जाणु चा बटोई,
क्वी हिटणु यखुली,
त क्वी दगिड्यों दगिडी।

बाटू,
पैंट्यां छन देखा,
क्वी च मैत आणु,
त क्वी परदेश च जाणु।

बाटू,
वै जै ‘अनूप’ ब्वनु,
जख बल मनख्यात हो,
सुकर्म मा दिन रात हो।

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – ०२-०२-२०१४ (इंदिरापुरम)

Anoop Rawat "Garhwali Indian"

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गढ़वाली कविता : देवभूमि त्वे भट्याणी च



देवभूमि त्वे भट्याणी च,
सूणी ले रे हे दगिड्या,
कब बिटि की धै लगाणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 1।

तिबारी डिंडाळी भट्याणी च,
उरख्याली-गंज्याली भट्याणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 2।

बांजी हूंदी पुंगड़ी भट्याणी च,
डांडी - कांठी भट्याणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 3।

पहाड़ की रीत भट्याणी च,
बारामासी गीत भट्याणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 4।

रौली - गदेरी भट्याणी च,
घासा की घसेरी भट्याणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 5।

पाणी की पन्देरी भट्याणी च,
घुघुती-हिलांश भट्याणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 6।

जन्दुरु-घराट भट्याणी च,
उजड़ी कूडी-छानि भट्याणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 7।

टेढ़ी-मेढ़ी बाटी भट्याणी च,
ऊँची-नीचि घाटी भट्याणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 8।

बसग्याल- ह्युंद-रूडी भट्याणी च,
छुणक्याळी दाथुड़ी भट्याणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 9।

तांबा की गगरी भट्याणी च,
लोखर की भद्याली भट्याणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 10।

फूलों की डाली भट्याणी च,
हैरी भैरी सारी भट्याणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 11।

भभरांदी आग भट्याणी च,
च्या की केतली भट्याणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 12।

फाणु - झोळी भटयाणी च,
कोदा की रोटि भट्याणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 13।

धार कु मंदिर भट्याणी च,
देवों थौल - जात्रा भट्याणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 14।

थौला-मेला भट्याणी च,
देवभूमि त्वे भट्याणी च,
बौडी आवा, लौटी आवा । 15।

© अनूप सिंह रावत, दिनांक - २४-०८-२०१४
इंदिरापुरम, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
ग्वीन, बीरोंखाल, गढ़वाल, उत्तराखंड

Anoop Rawat "Garhwali Indian"

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]गीत : बाजूबंद गीत गाणी हो

दाथुड़ी लेकि घासा कु जांदी,
ग्वरेल छोरों की बांसुरी सूणी,
स्वामी की खुद मा खुदेणी हो.
वा बैठी डाल्युं का छैल,
घास घसेन्यों का गैल,
बाजूबंद गीत गाणी हो ...

कै दिन मैना बीती साल,
स्वामी बौडी घार नि आया,
पापी नौकरी का बाना,
द्वी जनों कु बिछड़ो हुयुं च,
स्वामी राजी ख़ुशी रयां,
देवतों थैं वा मनाणी हो ...

वा यखुली पहाड़ मा,
ऊनि काम काज सार्युं कु,
ऊनि दुध्याल नौन्याल,
स्वामी का खातिर वींकी,
घ्यु की ठेकी भोरियाल,
तू हिकमत ना हारी हो ...

आंखी थकी बाटू देखि-२,
दिन याद मा धक्याणी,
बुढ्या सासु ससुर की सेवा,
अपडू ब्वारी धर्म निभाणी,
धन त्वेकू पहाड़ा की नारी,
रै सदानी सुहागिणी हो ...

बाजूबंद गीत गाणी हो ...
बाजूबंद गीत गाणी हो ...

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – ०३-०१-२०१५ (इंदिरापुरम)

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जीवन की गाड़ी धकेले रे मनखी

जीवन की गाड़ी धकेले रे मनखी, बाटू च अभी बडू दूर.
भाग मा त्यारा जू कुछ भी होलू, एक दिन त्वे मिललू जरूर.
करम करदी जा, धरम करदी जा ...................

अधर्म कु बाटू भेल ली जांदू, धर्म कु बाटू स्वर्ग मा जांदू.
जैका जनि कर्म हे मनखी, फल भी दगिद्या ऊनि पांदू.
जाति-पांति सब भेदभाव छोड़, सब च वै विधाता की नूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........

फूलों कु बाटू बण्यूं च त्वेकू, कांडों का बाटा किलै छै जाणु.
सब कुछ पाके भी से बाटा मनखी, त्वेन कभी सुख नि पाणु.
दया धर्म कु बाटू जा रे मनखी, ना बण तू हे इतगा क्रूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........

बगत कभी रुक्युं नि रांदु, आदत येकी भी मनखी जनि च.
सब कुछ च त्वैमा हे मनखी, बस एक धीरज की कमि च.
मनखी चोला माटा कु च रे, चखुलू सी उड़ी जालू फूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........

रंग ही नि हुंदू फूलों की पछ्यांण, कांडों ना भी पछ्यांण हुंद.
रंग रूपल नि पछ्नेंदु मनखी, वैका कर्मों न पछ्याण हुंद.
प्रेम कु कल्यों त्वैमा रे मनखी, बांटी सकदी बांटी ले भरपूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........

लू सदानी नि रैंदु चमकुणु, घाम आण मा सर्र गैली जान्द.
पाप की गठरी नि बाँध रे, पाप कु घाडू फट्ट फूटी जान्द.
अहम् छोड़ी दे रे दगिद्या, न कैर मनखी तू भंड्या गुरूर.
जीवन की गाड़ी ....... भाग मा त्यारा ..........

© अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
दिनांक – २८-०१-२०१५ (इंदिरापुरम)

Anoop Rawat "Garhwali Indian"

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धन्यवाद तेरु रूड़ी

धन्यवाद तेरु रूड़ी,
त्यारा कारण परदेशी आई.
टुप द्वी दिनों कु ही सै,
अपड़ी देवभूमि भेंटे ग्याई...

धन्यवाद तेरु रूड़ी,
बाल बच्चों दगड़ी आई.
छुट्यों का बाना ही,
अपडू गौं मुलुक देखि ग्याई...

धन्यवाद तेरु रूड़ी,
ढोग्यां द्वार खोलि ग्याई.
चौक तिबारी साफ कैरी,
भैर भितर सब हेरी ग्याई...

धन्यवाद तेरु रूड़ी,
देवी देवतों सेवा लगे ग्याई.
हिंशोला-किन्गोड़ा, काफल, आडू,
सब्बी धाणी खै ग्याई...

धन्यवाद तेरु रूड़ी,
आपस मिंत्र भेंटी ग्याई.
दाना सयाणा देखि की,
परदेश का बाटा पैंटी ग्याई...

धन्यवाद तेरु रूड़ी,
इनि सदानी आंदी रैई.
मेरा भाई-बंधु थैं,
यनि पहाड़ बुलान्दी रैई...

©22-06-15 अनूप सिंह रावत “गढ़वाली इंडियन”
ग्वीन मल्ला, बीरोंखाल, पौड़ी, उत्तराखंड

 

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